विज्ञापन
This Article is From Jun 02, 2015

अर्थव्यवस्था पर सरकारी दावों की हकीकत?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 02, 2015 21:49 pm IST
    • Published On जून 02, 2015 21:34 pm IST
    • Last Updated On जून 02, 2015 21:49 pm IST
नमस्कार मैं रवीश कुमार, मोदी सरकार के एक साल होने पर अर्थव्यवस्था पर छपे पचास से ज़्यादा लेखों, संपादकीयों और बयानों को ध्यान से पढ़ा। भांति-भांति के अर्थशास्त्री, बिजनेसमैन, शोध संस्थाओं के ज्ञानी और पत्रकारों के लेख पढ़ते हुए ऐसा लगा कि मैं दावेदारी के एक विशाल दरिया में फेंक दिया गया हूं। जहां एक लेख में मैं जीडीपी ग्रोथ के साथ ऊपर आ जाता था तो दूसरे लेख में उपभोक्ता मांग में कमी के भार से नीचे आ जाता था। न तो तेरा जा रहा था, न डूबा जा रहा था। हांफ गया, लेकिन पता नहीं चला कि समस्या या संभावना की गहराई कितनी है। लेकिन एक समस्या का समाधान हो गया। वो यह कि मैं कंफ्यूज़ नहीं हूं, ये लेखक ही कंफ्यूज़न में हैं। एक आदमी और है। जो न तो भ्रमित है न उत्साहित। जिद्दी मालूम पड़ता है और किसी से नहीं दबने वाला।

हम एंकरों की तरह हम मौसम में कोट पहनने वाले इस शख्स की एक ख़ूबी बहुत पसंद आई। वो यह कि आप मेरी तरह नेताओं के बयान सुनकर अख़बारों के आर्टिकल पढ़कर अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास नहीं करते। यह शख्स तमाम दावों और आशंकाओं के बीच अपनी राय पर टिका हुआ है। आप हैं भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन। आई आई टी दिल्ली, आई आई एम अहमदाबाद, एम आई टी अमरीका से पढ़ने के बाद आई एम एफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं। हमारी राजनीतिक शब्दावली में गर्वनर शब्द आते ही कैसे कैसे गर्वनर याद आने लगते हैं, लेकिन भारत के वित्तीय संसार के मुखिया के तौर पर राजन साहब की बात ही कुछ और है। 20 मई को न्यूयार्क में कहते हैं कि ये सरकार बहुत ज़्यादा उम्मीदों पर सवार हो कर आई है। किसी भी सरकार के लिए इस तरह की उम्मीदें व्यावहारिक नहीं होती हैं। उन्होंने एक और नई उपमा दी जिसकी ध्वनि लोकसभा चुनावों में तो सुनाई नहीं दी। न्यूयार्क के इकोनोमिक क्लब में कहा कि लोगों के दिमाग़ में नरेंद्र मोदी सफ़ेद घोड़े पर सवार रोनल्ड रेगन हैं जो बाज़ार विरोधी शक्तियों को नेस्तानाबूद कर देंगे। इस तरह की तुलना ठीक नही है। मुंबई में आज उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक चीयरलीडर नहीं है। यह एक सामान्य स्टेंटमेंट नहीं है। अर्थव्यवस्था के गुलाबी बाग़ में जयकार करने वाले तमाम लोगों को वे इस एक वाक्ये से झिड़क देते हैं। रघुराम राजन रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को लेकर सजग भी हैं और सक्रिय भी।

अर्थव्यवस्था को लेकर उनके और सरकार के दावे में काफी अंतर दिखता है। सरकार मानती है कि हम जीडीपी के मामले में चीन से आगे तो निकल ही गए हैं साथ ही डबल डिजिट वाली जीडीपी दर की तरफ अग्रसर हैं। वैसे प्रधानमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी जीडीपी के आंकड़ों से सहमत नहीं है। रिजर्व बैंक के गर्वनर कहते हैं कि उन्हें ज़मीन पर तो यह सब दिखाई नहीं दे रहा है।

कहते हैं कॉरपोरेट कंपनियों की कमाई में गिरावट से ज़मीन पर ग्रोथ नहीं दिखाई देता है। कई तिमाहियों में निवेश ठहरा हुआ ही दिख रहा है। उपभोक्ताओं की मांग में भी वृद्धि नहीं हो रही है। हमारा काम रुपये में लोगों का भरोसा बनाए रखना है और वो हमने किया है। जो भी फैसला किया है वो डेटा के आधार पर किया है। सरकार की सालगिरह के मौके पर प्रधानमंत्री मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम तो कुछ और कह रहे थे। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय माहौल अनुकूल है, मुद्रा स्फीति के कम ही रहने का अनुमान है, चालू बजट खाता और वित्तीय घाटा नियंत्रण में है इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक को आक्रामक रूप से अपनी दरें कम करनी चाहिए। राजन कहते हैं कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्ता में सुधार की रफ़्तार धीमी है। मुद्रा स्फीति 2016 तक बढ़कर 6 प्रतिशत तक होने वाली है, कच्चे तेल के दामों का चढ़ना शुरू हो चुका है। इसलिए जो रेट कम भी किया है वो भी एक छोटी ग़लती ही कही जाए। अब देखिये दोनों दो अलग-अलग बातें कह रहे हैं। दोनों ही अपने काम में प्रमुख हैं, बस आर्थिक सलाहकार प्रधानमंत्री के मातहत हैं और रघुराम राजन स्वायत्त संस्था के प्रमुख। इतना ही नहीं राजन कहते हैं कि जब जीडीपी 7.5 प्रतिशत ही हो गई है तो रेट कट की बात क्यों हो रही है। जल्दी से आपको यहां रेपो रेट के बारे में बता दूं। रिज़र्व बैंक भी बैंकों को ब्याज़ पर ही पैसा देता है। रिजर्व बैंक अगर ब्याज़ दर कम करेगा तो बैंक को सस्ती दरों पर पैसा मिलेगा जिससे हो सकता है कि ईएमआई वाले उपभोक्ता को भी कुछ सस्ता लोन मिल जाए।

जीडीपी इतनी बढ़ रही है तो फिर फाइनेंशियल एक्सप्रेस अपने संपादकीय में क्यों लिखता है कि 1991 कंपनियों के मुनाफे में 24 प्रतिशत की गिरावट हुई है। क्या ऐसा भी हो सकता है कि कंपनियों को घाटा हो और जीडीपी को मुनाफा। हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी थी कि बिजली का उत्पादन तो पर्याप्त है मगर कपनियां उत्पादन नहीं कर रही हैं इसलिए मांग नहीं है। ये भी खबर आई है कि बैंक जो कमर्शियल लोन देते हैं वो कम हुआ है। फिर ये निवेश कहां से हो रहा है और किसकी जेब से हो रहा है ये बेसिक कोश्चन है।

ये बादल कब से प्रतिशत में बरसने लगे हैं ये तो पता नहीं मगर चेतावनी जारी हुई है कि इस साल मानसून औसत का 88 प्रतिशत ही हो सकता है। 90 प्रतिशत से कम होने पर सूखा माना जाता है। ऐसा हुआ तो 6 साल बाद हम व्यापक सूखे के हालात से गुज़रेंगे। पिछले साल भी कई जगहों पर सूखे की स्थिति पैदा हो गई थी। हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली पर इस सूखे की मार ज्यादा पड़ सकती है। मार्च में ही अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा था कि पिछले साल की तरह इस साल भी कृषि विकास दर ज़ीरो या उससे कुछ अधिक ही समझिये। तब मानूसन के कमज़ोर पड़ने का एलान भी नहीं हुआ था। राजन ने भी कहा है कि इसका असर खाद्यान की कीमतों पर पड़ सकता है। सूखा किसी के लिए भी अच्छी ख़बर नहीं है। न सरकार के लिए न समाज के लिए। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा था कि सूखे के बावजूद मुद्रा स्फीति पर काबू पा लिया गया था लेकिन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने एक बयान में कहा है कि अगर सूखा नहीं पड़ता तो ग्रोथ रेट 7.5 प्रतिशत से भी ज़्यादा होता। अव्वल तो ये 7.5 प्रतिशत है या नहीं इसे लेकर ही एक राय नहीं है।

एक पक्ष है कि सरकार क्या कर रही है, एक पक्ष है कि अगर कुछ नहीं कर रही है तो अर्थव्यवस्था के पलटने का एलान कैसे कर देती। ऐसा भी नहीं है कि कुछ नहीं कर रही है। नौकरियां कितनी पैदा हुईं, कितनों को मिलीं ये सब बताने का कोई विश्वसनीय ज़रिया आपके देश में है नहीं। 2 जून के दिन दो जून के जुगाड़ की बात कर लेंगे पर पहले यह समझना चाहेंगे कि रिज़र्व बैंक अगर चीयर लीडर नहीं है तो क्या जो ग्रोथ रेट के जयकारे लगा रहे हैं वो चीयर लीडर हैं। आईपीएल मैचों में हर चौके छक्के को वाहवाही में बदलने के लिए पैसे देकर चीयर लीडर लाईं और लाए जाते हैं। प्राइम टाइम

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
भारतीय अर्थव्यवस्था, जीडीपी, विकास दर, आरबीआई, रघुराम राजन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, Indian Economy, GDP, Growth Rate, RBI, Raghuram Rajan, Prime Minister Narendra Modi