यह ख़बर 02 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कादम्बिनी शर्मा की कलम से : एक 'मैंगो' दामाद की व्यथा

राबर्ट वाड्रा की फाइल तस्वीर

डियर डायरी,
आजकल तो दिन ही ठीक नहीं चल रहे। एक तो सासू मां की पार्टी चुनाव पर चुनाव हार रही है ऊपर से बेकार का ये हंगामा। मैंने पहले ही कहा था, मुझे भी चुनाव प्रचार करने दो। ये भी कहा था कि राजनीति में आने को तैयार हूं। पर, ज़रा सा किसी ने सवाल क्या कर दिया, साइड में बिठा दिया मुझे। कम से कम जिमवालों के तो वोट मिलते। यस आइ ऐम सीरीयस।

पांच दिन ज़बर्दस्त वर्जिश करता हूं। बिज़नेसमैन हूं तो एक लाख लगाने पर 44-45 करोड़ की प्रौफिट कैसे हो ये भी सोचना पड़ता है। किसान भी हूं - तो ये भी देखना पड़ता है कि देश में कहां-कहां मेरे जैसे आम किसानों को ज़मीन मिल सकती है। असल में सारी प्रॉब्लम यहीं से शुरू हुई। अब हरियाणा में मैंने कुछ ब्रिलियंट लैंड डील्स कीं और मुझे ज़बर्दस्त प्रौफिट हुआ। लेकिन, लोग जलते हैं- कहने लगे मुझे राज्य सरकार ने फेवर किया।

हालांकि, सीएम अंकल ने कहा भी कि मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिला, लेकिन तुम्हें तो पता ही है कि झूठे इल्ज़ाम लगाना तो विरोधियों का काम ही है। और जिन लोगों को अपना ही काम नहीं पता, उन्होंने ऐसे सीधे सादे लैंड डील्स पर फाइल ही बना दी...वही कोई खेमका। सुना है काफी ईमानदार है, पर काम कैसे होता है ये भी तो सीख लेता। यस आइ ऐम सीरीयस।

अब मेरी सरकार...उफ..सौरी..यूपीए की सरकार ने काम इतना अच्छा किया था कि मैंगो पीपल बहुत खुश थे, इस बनाना रिप्बलिक में (यू नो, आई लव फ्रूट्स- वेरी गुड फौर मसल्स)। और दूसरी पार्टियों को कुछ मिला नहीं तो मेरे जैसे मैंगो किसान, बिज़नेसमैन के बिज़नेस सेंस पर ही सवाल उठाने लगे।

और अब बताता हूं उस रात हुआ क्या। पांच दिन की जिमिंग के बाद कुछ रिलैक्स कर रहा था, एक इवेंट में जाकर। जैसे ही निकला कोई आ गया सवाल पूछने। अरे उन्हें भी तो कोई काम सिखाए। मुझसे पूछना था न कि कौन सी एक्सरसाइज़ करता हूं, क्या खाता हूं, बॉडी बनाने के लिए (देखा तो होगा ही स्लीवलेस गंजियों और हॉफ बांह की टाइट टी-शर्ट में), कौन सी बाइक चलाता हूं और कितने एसपीजी वाले जॉगिंग के वक्त मेरे पीछे भागते हैं (हे हे- अखबार में फोटो नहीं देखते क्या?) लेकिन पूछा तो क्या- मेरे लैंड डील का क्या होगा?

यार, छुट्टी के दिन कोई काम की बात करता है क्या? इसीलिए मैंने पूछा- आर यू सीरीयस? चार बार पूछने पर जवाब नहीं आया तो चिंता के मारे मैंने पूछा कि आर यू हैविंग नट्स? नट्स खाता तो सही सवाल पूछता। ओह 'हैविंग' तो लगता है टीवी वालों ने एडिट कर दिया (बट आइ डोंट लाइक नट्स, ओनली मैंगो एंड बनाना)। वैसे एक बात है- मेरे जैसे मैंगो दामाद को ऐसे परेशान किए जाने से बचाने के लिए कितने बड़े लोग सामने आए। कहा, मैं प्राइवेट सिटिजन हूं। सोच रहा हूं, कोई फाइनैंस कर दे तो एक फिल्म बना दूं- "सेविंग प्राइवेट सिटिजन वाड्रा"

मैं अगर आम दामाद हूं तो अखबारों में मेरी तस्वीरें और इंटरव्यू क्यों छपते हैं, टीवी पर क्यों दिखता हूं? मुझे तो लगता है कि मीडिया मेरी जिमिंग और बिज़नेस सेंस से बहुत इंप्रेस्ड है। लेकिन सच बता रहा हूं- मैंने एएनआई का माइक नहीं देखा था- दो सवालों के बाद। इसीलिए उन्हें मेरे हाथ से बस झटका लग गया। सोच रहा हूं, अब आई स्पेशलिस्ट से आंखें दिखवा ही लूं। पर कोई ऐसा स्पेशलिस्ट तो मिले जो मेरी आंखें ऐसी बना दे कि देखते के साथ पता चल जाए कि ये ही ज़मीन अपने काम की है, या भविष्य की खूबसूरत तस्वीर दिखाती रहे। ढूंढ ही लूँगा मैं- ये मेरा न्यू इयर रेसोल्यूशन है।

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(ये लेखक की एक व्यंग्य रचना है)

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