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This Article is From Sep 03, 2019

2016 से ही ट्रैफिक जुर्माना थोपने का बोगस विचार चल रहा है...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 03, 2019 17:22 pm IST
    • Published On सितंबर 03, 2019 17:22 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 03, 2019 17:22 pm IST

2016 से ही ट्रैफिक जुर्माना थोपने का बोगस विचार चल रहा है. एक ग़रीब मुल्क में दस दस हज़ार लोगों से वसूलने की यह तरकीब आज लोगों को बेचैन कर रही है लेकिन जब इस पर सवाल उठ रहा था तब लोग चैनलों के चिरकुटिया राष्ट्रवाद के सुख में डूबे थे. अब मज़ाक़ उड़ाने से क्या फ़ायदा. सरकार वसूली एजेंट बनती जा रही है. सिस्टम बनने से पहले जुर्माना आ गया. जिन देशों से आया है वहां पहले सिस्टम बना है. लेकिन वहां भी जुर्माने की बदहवास राशि ने आम लोगों पर क़हर ढाया है. ख़ैर जब प्रस्ताव बन रहा था तब लोग क्यों नहीं बहस कर रहे थे, सरकार को क्यों नहीं फ़ीडबैक दे रहे थे?

हमने 9 अगस्त 2016 को इस पर एक प्राइम टाइम किया था. उन्हीं दिनों के आस-पास अमरीका में हुई एक घटना का ज़िक्र वाशिंगटन पोस्ट ने किया था. निकोल बोल्डन नाम की 32 साल की अश्वेत महिला एक दिन कार से कहीं जा रही थीं. तभी सामने वाली कार ने ग़लत तरीके से यू-टर्न किया और ब्रेक लगाने के बाद भी बोल्डन की कार टकरा गई. बोल्डन की कार में उसके दो छोटे बच्चे थे लेकिन सामने की कार वाले ने पुलिस बुलाई और बोल्डन गिरफ्तार हो गई. बोल्डन के खिलाफ पहले से ही ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के मामले में तीन-तीन वारंट जारी हो चुके थे क्योंकि कमज़ोर आर्थिक स्थिति के कारण बोल्डन जुर्माना नहीं भर पाई थी. एक वकील ने बताया है कि इसे हम पॉवर्टी वायलेशन कहते हैं यानी ग़रीबी के कारण लोग जुर्माना नहीं दे पाते. बीमा का प्रीमियम नहीं भर पाए तो जुर्माना, जुर्माना नहीं दे पाए तो गिरफ्तारी का वारंट. बोल्डन ने एक अदालत में किसी तरह ज़मानत की राशि तो भर दी मगर दूसरे वारंट में गिरफ्तार हो गई. ऐसे लोगों की मदद करने वाले वकीलों की संस्था ने जुर्माना राशि को 1700 अमरीकी डॉलर से कम कराने के खूब प्रयास किये. 1700 अमरीकी डॉलर मतलब भारतीय रुपये में एक लाख रुपये से भी अधिक का फाइन. किसी तरह यह कम होकर 700 डॉलर हुआ यानी 42 हज़ार से कुछ अधिक. इस दौरान उसे 1 महीने से ज्यादा जेल में रहना पड़ा. वकीलों का कहना है कि यह समझना ज़रूरी है कि यह अपराध नहीं है. ग़लती है.

'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट कहती है कि बड़ी संख्या में लोग वकील तक नहीं रख पाते हैं. सेंट लुई काउंटी की कमाई का 40 फीसदी हिस्सा जुर्माने से आता है. अमरीका में हालत ये हो गई है कि बेल बांड भरवाने के लिए कंपनियां खुल गई हैं. बकायदा ये बिजनेस हो गया है. ज़रूरी नहीं कि भारत में भी ऐसा हो ही जाए लेकिन फाइन की राशि अधिक होने पर दूसरी समस्याओं को दरकिनार नहीं कर सकते.

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