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This Article is From Jul 25, 2016

नरसिंह के जरिए समझिए खेलों की राजनीति का चेहरा

Shailesh Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    July 25, 2016 15:16 IST
    • Published On July 25, 2016 15:16 IST
    • Last Updated On July 25, 2016 15:16 IST
बीजिंग ओलिंपिक से ठीक पहले की बात है। वेटलिफ्टर मोनिका देवी रवाना होने वाली थीं। लेकिन उन्हें प्लेन में चढ़ने से पहले ही रोक दिया गया। चंद घंटों पहले रिपोर्ट आई जिसमें उन्हें डोप टेस्ट में फेल बताया गया था। आंसुओं में डूबी मोनिका का चेहरा हर उस शख्स के जेहन में होगा, जो उस वक्त उनसे मिलने गया था। अब आठ साल बाद एक और घटना सामने आई है। जब पहलवानों को रियो के लिए वाया जॉर्जिया रवाना होना था, उसी रोज उनका जाना रद्द कर दिया गया।

इस बार नरसिंह पंचम यादव डोप टेस्ट में फेल हुए हैं। मोनिका का नाम आम लोगों को ज्यादा नहीं पता था। लेकिन नरसिंह का नाम शायद बच्चे-बच्चे को पता होगा। पिछले दिनों सुशील कुमार और उनके बीच अदालत तक चली गई जंग सबके सामने थी। अदालत में जीतकर ही वे रियो जाने वाले थे। नरसिंह को थोड़ा-बहुत जानने वाले के मन में पहली बात यही आती है कि कहीं उन्हें फंसाया तो नहीं गया।

क्यों होता है फंसाए जाने का शक
नरसिंह को फंसाये जाने के संदेह के पीछे की अहम वजह है उनके शरीर में एनाबॉलिक स्टेरॉयड का पाया जाना।इस स्टेरॉयड का नाम है मेथाएंडिएनॉल। तमाम मेडिकल पैनल का हिस्सा रहे सीनियर डॉक्टर पीएसएम चंद्रन का कहना है कि आधुनिक दौर में डोपिंग के लिए कोई इसका इस्तेमाल नहीं करता। इसका इस्तेमाल मांसपेशी बेहतर करने के लिए होता है। यह आउटडेटेड स्टेरॉयड है।

किसी भी बड़ी चैंपियनशिप से पहले पहलवानों का वजन बढ़ा हुआ होता है। उसे कम करना चैंपियनशिप से 15-20 दिन पहले का काम होता है। इस वक्त नरसिंह का वजन करीब 81 किलो बताया जा रहा है यानी उन्हें सात किलो वजन कम करना था। जिसे वजन कम करना हो, वह भला मांसपेशी बनाने का स्टेरॉयड क्यों लेगा? वह भी चैंपियनशिप से महज एक महीना पहले? डॉक्टर चंद्रन के मुताबिक, स्टेरॉयड, एक टेबलेट फॉर्म में लिया जाए तो असर दो से चार सप्ताह और इंजेक्शन से लिया जाए तो चार से आठ हफ्ते तक होता है। तो क्या नरसिंह ने टेबलेट ली ताकि दो हफ्ते में असर खत्म हो जाए। उसके बाद वह वजन कम करें? यह थ्योरी गले उतरती नहीं है।

एक अन्‍य वजह है, कुश्ती में उनके ट्रेनिंग पार्टनर और रूम मेट का भी पकड़ा जाना। संदीप तुलसी यादव उनके साथ ही रह रहे थे। उनके लिए इस वक्त स्टेरॉयड लेने का कोई मतलब नहीं था, वे भी इसमें पकड़े गए हैं। उन्हें तो किसी टूर्नामेंट में भाग लेने की तैयारी नहीं करनी थी। यह तथ्य नरसिंह के आरोपों पर यकीन करने की ओर इशारा करता है। उनके एक और ट्रेनिंग पार्टनर गोपाल यादव का सैंपल नहीं लिया गया। हो सकता है कि वे भी पकड़े जाते। नरसिंह अगर यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके फूड सप्‍लीमेंट में शायद स्टेरॉयड मिलाया गया है, तो संदीप के पकड़े जाने से यह आशंका बढ़ती है।

नरसिंह की बात पर भरोसा करने का मन होता है, इसकी एक वजह और है। वे कभी डोप टेस्ट में फेल नहीं हुए हैं। वाडा के डोप टेस्ट पैनल में वे हैं, जिसमें व्हेयरअबाउट क्लॉज के तहत उन्हें बताना होता है कि वे कहां हैं। उन्होंने इसके तहत कोई डोप टेस्ट मिस नहीं किया है। जबकि उनके साथी, और बड़े पहलवान डोप टेस्ट मिस कर चुके हैं। यह अनुशासन उन पर भरोसा करने की वजह देता है। साथ ही, उन पर भरोसा न भी करें तो जिस तरह अदालत तक मामला गया और जितनी तल्खी दिखाई दी। जिस तरह उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस लगाई गई। जिस तरह सीआईडी ने उन पर हमला होने की रिपोर्ट दी,  ये सब मिलकर उन्हें फंसाए जाने की आशंका तो जताते ही हैं।

अब आगे होगा क्या...
फंस तो नरसिंह गए हैं। लेकिन क्या अब भी वे रियो जा सकते हैं। उम्मीद नहीं के बराबर है। यकीनन फास्ट ट्रैक सुनवाई होगी। लेकिन उसके बावजूद वाडा के नियमों में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि साजिश के तहत फंसाए जाने पर कोई सजा नहीं होगी। सजा कम जरूर हो सकती है। देखना यही होगा कि नाडा इस मामले की सुनवाई में क्या रुख अपनाता है। स्टेरॉयड के मामले में न्यूनतम सजा दो साल है। सजा का निपटारा होने से पहले वे निलंबित रहेंगे।

अगर वे नहीं जाते हैं, तो शायद ही उनकी जगह कोई और जा सके। नियमों को लेकर अभी तक कुश्ती संघ भी आश्वस्त नहीं है। मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट होने की सूरत में किसी पहलवान को बदला जा सकता है। लेकिन डोप टेस्ट में फेल होने पर क्या ऐसा होगा, इस पर संदेह है। इसके अलावा, नाम भेजने की आखिरी तारीख 18 जुलाई थी जो निकल चुकी है। अब हालात ये हैं कि पहले भारतीय कुश्ती संघ मामले को विश्व संघ के सामने रखे, जो वह कर रहा है। फिर विश्व कुश्ती संघ उस पर अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी से भी बात करे। इन सबमें किसी तरफ से आपत्ति न हो, तब आगे बात होगी। पूरे मामले से नाराज कुश्ती संघ कम से कम सुशील के पक्ष में तो नहीं है।

इस पूरे मामले से खेलों की राजनीति को समझा जा सकता है। राहत इंदौरी का एक शेर है -सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या। जब चुनाव आते हैं, ये शेर याद आता है। सांप्रदायिकता से लेकर दंगे-फसाद, जात-पात सब याद आता है। हम टिप्पणी भी करते हैं कि राजनीति कितनी गंदी हो गई है। खेलों की राजनीति भी उससे कम नहीं है। इस बात की पूरी आशंका है कि नरसिंह का रियो जाने का सपना टूट जाए। ...लेकिन इसमें कोई आशंका नहीं कि अगर नरसिंह के आरोप सही हैं, तो तमाम बड़े लोगों का कद हमेशा के लिए छोटा हो जाएगा...।

(शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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