सोशल मीडिया पर एक लड़की को मारे पीटे जाने का वीडियो वायरल हो जाने के बाद मुंबई पुलिस ने अपनी दो महिला सिपाहियों को निलंबित कर दिया है। 25 सितंबर को लाल बाग के राजा के पंडाल में घुसने को लेकर महिला सिपाहियों ने धड़ाधड़ जिस तरह से इस महिला को थप्पड़ जड़ दिए ......उस पर मुंबई पुलिस की खूब खिंचाई हुई।
पुलिस की दलील है कि महिला लाइन तोड़कर नियम के खिलाफ अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी। चलिए मान भी लें कि महिला वाकई ऐसा ही कर रही थीं तो क्या उसके साथ ये सुलूक होना चाहिए था ? उसे बालों से पकड़कर घसीटा गया, एक के बाद एक कई तमाचे और फिर 1200 रूपये का जुर्माना ....सीसीटीवी में कैद हुई इन तस्वीरों ने मुंबई पुलिस पर बट्टा लगा दिया। अनुशासन सिखाने के क्या और तरीके नहीं हो सकते थे। आस्था की डोर से खिंची आई एक महिला के साथ यह बर्ताव पुलिस की बदमिज़ाज़ी का नायाब नमूना है।
महिला का कथन पुलिस की कहानी से उलट
अब महिला का पक्ष सुनें तो वह पुलिस की थ्योरी को ही झुठला रही है। उनका कहना है कि पहले उनकी मां को पुलिस ने धक्का दिया जिससे उनके कपड़े फट गए। इससे नाराज़ होकर हुई बहस पर पुलिस ने उनके साथ मारपीट शुरू कर दी। वह पुलिस के लाइन तोड़कर आगे बढ़ने की थ्योरी को मनगढ़ंत बता रही हैं। दावा कर रही हैं कि पिता ने बचाने की कोशिश की तो उनके साथ भी पुरुष पुलिसकर्मियों ने मारपीट की ।
क्या सोशल मीडिया ही सुधार का जरिया?
मुख्यमंत्री से जवाब तलब हुआ तो जांच के आदेश हुए। ...क्या आज के दौर में सोशल मीडिया पर दबाव बने बगैर ज़्यादती पर कार्रवाई मुश्किल होती जा रही है ? एक दिन पहले पीएम ने कैलीफोर्निया में कहा था कि सरकारों को अब गलती का अहसास होने में 5 सालों का वक्त नहीं लगता.......5 मिनट में पता लग जाता है। लेकिन क्या गलतियों के सुधार के लिए अब सोशल मीडिया ही अकेला जरिया रह गया है। यह आसान है..... सरकार को जवाबदेह बनाता है लेकिन क्या यह सत्ता और संस्थानों में डर पैदा करता है ? क्या उन्हें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अब वह हर वक्त कैमरों की निगरानी में हैं। यह कैमरा सीसीटीवी हो सकता है , मोबाइल कैमरा हो सकता है या स्टिंग वाला कैमरा भी हो सकता है।
पुलिस को संवेदनशीलता का पाठ पढ़ने की जरूरत
बेशक यह पुलिस की जिम्मेदारी है कि गणेश पंडालों में नियम कायदे से लोग दर्शन करें लेकिन कायदे तोड़ने पर यह मारपीट आज के समाज , वक्त और नब्ज़ के उलट हैं। सरकारें तो जाग गई है अच्छा है पुलिस भी जाग जाए। पुलिस को संवेदनशीलता का पाठ पढ़ने की जरूरत है। खुद नहीं पढ़ेगी तो जमाना पढ़ाएगा जैसा कि इन 2 महिला पुलिसकर्मियों के साथ हुआ। इनका निलंबन हो गया। कुछ दिन बाद यह वापस बहाल हो जाएंगी लेकिन पुलिस के हाथों मारपीट और ज़लालत का शिकार हुई महिला के दिल पर लगी चोट इतनी आसानी से ठीक नहीं होगी। इसके लिए मुंबई पुलिस को माफी मांगनी चाहिए।
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This Article is From Sep 29, 2015
ऋचा जैन कालरा की कलम से : कैमरों ने मुंबई पुलिस को दिया सबक
Richa Jain Kalra
- ब्लॉग,
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Updated:September 29, 2015 17:28 IST
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Published On September 29, 2015 17:40 IST
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Last Updated On September 29, 2015 17:40 IST
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