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हमेशा होठों पर मुस्कान..मूछों पर ताव...और यह "सिग्नेचर स्टाइल"...बहुत याद आओगे गब्बर!

Manish Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 24, 2024 18:20 pm IST
    • Published On अगस्त 24, 2024 17:11 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 24, 2024 18:20 pm IST

Shikhar Dhawan Retires from International and Domestic Cricket: हालात से इतर चेहरे पर हमेशा मुस्कान...एकदम कूल डूड...बाल्ड हेड के साथ बड़ी मूछें...बीच-बीच में मुछों पर ताव देना...और कैच लपकने के बाद दर्शकदीर्घा की ओर हाथ ऊपर उठाकर जांघ पर थपकी देना तो मानो धवन का सिग्नेचर स्टाइल ही बन गया! बच्चे तो बच्चे, बड़ों ने भी उनके इस सिग्नचेर स्टाइल को लपकने में देर नहीं लगाई. हालिया सालों में ये "तत्व" शिखर धवन के व्यक्तित्व का गहना बन चुके थे! और इसने धवन को एक अलग ही अंदाज में मैदान पर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया. यह वह धवन था, जो करियर के शुरुआती दिनों से अलग था! समय गुजरने के साथ धवन की मैदानी स्टाइलों में इजाफा होता गया. और दुनिया ने मैदान पर ऐसे "गब्बर" को देखा, जिसके मैदानी तेवर भले ही "दबंगई" से भरे थे, लेकिन इन तमाम बातों ने उनकी विनम्रता, मस्ती और चिर-परिचित मुस्कान पर रत्ती भर भी असर नहीं डाला. 

कुछ ऐसा ही बेपरवाह अंदाज धवन की बैटिंग शैली में भी झलका. उनकी तकनीक बहुत हद तक गैरपरांपरिक थी, द्रविड़ की तरह मजबूती और सहवाग जैसे आकर्षण का अभाव था, वह शफल करके नहीं खेलते थे! शुभमन गिल की तरह नैसर्गिक रूप से उनके पास कुछ एक्स्ट्रा सेकेंड भी नहीं थे, लेकिन अपनी क्षमता को बहुत ही शानदार अंदाज में समायोजित किया धवन ने. ठीक वैसे, जैसे उन्होंने जीवन के सबसे मुश्किल दौर को मुस्कान के साथ खूबसूरती के साथ समायोजित किया. फ्रंटफुट पर शॉट खेलने से पहले ही  पैर खासा आगे निकलने के बावजूद धवन पिछले पैरों पर वजन डालते हुए "बैकफुट संतुलन" से गनगनाते हुए ड्राइव खेलते रहे. फॉर्म अच्छी रही हो या रनों का अकाल रहा हो, लेकिन धवन ने कभी अपनी शैली से समझौता नहीं किया. शॉट खेलना है, तो बस खेलना है! फिर परिणाम कुछ भी हो या मीडिया कुछ भी लिखता रहे!

धवन की प्रतिभा को साल 2004 अंडर-19 विश्व कप के जरिए दुनिया ने पहली बार देखा. वह पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बना कर प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने थे. तब, गब्बर ने 84.16 के औसत से 505 रन बनाए थे. इस विश्व कप में सुरेश  रैना भी टीम में थे, लेकिन इस "धमक" के बावजूद धवन को टीम इंडिया की जर्सी पहनने के लिए खासा लंबा इंतजार करना पड़ा. जहां, रैना को अगले साल ही भारत के लिए खेलने का मौका मिल गया, तो धवन की घरेलू क्रिकेट में "नियमित दबंगई" के बावजूद साल 2010 में भारत के लिए करियर का आगाज  करने का मौका मिला और कुछ ऐसा ही हुआ टेस्ट क्रिकेट में, जब मोहाली में धवन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ साल 2013 में पहला टेस्ट खेला. इस देरी की वजह यह रही कि पारी की शुरुआत करने के लिए उनका मुकाबला सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और अपने दिल्ली के साथी वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर जैसे दिग्गजों से था. 

मगर इस देरी के बावजूद धवन ने न जिद को छोड़ा, न धैर्य को और न ही चिर-परिचित मुस्कान को. यही वजह रही कि सिर्फ 34 टेस्ट खेल  सके धवन देश के लिए 167 वनडे खेलने में कामयाब रहे. करियर के पहले ही टेस्ट मोहाली में 174 गेंदों पर खेली 187 रन सहित कई ऐसी पारियां खेलीं, जो करोड़ों फैंस के जहन में हमेशा कौंधती रहेंगी. इस विस्फोटक पारी ने यह भी बताया कि धवन को टेस्ट कैप देने में कितनी देर हो गई! अगर समय रहते धवन को कैप दी गई होती, तो अपने हक के 60-70 टेस्ट जरूर खेलते!

पिछले कुछ सालों में धवन के एक और नए पहलू के दर्शन दुनिया ने किए. कभी वह बांसुरी बजाते दिखाई पड़े, तो उनका "आध्यात्मिक रूप" भी सामने आया. वह किसी योगी की तरह बातें करते दिखाई पड़े. वहीं, हालिया समय धवन के लिए बहुत ही ज्यादा मुश्किल रहा है. पत्नी के साथ तलाक की खबरें मीडिया में आईं, तो युवा खिलाड़ियों की जोरदार दस्तक के बीच धवन टीम इंडिया से अंदर-बाहर होते रहे. ये ऐसे हालात थे, जिससे कोई भी हिल जाता, लेकिन इससे अलग धवन जरुरत पड़ने पर टीम इंडिया और अपनी आईपीएल टीम के लिए उपलब्ध रहे, तो बीच-बीच में रचनात्मक रीलों के जरिए अपना गम छिपाकर करोड़ों फैंस को मुस्कान प्रदान करते रहे. वेल प्लेड गब्बर..आप जिंदगी की पिच पर भी बहुत ही शानदार खेले. आपने युवाओं को कॉन्फिडेंस दिया..आप बहुत याद आओगे !

मनीष शर्मा एनडीटीवी में डिप्टी न्यूज एडिटर के पद पर कार्यरत है...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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