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This Article is From Apr 25, 2019

...और हैम्पर दिया जाता है - PM नरेंद्र मोदी के अक्षय कुमार को दिए इंटरव्यू पर शोभा डे

Shobha De
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 26, 2019 10:49 am IST
    • Published On अप्रैल 25, 2019 19:26 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 26, 2019 10:49 am IST

एक खिलाड़ी से दूसरे खिलाड़ी तक - ढेरों बेवकूफियों से भरे इस चुनावी दौर में यह बहुप्रचारित नॉन-इंटरव्यू शर्तिया सबसे बड़ी बेवकूफी कहा जाएगा. सवाल यह है - 'खिलाड़ी नंबर 1' बनकर कौन सामने आया...? वह शख्स, जो स्क्रीन पर स्टंट किया करता है, या वह शख्स, जो असल ज़िन्दगी में लगातार स्टंट करता रहता है...? इन दोनों ही लोगों को किसी बॉडी डबल (डुप्लीकेट) की ज़रूरत नहीं पड़ती. इनमें से एक खिलाड़ी के सीने का माप भी हम जानते हैं. इसके बाद मैं दोनों के दिमाग का माप जानना चाहूंगी. अभिनेता (दरअसल, दोनों ही अभिनेता के तौर पर क्वालिफाई करते हैं) के चाहने वाले यह सोच-सोचकर हैरान हैं कि अक्षय गपबाज़ मोदी के साथ कर क्या रहे थे...? अक्षय कुमार अपने दमखम के लिए जाने जाते हैं. नरेंद्र मोदी अपने... अपने दमखम के लिए ही जाने जाते हैं. डायलॉगबाज़ी के लिहाज़ से दोनों मैचिंग हैं. भले ही दोनों की लाइनें एक ही जैसी बेकार होती हैं, फिर भी हमारा अंदाज़ा है कि दोनों का डायलॉग लेखक एक ही नहीं है. अक्षय अपनी मांसपेशियों से ज़्यादा बात करते हैं, और मोदी बाहुबल में यकीन करते हैं. नतीजा एक जैसा ही रहता है - स्क्रीन और उसके इतर, दुश्मन का सर्वनाश. अक्षय कुमार फिटनेस फ्रीक हैं, न धूम्रपान करते हैं, न शराब पीते हैं. ठीक ऐसे ही मोदी हैं. बो-रिं-ग... दोनों सुबह जल्दी उठने वाले हैं. बहुत ज़्यादा खुद पर ध्यान देने वाले. अक्षय कुमार फिल्म इंडस्ट्री के सहयोगियों के साथ मिलते-जुलते नहीं हैं. और ऐसे भी बहुत ज़्यादा लोग नहीं होंगे, जो नरेंद्र मोदी से नियमित रूप से मिलना चाहते होंगे. अक्षय कुमार के पास ट्विंकल खन्ना हैं. नरेंद्र मोदी के पास अमित शाह हैं. आप खुद ही सोचिए...

अब फ्लॉप इंटरव्यू की बात करते हैं... हम्म... क्या यह 'केसरी रंग' में रंगी सीधी-सादी बातचीत थी. फिल्म (अक्षय की 'केसरी') ने बॉक्स ऑफिस पर बढ़िया प्रदर्शन किया है, और उसे प्रधानमंत्री की सिफारिश की ज़रूरत नहीं है. फिर...? सबसे पहले दिखाई देता है, अक्षय का ललचाने वाला ट्वीट.

और फिर सब घोषणा का इंतज़ार करने लगे - अक्षय कुमार BJP में शामिल हो गए हैं. ऐसा नहीं हुआ... चूंकि बॉलीवुड के बड़े सितारों में से आधे आजकल अलग-अलग राजनैतिक दलों में शामिल हो रहे हैं, और फिल्मों से ज़्यादा कमा रहे हैं, लोगों ने सोचा - चलो, एक और सही... लेकिन नहीं, यह इस 'इंटरव्यू' का टीज़र था. इस काम के लिए अक्षय को क्यों चुना गया...? विवेक ओबेरॉय क्यों नहीं...? अनुपम खेर...? कोई और वफादार...? तीनों खानों में से कोई क्यों नहीं...? वह तो निश्चित रूप से बेहद कामयाब रहता... लेकिन खानों में से कोई 'ऐसा' काम क्यों करेगा...? वे शातिर हैं, जो अपने प्रशंसकों के बीच किसी तरह के विवाद में नहीं फंसना चाहेंगे, भले ही पैसे को ठोकर मारनी पड़े. हां, मोदी जी को लोगों को हैरान करने में, सरप्राइज़ देने में मज़ा आता है. सीधे मुकाबला करने की जगह छिपकर किए गए हमले उनके स्टाइल को सूट भी करते हैं. खैर, सोचकर देखिए - अक्षय काफी बड़े सितारे हैं, जिन्होंने बढ़िया ढंग से वफादारी भी साबित की है. उनकी पिछली कुछ फिल्में ('पैडमैन', 'गोल्ड') देखिए. वे राजनैतिक संदेशों को मनोरंजन की चाशनी में लपेटकर देने का बेहतरीन उदाहरण हैं. जब मैंने 'टॉयलेट - एक प्रेम कथा' देखी, मैं थीम को चतुराई से पेश करने के तरीके से इम्प्रेस भी हुई. उस वक्त मैंने सोचा था, अक्षय कुमार ने नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का फायदा उठाया है. सारी गंदगी से छुटकारा पा जाइए. लेकिन आज हमारे आसपास पहले से कहीं ज़्यादा गंदगी मौजूद है.

किसी ने मुझसे पूछा, "इस इंटरव्यू का क्या औचित्य था...?" सवाल अच्छा है, लेकिन कोई जवाब...? कोई भी दे सकेगा...? फैसले के दिन से पहले इसे मोदी की 'फिल्मी स्टाइल' में की गई 'सर्जिकल स्ट्राइक' करार देना इसकी तारीफ करना हो जाएगा. जैसे-जैसे घिसी-पिटी बातें होती रहीं, वे बेमतलब की बातों की तरफ बढ़ती चली गईं, और दोनों ही शख्स प्रधानमंत्री आवास के बेहद खूबसूरत बगीचे में टहलते रहे, मैं सिर्फ इतना ही सोच पाई - अगर दो खराब अभिनेता एक ब्लॉकबस्टर देने की कोशिश करें, जिसमें कोई निर्देशक नहीं है, कोई पटकथा लेखक नहीं है, कोई सहायक अभिनेता भी नहीं हैं, नतीजा तो फ्लॉप होना ही था. 'वॉक द टॉक' तो छोड़िए, करने लायक कोई बात ही नहीं थी. अक्षय ने मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, 'सच... आप गुजराती हैं...?' बस, उसी वक्त मैंने टीवी बंद कर दिया. अक्षय ने ऐसा क्यों किया...? क्यों, अक्षय, क्यों...? अक्षय ने सिर्फ एक बात साबित की, मंझले दर्जे का अभिनेता इंटरव्यू लेने वाले के तौर पर उससे भी बेकार साबित होता है. क्या कोई सचमुच जानना चाहता है कि प्रधानमंत्री की आम के बारे में क्या राय है...? फैशन के बारे में...? ध्यान रखिएगा, मैंने फैशन कहा है, फासिज़्म शब्द से कन्फ्यूज़ न हो जाइएगा... ठीक है...? 'खिलाड़ी कुमार' को भविष्य में ताइक्वांडो पर ही ध्यान देना चाहिए...

और हैम्पर दिया जाता है, प्रधानमंत्री आवास के बेहद खूबसूरत बगीचे की घांस को संवारने वाले को...

शोभा डे मशहूर लेखिका, स्तंभकार और विचारक हैं और संस्कृति व समाज के मुद्दों पर अधिकार रखने वालीं रचनाकार मानी जाती हैं...

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