महाराष्ट्र का सियासी संग्राम बनाम संविधान दिवस का सरकारी विधान

संविधान ने हक तो सबको बराबर दिया है लेकिन उस हक को हासिल करना सबके लिए बराबर नहीं है. मतलब आप ग़रीब हैं तो क्या आपको समय से न्याय मिलता है, या अमीरों को ही न्याय तेज़ी से मिलता है.

संविधान ने हक तो सबको बराबर दिया है लेकिन उस हक को हासिल करना सबके लिए बराबर नहीं है. मतलब आप ग़रीब हैं तो क्या आपको समय से न्याय मिलता है, या अमीरों को ही न्याय तेज़ी से मिलता है. न्याय इलाज की तरह पहले से महंगा हुआ है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार भारत के अधीनस्थ अदालतों में एक मुकदमे को निपटाने में औसतन 5 साल लग जाता है. 23 लाख केस ऐसे हैं जो 10 साल से लंबित हैं. ये ठीक है कि लंबित मुकदमों के मामले में भारत ने प्रगति की है मगर 5 साल का औसत बहुत ज़्यादा है. वो भी सिर्फ नीचली अदालत के स्तर पर. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अनुसार हर साल साढ़े पांच करोड़ भारतीय महंगे इलाज के कारण ग़रीबी में धकेल दिए जाते हैं. नेशनल स्टैस्टिकल ऑफिस का आंकड़ा भी इसकी पुष्टि करता है. जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच 1 लाख से अधिक घरों के सर्वे में पाया गया कि अस्पताल के खर्चे का 97 प्रतिशत खुद भर रहे थे. आयुष्मान भारत इसके बाद की योजना है लेकिन उसके पहले भी कई राज्यों में स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी थी तब भी यही हालत है. इनका फायदा नहीं हुआ है. बीमारी के कारण लोग मर भी रहे हैं और ग़रीब भी हो रहे हैं. 26 नवंबर 1950 को जब संविधान अंगीकार किया गया था तब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि हम अंतर्विरोधों से भरे जीवन में प्रवेश कर रहे हैं. राजनीति में हमें समानता हासिल है और सामाजिक और आर्थिक जीवन में असामनता होगी. राजनीति में हम एक व्यक्ति एक वोट और एक वोट एक मत के सिद्धांत का पालन करेंगे. लेकिन जैसा हमारा सामाजिक और आर्थिक ढांचा है उसमें हम एक व्यक्ति एक मत के सिद्धांत को नहीं मानेंगे. हम कब तक अंतर्विरोधों के इस जीवन को जीते रहेंगे? हम कब तक अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता से इंकार करते रहेंगे? अगर हम लंबे समय तक इससे वंचित रहे हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डाल लेंगे. हमें जल्द से जल्द इन अंतर्विरोधों को दूर करना होगा वरना जो इस असमानता के शिकार हैं वो राजनीतिक लोकतंत्र के ढांचे को ध्वस्त कर देंगे.

कई लोगों को लगता है कि भारत में जाति और धर्म को लेकर नफरत समाप्त हो गई है उन्हें बताया जाना चाहिए कि पिछले हफ्ते तमिलनाडु में एक मां ने अपनी 17 साल की बेटी को जला दिया क्योंकि वह अनुसूचित जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी. इससे पहले कि वह 18 साल की होती उसके छह महीने पहले उसकी मां ने ही जला दिया. बाद में मां ने भी खुद को आग लगा ली. सिर्फ प्रेम के कारण जाति और धर्म के आधार पर एक दूसरे को जला देने की कई घटना हर दूसरे दिन आती रहती है. लगता ही नहीं है कि हम किसी संवैधानिक व्यवस्था में रह रहे हैं. हमारे दिमाग़ में जाति का जो कचरा भरा है वो जब तक है तब तक वह संविधान की आत्मा का अनादर है. जिसकी प्रस्तावना में बंधुत्व की बात है. हमारे संविधान की खासियत यह है कि एक जगह लगता है कि इसकी अवमानना हो रही है तो एक जगह ऐसा भी दिखता है जहां कोई चुपचाप इसका पालन कर रहा होता है. जिन नेताओं पर हम सबसे ज़्यादा संविधान की धज्जियां उड़ाने के आरोप लगाते हैं वही आज संसद में दो तरह से संविधान दिवस मना रहे थे.

विपक्ष ने संविधान दिवस के मौके पर संयुक्त अधिवेशन का बहिष्कार किया. विपक्ष का आरोप था कि महाराष्ट्र में संविधान का मज़ाक उड़ रहा है. लोकतंत्र की हत्या हो रही है. डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के सामने सोनिया गांधी ने खड़े होकर संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आज़ाद और अन्य विपक्षी दलों के सांसद थे. टीएमसी, डीमके, सपा एन सी पी और शिवसेना के सांसदों ने भी संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया.

दूसरी तरफ बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने सदन के भीतर संविधान दिवस मनाया. मोदी सरकार ने ही संविधान दिवस का रूप दिया है इसके पहले यह कानून दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है. 2014 के बाद से संविधान दिवस एक प्रमुख दिवस बना है.

विपक्ष के बगैर राष्ट्रपति ने संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया. उन्होंने संविधान में दिए गए कर्त्व्य और अधिकार का उल्लेख किया. संविधान हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी का मौलिक अधिकार देता है लेकिन नागरिकों से यह भी कहता है कि सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना भी उनका कर्तव्य है. 2014 के बाद अभिव्यक्ति का अधिकार तो रहा लेकिन इस अधिकार के तहत असहमति व्यक्त करने वालों को देशदोही और पाकिस्तानी कहने का चलन भी शुरू हुआ. प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान ग्रंथ किताब है. यह अच्छी बात है. संविधान की मज़बूती के कारण ही भारत श्रेष्ठ है. प्रधानमंत्री ने भी बगैर विपक्ष के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया.

जैसा कि पहले कहा कि एक जगह संविधान संकट मे दिखता है तो दूसरी जगह संविधान संकट से उबरता हुआ भी दिखता है. महाराष्ट्र की ही दो तस्वीर इस बात की तस्दीक कर देती है. पहली तस्वीर में शनिवार सुबह आठ बजे से पहले देवेंद्र फडणवीस शपथ ले रहे हैं. उनके साथ एनसीपी के विधायक अजित पवार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. रात भर में महाराष्ट्र की राजनीति पलट जाती है और इस घटना को सिर्फ एक न्यूज़ एजेंसी एएनआई दर्ज करती है. जनता के पैसे से चलने वाले दूरदर्शन की टीम भी नहीं है यहां. इस न्यूज़ के बाद प्रधानमंत्री देवेंद फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार को बधाई देते हैं और प्रेस सवाल करने की जगह चाणक्य नीति की तारीफ करता है. यह तस्वीर किसी झटके से कम नहीं थी. गृहमंत्री अमित शाह भी ट्वीट करते हैं दोनों को बधाई देते हैं.

मात्र 80 घंटे के भीतर यह तस्वीर पुरानी हो जाती है जिसे मास्टर स्ट्रोक कह कर प्रचारित किया जा रहा था. मीडिया का काम था संवैधानिक प्रक्रियाओं को लेकर सवाल उठाना तो ट्विटर पर कई पत्रकार मास्ट्र स्ट्रोक की तारीफ कर रहे थे.

इस तस्वीर को देखिए. देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल को शाम के वक्त इस्तीफा सौंप रहे हैं. इस्तीफा सौंपने से पहले प्रेस कांफ्रेंस करते हैं. शपथ लेने से पहले प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते हैं बल्कि प्रेस को बेखबर रखा जाता है. इस्तीफा देने से एक दिन पहले बगैर मंत्रिमंडल के फैसले लेते हैं. नीतिगत फैसले लेते हैं जबकि सदन का विश्वास हासिल नहीं था. क्या यह संवैधानिक नैतिकता थी? उनके साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले अजित पवार भी इस्तीफा दे देते हैं.

महाराष्ट्र की घटना 80 घंटे में संविधान की सांस फुलाने वाली थी लेकिन इसी दौरान इसकी परीक्षा भी हो रही थी. हमारे राजनेता संविधान का पालन तब करते नज़र आते हैं जब मौका उनके हाथ से निकल जाता है. जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता है. बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का एक ट्वीट आज के दिन याद किया जाना चाहिए. सुबह सुबह बिना किसी को बताए मुख्यमंत्री पद की शपथ को लेकर जब सवाल उठा तो उनका ट्वीट क्या संवैधानिक मर्यादा के अनुकूल था. ऐसा कब हुआ है कि शपथ लेने के बाद दुनिया को पता चला कि मुख्यमंत्री हुआ है. आम तौर पर यही होता था कि पहले पता चलता था फिर शपथ होती थी. एक से एक राजनीतिक संकटों के बीच यही हुआ है.

'जो लोग महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने और नई सरकार के गठन की प्रक्रिया रात मे शुरू होने पर विलाप कर रहे हैं उन्हें जानना चाहिए कि भारत को आज़ादी को आधी रात को ही मिली थी. यूनियन जैक रात में उतारा गया था. नवरात्र में शक्ति की साधना और दीपावली में लक्ष्मी पूजा का अनुष्ठा रात में ही होता है. संस्कृति और इतिहास से कटे लोग जनता से क्या जुड़ेंगे.'

यह एक उप मुख्यमंत्री का ट्वीट था. दो सही चीज़ों को मिलाकर एक ग़लत को सही बताने का प्रयास कर रहे थे. जिस घटना को सुशील मोदी आज़ादी के एलान और लक्ष्मी के अनुष्ठान से जोड़ रहे थे वह घटना 80 घंटे के भीतर पुरानी हो गई. बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. शपथ लेकर इस्तीफा देने के बाद फडणवीस ने कहा कि बीजेपी सरकार बनाने का प्रयास नहीं करेगी. यही बात उन्होंने शपथ के पहले भी कही थी. सवाल समय का नहीं था सवाल था गुप्त तरीके से शपथ का. ऐसा क्या था कि एक मुख्यमंत्री पहले शपथ लेता है और जनता को बाद में खबर की जाती है. इसलिए हमारा संविधान संकट में आता है तो उबरता हुआ भी लगता है. उबर आता है इसका मतलब यह नहीं संकट खत्म हो गया है. राज्यपाल का संवैधानिक पद है. त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय के ट्वीट को संविधान दिवस के दिन याद किया जाना चाहिए.

'मैं एक रिटायर्ड कर्नल की एक अपील से सहमत हूं कि हम कश्मीर न जाएं. कश्मीर एम्पोरियम या सर्दियों में आने वाले कश्मीरी व्यापारी से सामान न खरीदें. कश्मीर से संबंधित हर चीज़ का बहिष्कार करें. ( 19 फरवरी 2019)'

'2015 में किसी ने ट्वीट किया कि हिन्दुओं की फाइटिंग स्पिरिट कहां है तो राज्यपाल महोदय जवाब देते हैं कि एक अपवाद था गुजरात 2002 का.'

'यूरोप में जो बहुसंस्कृतिवाद है वो भारत की धर्मनिरपेक्षता की तरह है. इसका मतलब है कि मुसलमान अपने रीति रिवाजों पर अड़े रहेंगे और बाकियों को एडजस्ट करना पड़ेगा.'

'लिंकन ने अपने देश के बंटवारे को रोकने के लिए गृह युद्ध कर लिया था, कांग्रेस ऐसा क्यों नहीं कर सकती थी. वो भी बंटवारे के लिए उतने ही ज़िम्मेदार हैं.'

'रोहिंग्या मामले के समय ट्वीट किया था कि म्यानमार के पास विवेक है, हम लोगों के पास धर्मनिरपेक्षता है. यानी वे एक समुदाय के मारे जाने का समर्थन कर रहे थे.'

संविधान की प्रस्तावना में जिस बंधुत्व की बात की गई है उसका इनके ट्वीट में कई बार उल्लंघन दिखता है. खुद इनके ट्वीट से कई बार केंद्रीय मंत्री असहमति ज़ाहिर कर चुके हैं लेकिन तथागत राय उसी पद पर विराजमान हैं. यह बताता है कि संविधान का उल्लंघन करते हुए कोई संवैधानिक पद पर बना रह सकता है या संवैधानिक पद पर रहते हुए कोई संविधान में दिए गए बंधुता के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता है. यहां याद करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में आधार मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मुकुल रोहतगी ने कहा था कि नागरिकों का उनके शरीर पर संपूर्ण अधिकार नहीं है. ठीक उसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निजता के मौलिक अधिकार पर शानदार फैसला दिया था और सरकार को उसकी सीमा बताई थी. यही मुकुल रोहतगी कोर्ट मे कह रहे थे कि कोर्ट राज्यपाल को आदेश नहीं दे सकता कि फ्लोर टेस्ट कब होगा. जानते हुए भी कि कोर्ट कई बार आदेश दे चुका है. और कोर्ट ने ऐसा ही किया. महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट के आदेश दे दिए. जैसा कि मैंने कहा जब भी लगता है कि संविधान का पालन हो नहीं हो रहा है उसी वक्त किसी और जगह संविधान का पालन हो रहा होता है.

अब आप देखिए. प्रधानमंत्री डाल्टनगंज के जिस मंच से भाषण दे रहे हैं उस मंच पर 130 करोड़ के दवा घोटाले का आरोपी भी है और एक दूसरा उम्मीदवार भी जिस पर अपने स्कूल की वॉर्डन की हत्या का आरोप है. बीजेपी ने भानु प्रताप शाही और शशि भूषण मेहता को टिकट दिया है. इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस या विपक्ष ने संविधान की आत्मा के हिसाब से उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं है. लेकिन प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी रही होगी कि उनके साथ 130 करोड़ के दवा घोटाले का आरोपी खड़ा है वो भी संविधान दिवस के एक दिन पहले.

कुल मिलाकर संविधान दिवस पर सबके लिए यही संदेश होना चाहिए कि हमें सभी सिस्टम को मज़बूत और सबके लिए सुलभ बनाना है. आपातकाल ज़रूर शर्मनाक घटना है लेकिन ऐसा नहीं है कि सामान्य दिनों में आपातकाल की आहट और आशंका सुनाई नहीं देती है बल्कि कई बार ठोस प्रमाण भी दिखते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि चुनाव आयुक्त अशोक ल्वासा प्रधानमंत्री की रैली के मामले में अलग टिप्पणी कर दें तो उनके परिवार के खिलाफ जांच शुरू हो जाए और वे जहां जहां जिन जिन पदों पर रहे हैं उसकी जांच शुरू हो जाए. मीडिया में इस संबंधित कई खबरें छप चुकी हैं. चुनाव प्रचार के दौरान जब एक चुनाव पर्यवेक्षक मोहम्मद मोहसिन प्रधानमंत्री के हेलिकॉप्टर की जांच कर दे तो उसका तबादला हो जाए. मोहम्मद मोहसिन आईएएस अफसर हैं और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. मोहसिन के मामले में स्टे चल गया और आप को बताना चाहेंगे कि इस मामले में कैट में सुनवाई चल रही है. इसी 31 अक्तूबर को आखिरी सुनवाई हुई है. चुनाव आयोग ने कैट के स्टे के खिलाफ हाईकोर्ट में मामला भी दर्ज किया है. जैसा कि मैंने कहा कि एक जगह पर संविधान कमज़ोर होता हुआ दिखता है तो दूसरी जगह पर संविधान मंज़बूत होता हुआ दिखता है. यह संविधान की मज़बूती ही है कि प्रधानमंत्री से लेकर आम आदमी तक उसमें आस्था ज़ाहिर करता है.

'आज अगर बाबा साहब होते उन्हें अति प्रसन्नता शायद ही किसी को होती कि भारत के इतने वर्षों में न केवल उनके सवालों का उत्तर दिया है बल्कि अपने आज़ादी को लोकतंत्र को और समृद्ध और सशक्त किया है. और इसलिए आज के इस अवसर पर मैं सभी को बीते सात दशक में संविधान की भावना अक्षुण्ण रखने वाली विधायिका और कार्यपालिका और न्यायपिलाकी के सभी साथियों को गौरवपूर्वक स्मरण करता हूं. इस तरह के प्रयास किए हैं तो देशवासियों ने मिलकर इसे असफल किया है और संविधान पर आंच आने नहीं दिया है.'

प्रधानमंत्री की यह बात सही है. इन्हीं संस्थाओं में बैठे लोगों ने संविधान से खिलवाड़ किया तो इन्हीं संस्थाओं में बैठे लोगों ने इसे बचाए रखा. भले ही उनकी संख्या बहुत कम थी. लोकतंत्र दैनिक अभ्यास का सिस्टम है. यह बना रहे और बचा रहे इसके लिए हर किसी को हर दिन अभ्यास करना पड़ता है. वर्ना रात के अंधेरे में सत्ता जो खेल खेलती है, लोगों के जागने से पहले जो शपथ होती है वही अंतिम सत्य हो कर रह जाता. शाम को इस्तीफा देकर उस प्रयास को असफल करने का मौका ही नहीं आता. अब आते हैं महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर. पहले सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की तीन जजों की बेंच ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए तत्काल बहुमत परीक्षण होना चाहिए. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर बहुमत परीक्षण में देरी होती है तो लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की कार्रवाई में कोर्ट के सामने अड़चन आ जाती है. तुरंत बहुमत परीक्षण ऐसे मामले में सबसे प्रभावी तंत्र हो सकता है. यह निर्धारित करने के लिए जल्दी से जल्दी बहुमत परीक्षण ज़रूरी है कि मुख्यमंत्री, जिन्हें पद की शपथ दिलाई गई है, के पास बहुमत है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम राज्यपाल से अनुरोध करते हैं कि 27 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलया जाए. ये भी कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिकों के सुशासन के अधिकार को बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र में बहुमत निर्धारित करने के लिए फ़्लोर टेस्ट के लिए अंतरिम आदेश पारित करना आवश्यक है. अदालत ने सख़्त दिशा निर्देश भी दिए कि एक अंतरिम स्पीकर यानी प्रोटेम स्पीकर सिर्फ़ विधायकों को शपथ दिलाने के लिए नियुक्त होगा शाम पांच बजे से पहले सभी को शपथ दिलाई जाएगी. उसके तुरंत बाद फ्लोर टेस्ट होगा. कोई गुप्त मतदान नहीं होगा और बहुमत परीक्षण का सीधा प्रसारण किया जाएगा.

इससे भी अहम बात कोर्ट ने ये कहा कि तीन महीने के बाद कोर्ट महाराष्ट्र के राज्यपाल के फडणवीस को आमंत्रित करने के फ़ैसले की संवैधानिक वैधता पर भी गौर करेगा. इसके लिए सभी पक्षकारों से आठ हफ़्ते में जवाब मांगा गया है. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के सामने इस्तीफ़ा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा क्योंकि सोमवार रात को ही मुबंई के एक होटल में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के 162 विधायकों के एक साथ आ जाने से इन दलों में टूट की कोई भी संभावना बाकी नहीं रह गई थी.

पहले अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा सौंपा. देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस ने अगली सरकार बनने तक फडणवीस को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने का आग्रह किया. इस्तीफ़ा देने से पहले फडणवीस ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि सरकार बनाने के लिए बीजेपी को जनादेश मिला था. लेकिन हमारे पास कुछ सीटें कम रह गई थीं. देवेंद्र फडणवीस ने कहा, 'उन्होंने कहा कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीन ऐसी पार्टियां जिनकी विचारधार बिलकुल अलग अलग हैं. वो सिर्फ़ बीजेपी को बाहर रखने के लिए एक साथ आए हैं. उनका साझा न्यूनमत कार्यक्रम महज़ एक धोखा है. अजित पवार के पास समर्थन पत्र था लेकिन फिर चीज़ें बदल गई. अब बीजेपी विपक्ष में लोगों की आवाज़ बनेगी.'

फडणवीस ने यह नहीं बताया कि अजित पवार ने जो समर्थन पत्र सौंपा था उस पर क्यों यकीन किया, उसका क्या हुआ. अब अजित पवार अगर दूसरे खेमे में चले गए और एनसीपी शिवसेना और कांग्रेस की सरकार बनेगी तो अजित पवार का क्या होगा. उन पर लगे 90 हज़ार करोड़ से अधिक के आरोपों का क्या होगा. क्या ऐसे लोग पाला बदल बदल कर बचते रहेंगे. फ़डणवीस के इस्तीफ़े के बाद मुंबई में राजभवन में गतिविधियां बढ़ गईं.

राज्यपाल ने बीजेपी के विधायक कालिदास कोलंबकर को प्रोटेम स्पीकर के तौर पर शपथ दिलाई. कालिदास कोलंबकर वडाला से आठ बार विधायक रह चुके हैं और परंपरा है कि प्रोटेम स्पीकर के लिए सबसे अनुभवी और पुराने विधायक को चुना जाता है ताकि किसी तरह का कोई विवाद न रहे. प्रोटेम स्पीकर का काम सिर्फ़ विधायकों को शपथ दिलवाना होता है. तो प्रोटेम स्पीकर कालिदास कोलंबकार बुधवार को सभी विधायकों को विधायक पद की शपथ दिलाएंगे.

इसके बाद कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि ग़ैर क़ानूनी तरीके से शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस को आज इस्तीफ़ा देना पड़ा है. हमें उम्मीद है कि राज्यपाल स्वार्थ से ऊपर उठकर, संघ का अपना मुखौटा उतारकर अपनी ज़िम्मेदारियों को अंजाम देंगे. उम्मीद है राज्यपाल शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाएंगे. कांग्रेस के मुताबिक मामला यहीं ख़त्म नहीं होता है बल्कि यहां से शुरू होता है.

बीजेपी ने सालों से सरकारी मशीनरी और ताक़त का दुरुपयोग किया है. कांग्रेस ने कहा कि फडणवीस सरकार झूठ की बुनियाद पर बनी थी और ताश के पत्तों की तह ढई गई. ये सिर्फ़ देवेंद्र फडणवीस की ही नाकामी नहीं है बल्कि दिल्ली में बैठे उनके हुक्मरानों के चेहरे पर भी तमाचा है.

उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे. उन्हें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों ने अपना नेता चुना है. एक दिसंबर को शाम पांच बजे वो मुंबई के शिवाजी पार्क में शपथ लेंगे. उन्होंने कहा कि शपथ ग्रहण में वो बड़े भाई नरेंद्र मोदी को भी बुलाएंगे. यानी जो खबर शनिवार की सुबह अखबारों में छप कर झूठी हो गई थी वो खबर मंगलवार की शाम सही हो गई. एक सवाल आज के दिन उठाया जाना चाहिए. भारत में कानून के 4000 प्रोफेसर हैं. लॉ यूनिवर्सिटी के 26 वाइस चांसलर हैं. हर साल कानून की पढ़ाई पढ़कर 66000 छात्र निकलते हैं. यह सही है कि कई वकील जनहित याचिका दायर करते हैं और आम लोगों की मदद करते हैं. कोर्ट में स्टाफ की कमी है और जजों की पूरी संख्या नहीं है. वकीलों के काम करने की जगह भी बेहतर नहीं है. कई कारणों से आम लोगों को न्याय सुलभ नहीं है लेकिन अगर भय के कारण न्याय नहीं है तो वह चिन्ता की बात है. जज साहिबान को देखना चाहिए. सुनिश्चित करना चाहिए कि अदालत के भीतर हिंसा की कोई घटना न हो.

आप तो भूल गए होंगे लेकिन क्या यह वीडियो आपको याद नहीं आता है. दिल्ली पुलिस की डीसीपी मोनिका भारद्वाज को तीस हज़ारी कोर्ट के परिसर में वकीलों ने घेर लिया था. पुलिस के साधारण जवानों ने अपनी जान पर खेल कर मोनिका भारद्वाज को बचाकर निकाला था. और मोनिका भारद्वाज इस मामले में अलग से केस तक दर्ज नहीं करा सकीं. इसी तरह पटियाला कोर्ट में 2016 में कन्हैया कुमार और पत्रकारों पर हमला हुआ था. आज तक कार्रवाई नही हुई. अगर संविधान अदालतों के परिसरों के भीतर एक पल के भीतर कमज़ोर लगे तो फिर अदालतों को कुछ करना चाहिए. यह दृश्य भय पैदा करता है.

इसलिए हमें आज के दिन कम से कम संविधान की प्रस्तावना ज़रूप पढ़नी चाहिए. 'हम, भारत के लोग, भारत को एक (संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और असवर की सता प्राप्त करने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और (राष्ट्र की एकता और अखंडता) सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई(मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एततद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.'

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संविधान हमने किसी ईश्वर को अर्पित नहीं किया था, बल्कि एक नागरिक ने स्वयं को अर्पित किया था. ब्रेक के बाद देखेंगे कि संविधान दिवस के मौके पर कैसे लोगों ने अपने अधिकारों को लेकर संघर्ष किया. आज भी संविधान उनके लिए ताकत है.