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This Article is From Dec 24, 2014

रवीश कुमार की कलम से : ध्यान से फिर ग़ायब ध्यानचंद

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    दिसंबर 24, 2014 21:58 pm IST
    • Published On दिसंबर 24, 2014 21:50 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 24, 2014 21:58 pm IST

आज के दिन भोपाल के अपने घर में अशोक कुमार ध्यानचंद क्या सोच रहे होंगे इसका अंदाज़ा फ़रवरी 2014 के उनके बयान से मिल सकता है। हाकी खिलाड़ी और ध्यानचंद सिंह के बेटे अशोक कुमार सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने के बाद प्रतिक्रिया दे रहे थे। अशोक ध्यानचंद ने तब कहा था कि मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी है कि मेजर ध्यानचंद को कभी भारत रत्न मिलेगा भी।

गूगल हमारी आधुनिक स्मृति है। इसमें आज जब ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग के संदर्भ में गोता लगाया तो मुख्यधारा के समाचार पत्रों की ख़बरें पहले बीस पेज तक नहीं मिली। इक्का दुक्का ख़बरें ही मिलीं। किसी तकनीकि वजह से ऐसा होता होगा या मेरे सर्च करने के तरीके में कमी रही होगी।
ज़्यादातर ख़बरें इस साल अगस्त की थी जिनमें यह सूचना थी कि गृह मंत्रालय ने ध्यानचंद का नाम भी प्रधानमंत्री को प्रस्तावित किया है। इसकी सूचना गृहराज्य मंत्री किरण रिजीजु ने लोकसभा में दी थी। तब देशभर में फिर से उम्मीद की लहर दौड़ गई कि ध्यानचंद को भारत रत्न मिलने से कोई नहीं रोक सकता।

इसकी ख़बर फैलते ही बीजेपी नेता से लेकर खिलाड़ी जगत के लोग प्रतिक्रिया देने लगे थे। मिल्खा सिंह ने स्वागत किया। लोग भूल गए कि यूपीए सरकार के समय भी खेल मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय के समक्ष ध्यानचंद के लिए प्रस्ताव भेजा था। फिर दोबारा से भेजे जाने की क्या ज़रूरत थी और इसे बढ़ा-चढ़ाकर क्यों पेश किया गया।

गूगल स्मृति कोष से पता चलता है कि मनमोहन सिंह ने भी ध्यानचंद के नाम पर विचार किया था पर सबको पता था कि मिलना तो तेंदुलकर को ही था।

भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ध्यानचंद को भी भारत रत्न दिए जाने की पुरज़ोर वकालत करते रहे हैं। जब से यूपीए सरकार ने भारत रत्न दिए जाने की शर्त में बदलाव कर खिलाड़ियों को शामिल किया है, तब से ध्यानचंद को भारत रत्न दिये जाने की मांग मुखर हो रही है। जैसे ही सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिये जाने की ख़बरें आने लगीं ध्यानचंद को लेकर मांग तेज़ हो गई। इस साल जनवरी में दिल्ली में पूर्व हाकी खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों ने एक रैली भी निकाली थी।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यूपीए सरकार को चिट्ठी भी लिखी थी। अगस्त 2011 में बर्लिन ओलिंपिक में विजय के पचहत्तर साल होने के मौके पर भोपाल में एक सम्मान समारोह हुआ था। वहाँ शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि खिलाड़ियों में सबसे पहले भारत रत्न ध्यानचंद को मिलना चाहिए। ऐसा नहीं है कि वे आज खुद को असहज पा रहे होंगे। अपनी सरकार है तो शिकायत कैसे करें इसलिए शिवराज सिंह चौहान फ़िलहाल मध्य प्रदेश के एक और लाल अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिलने की खुशी का सार्वजनिक इज़हार करते रहे। जो कि पूरी तरह से सही भी है। वाजपेयी को भारत रत्न मिलने से विरोधी भी ख़ुश हैं।

नियम के मुताबिक़ एक साल में भारत रत्न तीन लोगों को दिया जा सकता है। यह क़यास लगाना मुश्किल है कि इस बार भी ध्यानचंद को भारत रत्न क्यों नहीं मिला। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के ध्यान में ध्यानचंद नहीं हैं। नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद को भी आमंत्रित किया था। पर भारत रत्न देने की बारी आई तब ध्यान से क्यों ग़ायब हो गए ध्यानचंद। और आज कहीं से कोई आवाज़ क्यों नहीं उठी? कोई राजनीतिक वजह?!

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