उद्धव की सरकार, गई...गई…या बच गई…

देश में छाया सेना का टॉपिक पीछे जाता है और शिवसेना का टॉपिक आगे आता है. बात हो रही थी कि अग्निवीर से सेना कमज़ोर हो सकती है और टूटने लगी शिव-सेना. गिनती होने लगी कि शिंदे के साथ कौन-कौन है, कितने हैं.

उद्धव की सरकार, गई...गई…या बच गई…

देश ने टॉपिक बदल लिया है. सेना की जगह शिव-सेना आ गई है. शिव-सेना रहेगी या टूट जाएगी, इसे लेकर ख़बरें आज दिल्ली, मुबंई और सूरत के बीच भागती दौड़ती रहीं. जो देश एक दिन पहले अग्निवीरों की गिनती में लगा था कि चार साल बाद सेना में कितने रखे जाएंगे और कितने निकाल दिए जाएंगे, वह देश महाराष्ट्र में विधायकों को गिनने लगा कि शिव सेना एनसीपी के कितने विधायक बीजेपी में चले जाएंगे या अलग पार्टी बना लेंगे? महाराष्ट्र में शिवसेना के विधायक मंगलवार सुबह नॉट-रीचेबल हो गए. उनका फोन बंद हो गया. ख़बर आने लगी कि शिवसेना के कई सारे विधायक सूरत में हैं. अपनी पार्टी से संपर्क तोड़ कर भी विधायक फाइव स्टार ही जाते हैं ताकि किसी और के लिए संपर्क करना मुश्किल न हो. इस तरह से देश में छाया सेना का टॉपिक पीछे जाता है और शिवसेना का टॉपिक आगे आता है. बात हो रही थी कि अग्निवीर से सेना कमज़ोर हो सकती है और टूटने लगी शिव-सेना. गिनती होने लगी कि शिंदे के साथ कौन-कौन है, कितने हैं.

मंगलवार की कहानी के किरदार का नाम है एकनाथ शिंदे. हम भी सारा काम छोड़ कर इनके बारे में जानने लग गए. तो 19 जून की एक तस्वीर मिली, दो दिन पहले एकनाथ शिंदे, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के साथ मंच पर नज़र आ रहे हैं. शिव सेना की 56वीं सालगिरह मना रहे हैं. इस मौके पर ट्विट कर शिवसैनिकों को मनपूर्वक बधाई दे रहे हैं. उससे पहले 16 जून को आदित्य ठाकरे के साथ अयोध्या जाते हैं और साथ आरती करते हैं. इस दौरे को ऐतिहासिक बताते हैं. 13 जून को आदित्य ठाकरे का जन्मदिन मनाते हैं. क्या 13, 16 और 19 जून को उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे, किसी को भनक नहीं लगी कि 21 जून को एकनाथ से संपर्क टूट जाएगा? उन्हें आंखें दिखाने लगेंगे? एक साल पहले 22 अगस्त को मोदी सरकार में मंत्री नारायण राणे का बयान छपा है कि एकनाथ शिंदे को शिवसेना में दिक्कत हो रही है, अगर आना चाहे तो मैं उन्हें बीजेपी में शामिल कराऊंगा. एकनाथ शिंदे  इसका खंडन करते हैं और कहते हैं कि नारायण राणे महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार में भ्रम फैलाना चाहते हैं. मैं शिवसेना में काफी खुश हूं. मंगलवार को नारायण राणे ने ट्विट किया कि शाबाश एकनाथ जी, आपने सही समय पर सही फैसला लिया.

चार बार विधायक बनने से पहले एकनाथ ऑटो रिक्शा चलाते थे. अब तो उनके बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण से सांसद हैं. शिंदे की बगावत के पीछे कौन है, बगावत के पीछे कब से काम चल रहा था, इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं है. मगर सूरत के ली-मेरिडियन में देखकर आप संतोष कर सकते हैं कि शिव सेना के बागी अच्छी जगह गए हैं. इसी अच्छी जगह से एकनाथ शिंदे ने विधायक दल के नेता पद से हटा दिए जाने के बाद अपने ट्विटर हैंडल से शिव सेना का नाम हटा दिया और कहा कि हम ही असली शिव सेना हैं. उस वक्त एकनाथ शिंडे ट्वीट करते हैं कि 'हम बालासाहेब के पक्के शिवसैनिक हैं... बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है.. बालासाहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दीघे साहब की शिक्षाओं के बारे में सत्ता के लिए हमने कभी धोखा नहीं दिया और न कभी धोखा देंगे.'

इस ट्वीट के बाद ही लग गया था वे जल्दी ही भारी-भरकम नैतिक स्टैंड लेने वाले हैं, जिससे भारतीय राजनीति की सारी नैतिकताएं लजा कर बुलबुला हो जाएंगी. अगर ये धोखा नहीं तो फिर मित्रता क्या है, आप बहस कर सकते हैं. वैसे इसके बाद भी एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को एक मौका दिया.

पार्टी के विधायकों के साथ सूरत चले गए, क्या यह धोखा नहीं है, क्या इस फ़ाइव स्टार में दोस्ती निभाने के लिए विधायकों के साथ आए हैं ? शाम को शिवसेना के मिलिंद नार्वेकर और रविद्र फाटक सूरत में ली मेरिडियन होटल पहुंचे तब एकनाथ ने बातचीत के लिए भीतर बुला लिया. अब गिनती होने लगी कि एकनाथ मानेंगे, शिवसेना में लौटेंगे, वगैरह वगैरह. 

हम इस कहानी को इसी मोड़ पर छोड़ना चाहते हैं, आपको ले जाना चाहते हैं फ्लैश बैक में सरकारें पहले भी गिरती रही हैं और गिराई जाती रही हैं लेकिन 2014 के बाद से गिरी और गिराई गईं सरकारों की कहानी पर सरसरी नज़र डाल लेते हैं. उन सभी घटनाओं में दलबदल की एक अज्ञात आत्मा इस दल से निकल कर उस दल में प्रवेश करती है और जिसकी भी सरकार गिरती है, ज़्यादातर मामलों में बनती बीजेपी की ही है. 

21 मार्च 2020 को दलबदल की आत्मा ज्योतिरादित्य सिंधिया में प्रवेश कर गई थी. कांग्रेस नेता अपने साथ 21 विधायकों को लेकर निकल गए और अचानक सभी बीजेपी के नेताओं के साथ नजर आते हैं. कमलनाथ भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो जाते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल होकर केंद्रीय मंत्री. इसी तरह 2016 में उत्तराखंड में हरक सिंह रावत समेत दस तत्कालीन कांग्रेस नेताओं में दलबदल की आत्मा प्रवेश कर गई और कांग्रेस की हरीश रावत सरकार गिर गई. उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा लेकिन उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को अवैध करार दिया. अरुणाचल प्रदेश में तो 26 जनवरी 2015 की पूर्व संध्या पर ही राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले को गलत माना. दो-दो बार मोदी सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ने गलत तरीके से राष्ट्रपति शासन लगाया. उसी तरह तृणमूल कांग्रेस को मज़बूत करने वाले मुकुल रॉय पर बीजेपी भ्रष्टाचार के आरोप लगाती थी, उन्हें बीजेपी में ले आई, अब फिर से वे तृणमूल में लौट गए हैं. 2019 में दलबदल की आत्मा कर्नाटक के कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों में प्रवेश करती है और बीजेपी की बन जाती है. आप भूल गए होंगे आम आदमी पार्टी की 2015 में सरकार बनी थी, उसके 20 से अधिक विधायकों पर लाभ के पद का मामला चला था, हर दिन चैनलों पर ग्राफिक्स चलते थे कि इनकी सदस्यता रद्द होगी औऱ सरकार गिरेगी. आम आदमी पार्टी यह तूफान झेल गई.

हिन्दुत्व की राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. शिव सेना ने बीजेपी के हिन्दुत्व को चुनौती दी है. इस लड़ाई की बुनियाद 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के समय ही पड़ गई थी. महाराष्ट्र में 35 सालों से दोस्त रहे शिवसेना को विपक्ष में बैठना पड़ता है. सितंबर 2014 में अनंत गीते मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देते हैं. महाराष्ट्र विधानसभा में एकनाथ शिंदे विपक्ष के नेता बनाए जाते हैं. अब बीजेपी और शिव सेना आमने-सामने हो जाती हैं. 

2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी साथ लड़ते हैं. शिवसेना को आश्वासन मिलता है कि राज्य की सरकार में बराबर की हिस्सेदारी मिलेगी. शिवसेना की तरफ से अरविंद सावंत मोदी सरकार में मंत्री बनते हैं. महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव होता है. शिवसेना अच्छा प्रदर्शन करती है लेकिन बीजेपी से उसका सपना पूरा नहीं होता है. नवंबर 2019 में अरविंद सावंत मोदी सरकार से इस्तीफा दे देते हैं. शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस की मदद से सरकार बनाती है. इससे पहले भी कई बार महाराष्ट्र की सरकार गिरते गिरते बची है इसका श्रेय कभी शरद पवार को गया तो कभी उद्धव ठाकरे को. 

क्या इस बार क्या उद्धव ठाकरे अपनी सरकार और अपनी पार्टी को बिखरने से बचा सकते हैं? क्या शरद पवार उद्धव ठाकरे की मदद करेंगे? कहीं यह भगदड़ शिवसेना से होकर एनसीपी और कांग्रेस में मचने लगी तब? 

महाराष्ट्र की राजनीति की एक क्लासिक तस्वीर है. उस समय उद्धव ठाकरे सरकार बनाने की तैयारी में थे, सुबह 8 बजकर 11 मिनट पर एक तस्वीर ट्विट होती है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी देवेंद्र फड़णवीस और अजीत पवार को शपथ दिला रहे हैं. देवेंद्र फड़णवीस दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते हैं और अजीत पवार उप-मुख्यमंत्री. मास्टर स्ट्रोक मास्टर स्ट्रोक की ध्वनि गूंज उठती है कि मोदी का मास्टर स्ट्रोक हो गया है. हंगामा मच जाता है कि बीजेपी ने एनसीपी तोड़ दी लेकिन तभी एनसीपी एक्शन में आती है और गेम पलट जाता है. अजीत पवार एनसीपी में लौट आते हैं.

सरकार गिरने की खबरों के बीच अजीत पवार मंत्रालय में बैठक ले रहे थे. क्या इस बार भी उनकी कोई भूमिका होने वाली है? जबकि एनसीपी के विधायक भी नाट रिचेबल हो गए थे. अजित पवार शाम को उद्धव ठाकरे से मिलने उनके सरकारी निवास स्थान वर्षा जाते हैं. क्या अजीत पवार शिवसेना में टूट और सरकार के गिरने से बचा सकते हैं? उधर दिल्ली में शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल की भी मुलाकात होती है. शरद पवार ने दिल्ली में कहा कि जो हो रहा है, शिवसेना का आंतरिक मामला है, शाम को मुंबई जाएंगे.

शरद पवार का बयान आता है कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी साथ हैं. यह एक रूटीन सा बयान था या सरकार के बचने की उम्मीद जा चुकी थी, साथ रहने की ही बच गई थी. शिवसेना के टूटते ही महाराष्ट्र की सरकार का भी गिरना तय है, जिसमें एनसीपी पार्टनर है. 

बीजेपी उत्साहित है. राज्य सभा के बाद विधान परिषद के चुनाव में अपने ज्यादा उम्मीदवार जिता लेने वाली बीजेपी को लग रहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं. दिल्ली में बीजेपी के नेताओं के मिलने की खबरें आने लगती हैं. लेकिन कोई बड़ा नेता सामने आकर नहीं बोलता है. महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का बयान आता है कि बीजेपी का कोई रोल नहीं है.

अगर बीजेपी का रोल नहीं है तो क्या ED या अन्य जांच एजेंसियों का रोल है? संजय राउत ने आरोप लगाया कि शिवसेना के विधायक अनिल परब को ED ने पूछताछ के लिए बुलाया है. जबकि ED अनिल परब से पहले भी पूछताछ कर चुकी है. उधर बीजेपी के विधायक प्रवीण दारेकर देवेंद्र फड़णवीस के पक्ष में बयान देने लगे. सरकार बनाने की तरफ इशारा करने लगे

चार बजते बजते साफ था कि उद्धव ठाकरे हालात नहीं संभाल पाए हैं. उनके पांच राज्य मंत्री गायब हैं, क्या उन्हें पता नहीं चला होगा? क्या मुख्यमंत्री को पता ही नहीं चला कि उनके इतने विधायकों को लेकर कोई सूरत पहुंच गया है?

राज्यसभा के बाद विधान परिषद के चुनाव में मात खाने के बाद शिव सेना ने सभी विधायकों को पार्टी मुख्यालय पहुंचने के लिए कहा. उसमें कुछ विधायक और एकनाथ शिंदे नहीं आए. महाराष्ट्र जैसे राज्य के मंत्री और विधायक सूरत पहुंच जाए और राज्य सरकार को उसी वक्त पता न चले, यकीन करना मुश्किल है. मंगलवार की दोपहर मुख्यमंत्री निवास में शिवसेना के विधायकों की बैठक बुलाई गई थी. लेकिन कई विधायकों के सूरत में होने की खबर आ रही थी. संजय राउत को इस वक्त तक उम्मीद थी कि एकनाथ शिंदे लौट आएंगे.

संजय राउत का यह भरोसा कि एकनाथ शिंडे  बाला साहब के सैनिक हैं, वैसा ही है जैसे भावी अग्निवीरों को भरोसा नहीं हो रहा है कि वे सैनिक हैं. ढाई साल में महाराष्ट्र की सरकार गिराने का हंगामा पहले भी मच चुका है. कभी छापे के बहाने तो कभी गिरफ्तारी के बहाने. 

महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहे नवाब मलिक 23 फरवरी से ही जेल में हैं. नवाब मलिक एनसीपी से विधायक हैं. शाहरुख खान के बेटे आर्यन ख़ान के मामले में नवाब मलिक ने केंद्रीय एजेंसियों को खूब घेरा था, आर्यन खान के खिलाफ कोई सबूत भी नहीं मिला लेकिन नवाब मलिक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी दाऊद इब्राहीम से जु़ड़े मामले में जेल भेज दिए गए. NCP के कोटे से गृहमंत्री अनिल देशमुख भी कई महीनों से जेल में हैं. उन पर  पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप है. इन दो मामलों के वक्त भी महाराष्ट्र की सरकार नहीं गिरी.

दिन दोपहर से शाम की तरफ बढ़ने लगा, समझ में आने लगा कि सरकार गिर रही है, मगर आज ही गिरेगी और अभी ही गिर जाएगी, पक्का नहीं हो रहा था, बचाने की कोशिशें शुरू हो गई थीं लेकिन बच जाएगी, पक्का नहीं हो रहा था. एक तरफ शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे से सूरत में बात करने लगे तो शाम छह बजे के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी एच के पाटिल का बयान आता है कि सुबह जैसी स्थिति थी वैसी नहीं है. क्या वाकई  स्थिति संभल गई है?

कांग्रेस अपना घर संभाल लेने का दावा कर रही है या सरकार बचा लेने का? क्या उद्धव ठाकरे ने भी शिव सेना को टूटने से बचा लिया है? उद्धव को सरकार भी बचानी है और यह भी साबित करना है कि वही शिव सेना के सर्वमान्य नेता हैं. इस घटना से साफ हो गया कि जो कोई भी पर्दे के पीछे से यह खेल रच रहा है, उसकी दिलचस्पी केवल सरकार गिराने में नहीं है, बल्कि उसकी दिलचस्पी शिव सेना और महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे के इकबाल को खत्म कर देने में है.

उद्धव ठाकरे शिवसेना के दम पर कई मौकों पर सरकार बचा पाए लेकिन आज सरकार के साथ-साथ शिवसेना भी दांव पर लग गई. बाला साहब ठाकरे के बाद हर तरह की चुनौतियों से निकाल कर पार्टी यहां तक ले तो आए मगर अब सत्ता के साथ-साथ पार्टी हाथ से जाती दिख रही है. क्या इस बार उद्धव ठाकरे सरकार और पार्टी बचा लेंगे? शिवसेना प्रमुख उद्धव लगातार प्रधानमंत्री मोदी पर हमला कर रहे हैं. उनका एक बयान है कि जब रोज़गार के अवसर ही नहीं होंगे तब भगवान राम का नाम लेकर क्या होगा. अगर शिव सेना टूट गई, सरकार गिरी तो उद्धव ठाकरे को बुरी तरह से पद छोड़ना पड़ेगा. एक मुख्यमंत्री स्तर के नेता के स्वाभिमान के लिए अच्छा तो नहीं कहा जाएगा, क्या उद्धव इस बार भी बचा लेंगे या बचा भी लेंगे तो कब तक बचा लेंगे.

पूरे दिन की सियासी गतिविधियां ट्विटर, प्रेस कांफ्रेंस और मुलाकातों में ही सिमटी रहीं. अभी तक राजभवन की भूमिका सामने नहीं आई है, वही सब कि किसके पास कितना समर्थन है, किसके दल को विधायक दल की मान्यता मिलेगी? गोदी मीडिया के लिए इस कहानी का कोई खलनायक नहीं है. एक नायक है जो उद्धव की सरकार गिरने के बाद सामने आएगा. तब तक सारी चीज़ें अपने आप हो रही हैं.

जैसे अपने आप इतने सारे विधायक सूरत पहुंच जाते हैं, अपने आप चैनलों पर जानकार समझाने लगे कि कुछ विधायकों के इस्तीफा देते ही सदन की क्षमता घट जाएगी, बाद में उन्हें राज्यपाल मनोनित कर देंगे. इस तरह से जिस पार्टी की सरकार बन जाएगी उसका नाम बीजेपी होगा. यहां हम दलबदल कानून के प्रावधानों पर कुछ समय बर्बाद कर सकते थे लेकिन भारत की राजनीति में यह कानून न तो दल बदल करने वालों को कानूनी रूप से डराता है और न ही नैतिक रूप से शर्मिंदा करता है. इस कानून के रहते हुए भी दलबदल के रास्ते निकाल लिए गए हैं. 

मुंबई और महाराष्ट्र में शिव सेना ताकतवर पार्टी के रूप में जानी जाती है. उसे तोड़ देना कोई सामान्य घटना नहीं है. उद्धव ठाकरे के लिए इससे बड़ी हार क्या हो सकती है कि उनके पिता की बनाई पार्टी किसी और के पास चली गई. पहले भी शिव सेना से नेता दूसरे दलों में जाते रहे हैं. राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाई लेकिन एकनाथ शिंदे ने जो किया वो काफी अलग है. 

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एक दूसरे से मिलने की खबरें बहुत हैं और बताने के लिए समय कम. क्या इन नेताओं के पास अब मिलना ही बच गया है या बचाने के लिए सरकार भी बची हुई है या वह जा चुकी है. देश का टॉपिक बदल गया है. महाराष्ट्र की सरकार बच गई है या गिर गई है. जो गिरा रहे हैं उन्हें ही पता है. जो बचा रहे हैं उन्हें बाद में पता चलेगा.