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This Article is From Apr 07, 2016

एनआईटी श्रीनगर की लड़ाई में कौन जीतने वाला है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 07, 2016 12:54 pm IST
    • Published On अप्रैल 07, 2016 12:37 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 07, 2016 12:54 pm IST
पुलिस हर बार साबित कर देती है कि वो सिर्फ पुलिस है। श्रीनगर से आने वाले वीडियो यही बता रहे हैं कि एनआईटी के छात्रों को किस बेरहमी से मारा गया है। सरकारों ने तो लाठीचार्ज को मामूली बताकर छात्रों को कैंपस के अंदर रहने के नसीहत भरे बयान जारी कर दिये लेकिन छात्रों की तरफ से जब वीडियो बाहर आया तो देखकर सन्न रह गया। क्या ऐसे भी किसी छात्र को मारा जा सकता है। इस वीडियो के बाद उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह को भी अपने बयान से पलटना पड़ा कि वहां मामूली लाठीचार्ज हुआ है। छात्रों का कहना है कि हम कैंपस से बाहर वैसे ही नहीं जाते क्योंकि बाहर तो और भी सुरक्षा नहीं है। हमें गेट के भीतर ही मारा गया है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जब पुलिस ने कार्रवाई की तो कई लोग खुश थे। शायद एनआईटी के छात्र भी खुश होंगे। इन सबका कहना था कि ये छात्र पढ़ाई करने आते हैं या राजनीति करने। पुलिस ने जो किया, ठीक किया। क्या अब यही बात एनआईटी के छात्रों के बारे में कही जा सकती है? ऐसा करना इन छात्रों की मांगों के साथ नाइंसाफी होगी। एनआईटी श्रीनगर की घटना साबित करती है कि जो समर्थक हैं उन्हें भी पुलिस के डर से चुप रहना होगा। सवाल करने की इजाज़त उन्हें भी नहीं होगी।

वैसे पूछा जाना चाहिए कि पाकिस्तान का झंडा लहराने वाले छात्रों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है? क्या उसके बारे में कोई कमेटी जांच कर रही है, जिस तरह की जांच जेएनयू में हुई थी? इन छात्रों को कब गिरफ्तार किया जाएगा? पुलिस की लाठी खाने वाले एनआईटी के एक छात्र ने कहा कि उन्होंने खूब विरोध किया लेकिन वे भी नहीं चाहते कि गिरफ्तारी हो क्योंकि पाकिस्तान ज़िंदाबाद करने वाले भी छात्र हैं और हमारी तरह बच्चे हैं। बाद में वे खुद भी समझ जाएंगे। कई छात्रों की बातचीत से पता चला कि इस तरह की नारेबाज़ी या टकराव कभी नहीं हुआ है। इस वक्त क्यों हुआ, ये हम सभी को सोचना होगा। सरकार बता दे कि क्या वह छात्रों की इन राय से सहमत है?

श्रीनगर में लाठीचार्ज की ख़बरें आते ही सोशल मीडिया पर सेकुलरवादियों को गालियां दी जाने लगीं। चंद पत्रकारों को भद्दी गाली देकर पूछा जाने लगा कि बताओ, अब क्या कहना है। अरे भाई, बताना क्या है। पूछो, उनसे जिनकी वहां सरकार है। क्या ये चार पत्रकार भी सरकार हैं तो इनमें से मुख्यमंत्री कौन है और उपमुख्यमंत्री कौन है। भारत के खिलाफ़ नारे लगाने वाले छात्रों को गिरफ्तार पीडीपी-बीजेपी की पुलिस करेगी या बरखा दत्त या राजदीप सरदेसाई।

क्या लोगों ने बिल्कुल ही आंखें बंद कर ली या उन्हें भी इन राजनीतिक गिरोहों के डर से आंखें खोलने में घबराहट होती है । चंद लोगों को सेकुलर बताकर गालियां दी जाने लगी। थोड़ी तो अकल लगा लें आप भी। सेकुलर होना ही संवैधानिक होना है। जो सेकुलर होने को गाली देते हैं वो किसको गाली दे रहे हैं। संविधान को ?

24 घंटे से एनआईटी श्रीनगर में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के सदस्य हैं। क्या वे अब बता सकते हं कि पुलिस ने डायरेक्टर के आदेश से लाठी चलाई या राज्य सरकार के आदेश से। मीडिया को कैंपस से बाहर रखा गया लेकिन व्हाट्स अप पर अफवाहें उड़ाई जाने लगीं कि मीडिया जेएनयू में तो कवर करता था लेकिन एनआईटी श्रीनगर के छात्रों को कवर नहीं कर रहा है क्योंकि वे भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। पाठक और दर्शक को इन अफवाहों से सतर्क रहना चाहिए, एक दिन यही गिरोह आपको धरेगा जब आप किसी मुद्दे को लेकर सवाल उठायेंगे। सवाल तो तब भी होंगे जब धरती पर स्वर्ग बन जाएगा।

जनता का रिपोर्टर ने लिखा है कि एसएसपी( अपराध ) ने फेसबुक पर एक पोस्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर की पुलिस को राष्ट्रवाद या तटस्थता पर उन लोगों से सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है जिनकी बहादुरी कीपैड तक ही सीमित रहती है। जम्मू-कश्मीर पुलिस की कहानी त्याग और साहस की है और इसने राज्य को आतंकवाद के पागलपन से बाहर निकाला है।

जिस पुलिस को सोशल मीडिया पर एक तबके ने सांप्रदायिक और भारत माता विरोधी घोषित कर दिया है वही पुलिस कह रही है कि उसने त्याग और साहस के दम पर राज्य को आतंकवाद के पागलपन से बाहर निकाला है। फिर भी इस पुलिस से सवाल पूछा जा सकता है कि आप इतने बहादुर हैं तो छात्रों और छात्राओं को अकेले में घेर कर लाठियों से क्यों मारा। भारत मुर्दाबाद के नारे लगाने वालों को तभी क्यों नहीं गिरफ्तार किया। अभी तक क्यों नहीं गिरफ्तार किया है।

छात्रों ने ही कहा कि इससे पहले कैंपस में कश्मीरी और गैर कश्मीरी छात्रों के बीच टकराव नहीं हुआ। उनका कहना है कि ग़ैर कश्मीरी छात्रों में केरल, बिहार, राजस्थान और यूपी के मुस्लिम छात्र भी हैं जो ग़ैर कश्मीरी छात्रों की मांगों के साथ हैं। इसलिए ज़रूरी है कि छात्रों की मांग को भी सुना जाना चाहिए और उसी पर बहस होनी चाहिए।

ग़ैर कश्मीरी छात्रों का कहना है कि उन्हें फेल कराने की धमकी दी जा रही है इसलिए कैंपस प्रशासन पर अब भरोसा नहीं रहा। एक छात्र ने कहा कि कश्मीरी छात्रों को ज़्यादा नंबर मिलते हैं लेकिन एक ने कहा कि यह बात आम नहीं है। किसी छात्र से अनबन हो जाती है तो उनके नंबर कम कर दिये जाते हैं इसिलए हम नकाब लगाकर प्रदर्शन कर रहे हैं। फिर भी इस भेदभाव को घंटे भर में किसी विषय के नंबर से साबित किया जा सकता है कि क्या कश्मीरी छात्रों को ज्यादा नंबर मिलते हैं।

एक शिकायत है कि ज़्यादातर शिक्षक कश्मीर के हैं। यह पता करना भी मुश्किल नहीं है। अगर ऐसा है तो छात्रों की बात में दम है। राष्ट्रीय संस्थानों में जब छात्र कई राज्यों के हैं तो शिक्षक एक राज्य के क्यों हों। छात्र चाहते हैं कि उनका तबादला देश अन्य एनआईटी में कर दिया जाए और 11 अप्रैल से होने वाले इम्तहान को टाला जाए।

उम्मीद है राज्य और केंद्र इन छात्रों की सुरक्षा का उचित प्रबंध करेगा। ये छात्र इस स्थिति में चार दिन बाद इम्तहान देने की स्थिति में नहीं है। प्रशासन तारीख बढ़ाने के बारे में भी उदारतापूर्वक सोच सकता है। कम से कम अपना दरवाज़ा मीडिया के लिए ही खोल दे ताकि छात्र अपनी बात कह सकें और मीडिया भी देख सके कि सच्चाई क्या है।

जेएनयू के मामले में वित्त मंत्री ने एलान कर दिया कि लड़ाई का पहला चरण वे जीत गए हैं, उन्हें बताना चाहिए कि एनआईटी श्रीनगर के छात्रों ने जो लड़ाई छेड़ी है वो किस चरण में आता है और वो किस तरह से जीतने जा रहे हैं। क्या पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों को गिरफ्तार कर जीतने जा रहे हैं या एनआईटी के छात्रों को वहां से हटाकर कहीं और भेजकर जीतने जा रहे हैं। छात्रों को यह भी चिन्ता है कि कहीं ऐसा न हो कि उनकी मांगें इस मसले के राजनीतिकरण और सांप्रदायीकरण में खो जाएं।

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