विज्ञापन
This Article is From Sep 14, 2020

यूपी में 5 साल तक संविदा नौकरी के प्रस्ताव से घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है सरकार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 14, 2020 19:12 pm IST
    • Published On सितंबर 14, 2020 19:12 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 14, 2020 19:12 pm IST

अगर यह ख़बर सही है तो इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए. अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार उत्तर प्रदेश का कार्मिक विभाग यह प्रस्ताव ला रहा है कि समूह ख व ग की भर्ती अब 5 साल के लिए संविदा पर होगी. कांट्रेक्ट पर. पांच साल के दौरान जो छंटनी से बच जाएंगे उन्हें स्थायी किया जाएगा. इस दौरान संविदा के कर्मचारियों को स्थायी सेवा वालों का लाभ नहीं मिलेगा. यह प्रस्ताव करोड़ों नौजवानों के सपनों पर एक ड्राम पानी उलट देगा जो सोचते थे कि सरकार की स्थायी सेवा मिलेगी. जीवन में सुरक्षा रहेगी. प्राइवेट कंपनी भी 3 महीने की सेवा के बाद परमानेंट कर देती है मगर सरकार 5 साल तक कांट्रेक्ट पर रखेगी. व्यापक बहस करनी है तो मेहनत कीजिए. ज़रा पता कीजिए कि किन-किन राज्यों में यह व्यवस्था लागू की गई है और किए जाने का प्रस्ताव है.

गुजरात में नरेंद्र मोदी ने यह सिस्टम लागू किया. फिक्स पे सिस्टम कहते हैं. फिक्स पे सिस्टम में लोग कई साल तक काम करते रहे. पुलिस से लेकर शिक्षक की भर्ती में. उनकी सैलरी नहीं बढ़ी और न परमानेंट हुए. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वहां पर चार लाख कर्मचारी फिक्स सिस्टम के तहत भर्ती किए गए. 14 साल तक बिना वेतन वृद्धि के काम करते रहे. मामूली वृद्धि हुई होगी लेकिन स्थायी सेवा के बराबर नहीं हो सके. फिर इसके खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई. 2012 में गुजरात हाईकोर्ट ने फिक्स पे सिस्टम को ग़ैर कानूनी घोषित कर दिया. कहा था कि इन्हें स्थायी सेवा के सहयोगियों के बराबर वेतन मिलना चाहिए और जब से सेवा में आए हैं उसे जोड़ कर दिया जाए. मिला या नहीं मिला, कह नहीं सकता. ज़रूर कम वेतन पर कई साल काम करने वाले 4 लाख लोगों का राजनीतिक सर्वे हो सकता है. पता चलेगा कि आर्थिक शोषण का राजनीतिक विकल्प से कोई संबंध नहीं है. आर्थिक शोषण से राजनीतिक निष्ठा नहीं बदलती है. राजनीतिक निष्ठा किसी और चीज़ से बनती है.

यह केस सुप्रीम कोर्ट गया. गुजरात सरकार ने चुनौती दी. मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप इन्हें समान वेतन नहीं दे सकते तो खुद को दिवालिया घोषित कर दें. 7 दिसंबर 2016 को अहमदाबाद मिरर में इस फैसले की खबर छपी है. अब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे. क्योंकि गुजरात सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के हिसाब से कर्मचारियों को वेतन दिया गया तो सरकार को 8000 करोड़ खर्च करने पड़ेंगे. गुजरात में चार लाख कर्मचारी फिक्स पे स्कीम के तहत नियुक्त किए गए हैं. इन सभी से हलफनामा लिया गया कि वे फिक्स पे सिस्टम के तहत काम करने के लिए तैयार हैं. इस बात से सुप्रीम कोर्ट नाराज़ हो गया था. कोर्ट ने गुजरात मॉडल की धज्जियां उड़ा दी. कहा कि कोई नियम नहीं लेकिन कांस्टेबल की जगह लोकरक्षक की नियुक्ति की गई. फिक्स पे सिस्टम के तहत नए पदनाम रखे गए थे. लोकरक्षक. मुझे जानकारी नहीं कि गुजरात सरकार ने 8000 करोड़ रुपये दिए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हुआ या नहीं. आईटी सेल दो मिनट में पता कर सकता है. उससे पूछ लें.

गुजरात में चार लाख कर्मचारियों को फिक्स-पे सिस्टम में नौकरी देकर सरकार ने 8000 करोड़ बचा लिए. आप कहेंगे कि ये ख़राब सिस्टम है. मैं भी कहूंगा. लेकिन इसके बाद भी वहां बीजेपी को कोई राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ. युवाओं में उसकी लोकप्रियता बनी रही. आज भी है. इसलिए कोई यह भ्रम न रखें कि यूपी सरकार के कथित प्रस्ताव से बीजेपी की लोकप्रियता कम हो जाएगी. बल्कि बढ़ेगी. चार लाख लोगों को जब बिना किसी सामाजिक सुरक्षा और पूरा वेतन दिए कई साल काम कराया जा सकता है बगैर किसी राजनीतिक नुकसान के तो यूपी में भी योगी सरकार को चिन्ता नहीं करनी चाहिए. क्योंकि मंदिर बन रहा है. धारा 370 पर किसी को तीन लाइन पता न होगी मगर उसके हटने से खुश हैं. ऐसे और भी कदम हैं जिससे नौजवान और समाज खुश है. किसी को शक है तो आज चुनाव करा ले. पता चल जाएगा या फिर बिहार चुनाव के नतीजे का ही इंतज़ार कर ले. बिहार में भी इसी तरह की व्यवस्था है. शिक्षकों को परमानेंट नहीं किया, अब भी नहीं करते हैं लेकिन कुछ वेतन वृद्धि की घोषणा का खूब प्रचार हो रहा है. आप कहेंगे कि तब तो ये सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं करेंगे. यह दिल्ली की सोच है. खुद को तीन लाख या चार लाख बताने वाले शिक्षकों में सर्वे करा लें. आप हैरान हो जाएंगे सत्तारूढ़ दल के प्रति समर्थन देखकर.

रोज़गार नहीं देने की खबरों और आंदोलन से विपक्ष उत्साहित नज़र आया. उसे यह समझना चाहिए कि अगर इस आंदोलन में दम होता तो इसके बीच यह खबर नहीं आती कि संविदा पर 5 साल के लिए भर्ती का प्रस्ताव बनाने की तैयारी है. जैसा कि अखबार में कहा गया है. यह बताता है कि सरकार को अपनी जनता पर भरोसा है. उसका हर फैसला जनता स्वीकार करती है. मैं हमेशा विपक्ष से कहता हूं कि रोज़गार के सवाल से दूर रहना चाहिए क्योंकि नौजवान चाहता भी नहीं कि वह विपक्ष के किसी बात का समर्थन करे. कम से कम से पता तो कर लें कि नौजवान उनके बारे में क्या सोचते हैं. झूठ-मूठ का उनके प्रदर्शनों में डफली बजाने चले जाते हैं. नरेंद्र मोदी के यू टयूब का डिसलाइक बढ़ गया तो क्या राहुल गांधी का बढ़ गया? नहीं न. रोज़गार को ले कर चले आंदोलन से नौजवानों ने सचेत दूरी बनाए रखी. क्योंकि वे अपनी निष्ठा को पवित्र मानते हैं. नौजवानों ने राहुल प्रियंका, अखिलेश और तेजस्वी यादव, मनोज झा के ट्वीट पर हाथ लगाने से भी परहेज़ किया. इसलिए विपक्ष को दूर रहना चाहिए या फिर अपना मॉडल बताना चाहिए. अपने राज्यों में झांक कर देखे. इस बात के बावजूद कि कोई नौजवान उनकी नहीं सुनेगा. ये फैक्ट है.

मैं तीन साल का अपना अनुभव बताता हूं. लगातार लिखा और बोला कि रोज़गार का प्रश्न मेरी परीक्षा बनाम उसकी परीक्षा के रिज़ल्ट का नहीं है. फिर भी नौजवानों को यही लगा कि उनकी परीक्षा के रिज़ल्ट का ज़िक्र आया या नहीं आया. आप कुछ भी लिखें, नौजवान उसे पढ़ते हैं न सुनते हैं. तुरंत मैसेज ठेलने लगते हैं कि मेरी भर्ती परीक्षा का कब उठाएंगे. जबकि वे देख रहे हैं कि जिसका कह रहा हूं उसका भी नहीं हो रहा है. अब तक पचासों परीक्षाओं की बात की है, ज़ाहिर है सैकड़ों की नहीं कर पाया लेकिन उन पचासों के बारे में भी कुछ नहीं हो सका. नौजवानों का मैसेज हताश कर देता है. वे घूम फिर कर वही करते हैं. मेरी परीक्षी की आवाज़ उठा दीजिए. ख़ैर. इस मुद्दे को लेकर बहस कीजिए लेकिन ध्यान रहे कि आज भी लाखों नौजवान अलग-अलग राज्यों में कांट्रेक्ट पर काम कर रहे हैं. कुछ साल बाद उनकी नौकरी समाप्त हो जाती है. कुछ साल वे केस लड़ते हैं. लेकिन क्या आपको लगता है कि रोज़गार के स्वरूप को लेकर बहस करेंगे? रोज़गार राजनीतिक मुद्दा बनेगा? जवाब जानता हूं. कांट्रेक्ट नौकरी ही भविष्य है. इसे लोगों ने स्वीकार किया है. इसके विकल्प से जूझने की राजनीतिक समझ और साहस नहीं है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com