यह लंबा वीडियो सेंट स्टीफेंस कालेज के छात्रों के प्रदर्शन का आपने देखा जो अपने कॉलेज से निकल कर दिल्ली यूनिवर्सिटी में हुए मार्च में जाकर घुल मिल गए. नागरिकता संशोधन कानून, नागरिकता रजिस्टर के विरोध में निकले इस मार्च का बड़ा मकसद जेएनयू, जामिया मिलिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई पुलिस हिंसा और नक़ाबपोश गुंडों की हिंसा का विरोध भी था. सेंट स्टीफेंस को अलग से रेखांकित करने का एक मकसद है. सेंट स्टीफेंस की गोदी मीडिया ब्रांडिंग नहीं कर सकता है. आप उन छात्रों की ब्रांडिंग किस कैटगरी में करेंगे जो 99 प्रतिशत अंक लाकर सेंट स्टीफेंस में एडमिशन पाते हैं. ज़ाहिर है वे पढ़ाई ही करते होंगे. लेकिन जब पुलिस इस तरह घुस कर यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में मारे और जेएनयू के हास्टल में नकाबपोश गुंडे चले आएं तभी पढ़ाई का लेक्चर क्यों दिया जाता है. ये लेक्चर क्यों नहीं दिया जाता है कि हिंसा में शामिल नक़ाबपोश पर कार्रवाई हो. सोचिए, अब कोई सवाल ही नहीं कर रहा है कि दिल्ली पुलिस गृहमंत्री अमित शाह के तहत आती है और रविवार से लेकर बुधवार आ गया मगर एक भी नक़ाबपोश गुंडा नहीं पकड़ा गया. वे कैमरों में जेएनयू से निकलते हुए देखे जा रहे हैं, हास्टल में मारते हुए देखे जा रहे हैं, कैंपस में लाठी डंडे के साथ खड़े देखे जा रहे हैं तब भी अभी तक एक की गिरफ्तारी नहीं हुई है. जेएनयू के वाइस चांसलर ठाठ से कहते हैं कि वे घायल छात्रों से मिलने नहीं गए. घायल टीचर से मिलने नहीं गए लेकिन उनके दरवाज़े इनके लिए खुले हैं. मतलब जो घायल है वो मिलने जाए. ऐसी महानता और उदारता का नमूना 2020 में ही देखने को मिल सकता है.
सेंट स्टीफेंस के छात्रों का इस तरह से सड़क पर आना, जेएनयू, जामिया मिलिया और एएमयू के खिलाफ उस चुप्पी को तोड़ना है जिसकी तरफ इशारा कर बताया जा रहा था कि समाज में पुलिस हिंसा के प्रति समर्थन है. क्योंकि वो समाज सिर्फ अपने बहुसंख्यक धर्म के चश्मे से देख रहा है. ये मिथक बनाया जा रहा है जबकि आप देख रहे हैं कि आधा से अधिक कालेज कक्षाओं का बहिष्कार करता है. जेएनयू से निकला आजादी का नारा भारत के अनगिनत कालेजों में पहुंच गया है. सेंट स्टीफेंस का इतिहास जानने वाले बताते हैं कि आखिरी बार इतना बड़ा प्रदर्शन 1990 के दशक में हुआ था. इस प्रदर्शन का एक महत्व यह भी है कि नेतृत्व के मोर्चे पर लड़कियां हैं. जेएनयू और जामिया में पुलिस और गुंडों की हिंसा को लड़कियों ने ज़्यादा झेला है. एक इतिहास और है इस कालेज का. 1915 में जब महात्मा गांधी भारत आए तो दिल्ली में सेंट स्टीफेंस कालेज के प्रिंसिपल के यहां रुके थे. तब कालेज का परिसर यहां नहीं था. इसी कालेज में हिन्दू कालेज के छात्र और शिक्षक भी गांधी जी से मिलने पहुंचे थे. असहयोग आंदोलन का ड्राफ्ट इसी कालेज के परिसर में तैयार किया गया था. तब गांधी की उम्र मात्र 39 साल थी. गांधी ने इसी कालेज से असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था, तब अग्रेज़ों की पुलिस जामिया की तरह लाइब्रेरी में घुस कर नहीं मारी थी. बल्कि प्रो रामगुहा कहते हैं कि ब्रिटिश दौर में कभी भी किसी कालेज की लाइब्रेरी में हमला नहीं हुआ था. आखिर कब तक इस कानून के विरोध को एक मज़हब के विरोध तक सीमित किया जाता रहेगा जबकि तस्वीरें कुछ और कहती हैं. आम तौर पर सियासी गतिविधियों से दूर रहने वाला यह कालेज बरसात में भी छाते के साथ सड़क पर था. शिक्षक और छात्र दोनों.
मार्च दिल्ली यूनिवर्सिटी का भी बड़ा था. हज़ारों की संख्या में छात्र इस मार्च में शामिल हुए. दिल्ली यूनिवर्सिटी के अलग अलग कालेजों के छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ इसलिए आए थे ताकि संदेश जाए कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध जामिया के मोहल्ले का विरोध नहीं है जिसकी पहचान आसानी से एक मज़हब से जोड़ दी जा रही है. अभी तक इन प्रदर्शनों को मुसलमानों का प्रदर्शन बताकर खारिज किया जाता रहा लेकिन प्रदर्शनों के विस्तार को देखिए तो यह सिर्फ कानून के विरोध और यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा के विरोध का है. संविधान के प्रति आस्था का है.
यह वीडियो अर्जुन ने शूट किया है. आप देख सकते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की आर्ट्स फैकल्टी परिसर में छात्रों का हुजूम जमा है. डीयू में किरोड़ीमल कालेज से लेकर पटेल चेस्ट तक मार्च निकाला गया. बारिश में भीगते हुए पूरे कैंपस में छात्रों ने मार्च किया और आर्ट्स फैकल्टी जमा हुए. शिवाजी कालेज, लॉ फैकल्टी, ज़ाकिर हुसैन, लेडी श्री राम कालेज, डेल्ही स्कूल आफ इकोनोमिक्स, किरोड़ीमल कालेज रामजस कालेज, हंसराज कालेज, मिरांडा कालेज, गागी कालेज, वेंकटेश्वर कालेज, हिन्दू कालेज, इंदप्रस्थ कालेज, अंबेडकर यूनिवर्सिटी से भी छात्र छात्राओं का हुजूम पहुंच कर आर्ट्स फैक्लटी में जमा हो गया. लायर्स ऑन स्टैंडबाई नाम का संगठन भी वहां था ताकि प्रदर्शन में शामिल छात्रों को कानूनी सहायता दी जा सके. इसके बैनर पोस्टर पर लिखा था शांति और प्यार के लिए मार्च पर चलो. लॉ फैकल्टी के छात्र छात्राओं के लिए. सौरभ शुक्ला हमारे सहयोगी कवर कर रहे थे. इस मार्च में एबीवीपी और एनएसयूआई के सदस्य शामिल नहीं थे. क्या यह भी संकेत है कि इन दो बड़े संगठनों के दायरे से बाहर निकल कर भी छात्र मार्च कर रहे हैं? डीयू का मार्च Young India coordination committee की तरफ से आयोजित किया गया था. इस मार्च में पिंजड़ा तोड़ और लेफ्ट समर्थक संगठनों ने भी हिस्सा लिया था.
जब से नागरिकता संशोधन कानून पास हुआ है तब से भारत भर में अनगिनत प्रदर्शन हुए हैं. हर दूसरे दिन प्रदर्शन हो रहे हैं. कई ऐसे कालेज हैं जहां के प्रदर्शन की सूचना दिल्ली तक पहुंच भी नहीं पा रही है न संभव है. आईआईएम अहमदाबाद और आईआईएम बंगलुरू के छात्र भी इस कानून को और पुलिस की बर्बरता को नाइंसाफी मानते हुए प्रदर्शन करने से खुद को रोक नहीं सके. आईआईएम अहमदाबाद भी बहुत दिनों बाद राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गया है. जानने वाले तो यही कहते हैं कि 32 साल में उनका संस्थान इस तरह से बदला हुआ दिख रहा है.
ये तस्वीर तो 6 जनवरी की है. आईआईएम अहमदाबाद के छात्रों और शिक्षकों की ज़ुबान पर फैज़ की नज़्म है. पोस्टरों पर लिखा है कि जेएनयू तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं. ये जेएनयू पर नहीं, देश के विद्यार्थियों पर हमला है. 6 जनवरी के प्रदर्शन में गुजरात विद्यापीठ, गुजरात यूनिवर्सिटी, सीईपीटी यूनिवर्सिटी, एनआईडी अहमदाबाद, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नालजी, अहमदाबाद यूनिवर्सिटी और आईआईटी गांधीनगर के छात्र छात्राएं भी शामिल हुए हैं. यही नहीं अहमदाबाद में छात्रों के कई प्रदर्शन हुए हैं. 15 दिसंबर को, 17 दिसंबर को, 19 जिसंबर को और 29 दिसंबर को. कई बार छात्रों का समूह डिटेन भी हुआ है जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया. इन प्रदर्शनों में प्रोफेसर और सिविल सोसायटी के लोग भी शामिल होते रहे हैं.
एक वीडियो 8 जनवरी का है. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने भी जेएनयू और जामिया मिलिया, एएमयू में हुई हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन किया है. फीस वृद्धि के खिलाफ और मज़दूरों की हड़ताल के समर्थन में भी. शाम को कैंडल मार्च भी किया है. सरकार और मीडिया भले ही छात्रों के फैलते आंदोलनों से नज़र फेर ले मगर उससे उनके आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. प्रशासन ने भीतर प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी तो छात्रों ने बाहर जाकर किया. इसमें 200 के करीब अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और रिसर्च स्कालर शामिल थे. आईआईटी बांबे में भी सोमवार से लगातार जेएनयू की हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे. शिक्षक और छात्र हिस्सा ले रहे हैं.
हर जगह आप देखेंगे कि लड़कियों को ज़्यादा मारा जा रहा है? क्या इसलिए कि इन प्रदर्शनों में लड़कियों लड़कों की बराबरी कर रही हैं या कई जगहों पर लीड लेती नज़र आ रही हैं. उनके साथ हिंसा होने के बाद भी उनकी भागीदारी पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. बुधवार को जेएनयू के भीतर मीडिया को जाने से रोकने की खबर आई. जेएनयू के शिक्षक संघ और छात्र संघ ने 9 जनवरी को मार्च का एलान किया है. यह मार्च मंडी हाउस से मानव संसाधन मंत्रालय तक जाएगा. इस मार्च में वीसी को हटाने से लेकर फीस वृद्धि वापस लेने के मुद्दे उठाए जाएंगे. कांग्रेस ने भी जेएनयू की हिंसा की जांच के लिए एक फैक्ट फाइडिंग कमेटी बनाई है जिसके सदस्यों ने यूनिवर्सिटी के छात्रों से मुलाकात की है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने कहा है कि जामिया मिलिया और जेएनयू के खिलाफ हुई हिंसा पर चिता ज़ाहिर करते हुए विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया है. अब आते हैं जेएनयू की घटना की जांच से जुड़े से सवालों पर.
एक वीडियो 4 जनवरी का है. इस वीडियो में एबीवीपी के सर्वेंदर कुमार आईसा के विवेक पांडे को पीटते हुए देखे जा सकते हैं. वहां पर प्रोफेसर भी मौजूद हैं. इसके बाद भी मामला सर्वेंदर पर नहीं, आइसा के विवेक के खिलाफ दर्ज होता है जो इस वीडियो में मार खा रहे हैं. इस वीडियो में पेरियार के वार्डन लाल कुर्ते और भूरे जैकेट में तपन बिहारी भी दिख रहे हैं जो कभी एबीवीपी से जुड़े रहे हैं.
इसी तरह आपने 4 जनवरी का ही एक और वीडियो देखा था जिसमें अपेक्षा प्रियदर्शनी को एबीवीपी के शिवम चौरसिया मारते हुए और धकेलते हुए देखे जा सकते हैं. ये दोनों वीडियो इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 6 तारीख की हिंसा से ध्यान बंटाने के लिए 4 तारीख की हिंसा का हौवा खड़ा किया गया कि उस दिन लेफ्ट के लोगों ने एबीवीपी के छात्रों को मारा. लेकिन दो वीडियो में आपने देखा कि एबीवीपी के ही छात्र पीटते हुए देखे जा रहे हैं.
लेकिन 4 तारीख की हिंसा के मामले में जो एफआईआर हुई है उसमें आरोपी जेएनयू छात्र संघ की प्रेसिडेंट ओइशी घोष को आरोपी बना दिया गया है जिनके सर में गंभीर चोट है. यही नहीं आप एक और वीडियो में देख सकते हैं कि रविवार की हिंसा के बाद संस्कृत विभाग के काउंसलर और एबीवीपी के कृष्णा राव और उनके साथी कैसे दिल्ली पुलिस के नाम पर दूसरे छात्रों को धमका रहे हैं.
यह कहा जा रहा है कि घटना की सीसीटीवी रिकार्डिंग नहीं है क्योंकि 3 जनवरी से सर्वर ठप्प था जिसे छात्रों ने ठप्प कर दिया है. लेकिन हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर ने एफआईआर का अध्ययन कर बताया है कि नॉर्थ और मेन गेट पर चार सीसीटीवी कैमरे हैं. 5 जनवरी को दोपहर 3 से 11 बजे के बीच रिकार्डिंग हुई होगी. उम्मीद है इसकी रिकार्डिंग होंगी.
अरविंद ने टेक्निकल स्टाफ से बात की और उनसे पता चला कि मेन गेट पर जो सीसीटीवी है उसका सर्वर रूम मेन गेट पर ही है. जो सीसीटीवी वहां है उसकी रिकार्डिंग उसी सर्वर में होती है बल्कि वहां से क्लाउड में जाकर रखी जाती है. मतलब यह हुआ कि सीसीटीवी के सर्वर को कुछ हो भी गया तो भी वो फुटेज क्लाउड में सुरक्षित होगी, लेकिन वहां तो कुछ हुआ भी नहीं.
अब देखिए यही बात जेएनयू की वेबसाइट पर भी लिखी है कि उनका डेटा क्लाउड में है. क्लाउड एक तीसरी जगह है जहां पर डेटा सुरक्षित रखा जाता है. जेएनयू ने लिखा है कि इस डेटा को नष्ट नहीं किया जा सकता है. ये डेटा भविष्य में काम आ सकता है. यह भी लिखा है कि अगर यूपीएस सिस्टम फेल कर जाए, पावर सप्लाई न हो तो भी इस पर असर नहीं पड़ेगा. मतलब सर्वर पर सीधा हमला होता भी है तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता है. बाकी कैमरे चलते रहेंगे. ये समझ लेना ही होगा.
जेएनयू प्रशासन जिस सर्वर रूम में क्षतिग्रस्त होने का दावा कर रहा है उसका मेन गेट के सर्वर से कोई लेना देना नहीं है. एफआईआर के अनुसार 1 जनवरी को 1 बजे मास्कर पहन कर छात्र आए एडमिन ब्लाक के सर्वर रूम के ताले को लाक कर दिया और दरवाज़े को घेर लिया. बिजली गुम कर दी. एक दूसरी एफआईआर में 4 जनवरी की घटना का ज़िक्र है, इसी सर्वर रूम से संबंधित, इस दिन भी मास्क पहन कर छात्र आते हैं और सुबह 6 बजे गार्ड को धक्का देकर, सर्वर रूम को क्षतिग्रस्त किया. फाइबर केबल को डैमेज किया. कमरे के अंदर का बायोमेट्रिक सिस्टम तोड़ दिया. मगर ये सर्वर रूम अगर क्षतिग्रस्त हुआ होता तो जेएनयू की वेबसाइट कैसे चल रही थी. लेकिन 4 जनवरी को ही वेबसाइट पर जेएनयू ने एक नोटिस अपलोड किया है. अगर सर्वर काम नहीं कर रहा था तो चार जनवरी को वेबसाइट कैसे काम कर रही थी. नीता शर्मा का कहना है कि दिल्ली पुलिस को सीसीटीवी का फुटेज मिला है.
5 जनवरी की शाम दर्ज एफआईआर में एक बड़ा झोल है. एफआईआर में सर्वर रूम में पहली घटना 1 जनवरी 1 बजे की है. मगर रजिस्ट्रार ने एक नोटिस निकाला है उसके अनुसार 3 जनवरी को 1 बजे की घटना हुई है. अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि छात्र 1 और 3 जनवरी को 1 बजे आकर सर्वर रूम में नुकसान पहुंचाते हैं और 1 बजे जेएनयू सोया रहता है. बहानेबाज़ी की भी हद होती है. बैक डेट में बहाने बनाने से यही होता है. एक चीज़ समझिए. घटना हुई, टीवी पर बड़े बड़े इंटरव्यू चालू हो गए. हिंसा की घटना से संबंधित बारीकियों तक मीडिया पहुंच ही नहीं सका. जब तक आप इन सवालों से जेएनयू के भीतर हुई हिंसा और बाद में पुलिस और प्रशासन की जांच को नहीं समझेंगे, बहस से कुछ निकलने वाला नहीं है. वैसे भी इस रिपोर्टिंग का भी जेएनयू प्रशासन पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. प्रशासन ने 5 जनवरी रविवार की हिंसा को लेकर अपनी तरफ से कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. पुलिस के पास 11 शिकायतें पहुंची हैं. जिसमें से 3 एबीवीपी ने दर्ज कराई हैं और 7 लेफ्ट के छात्रों ने. एक प्रोफेसर सुचारिता सेन की है.