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This Article is From Feb 08, 2017

मुरादाबाद में मुकाबला : विलायती बनाम बादशाही दवाखाना

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 08, 2017 00:36 am IST
    • Published On फ़रवरी 08, 2017 00:36 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 08, 2017 00:36 am IST
मुरादाबाद की दीवारों पर लिखे नारों से सावधान. आपको भ्रम हो सकता है कि यहां मुकाबला सपा, बसपा और भाजपा के बीच नहीं है बल्कि गुप्त रोग का प्रकट इलाज करने वाले बादशाही दवाखाना और विलायती दवाखाना के बीच है. चुनाव आयोग ने दीवारों पर लिखे तमाम दलों के नारों को पुतवा दिया है. लिहाजा नेताओं से ज्यादा सेक्स समस्या को दूर करने वालों के घोषणापत्र लाल और नीली स्याही से लिखे नजर आते हैं. मुरादाबाद स्टेशन रोड की दीवारों से लगा कि सेक्स रोग महामारी की शक्ल ले चुका है या ये हो सकता है कि दवाखाना वाले ही महामारी बन चुके हैं.
 
muradabad gupt rog


सेक्स रोग को पहली बार किसने गुप्त रोग कहा होगा, मालूम नहीं चला. जरूर पाश्चात्य संस्कृति से लड़ने वाला योद्धा रहा होगा जिसने कुछ रोगों को गुप्त घोषित कर उसे गैर पश्चिमी दवाओं से दूर करने का बीड़ा उठाया होगा. उसी प्रथम योद्धा के संघर्ष का परिणाम है कि आज भारत की रेल यात्रा गुप्त रोग दूर करने वाले शफाखानों और दवाखानों के बिना पूरी हो ही नहीं सकती है. इन डाक्टरों को भी सम्मानित किया जाना चाहिए. जो रोग गुप्त होते हैं उनका ये इलाज पूरी दुनिया में एलान करके करते हैं. ये कम बड़े साहस की बात नहीं है. ये न होते तो आज लाखों भारतीयों के गुप्त रोग गुप्त ही रह जाते. मुझे इन हकीमों पर गर्व है. क्या कोई एमबीबीएस की डिग्री वाला डाक्टर इस तरह अपने पड़ोस में एलान कर सकता है कि सेक्स रोगी तुरंत मिलें. पड़ोसी को दूसरे मोहल्ले के डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. उनका इलाज वही करेंगे. बहुत कम ऐसे डाक्टर मिलेंगे.

मेरठ से लेकर मुरादाबाद स्टेशन के बाहर की दीवार पर एक के बाद एक दवाखानों के विज्ञापन इस तरह से लिखे गए हैं जैसे गुप्त रोग दूर करने की कोई स्पेशल रेलगाड़ी चलाई गई हो. बहुत दूर तक इनके विज्ञापन खत्म ही नहीं होते. विलायती और बादशाही नाम मुझे दिलचस्प लगे. लगता है असली मुकाबला इन्हीं दो के बीच है.
 
muradabad gupt rog

जिस तरह से इतिहासकारों ने कालखंड को ईसा पूर्व और ईसा पश्चात में विभाजित किया है, उसी तरह गुप्त रोग को शादी से पहले और शादी के बाद में बांटा गया है. एक नया विभाजन और दिखा गुप्तरोगी स्त्री और गुप्तरोगी पुरुष. शर्तिया की जगह पूर्णतया इलाज आ गया है. धर्मनिरपेक्षता का संकट यहां भी है. शफाखाना मतलब हकीम होंगे, दवाखाना मतलब वैद्य होंगे. हिन्दू मुस्लिम सेक्स रोगियों ने अपने अस्पतालों का बंटवारा बिना किसी सांप्रदायिक दंगे के ही कर लिया है.

नवाबों जैसी ताकत पायें, विलायती दवाखाने के इस नारे से अचंभे में पड़ गया. ये कौन सी ताकत है जिसे पाने के लिए विलायती जी मुरादाबाद की दीवारों को रौशन कर रहे हैं. नवाबों की हवेलियां या तो खंडहर हो गईं या हेरिटेज होटल में बदल गईं. मगर उनकी इस ताकत का राज मुरादाबाद के विलायती दवाखाना वालों को कैसे पता चला, यह अलग से शोध का विषय है. नवाबों जैसी ताकत पर ज्यादा जोर देने से इलाके का सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है. कोई जमींदारों, सामंतों जैसी ताकत दिलाने का दावा कर सकता है.
 
muradabad gupt rog

सेक्स रोग अगर भयावह स्तर पर है तो यह चुनावी मुद्दा बिल्कुल होना चाहिए. इसे गुप्त रोग के स्टेटस से आजाद कराने की जरूरत है. सेक्स एजुकेशन का विरोध होता रहेगा, लेकिन दीवारों पर सेक्स रोग की समस्या भी प्रकट होती रहेगी. रोगियों की कितनी प्रताड़ना होती होगी. दवाखाने तक पहुंचने से पहले सौ मौतें मरते होंगे. यह सरकारों की नाकामी है कि उनके अस्पतालों ने ऐसे विज्ञापन नहीं लगाए कि सेक्स की समस्या एक सामान्य बीमारी है. आप सदर अस्पताल के चीफ मेडिकल अफसर से मिलें, वही औपचारिक इलाज करेंगे. दीवारों पर लिखे ये नारे समाज की कुंठाओं की बुलंद तस्वीरें हैं.

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