भारत का एक ही ब्रांड है जो दुनिया में चमकता है. लोकतंत्र. अगर उसी में भारत फिसलता हुआ दिखे तो चिन्ता कीजिए. इन्हीं पत्रिकाओं के कवर पर देख रहा गया कि दुनिया में कितना नाम हो रहा है. अब क्या क्या छप रहा है. ख़ारिज करने का यही आधार न हो कि कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. मोदी को चार सौ सीटें आएँगी. क्या ऐसे ही नतीजों के लिए चार सौ सीटें दी गईं थीं? छह साल बाद अर्थव्यवस्था फेल है. इस दौरान जिनकी ज़िंदगी बर्बाद हुई उसे सुधरने में बहुत वक्त लग जाएगा. आप प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री की भाषा देखिए. एक समुदाय के लिए अलग से विशेषण होता है. उनका संबोधन ख़ास तरह से किया जाने लगा है. पहले पाँच साल लगाकर हमारी सोच को खंड खंड कर दिया गया अब भाषा भी बंट गई है. संवैधानिक पदों पर बैठे लोग मुसलमानों के लिए अलग से भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं. जब एक बार यह स्वीकृत होगा तो हिन्दुओं के लिए भी इसी भाषा का इस्तेमाल होगा. क्योंकि हिन्दुओं से संवाद की भाषा भी उतनी ही ख़राब हो गई है.
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फ़िल्मों में ही ऐसे दृश्य देखकर हम सबके आंसू निकल जाते थे जब सेठ हमारे कपड़ों में झांकता था. उनमें लगे पैबंद की तरफ़ देखता था. कपड़ों से देखे जाने का दृश्य क्रूर होता था. अब उसी तरह हमारे प्रधानमंत्री आपके कपड़ों को देखने लगे हैं. मुख्यमंत्री योगी जी मुख्यमंत्री की भाषा नहीं बोल रहे. उनकी भाषा में पुलिस से पिटवाने कूटवाने का भाव ख़तरनाक है. ऐसी भाषा भाषा नहीं होती है. अवैध हथियार बन जाती है. उसका मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल होगा तो हिन्दुओं के ख़िलाफ़ भी होगा. क्या हिन्दू किसान, नौजवान या कोई भी इस तरह से आंदोलन नहीं करेगा? करेगा तो उसे वही भाषा मिलेगी जो हिन्दुओं के नाम पर मुसलमानों के लिए दी जा रही है. समाज हमारा है. अगर यहाँ ख़राब भाषा का इस्तेमाल होगा तो उसका प्रसाद हर घर में बंटेगा. मिलावटी प्रसाद से लोग बीमार पड़ जाते हैं. सोचिएगा एक बार के लिए. मोदी जी को 400 नहीं 545 दीजिए लेकिन उनकी भाषा मत लीजिए. अपनी प्यार वाली भाषा भी 545 के साथ दे दीजिए. भारत बदल जाएगा. देखिए तो. कीचड़ में कमल सुंदरता का प्रतीक था. काँटे पर कमल को देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगना चाहिए जो मोदी जी को 545 देना चाहते हैं.
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