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This Article is From Jun 25, 2015

रवीश कुमार की ललित आरती 'आप ही मयखाना, आप ही तहखाना'

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 25, 2015 11:51 am IST
    • Published On जून 25, 2015 09:01 am IST
    • Last Updated On जून 25, 2015 11:51 am IST
हे ललितात्मा,

आप उच्चतम कोटी की आत्मा हैं। आप अनेक शरीर में वास करते हैं। आप अजर हैं, अमर हैं और साक्षात हैं। आप पहली आत्मा हैं जिसे देखा जा सकता है।  छूकर महसूस किया जा सकता है। आप ही जगतात्मा हैं। आप वसुंधरा में भी हैं, आप सुषमा में भी हैं। आप शरद में भी हैं, आप राजीव में भी हैं। आप जहां नहीं हैं, वहां कुछ नहीं है। आप उसमें नहीं हैं, जो कुछ नहीं है। आप ही भारत हो, आप ही मोन्टिनिग्रो। आप ही चाइना, आप ही अर्जेंटीना। जिसमें ललित नहीं है, वो जगत में नहीं हैं। इसलिए हमने आपकी शान में एक आरती लिखी है। गद्य और पद्य को मिक्स किया है, पहली बार लाइफ़ में रिस्क लिया है।

आप मुस्कुराते हैं, तो दूसरे हंस नहीं पाते। आप भागते हैं, तो दूसरे फंस जाते हैं। सब आपसे ध्यान हटाना चाहें, आप हैं कि ध्यान दिलाना चाहें। आप ललित नाटक भी हो और आप ही अकादमी। आप मोदियों के मोदी हो, शुक्लाओं के शुक्ला। आप ही हल्ला, आप ही गुल्ला। आप ही पंडत, आप ही मुल्ला। आप ही हलफ़नामा, आप ही पैमाना। आप ही मयखाना, आप ही तहख़ाना। आप का प्रभाव ही बाक़ियों का अभाव है। मज़बूत सरकार का घट गया भाव है। पहले जैसा आव है, न ताव है। मांगा जाता है इस्तीफ़ा, बढ़ा देती है वज़ीफ़ा। हर छोटे मुल्कों के दिवस पर बधाई संदेश आ रहा है, मांग कर थक गए सफाई संदेश नहीं आ रहा है।

मैं यह आरतीनुमा पत्र उम्मीद से लिख रहा हूं। बुलाने को लिए नहीं, बताने के लिए लिख रहा हूं। भारत में जो ललित होगा, उसी के कर्मों का फलित होगा। आप कर्मों के कर्म हैं, धर्मों के धर्म हैं। आप दलों के दल हैं, दलदल में कमल हैं। आप नाथों के नाथ हैं, आप हाथों के साथ हैं। आप के ईमेल में सब बेमेल हैं। आपके हर मेल में कैसे-कैसे खेल हैं। आप ही उजागर हो, आप ही विधाता। ललित ही प्रचलित है, बाकी सब विचलित है।

आप ही आरोपी, आप ही प्रत्यारोपी। आप ही सांसारिक, आप ही पारिवारिक। आप ही भ्रष्टाचार, आप ही सदाचार। आप ही अट-पट, आप ही लट-पट। आप ही लंपट, आप ही चंपत। आप मिले तो भागे संकट, आप भागे तो आवे संकट। आप ही मंजन, आप ही गंजन। आप ही से संसार है, मोदी मोदी जपे सब, आप ही मोदी सरकार हैं। ललित बिगाड़े सबके काम, ललित बनावे सबके काम। करे उजागर सबके राज़, कांपे थर-थर सब सरकार।

पत्र पढ़ते ही पत्र मत लिखना। पढ़ते-पढ़ते मत हंसना।  जो ललित में है, वही लंदन में है। जो ललित से है, वही लिस्बन में है। तनिक तुम हम में भी वास करो, तनिक हमको भी लेकर प्रवास करो। हमको घुमाओ लिस्बन-लंदन, हमको कराओ रस रंजन। जो भी ललित की आरती करेगा, हर संकट से जल्दी बचेगा। खूब लूटो, खूब खिलाओ पर ललित की आरती दस बार गाओ। ललित ही वाचाल है, बाकी सब पाताल है। ललित ही उपाय है, बाकी सब बलाय है।

( नोट- जो इस आरती को बीस बार शेयर नहीं करेगा, गाकर दोस्तों को नहीं बतायेगा, वो लंदन क्या जलंधर भी नहीं जा पायेगा। आरती के बाद ज़ोर से बोलें, बोलो रवीश कुमार की जय।)

अंत में है आदरणीय ललित मोदी, आपकी ललित लीला अपरंपार है। आप सदा सुखी रहें पर थोड़ा एडजस्ट कीजिये, ताकि हम भी सुखी रहें।

आपका,
वन एंड ओनली रवीश कुमार

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