नौकरियों को लेकर नौटंकी बंद हो, ठीक-ठीक बात करें अमित शाह और कमलनाथ

स्थानिकता के नाम 70 से 90 प्रतिशत नौकरियों को रिज़र्व करने से भारत के संघीय स्वरूप पर क्या असर पड़ेगा, वह ढांचा सिर्फ संस्थाओं की इमारत में नहीं होता, लोगों के ज़हन में भी होता है.

नौकरियों को लेकर नौटंकी बंद हो, ठीक-ठीक बात करें अमित शाह और कमलनाथ

"अगले पांच साल में 70 लाख रोज़गार और स्व-रोज़गार के अवसर पैदा करने का उत्तर प्रदेश की जनता को वादा करते हैं. मित्रों, उत्तर प्रदेश में स्थापित हर उद्योग में 90 प्रतिशत नौकरियां उत्तर प्रदेश के युवाओं को ही मिलें, हम सुनिश्चित करते हैं. मित्रों, सरकार बनाने के 90 दिन के अंदर सभी खाली पड़े सरकारी पदों की भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी..."

यह बयान अमित शाह का है, जो उन्होंने लखनऊ में BJP का घोषणापत्र जारी करते हुए दिया था. जनवरी, 2017 में अमित शाह अपना यह बयान BJP के घोषणापत्र से पढ़ रहे थे. एक साल बाद दिसंबर, 2018 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ऐसा ही एक बयान देते हैं.

"बहुत सारे लोग उद्योग में लग जाते हैं, अन्य प्रदेशों से आ जाते हैं, बिहार, उत्तर प्रदेश से, मैं उनकी आलोचना नहीं करना चाहता हूं, पर मध्य प्रदेश के नौजवान रोज़गार से वंचित हो जाते हैं. 70 प्रतिशत रोज़गार लोकल होगा..."

आप दोनों के बयान को ध्यान से पढ़ें. क्या आपका ध्यान उत्तर प्रदेश, बिहार वाले हिस्से पर ही जाता है? उत्तर प्रदेश और बिहार से दूसरे राज्यों में रोज़गार की तलाश में निकलने वाले युवाओं को किस पर गुस्सा आता होगा? ज़ाहिर है, उन्हीं नेताओं पर, जो इन दिनों उनके चैम्पियन बनने की नौटंकी कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के ही नौजवान पलायन करते हैं, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी पलायन होता रहता है.

हमें इस सवाल को दो स्तरों पर देखना होगा. स्थानिकता के नाम 70 से 90 प्रतिशत नौकरियों को रिज़र्व करने से भारत के संघीय स्वरूप पर क्या असर पड़ेगा, वह ढांचा सिर्फ संस्थाओं की इमारत में नहीं होता, लोगों के ज़हन में भी होता है. क्या ऐसा दिन आने वाला है कि हम डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका की तरह राज्यों के बीच सीमेंट की ऊंची दीवारें बनाएंगे, ताकि कोई दूसरे राज्य में न जा सके. फिर आप रोज़गार की वास्तविक स्थिति और उनसे जुड़ी संस्थाओं का भी हिसाब कीजिए.

अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के उद्योगों में 90 प्रतिशत नौकरी स्थानीय युवाओं को देने का वादा किया था. क्या इससे उत्तर प्रदेश के युवाओं को ज़्यादा भला हो गया? क्या उस फैसले से बिहार, मध्य प्रदेश वालों का हक मारा गया? उत्तर प्रदेश में BJP की सरकार बनने पर कितनी ऐसी फैक्टरी या कंपनी लगी हैं, जिनमें 90 प्रतिशत रोज़गार उत्तर प्रदेश के युवाओं को मिला है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोएडा में सैमसंग की फैक्टरी का उद्घाटन किया था, उसी का हिसाब दे दें कि 90 प्रतिशत लोकल युवाओं को रोज़गार मिला या नहीं. वैसे हमने उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नीति का भी अध्ययन किया, 90 प्रतिशत रोज़गार स्थानीय युवाओं को देने की बात नज़र नहीं आई. घोषणापत्रों को भूल जाना आम बात है.

वर्ष 2012 में शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उद्योगों को 50 प्रतिशत रोज़गार स्थानीय युवाओं को देना होगा. जो 90 प्रतिशत तक देंगे, उन्हें दो साल की टैक्स छूट मिलेगी. क्या मध्य प्रदेश की सरकार बता सकती है कि इस नीति के बाद कितने ऐसे उद्योग आए, जिसमें स्थानीय युवाओं को 50 प्रतिशत रोज़गार मिला? कोई तथ्य रख सकती है, जिससे इस फैसले के असर की बेहतर समीक्षा हो सके? यह आंकड़ा संख्या में दिया जाए, प्रतिशत में नहीं. क्या नए मुख्यमंत्री कमलनाथ इन तथ्यों पर कोई श्वेतपत्र जनता के सामने रख सकते हैं? इंटरनेट पर सर्च करेंगे, तो कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और हिमाचल प्रदेश में स्थानीय नौजवानों को 70 से 90 प्रतिशत नौकरी देने की नीति या योजना से जुड़ी कई ख़बरें मिल जाएंगी.

अब ज़रा हर राज्य में सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया और इससे जुड़ी संस्थाओं का भी हिसाब कर लेते हैं. क्या उत्तर प्रदेश का लोकसेवा चयन आयोग अपने राज्य के नौजवानों के प्रति ईमानदार और पारदर्शी है, क्या बिहार का आयोग है, क्या मध्य प्रदेश का व्यापम है? आप इनकी नौकरी देने का रिकॉर्ड देखिए. बहुत सी नौकरियां तो ऐसी हैं, जिनका विज्ञापन निकला, फॉर्म फीस के नाम पर करोड़ों रुपये वसूले गए और उस परीक्षा का पता ही नहीं चला. जो परीक्षाएं हो गईं, वे भी धांधली से लेकर देरी और फिर मुकदमेबाज़ी के चक्र में फंसकर रह जाती हैं.

अमित शाह बता दें कि वादे के अनुसार 90 दिनों में उत्तर प्रदेश में कितने पदों को भरने की प्रक्रिया आरंभ हुई? वह प्रक्रिया कितने दिनों में पूरी हो रही है, यह भी बता दें. सिर्फ अमित शाह ही नहीं, नीतीश कुमार, अमरिंदर सिंह, ममता बनर्जी सब बता दें.

अभी इसी साल उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब 68,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती निकाली. इसी की परीक्षा में धांधली हो गई. जिसे टॉप करना था, उसे फेल कर दिया गया और फेल करने वाले पास कर दिए गए. अदालत के आदेश से कॉपी चेक हुई, तो अंकित वर्मा टॉपर निकला, जबकि उसे फेल कर दिया गया था. यही नहीं, अखिलेश यादव की सरकार में 68,000 शिक्षकों की बहाली निकली. प्रक्रिया पूरी हो गई, मगर नई सरकार ने समीक्षा के नाम पर रोक लगा दी. अदालत के कई आदेशों के बाद इन्हें नौकरी देने के लिए कहा गया, तो भी नौकरी नहीं दी गई. नौजवानों को अपने ही राज्य से नौकरी के लिए अनगिनत धरना-प्रदर्शन करना पड़ा. अभी भी कई हज़ार युवाओं को नौकरी नहीं मिली.

मैंने 'Prime Time' की नौकरी सीरीज़ में इन चयन आयोगों से परेशान युवाओं पर 50 से अधिक एपिसोड किए हैं. आज भी कर रहा हूं, बस, अब एपिसोड की गिनती बंद कर दी है. आप चाहें, तो स्वतंत्र रूप से सारे एपिसोड निकालकर ऑडिट कर सकते हैं. बल्कि मैं चाहता हूं कि कोई नौकरी सीरीज़ और उसके असर का स्वतंत्र ऑडिट करे. इस सीरीज़ के दौरान 30,000 से अधिक छात्रों को नियुक्तिपत्र मिला है, जिन्हें रिज़ल्ट आने के बाद भी साल-साल भर से इंतज़ार करना पड़ रहा था. यह संख्या भी अंतिम नहीं है, क्योंकि मैंने 30,000 के बाद गिनती बंद कर दी.

मैंने इस कामयाबी को अपना या अपने चैनल का ढिंढोरा पीटने का ज़रिया भी नहीं बनाया. दूसरा कोई चैनल होता, तो दिन-रात यही चलता है कि हमारा असर, 30,000 को मिला नियुक्तिपत्र. मेरी यह आदत नहीं है. जब भी प्रोमो टीम आई, उन्हें यही समझाया कि मैं ऐसा नहीं चाहता हूं. प्रोमो चलेगा, तो मैं यह लोड नहीं उठा सकूंगा. क्योंकि एक एपिसोड के साथ सैकड़ों नहीं, हज़ारों नौजवानों के मैसेज आ जाते थे कि हमारी भर्ती की समस्या दिखा दें.

इसलिए भी मैं अपनी कामयाबी का जश्न नहीं मना सका, क्योंकि जिस वक्त असर होने की ख़बर आती थी, उसी वक्त परेशान नौजवानों के भी रोते हुए मैसेज आने लगते थे. हर परीक्षा की कहानी भयावह है. नौजवानों की उम्र निकल गई और ज़िंदगी बर्बाद हो गई. नौजवान फोन कर बाकायदा रोते हैं. ऐसे मैसेज आज भी आए हैं, जब मैं यह लेख लिख रहा हूं. एक साल हो गया, लेकिन मैं इस नौकरी सीरीज़ के चक्र से नहीं निकल सका.

मेरी हालत यह हो गई कि हर एपिसोड में बोलना पड़ता है कि मैं नौकरी से जुड़ी सबकी समस्या नहीं दिखा सकता, क्योंकि मेरे पास संसाधन नहीं हैं. रिपोर्टर नहीं हैं. और वाकई इतनी समस्याएं हैं कि मैं सबका नहीं दिखा सका, इसलिए अपना ढिंढोरा नहीं पीट सका, क्योंकि अगले की पीड़ा मेरी वाहवाही से ज़्यादा ज़रूरी और गंभीर थी. इन नौजवानों को मीडिया और सरकारों ने फेल किया है. उत्तर प्रदेश, बिहार को लेकर जो डिबेट के नाम पर नौटंकी चल रही है, वह एक दिन का ड्रामा भर है.

आज सुबह ही मैसेज आया कि उत्तर प्रदेश में तीन साल से दारोगा की भर्ती की परीक्षा पूरी नहीं हो सकी है. एक साल पहले उत्तर प्रदेश पुलिस के भर्ती बोर्ड ने कंप्यूटर ऑपरेटर की परीक्षा रद्द की थी, अब तक उस परीक्षा का पता नहीं है कि दोबारा कब होगी. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 2013 में इंजीनियरों के लिए फॉर्म निकाला. 2016 में उसकी परीक्षा हुई, मगर आज तक रिज़ल्ट का पता नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुलाई, 2017 में भर्ती निकाली. फास्ट ट्रैक अदालतों के लिए तीन साल के कॉट्रैक्ट पर 1,950 लोगों को रखा जाना था. सात महीने पहले रिज़ल्ट आ गया, मगर अभी तक किसी की ज्वाइनिंग नहीं हुई. यह इसलिए भी गौरतलब है कि यह हाल फास्ट ट्रैक अदालतों का है. यह इसलिए बताया कि नौकरी की समस्या को लेकर मेरी तल्खी वाजिब है. वह दिखावे की नहीं है.

राज्य सरकार का छोड़िए, केंद्र सरकार का भी वही हाल है. आप स्टाफ सेलेक्शन कमीशन का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए. SSC CHSL 2016 की परीक्षा पास करने के बाद 614 नौजवानों को मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज़ में ज्वाइनिंग नहीं हो रही थी. 16 फरवरी, 2018 को रिजल्ट आ गया था. पांच महीने बाद इन्हें कमांड का आवंटन हुआ, मगर उसके बाद भी नियुक्तिपत्र का पता नहीं चला. फरवरी से सितंबर आ गया, साधारण घरों के ये नौजवान दिल्ली आकर भटकने लगे. 12 सितंबर के 'Prime Time' में हमने इनकी व्यथा दिखाई. रक्षा मंत्रालय से लेकर तमाम दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते ये नौजवान थक चुके थे. उस वक्त रक्षामंत्री ने ट्विटर पर लिखा था कि हम पता लगाते हैं. तीन महीने तक कुछ नहीं हुआ. तीन राज्यों में हारने के बाद इन सबको नियुक्तिपत्र भेजा जा रहा है. 10 महीने से नौकरी पाकर भी बिना सैलरी के ये नौजवान सड़कों पर भटक रहे थे.

नौजवानों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी तुरंत बंद होनी चाहिए. नौकरी का सवाल नौटंकी का सवाल नहीं है. उत्तर प्रदेश, बिहार के नौजवानों को भी भावुक होने की ज़रूरत नहीं है. अन्य राज्यों के नौजवान भी उन्हीं की तरह मेहनत करते हैं. जितनी मेहनत बिहार के युवा करते हैं, उतनी ही महाराष्ट्र के युवा भी करते हैं. सभी को मिलकर यह देखना चाहिए कि सरकारें उनके साथ जो धोखा कर रही हैं, वह कब बंद करेंगी. यह देखना चाहिए कि जब वे अपने राज्य के भर्ती बोर्ड की बदमाशियों के खिलाफ संघर्ष करते हैं, तब कौन नेता उनके साथ खड़ा होता है. इस भावुकता में पड़ने से पहले भर्ती को लेकर अपने धरना-प्रदर्शनों की संख्या ही गिन लेनी चाहिए.

प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों का बुरा हाल है. उससे भी बुरा हाल है, सरकारी सेक्टर की नौकरियों का. नौकरियां घटाई जा रही हैं. जो हैं, वे समय पर नहीं दी जा रही हैं. सरकारों के पास कितनी नौकरियां हैं, वह भी रीयल टाइम में जानने का हमारे पास कोई तरीका नहीं है. इसलिए मेरे लिए यह सवाल उत्तर प्रदेश, बिहार की भावुकता का नहीं है, एक बेहतर व्यवस्था की उम्मीद का सवाल है. क्या कांग्रेस की सरकारें कुछ अलग करेंगी? क्या BJP की सरकारें अब से कुछ बेहतर करेंगी?

VIDEO: रोज़गार के मुद्दे पर हमारी सरकारें कितनी गंभीर...?

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