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This Article is From Feb 27, 2016

रवीश कुमार वॉशिंगटन से लौटकर : अमेरिका की महाबली गाड़ियां...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 27, 2016 16:59 pm IST
    • Published On फ़रवरी 27, 2016 09:08 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 27, 2016 16:59 pm IST
ऑटोमोबाइल ने अमेरिका का इतिहास भी बदला है और यह अमरीकी राष्ट्रवाद के प्रसार का वाहन भी रहा है। जरूर इसके बारे में काफी कुछ लिखा गया होगा। अमेरिका जाते ही आप सबसे पहले वहां की गाड़ियां देखते हैं। हर दूसरी गाड़ी पहले से ऊंची नज़र आ रही थी। हम मारुति 800 और ऑल्टो कार वाले देश के नागरिक तो पहली नज़र में ही दहशत में आ जाते होंगे। सुपर पावर की छवि दिमाग़ में बैठ जाती होगी। वाशिंगटन डी सी के एयरपोर्ट से निकलते ही ट्रकों और सामान्य कारों की ऊंचाई देखकर लगा कि वाक़ई सुपर पावर के यहां आ गए हैं। मुझे नहीं पता कि क्या बाकी सुपर पावर मुल्कों की सड़कों पर भी ऐसी ही विशालकाय गाड़ियाँ चलती हैं।
 
 

अमेरिका में हमने कुछ ट्रक और बस ऐसे देखे जैसे सड़क पर अपार्टमेंट चलने लगे हों। ट्रकों का कान बड़ा बड़ा बनाया गया है। नीले रंग के ट्रक को देखिये, जानबूझकर इसका कान बाहर निकाला गया है ताकि ताक़तवर और बड़ा दिखे। लगे कि यह अमरीकी अर्थव्यवस्था का चेहरा है। भारत के गिफ़्ट स्टोर में दिल्ली का हरा पीला ऑटो बिकता है। अमेरिका में बच्चे ऐसे ट्रकों और विशालकाय गाड़ियों की नक़ल में बने खिलौने से खेलते हैं।
 

इस ट्रक का थूथना फुला कर इतना बड़ा कर दिया गया है कि नीचे आने पर यह भारतीय ट्रकों की तरह कुचलेगा नहीं, निगल जाएगा। ऐसा लगता है कि एक पूरा ज़िला एक ट्रक में समा जाएगा। अमरीकी गाड़ियों को देखकर लगा कि नफ़ासत से इनका दूर दूर का नाता नहीं है। इनका काम अपने मुल्क की तरह ताकत का प्रदर्शन करना है।
 
 
 

तुलना के लिए भारतीय ट्रक की तस्वीर लगा दी है जो मैंने बंगाल में ली थी। इसका मुंह देखिए। कितना गोल और सुंदर है। जैसे सड़क पर निकलने से ही डरता हो। अमरीकी ट्रकों का मुंह देखिए जैसे पूरी दुनिया को निगलने निकले हों। एक किस्म की आक्रामकता की अाभा अमरीकी ट्रकों के मुखमंडल पर नज़र आती है। कारें तो मूस की तरह मोटाई हुई लगीं।
 

आबादी के हिसाब से तो ऐसी गाड़ियाँ भारत में होनी चाहिए लेकिन हम लोग अब जाकर एस यू वी का शौक़ पालने लगे हैं। हमें छोटा होने का इतना शौक़ है कि बड़ी गाड़ियां बनाते बनाते छोटी एस यू वी बनाने लगे हैं। जल्दी ही ऑल्टो की बाहरी डिज़ाइन एस यू वी की तरह बना दी जाएगी। हमारे मुल्क में छोटी और दुबली पतली एस यू वी कारों का प्रसार किया जा रहा है। भारत की सड़कों पर गाड़ियों की जितनी विविधता है उतनी अमेरिका की सड़कों पर नहीं है। भारत की गाड़ियों को देखकर लगेगा कि सबने अपने अपने सपने देखे हैं, अमेरिका में सबके लिए किसी एक ने सपने देखे हैं! अपनी गाड़ियों को महाबली बनाया है जबकि हम बाहुबली बनाने में लगे हैं। महाबली और बाहुबली में अंतर तो समझते ही होंगे। एक दादा और एक गुर्गा।
 

वहां की स्कूल बस पसंद आई,  खूब मज़बूत और एक रंग की। भारत में तो ट्रक, ट्रैक्टर, टैम्पो, सूमो से लेकर मार्कोपोलो बस तक का इस्तमाल स्कूल बस के लिए होता है। अमरीकी स्कूल बस न सिर्फ खूबसूरत लगी बल्कि दिल भी आ गया। पुरानापन भी है और नयापन भी। न्यूयॉर्क की सड़क पर एक रिक्शा के भी दर्शन हुए। नुमाइश के तौर पर चलाया गया होगा। वैसे साइकिल रिक्शा का आनंद लेना हो तो भारत और भारत से भी ज़्यादा बांग्लादेश जाइए।
 

अमेरिका की कई कारों को देखा, बेढब तरीके से बनी हुई है। मारकर निकल जाने के भाव का प्रदर्शन करती लगीं। मौसम ने भी ऐसा बना दिया होगा। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की गाड़ियां भी फली फूली नज़र आती हैं। अमेरिका एक मुल्क ही नहीं है। एक छवि भी है जो इन सबसे बनती है लेकिन हमारे जैसा बंदा पूछता है कि ज़रूरत है या ऐसे ही गाड़ियों को ज़रूरत से ज़्यादा विशालकाय बना दिए हो मुखिया जी।

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