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This Article is From May 04, 2019

हिन्दू धर्म को बयानों से फर्क नहीं पड़ता, चैनलों को पड़ता है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 04, 2019 18:03 pm IST
    • Published On मई 04, 2019 18:03 pm IST
    • Last Updated On मई 04, 2019 18:03 pm IST

बिना वेतन के 28 महीने से कोई कैसे जी सकता है. भारत सरकार की संस्था अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा बर्ताव करे और किसी को फर्क न पड़े. सिस्टम ने एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया. 29 अप्रैल को यह लिखकर आत्महत्या कर ली कि भारत सरकार ज़िम्मदार है.

आप यकीन नहीं करेंगे, 55 लोगों ने आत्महत्या कर ली है. इतनी बात बताने के लिए असम से चल कर दिल्ली आए हैं. मामला असम का है. हिन्दुस्तान पेपर कारपोरेशन लिमिटेड के स्थायी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है. 2015 से उनका प्रोविडेंट फंड भी जमा नहीं हुआ है. उनकी हालत ऐसी कर दी है कि मुझे बड़ी उम्र के कर्मचारी हाथ जोड़ कर खड़े थे. इंसान की ऐसी बेक़द्री हो रही है.

दि प्रिंट वेबसाइट पर रेम्या नायर की रिपोर्ट आई है. ओएनजीसी का कैश रिज़र्व 9,511 करोड़ से घट कर 167 करोड़ पर आ गया है. मोदी सरकार अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए ओएनजीसी के ख़जाने का इस्तमाल करती है. ओएनजीसी को अपना ख़र्चा चलाने के लिए पूंजी चाहिए. कम से कम 5000 करोड़.

सरकार को विनिवेश का लक्ष्य पूरा करना था. उसने ओएनजीसी पर दबाव डाला कि HPCL ख़रीदे. 36,915 की खरीद के लिए कंपनी ने 20,000 करोड़ का कर्ज़ लिया. कोरपोरेशन के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ.

पिछले 16 महीनों में भारत का ऑटोमोबिल सेक्टर शेयर बाज़ार में करीब 42 अरब डॉलर गंवा चुका है. ऑटोमोबिल सेक्टर में मंदी आ रही है. बैंकों में कैश नहीं है. उपभोक्ता के पास कार खरीदने के पैसे नहीं हैं. कार निर्माताओं की कारें बिक नहीं रही हैं. मारुति और महिंद्रा एंड महिंद्रा के शेयरों के दाम में गिरावट आई है. इनकी कारों की बिक्री घटती जा रही है.

अप्रैल में बेरोज़गारी 8 प्रतिशत से अधिक हो गई है. अमरीका से दबाव के कारण हिन्दी न्यूज़ चैनल हिन्दू एजेंडा पर लौटना का बहाना खोज रहे हैं. किसी का बयान मिल ही जाता है. उस बयान के सहारे एकाध घंटे का कार्यक्रम निकाल लिया जाता है ताकि लोगों को लगे कि बहुत ज़रूरी मसले पर बात हो रही है. चुनाव के समय धर्म के एजेंडे पर ये चैनल इसलिए लौटते हैं कि एक दल को लाभ हो. आप इनकी बहस निकाल कर देखें. बहुत से बयान बीजेपी के नेताओं की तरफ से दिए गए. मगर किसी ने बहस नहीं की होगी कि इस भाषा से हिन्दी धर्म की बदनामी होती है. उसकी छवि खराब होती है.

आप आर्थिक गतिविधियों पर नज़र रखिए. कुछ तो है कि पर्दादारी है. चैनलों की धार्मिक होती बहस का एक ही मतलब है. इशारा आया होगा कि ज़ोर लगाओ. हिन्दू हिन्दू करो. हिन्दू को ख़तरे में बताओ. रोज़गार और शिक्षा के ख़तरे को धर्म के ख़तरे से बदल दो.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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