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This Article is From Aug 19, 2016

क्या राहुल गांधी कर्नाटक में पदयात्रा करेंगे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 19, 2016 15:04 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2016 14:59 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 19, 2016 15:04 pm IST
किसानों की आत्महत्या पर अनगिनत रिपोर्ट, आंदोलन, अभियान और संसद से लेकर मीडिया में बहस हो चुकी है. सरकार पर तीखे हमले के साथ-साथ विपक्ष और सरकार की सहमति के स्वर बहस, आंदोलन और रिपोर्टिंग के बाद कहां ग़ुम हो जाते हैं? इंडियन एक्सप्रेस में दीप्तिमान तिवारी की रिपोर्ट पढ़कर एक पत्रकार, पाठक और नागरिक के तौर पर खुद को टटोल रहा हूं. किसानों की आत्महत्या पर इतने हंगामे के बाद भी हम आत्महत्या रोकने में असफल क्यों रहे. क्या इस मसले पर हम सिर्फ बहस ही कर सकते हैं?

एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 2014 से 2015 के बीच किसानों की आत्महत्या में चालीस फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, पिछले साल आठ हज़ार किसानों ने आत्महत्या की है. करीब 22 किसानों ने हर दिन ख़ुदकुशी की है. आखिर इस संख्या से किसे फर्क पड़ रहा है? एक बार किसानों से भी पूछना चाहिए कि क्या आपको भी फर्क नहीं पड़ता. आपकी संख्या जब करोड़ों में है तब कैसे इतनी सरकारें आप से मुंह मोड़ लेती हैं.

महाराष्ट्र में सबसे अधिक 3030 किसानों ने आत्महत्या की है. वहां अठारह प्रतिशत की वृद्धि हुई है. तेलंगाना की सरकार की आईटी नीति की तारीफ हो रही है. वहां के विधायकों ने अपना वेतन देश में सबसे अधिक कर लिया है. उस राज्य से हमारी सहयोगी उमा सुधीर लगातार किसानों की आत्महत्या की ख़बरें भेजती रहती हैं. वहां भी पिछले साल 1350 किसानों ने आत्महत्या की है. कर्नाटक में तो आत्महत्या की संख्या में सबसे तेज़ उछाल आया है. 2014 में 321 किसानों ने आत्महत्या की थी, जो 2015 में बढ़कर 1300 हो गई है.

तो क्या इन ख़बरों से सरकारों की आत्मा पर कोई असर नहीं पड़ता होगा? कांग्रेस जब मोदी सरकार को घेरती है तो क्या वह देख पाती है कि उसकी अपनी बचीखुची सरकारों में किसानों को बचाने की कितनी इच्छाशक्ति बची है. क्या कांग्रेस के राज में विरोध करने की जवाबदेही सिर्फ बीजेपी की है और बीजेपी के राज में कांग्रेस ही विरोध करेगी?
किसानों के प्रति कौन जवाबदेह है? क्या इसे समझने के लिए राहुल गांधी कर्नाटक में अपनी सरकार के ख़िलाफ़ पदयात्रा करेंगे? क्या फडणवीस अपने राज्य में पदयात्रा करेंगे? सबकी सरकारों में किसान आत्महत्या कर रहे हैं. अफ़सोस कि एक भी राज्य ऐसा नहीं है कि जो अपने प्रयासों से इसे रोक सके. जो बाकी देश के लिए उदाहरण बन सके. इस मामले में कर्नाटक की सरकार भी वही है, जो महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार है. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस कर्नाटक में आत्महत्याएँ रोकर बीजेपी को जवाब भी दे सकती थी और देश के सामने विकल्प भी रख सकती थी. ऐसा लगता है कि किसानों को बचाने की इच्छाशक्ति किसी में नहीं है. सब खानापूर्ति कर रहे हैं.

क्या हमें अब यह मान लेना चाहिए कि कांग्रेस हो या बीजेपी या कोई नई पार्टी किसी के पास ऐसी कोई नीतिगत समझ नहीं है, जो इसमें बदलाव ला सके? क्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं? क्यों बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों से आत्महत्या की ख़बरें बहुत कम आती हैं? इंडियन एक्सप्रेस तो लिखता है कि इन राज्यों में किसान आत्महत्या नहीं करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि यहां किसान परेशान नहीं है. यहीं से सबसे अधिक किसानों का शहरों की तरफ पलायन हुआ होगा.

अगर सूखा कारण है तो क्या इस बार की अच्छी बारिश से आत्महत्याएं कम हो जाएंगी? या कारण कुछ और है? जहां फ़सलें हुई हैं वहां किसानों ने आत्महत्या क्यों की? तमाम सरकारों को विशेषज्ञों से लेकर किसानों तक ने सलाह दी होगी, फिर भी हम क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? इतनी सारी योजनाएं लॉन्च होती रहती हैं, उनका असर क्यों नहीं है? क्या हमें अब इस पर यकीन करना होगा कि केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारों के पास कोई आइडिया नहीं है? इतना आसान नहीं है, लेकिन सभी को खुद से पूछना होगा कि हम किसानों को क्यों नहीं बचा पा रहे हैं. इसका बेहतर उपाय यह है कि इस पर विरोध की राजनीति बंद हो. कांग्रेस अपने राज्य में आत्महत्या बंद करे और बीजेपी अपने राज्य में. कांग्रेस अपने राज्य में किसान यात्रा करे और बीजेपी अपने राज्य में. राजनीतिक दल जवाबदेही की राजनीति करें न कि घेरने की.

कुछ तो ठोस हो जिससे लगे कि किसानों को लेकर सरकारों में प्रतिस्पर्धा है. सब उनकी जान बचाना चाहते हैं या फिर सब मिलकर उन्हें जय जवान जय किसान का नारा पकड़ा कर फुसलाने में लगे हैं. अगर किसान को जवान के बराबर जय बोलना है तो उसका बजट भी उतना ही होना चाहिए जितना जवान के लिए है. वर्ना किसानों को समझ लेना चाहिए कि जय जवान जय किसान के नाम पर उनसे धोखा हो रहा है. इस देश में किसानों को लेकर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.

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