हां, मैं मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार हूं और अगर पार्टी ने जिम्मा सौंपा तो दायित्व निभाने के लिए तैयार हूं। एक ऐसे समय में जब जानकार यह भांज रहे हों कि बीजेपी पर नरेंद्र मोदी का एकछत्र राज हो गया है, मोदी जादू के कारण ही बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत हासिल की है और अब उनके सामने कोई बोलने का साहस नहीं कर सकता, मुंबई से आ रही पंकजा मुंडे की इस आवाज़ को नए नज़रिये से सुना जाना चाहिए। पंकजा की इस दावेदारी को आप राजनीति की चालू व्याख्याओं से समझेंगे तो कुछ दिखाई नहीं देगा। ये आवाज़ सिर्फ बीजेपी के लिए नहीं बल्कि अन्य दलों के भी है। अगर इतने दिनों में नरेंद्र मोदी को ठीक से समझा है तो यह लिखने का जोखिम तो कर ही सकता हूं कि पंकजा मुंडे ही महाराष्ट्र की अगली मुख्यमंत्री होंगी। अगर नहीं होंगी तो अखबारों के पन्नों पर प्रख्यात जानकारों की तरह सलाह तो दे ही सकता हूं कि पंकजा मुंडे को ही मुख्यमंत्री होना चाहिए।
पहली बार विधायक बनी पैंतीस साल की यह लड़की एक राजनेता की तरह व्यवहार कर रही है। आज नहीं तो कल इसका है ही। द इंडियन एक्सप्रेस में पंकजा का इंटरव्यू छपा है। आप उसके जवाब को ग़ौर से पढ़िये। वो सिर्फ ख़ुद को मुख्यमंत्री बनाने की बात नहीं कर रही बल्कि इस दावेदारी के बहाने पिछड़ी जाति को संदेश भी भेज रही है पिता गोपीनाथ मुंडे के बाद वो उनका नेतृत्व करने के लिए तैयार है। नेतृत्व करने में कोई संकोच नहीं करती है। पंकजा उस ओबीसी बिरादरी को यह भी बता रही है कि इस जीत के कई कारण हो सकते हैं मगर मूल कारण ओबीसी का एकजुट रहना है। पंकजा अपनी दावेदारी से ओबीसी तबके को बता रही है कि अभी जाति को लेकर दावेदारी छोड़ने का वक्त नहीं आया है। दावेदारियां इसी आधार पर होती रहेंगी। अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पिछड़ी जाति की दावेदारी कर सकते थे तो पंकजा मुंडे भी कर सकती हैं।
ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र हरियाणा में बीजेपी बिना जातिगत समीकरणों के ही जीत रही है। बल्कि जीत ही इसलिए रही है कि वो जातिगत समीकरण ठीक से बिठा रही है। पार्टी में लगता है कि अब कई गोविंदाचार्य हैं जो ज़मीन पर जातिगत समीकरणों को जोड़ घटा कर प्रभुत्व वाली जातियों को चुनौती देने का जुगाड़ बिठा रहे हैं। आपने कब सुना था कि चवालीस उम्मीदवारों को किसी डेरा के संत के सामने परेड कराया गया हो। इसी तरह टिकट देने से लेकर मुद्दों को उठाने तक में जातिगत आकांक्षाओं का चतुराई से घोल बनाया जाता है। पंकजा मुंडे अपनी इस पहचान को बनाए रखना चाहती हैं। उनकी दावेदारी सिर्फ मुख्यमंत्री पद की नहीं बल्कि ओबीसी नेता बनने की भी है। इस कारण से उन्हें नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो जाएगा। पंकजा ने इंडियन एक्सप्रेस को कहा है कि वे मास लीडर थीं बाकी तो मेट्रो लीडर थे।
भारतीय जनता पार्टी में महिला नेताओं की दावेदारी के उदाहरण कुछ कम ही हैं। सार्वजनिक रूप से दावेदारी की जो घटना याद है वो है उमा भारती की दावेदारी। जब मुख्यमंत्री थीं तो दबंग थीं, जब हटीं तो अपनी दावेदारी को लेकर ज़ोर मारती रहीं और सार्वजनिक रूप से पार्टी छोड़ भी दीं। अब वो उमा भारती एक बार फिर मंत्री हैं मगर वो दावेदारी का गुरूर समाप्त हो गया है। वसुंधरा राजे सिंधिंया की दावेदारी कुछ स्वाभाविक किस्म की है। पार्टी नेतृत्व से उनका विरोध रहा है मगर रूठने के स्तर से ज्यादा जनता के दम पर दावेदारी के मामले में वे उमा भारती का मुकाबला नहीं कर सकतीं। सुषमा स्वराज की नाराज़गी और मोदी विरोध के किस्से खूब उड़ाए गए मगर उन्होंने कभी नहीं कहा कि वह लोक नेता हैं। पंकजा मुंडे कह रही हैं कि वह मास लीडर हैं। नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व के दौर में बीजेपी में वो पहली नेता हैं, जो कह रही हैं कि महाराष्ट्र में वे मास लीडर हैं।
एक घाघ नेता की तरह वह अपने पिता की विरासत को राजनीतिक संदेश में बदल देती हैं। अखबार से कह रही हैं कि उनके पिता गोपीनाथ मुंडे लोकप्रिय नेता थे। पूरे महाराष्ट्र में उनकी साख थी। आज जो नेता मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं वो सब अपने अपने ज़िलों में सीमित थे। लेकिन मैं सिर्फ पहली बार विधायक नहीं बनी हूं। मैं युवा भाजपा की अध्यक्ष भी रही हूं और मैंने राज्य में बड़ी बड़ी रैलियां की हैं। जब मुंडे ज़िंदा थे तब ये सारे नेता आठवें और नौवें पायदान पर थे। अगर अनुभव की बात है तो किसी का भी अनुभव नहीं है। पंकजा ने कहा, तो नहीं है मगर अपनी इस बात से याद तो दिला ही रही हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का क्या अनुभव था। नरेंद्र मोदी भी तो पहली बार सांसद बने, पहली बार संसद भवन पहुंचे और वो भी प्रधानमंत्री बनकर।
पकंजा यह सब कुछ नरेंद्र मोदी की अवमानना में नहीं कह रही हैं। लिखने वाले पंकजा के बागी तेवर ही लिखेंगे मगर यह एक भविष्य के नेता की स्वाभाविक दावेदारी है। इतनी सफाई और आत्मविश्वास से न राहुल गांधी दावेदारी कर पाते हैं न सचिन पायलट या अखिलेश यादव। नरेंद्र मोदी ने भले ही परिवारवाद पर ज़रूरत से ज्यादा हमले किये हों मगर क्या यह सच्चाई हम और आप नहीं जानते कि हमारी राजनीति परिवारवाद की चपेट में है। हर स्तर पर परिवार है। इस परिवारवारवाद को एक खानदान के कब्जे के अर्थ में समझा गया है जबकि इसका व्यापक अर्थ समझा जाना बाकी है। वो यह है कि राजनीति अब कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित है। परिवारवाद का यह नेटवर्क नेता के खानदानी होने तक ही सीमित नहीं है। इससे संसाधनों का भी मसला जुड़ा है। पंकजा खुद को देवेंद्र फड़नवीस के सामने दावेदार बताकर उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी उभार रही हैं। शायद बिना कहे कह रही हैं कि गोपीनाथ मुंडे की बेटी होने के नाम पर उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता बल्कि इसी आधार पर भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के बारे में सोचा जाना चाहिए।
इसीलिए पंकजा की दावेदारी को भारतीय राजनीति में एक सुखद आवाज़ की तरह सुना जाना चाहिए। एक युवा नेता उस वक्त दावेदारी कर रही है जब उसकी पार्टी में दूर दूर तक कोई नेता नहीं है। सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के। पंकजा की आवाज़ बीजेपी के भीतर नेतृत्व उभरने की स्वाभाविक प्रक्रियाओं के ज़िंदा बचे होने की भी आवाज़ है। नेतृत्व ऐसी ही दावेदारियों से उभरता है। बंद कमरों में शातिराना चालों से उभरा नेतृत्व पार्टी को अंतत मार देता है। इसलिए नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक दावेदारी की। खुल कर कहा कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं। पंकजा भी वही कर रही हैं जो मोदी ने किया है। महाराष्ट्र से भारतीय राजनीति एक और करवट ले रही है। चवालीस साल के देवेंद्र और पैंतीस साल की पंकजा के बीच नेतृत्व की खींचतान चल रही है। यह समझ लेना चाहिए कि बीजेपी में नया दौर आ गया है। पंकजा मुंडे की दावेदारी का यह साहस अगर उमा भारती और सुषमा स्वराज की नियति को प्राप्त नहीं हुआ तो यह राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का भविष्य बन सकता है।
कांग्रेस पार्टी में भी युवाओं को अब ऐसी दावेदारी करनी होगी। लुप्त प्राय हो चुकी कम्युनिस्ट पार्टी में भी ऐसे युवाओं को कहना होगा कि वे लोकप्रिय नेता हैं। वे पार्टी अध्यक्ष हो सकते हैं। वो मुख्यमंत्री हो सकते हैं। वो गृहमंत्री हो सकते हैं। ऐसा कहना सिर्फ पार्टी से बगावत नहीं है। बल्कि ऐसा कहना ही स्वाभाविक राजनीति है। ऐसा करके पंकजा मुंडे ने विरासत की डोर पकड़ कर आए नेताओं को भी एक हिम्मत दी है। अगर आप नेता हैं, अगर जनता साथ है तो आगे बढ़िये और दावा कीजिए और जब यह दावेदारी कोई लड़की करे तो उसका स्वागत तो किया ही जा सकता है। सोचकर देखिये अगर नरेंद्र मोदी अपनी किसी सभा में कहें कि हमने कमल को ही मुख्यमंत्री बनवा दिया तो कितनी तालियां बजेंगी। पंकज का मतलब होता है कमल। भाजपा का चुनाव निशान। पंकजा का मतलब भी कमल ही है।
बात-बात में संदेश देने वाले प्रधानमंत्री के लिए यह भी एक शानदार मौका हो सकता है। वे कमल को पिछड़ी जाति का निशान बना सकते हैं। आखिर आपने भारतीय राजनीति में कब सुना है कि पैंतीस साल की कोई लड़की कह रही हो कि वह लोकनेता है और उसे मुख्यमंत्री बनाना चाहिए।
This Article is From Oct 18, 2014
रवीश कुमार का ब्लॉग : भाजपा की नई कमल-पंकजा
Ravish Kumar
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Updated:नवंबर 20, 2014 12:45 pm IST
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Published On अक्टूबर 18, 2014 10:25 am IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:45 pm IST
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