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This Article is From May 20, 2015

माननीय वित्तमंत्री जी, क्या आप मास्टर साब की मदद कर सकते हैं?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 20, 2015 16:19 pm IST
    • Published On मई 20, 2015 16:14 pm IST
    • Last Updated On मई 20, 2015 16:19 pm IST
रवीश कुमार जी...? फोन पर कांपती हुई आवाज़ अचानक ठहर गई।

जी, मैं बोल रहा हूं...

आप बोल रहे हैं... मैं बिहार के भभुआ ज़िले के एक गांव से बोल रहा हूं। मैं इस उमर में बहुत परेशान हूं। कोई सुनता नहीं है। वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखता हूं, वहां से कोई जवाब नहीं आता। बैंक वाले को लिख चुका हूं, बार-बार दौड़ रहा हूं, कोई जवाब नहीं देता है। पटना में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ओम्बड्समैन बैठते हैं, उनको भी लिखा।

सिर्फ इतना कहने भर से, कि मैं ही बोल रहा हूं, उधर से आती आवाज़ एक्सप्रेस मेल की तरह रफ़्तार पकड़ने लगी। बहुत समझाया कि आप ज़रा सांस लीजिए और आराम से बताइए तो बुज़ुर्गवार की आवाज़ कुछ थमनी शुरू हुई।

देखिए रवीश बाबू, मैं स्कूल में प्रिंसिपल रहा हूं। मेरा नाम इंद्र बहादुर सिंह हैं। 75 साल का हूं बेटा। आपका प्रोग्राम टीवी में देखता हूं। साल 2001 में रिटायर कर गया। ढाई लाख रुपया सालाना पेंशन मिलता था, सो गांव में रहने लगा। कोई टैक्स नहीं कटता था। साल-दर-साल डीए बढ़ते-बढ़ते मेरा पेंशन तीन लाख से कुछ ज़्यादा का हो गया। मैंने पैन कार्ड के लिए आवेदन कर दिया था। 1998 और 2003 में किया, लेकिन पैन कार्ड इस अप्रैल में आया है। पैन कार्ड नहीं होने के कारण बैंक वाले ने ऑटोमेटिक टीडीएस काट लिया है।

सरकार कहती है कि 48 घंटे में पैन कार्ड मिलेगा। मेरी ग़लती थी कि पैन कार्ड नहीं बनवाया, लेकिन मैंने आवेदन तो कर ही दिया था। अब अगर बनाने वाले ने पैन कार्ड नहीं दिया तो उसे भी सज़ा मिलनी चाहिए कि नहीं। पैन कार्ड नहीं होने पर मेरा तो टैक्स काट लिया, लेकिन जिसने पैन कार्ड बनाने में देरी की, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

प्रिंसिपल साहब का बोलना जारी रहा। मैं बस उनकी इस परेशानी को महसूस कर रहा था। यह सोच रहा था कि कौन क्या कर सकता है इस मामले में।

सर, मैं क्या कर सकता हूं इसमें।

मुझे पता है, आप कुछ नहीं कर सकते। जब वित्तमंत्री को लिखने से कुछ नहीं हुआ तो आप क्या कर सकते हैं। बस, मैं आपको अपनी बात सुनाना चाहता हूं।

इस परेशानी में भी प्रिंसिपल साहब की आवाज़ की खनक ने 'सारांश' फिल्म के अनुपम खेर की याद दिला दी।

मुझे आपसे यह कहना है कि जब बैंक ने टीडीएस काट ही लिया तो मुझे उसका सर्टिफिकेट मिलना चाहिए कि नहीं। देश के लिए ही टैक्स काटा न, मैं तो उसका हिसाब नहीं मांग रहा, बस इतना कह रहा हूं कि सर्टिफिकेट मिलना चाहिए। 2013-14 और 2014-15 का टीडीएस काट लिया तो हमको प्रमाणपत्र दो।

हां सर, आपको सर्टिफिकेट तो मिलना चाहिए।

लेकिन रवीश बाबू, बैंक वाला नहीं दे रहा है। मैं सासाराम इन्कम टैक्स अफसर के पास भी गया। अफसर ने बैंक वाले को फोन भी किया कि एक बुजुर्ग को क्यों परेशान कर रहे हैं तो बैंक वाले ने मुझे डराना शुरू कर दिया कि आप इन्कम टैक्स अफसर के पास गए हैं न, अब आपके यहां छापा पड़ेगा। मैंने कह दिया कि मैं मास्टर रहा हूं। आय से अधिक की संपत्ति ही नहीं है तो छापा क्यों पड़ेगा। आप मेरा सर्टिफिकेट दीजिए। और मैं कह रहा हूं, मेरे जैसे कई लोग यहां पर परेशान हैं। बैंक का चक्कर लगाते-लगाते थक गए हैं। कुछ मर गए हैं, पर टीडीएस का सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है।

जिसे देखिए, वही खाली भाषण दे रहा है कि हम राह चलते ग़रीब की बात करते हैं, मगर हम तो सामान्य जन हैं और अपनी बात करने में सक्षम भी हैं, लेकिन कोई हमारी बात ही नहीं सुन रहा है। मेरे पढ़ाए हुए बच्चे आज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, आईएएस अफसर भी हैं, लेकिन मैं एक सर्टिफिकेट नहीं ले पा रहा हूं। सरकार बड़ी-बड़ी कंपनियों के टैक्स माफ कर देती है और हम जैसे लोगों के टैक्स काट लेती है। ज़रूर काटे, मगर टीडीएस सर्टिफिकेट तो दे दे।

दोपहर के वक्त ऐसे फोन आते रहते हैं। बहुत सारी चिट्ठियां भी आती हैं। हर कोई किसी न किसी अधिकारी या कर्मचारी से परेशान है। सबके काम बेहद मामूली हैं, लेकिन महीनों से धक्के खा रहे हैं। प्रिंसिपल साहब ने सिर्फ अपनी बात ही बताई, मुझसे कुछ कहा नहीं। यही कहा कि आप दोनों पक्ष की बात दिखाइए। सिर्फ मेरी बात नहीं, बल्कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का भी पक्ष लीजिए। मैं नहीं चाहता कि आप सिर्फ मेरा काम करें, लेकिन सरकार को पता तो चले।

सरकार को कैसे पता चलता होगा, क्या सरकार को वाकई पता नहीं होता होगा। यही सोच रहा था कि प्रिंसिपल साहब ने ढेर सारा आशीर्वाद देकर फोन रख दिया।

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