कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों, पुलिस वालों पर हुए हमले परेशान करने वाले हैं. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जिस तरह से डॉक्टरों और पुलिस वालों पर पत्थरबाज़ी और हमला हुआ....ये कोरोना वारियर्स के खिलाफ बस एक अपराध ही नहीं.....ये सामाजिक अंधापन है जो इस वैश्विक महामारी से निपटने की मुहिम को आघात पहुंचा सकता है. मुरादाबाद में कोरोना वायरस से हुई मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम उस घर के बाकी सदस्यों को क्वारंटीन कराने आई थी.....अपनी जान जोखिम में डालकर. इन पर हमला ....इनके काम की अहमियत, इनकी सेवा को दरकिनार करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक तौर पर भी निंदनीय है. ये एक अकेला मामला नहीं है इसके अलावा बिहार के औरंगाबाद के गोह में भी इस तरह का मामला सामना आया है जहां शहर के बाहर से आए एक शख्स की जांच के लिए पहुंची टीम के एसडीपीओ और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ 50 से 60 लोगों ने हमला बोल दिया. खबर मिलने पर पहुंचे डीएम और एसपी के खिलाफ भी गुस्साए लोगों ने मोर्चा खोल दिया. कई पुलिस वाले लहूलुहान हो गए....इनका क्या कसूर था ? यही के ये अपना फर्ज़ निभा रहे थे?
क्या ये सिर्फ अशिक्षा का ही नतीजा है, या फिर जहालत है जैसा कि कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं. कई जाने माने मुस्लिम मौलानाओं ने भी इसकी निंदा की है. भारत जैसे बड़े देश में इस तरह के कुछ मामले हो सकते हैं लेकिन मानसिक तौर पर भी ये हमारे समाज का एक ऐसा चेहरा है जो कि बदनुमा है जो मुश्किल की घड़ी में सेवा के भाव को संकीर्णता के चश्मे से देखता है. कुछ लोग इसे सांप्रदायिकता के चश्मे से भी देख रहे हैं क्यों एक धर्म विशेष के लोगों पर ही ऐसे आरोप लग रहे हैं. इंदौर में भी तरह से महिला डॉक्टरों पर हमला हुआ....पूरा शहर शर्मसार हुआ. कुछ दिनों पहले एक खबर आई कोरोना से जान गंवाने वाली एक महिला की मौत के बाद अर्थी को कंधा देने के लिए उसके बेटा या परिवार आगे नहीं आया बल्कि पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम लड़कों ने महिला का हिंदू रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार किया.
मेरा मानना है कि ऐसी खबरें जहां कोरोना से लड़ाई लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्करों पर हमला हो रहा है, अपवाद हो सकती हैं लेकिन ये मैं, मेरा और हमारे की संस्कृति का एक ऐसा पहलू है जो कि राष्ट्रीयता की कसौटी पर खरा साबित नहीं होगा. आजकल वैसे भी राष्ट्रीयता हर चीज़ पर भारी है. ऐसे में एक धर्म विशेष पर ये आरोप भुनाने वालों की कमी नहीं.
आगे बढ़कर अगर हम ज़रा उन डाक्टरों के बारे में सोचें जो अपने परिवार को अलग रखकर , तमाम जोखिम या कह सकते हैं कि आग से खेलते हुए कोरोना के संक्रमित मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं. उन पर हमले या बदसलूकी, एक ऐसी स्थिति में जब पहले से 100 से ज्यादा डॉक्टर और मेडिकल कर्मी कोरोना की चपेट में आ गए हैं...दुखद है. पहले ही भारत में कोरोना प्रभावित इलाकों में मेडिकल स्टाफ पर काफी दबाव है...पर्सनल प्रोटेक्शन उपकरण का भारी अभाव है...जिन लोगों की जांच के लिए डॉक्टरों की टीमों को भेजा जा रहा है वो बेहद गंभीर स्थिति और खतरे को भांपते हुए किया गया. संक्रमण तभी कम किया जा सकता है जब इसकी चेन को तोड़ा जा सके. इस चेन को तोड़ने में कोरोना वॉरियर्स पर हमले एक गहरी चोट है....ये मानसिक तौर पर खतरे को मोल लेकर कोरोना से निपटने की कोशिश कर रहे स्वास्थ्य और पुलिस कर्मियों के मनोबल को भी प्रभावित कर सकता है. कड़ी धूप में लगातार दिन रात ड्यूटी करना अपने आप में एक बड़ी बात है जिसकी सराहना होना चाहिए. चाहे हम ज़्यादातर वक्त पुलिस वालों को कोसते रहे हों लेकिन आज के वक्त में पुलिस और डॉक्टरों के बगैर ये जंग जीती नहीं जा सकती. पुलिस और डॉक्टर कोरोना वायरस के खिलाफ जंग के वो सिपाही हैं जिनके लिए अगर हम कुछ न भी कर सकें तो कम से कम सम्मान रखें.
ऋचा जैन कालरा NDTV इंडिया में प्रिंसिपल एंकर तथा एसोसिएट एडिटर हैं...
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