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This Article is From Aug 29, 2016

अगर धर्म पति है, राजनीति पत्नी, तो 'वो' कौन है...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 29, 2016 10:28 am IST
    • Published On अगस्त 29, 2016 10:28 am IST
    • Last Updated On अगस्त 29, 2016 10:28 am IST
जब से मैंने सुना है कि धर्म पति है और उसकी कोई पत्नी भी है, तभी से मतदाताओं के बारे में सोच रहा हूं. वे इन दोनों में से किसी एक के क्या लगते हैं या दोनों के क्या लगते हैं...? पति की साइड से मतदाता देवर हुआ या पत्नी की साइड से साला लगेगा...? मैं यह नहीं कह रहा कि राजनीति मतदाता की भाभी लगती है, परंतु यह ज़रूर पूछ रहा हूं कि कोई तो बताए, वह मतदाता की क्या लगेगी...? धर्म भैया है या जीजा है...? लोकतंत्र में कोई भी रिश्ता मतदाता के बग़ैर नहीं हो सकता...

धर्म और राजनीति अगर पति-पत्नी हैं, तो 'वो' कौन हो सकता है... कॉरपोरेट...? मल्लब उनके ही घर में तो ये पति-पत्नी रहते हैं, इसलिए पूछना तो बनता है कि मकान मालिक भी कुछ लगेगा या नहीं...? धर्म और राजनीति ने लव मैरिज की है या अरेंज...? यह भी कहा गया है कि हर पति की यह ड्यूटी होती है कि अपनी पत्नी को संरक्षण दे. हर पत्नी का धर्म होता है, वह पति के अनुशासन को स्वीकार करे. धर्म और राजनीति की शादी तो करा दी गई, लेकिन संविधान को कहीं छोड़ दिया गया. उसे संरक्षण और ड्यूटी के दायित्व से चलता कर दिया है. जैसे संविधान न तो किसी का धर्म हुआ, न किसी की ड्यूटी, जबकि उसमें बताया गया है कि किस अनुच्छेद के तहत किसकी ड्यूटी क्या है. संविधान क्यों है...? चुनाव क्यों है...?

हरियाणा विधानसभा की यह घटना प्रकाश में आते ही सोशल मीडिया के नौनिहाल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगाने लगे. जब पता नहीं चल पाया तो मैंने सोचा कि भारत सरकार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगाने के लिए एक कमेटी बनानी चाहिए. दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने जितने शोध नहीं किए होंगे, उससे ज़्यादा भारत की सरकारी कमेटियों ने करके फेंक दिए होंगे. हमारी कमेटियां वैज्ञानिक होती हैं, तभी तो उनकी रिपोर्ट धूल भी खा लेती है. कमेटी पता लगाएगी कि वैज्ञानिक क्या है और दृष्टिकोण क्या है. हम भी अपनी तरफ से पता लगाते हैं.

दुनिया की कोई भी दृष्टि बग़ैर किसी कोण के मुकम्मल नहीं है. दृष्टि का मतलब है देखना. नज़र का वहां तक पहुंचना, जहां तक सबकी नज़र नहीं पहुंच पाती. बग़ैर कोण की दृष्टियां क्या बेकार होती हैं...? तिरछी नज़र में इश्क़ है, टेढ़ी नज़र में नफ़रत. कोण वाली दृष्टि में विज्ञान है या नहीं, अब यही पता लगाना रह गया है. उसके विज्ञान का पता चलते ही कमेटी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता लगा लेगी. क्या पता, इसी चक्कर में कुछ वैज्ञानिकों का भी पता चल जाए, जो अपने दृष्टिकोण के साथ नज़र नहीं आते. आते भी हैं, तो उपग्रह छोड़ने से पहले धार्मिक दृष्टिकोण से सलाह-मशविरा करने चले जाते हैं.

जिन लोगों ने अभी तक राजनीति को कुंवारा रखा, वही अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लेकर हंगामा कर रहे हैं. हमारी राजनीति की बारात निकल गई है और हम हैं कि बारातघर में हंगामा कर रहे हैं. मैं तो प्रसन्न हूं कि राजनीति की धर्म से शादी हो गई. राजनीति अब अपने पति के संरक्षण और अनुशासन में रहेगी. मल्लब, घर में रहेगी. मुनि जी, मौलवी जी और संत जी बाहर जाकर चुनाव लड़ आएंगे. मुझे नहीं पता कि तमाम पत्नियों को नई सखी राजनीति की यह हैसियत पसंद आई है या नहीं. वह तो अभी तक इसी राजनीति से अपने लिए आज़ादी मांग रही थी कि हमें पतियों और पिताओं की चौकीदारी से मुक्त करो. लो, कल्लो बात... अब उनकी राजनीति भी पत्नी हो गई है... हाथ पीले कर दिए गए हैं...

हरियाणा सरकार के मंत्री खुलेआम डेरा सच्चा सौदा के स्कूल को 50 लाख रुपये दे आएं. ऐसा नहीं कि सिर्फ बुलाया ही जाता है. हमारे नेता मंत्री विधानसभा से ऊंची संतों की धर्मसभा में जाते भी तो हैं. अगर डेरा सच्चा सौदा के स्वामी को सदन में बुलाया जाए, तो मैं स्वागत करूंगा. मुझे उनका डीजे गाना बहुत पसंद है. 'You are the love charger, you are my love charger...' सुनते हुए मैं भावविभोर हो जाता हूं. जब सदन में उनका कार्यक्रम होगा, तो हम नीरस और नीतिगत विधानसभाओं को जीवंत होते हुए भी देख सकेंगे. नीति-निर्माताओं में झूम पैदा होगी और वे मोहब्बत करने वाले सच्चे आइटम बन सकेंगे. इससे समाज में शांति आएगी.

जब भी यह कार्यक्रम हो, अरविंद केजरीवाल जी को भी बुला लें. विशाल डडलानी को नहीं बुलाएं. हो सकता है, डडलानी जी हरियाणा के पहले इंग्लिश रॉक की नक़ल मार लें. कांग्रेस को भी बुला लें. उसके विधायक भी तो यह सब होते देख रहे थे. बीजेपी की सहायक नदी की तरह बहने वाली कांग्रेस को ऐतराज़ भी हुआ तो इस बात से कि मंत्री ने ख़ुद जाकर डेरा सच्चा सौदा को 50 लाख क्यों दिए. कांग्रेस यह आरोप जानबूझकर इसलिए लगाती है, ताकि बीजेपी उसे याद दिलाए कि उसने भी तो डेरा को संरक्षण दिया है. यह है कांग्रेस का आलसीपन. चाहती है, बीजेपी ही मेहनत कर यह बताती रहे कि कांग्रेस भी उसी के जैसी है.

जब संस्थाओं का सत्यानाश ही करना है, तो गाजे-बाजे के साथ होना चाहिए, एकमुश्त होना चाहिए. हम भूल जाते हैं कि हमारी एक आस्था संविधान भी है. उसकी अपनी एक पवित्रता है. हम नहीं चाहते कि इस प्रतियोगिता में कल किसी पादरी या मौलवी को भी बुलाया जाए. ऐसा नहीं है कि हम उनके अनुभवों, ज्ञान, मूर्खताओं और पाखंडों को महत्व नहीं देते हैं. बिल्कुल देते हैं, लेकिन उनकी जगह विधानसभा नहीं है, संसद नहीं है. लोकतंत्र में राजनीति एक स्वतंत्र कार्य है. इसका कोई पति होगा, तो राजनीति की स्वतंत्रता चली जाएगी. फिर आप संविधान छोड़ धर्म से ही अपने अधिकार मांग लीजिए. यह आपकी आस्था से खिलवाड़ नहीं है, संविधान में जो आपकी आस्था है, उससे कोई खेल रहा है.

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