मीडिया में चार-छह घंटे रीता बहुगुणा जोशी एपिसोड में निकल गए. उसके बाद के 24 घंटे का विश्लेषण बता रहा है कि राजनीतिक प्रवृत्ति वाकई क्षणभंगुर हो चली है यानी राजनीति में कोई भी बात एक-दो दिन से ज्यादा टिक ही नहीं पा रही. फिर भी ऐसी बातें जनमानस के अर्धचेतन में या अवचेतन में जरूर चली जाती हैं. इसीलिए पत्रकारिता खबर लायक हर घटना का आगा-पीछा जरूर देखती और दिखाती है.
नया क्या दिखा इस मामले में
आमतौर पर जब कोई नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी में जाता है तो अपने फैसले के औचित्य का प्रचार करने के लिए कुछ पहले से पेशबंदी करने लगता है. यहां जोशी की तरफ से यह पहल नहीं दिखाई दी. हालांकि मीडिया में इसकी चर्चा जरूर करवाई गई. लेकिन उससे ज्यादा हलचल मच नहीं रही थी. इसका एक कारण यह हो सकता है कि जोशी जिस पार्टी में थीं उसमें भारी बदलाव के कारण वहां उनकी कोई हैसियत बची नहीं थी. इस बात के लक्षण बीजेपी ज्वाइन करने के अवसर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही उनकी बात में भी साफ दिखे. (रीता बहुगुणा जोशी 'दगाबाज' हैं, उनके पार्टी छोड़ने से हमें कोई नुकसान नहीं होगा : कांग्रेस)
दो बातें कहीं उन्होंने
पहली कि कांग्रेस में उसके चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर का रवैया प्रबंधक से ज्यादा निदेशक जैसा है और प्रशांत किशोर की हैसियत नेताओं से बड़ी हो गई. दूसरी बात में उन्होंने सीधे ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साध दिया. पहली बात का विश्लेषण इस तरह हो सकता है कि प्रशांत किशोर को लाया ही इसलिए गया है क्योंकि यूपी में पिछले 27 साल से प्रदेश का कोई नेता कांग्रेस को वापस सत्ता में ला नहीं पा रहा था. इन नेताओं में खुद रीता बहुगुणा जोशी को भी कांग्रेस ने लंबे वक्त तक शीर्ष स्तर के पदों पर रखा था. (जानिए, कौन हैं कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आईं रीता बहुगुणा जोशी, क्या हैं इसके मायने...)
रही दूसरी बात के विश्लेषण की तो पिछले एक महीने में राहुल गांधी के किसान रथ ने प्रदेश में कांग्रेस की हलचल मचा रखी थी. कांग्रेस को बढ़ने से रोकने यानी राहुल गांधी को रोकने के तौर पर जोशी के मुंह से ऐसा कहलाने से ज्यादा कारगर उपाय और क्या हो सकता था. ये उपाय कितना छोटा बड़ा है? इस समय यह बात करना ठीक नहीं है. कम से कम राजनीतिक खेल में बची-खुची नैतिकता के लिहाज से तो बिल्कुल भी ठीक नहीं है.
नैतिकता की बातों की गुंजाइश
बात सही हो या न हो, लेकिन युद्ध और प्रेम में सब जायज़ का मुहावरा खूब चलाया जाता है. और जब से राजनीति को युद्ध बताया जाने लगा तबसे हम यह भूलने लगे कि राजनीति में एक पद 'नीति' या 'नैतिक' भी है. लिहाजा ये बातें अब सुनने तक में ज्यादा आकर्षक नहीं बचीं. फिर भी अगर यह मानकर चलें कि अच्छी या बुरी प्रवृत्तियां हमेशा हमेशा के लिए खत्म नहीं होतीं. पृथ्वीवासियों के पास कम से कम ढाई हजार साल का व्यवस्थित राजनीतिक इतिहास का अनुभव है. इससे पता चलता है कि पहले भी जब कभी 'सो व्हाट' कल्चर यानी 'तो क्या' संस्कृति लाई गई, वह देर तक नहीं चली. इस विपत्ति काल में न सही, आगे कभी न कभी राजनैतिक निष्ठा या आदर्श या मूल्यों की बातें हमें करनी ही पड़ेंगी. (यूपी में कांग्रेस को झटका, बीजेपी में शामिल हुईं रीता बहुगुणा जोशी, कहा - फैसला आसान न था)
कुछ मनोरंजक स्थितियों का पूर्वानुमान
समाज के मनोरंजनप्रिय तबके के लोग हमेशा ही रोचक घटनाओं के इंतजार में रहते हैं. मानव समाज का बहुत बड़ा यह तबका इसीलिए अखबारों और टीवी कार्यक्रमों का बेसब्री से इंतजार करता है. अनुमान है कि आने वाले दिनों में जब रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस के खिलाफ प्रचार कर रही होंगी तब लोग उनके मुंह से अपनी वर्तमान पार्टी के खिलाफ कही बातों को याद करके मनोरंजक स्थिति का अनुभव कर रहे होंगे. हालांकि उन्हें जवाब देने की जरूरत पड़ेगी नहीं. जवाब मांगने वाला कोई अड़ ही गया तो जवाब के लिए यह भाषाई उपकरण उपलब्ध है ही 'सो व्हाट' यानी 'तो क्या हुआ.'
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
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This Article is From Oct 21, 2016
यूपी चुनाव : रीता बहुगुणा जोशी के बीजेपी में जाने के मायने...
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