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This Article is From Jun 25, 2016

स्वामी प्रसाद मौर्य असमंजस में क्यों हैं?

Ratan Mani Lal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 26, 2016 19:04 pm IST
    • Published On जून 25, 2016 17:26 pm IST
    • Last Updated On जून 26, 2016 19:04 pm IST
किसी बड़े नेता के नेतृत्व वाले राजनीतिक दल को छोड़ने के लिए हिम्मत चाहिए। आम तौर पर धारणा यह है कि ऐसा बड़ा नेता अन्य दलों में भी इतना प्रभाव रखता है कि छोड़ के जाने वाले को कहीं और सहारा न मिलने पाए। हालांकि हालिया राजनीतिक इतिहास यह बताता है कि ऐसा करने वाले नेता, पार्टी छोड़ने से पहले ही सब तय कर लेते हैं कि उन्हें कहां जाना है और एक-दो दिन के अंदर ही अपने नए ठिकाने पर पहुंच जाते हैं। जगदम्बिका पाल, रामविलास पासवान, बलवंत सिंह रामूवालिया आदि कुछ ऐसे ही उदहारण हैं।

लेकिन बहुजन समाज पार्टी को अप्रत्याशित रूप से छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की गणना में लगता है कुछ गड़बड़ हुई है। 22 जून को बसपा छोड़ने का ऐलान करने के बाद जिस गर्मजोशी से उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेताओं ने उनका स्वागत किया था और उन्हें अपने यहां आने का न्योता दिया था, उससे यह संकेत मिला था कि शायद मौर्य तुरंत ही – या अगले दिन – सपा में शामिल होंगे और शायद मंत्री भी बनेंगे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मौर्य की तारीफ करते हुए कहा था कि वह अच्छे इंसान हैं और अभी तक गलत जगह थे।

लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी ऐसा हुआ नहीं है, बल्कि अब तो सपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के मंत्री शिवपाल यादव ने तो मौर्य पर मानसिक संतुलन खो देने का आरोप लगते हुआ यहां तक कह दिया कि जो (मौर्य) नेताजी (मुलायम सिंह यादव) और बसपा का नहीं हुआ वो किसी का क्या होगा। उनका इशारा मौर्य के पूर्व में मुलायम के सहयोगी रहने और बसपा में ऊंचे पद पर बने रहने की ओर है। शिवपाल का यह बयान मौर्य के एक दिन पहले राज्य में कानून व्यवस्था की हालत पर दी गई प्रतिक्रिया के बाद आया जिसमें मौर्य ने कहा था कि सपा गुंडों और अपराधियों की पार्टी है।

इसका अर्थ यह कि क्या मौर्य के प्लान में कुछ गड़बड़ी हो गई है? क्या वह जिस तरह से सपा में अपने लिए जगह और पद मान कर चल रहे थे वैसा नहीं है? और विकल्प के रूप में जिस भारतीय जनता पार्टी से उन्हें खुले हाथों स्वागत की आशा थी, वहां भाजपा के अपने मौर्य आड़े आ रहे हैं? वह बसपा के विधान मंडल दल के नेता थे और उन्हें उम्मीद थी कि बसपा के कई असंतुष्ट विधायक उनके समर्थन में आयेंगे, क्या ऐसा नहीं हुआ?

सपा में जिस तरह से बाहर से आये नेताओं को महत्व देने पर आतंरिक असंतोष बढ़ा है, वह मौर्य को शामिल न करने के पीछे एक कारण हो सकता है। ऐसे संकेत मिले थे कि मौर्य अपने लिए वरिष्ठ मंत्री का पद चाहते थे, लेकिन अखिलेश मंत्रिमंडल के आगामी फेरबदल में सपा के ही कई प्रत्याशी इंतजार में हैं, ऐसे में मौर्य को पद देने पर समस्या हो सकती थी। दूसरी ओर उनके आने पर सपा को मौर्य के लिए और उनके बेटे और बेटी के लिए भी उनकी पसंद से पार्टी टिकट देने की बाध्यता हो सकती थी, जिसके लिए अभी सपा में एक राय नहीं बनी है। फिर, सपा में यह भी पूछा जा रहा है कि मौर्य के सपा में आने से जिस वर्ग को अपने से जोड़ने पर विचार किया जा सकता है, वह वर्ग क्या केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की वजह से पहले से ही भाजपा से नहीं जुड़ चुका है? और क्या केवल मौर्य वर्ग ही चुनावी और वोट के गणित के हिसाब से इतना महत्त्वपूर्ण है कि भाजपा में उनको प्रभुत्व मिलने के बाद सपा में भी उन्हें प्रभुत्व दिया जाए?

दूसरी ओर भाजपा में स्वामी प्रसाद मौर्य के आने से मौर्य समुदाय के अलावा यदि अन्य वर्गों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद हो तो इस पर विचार किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि मौर्य ने भाजपा के प्रभारी ओम माथुर से मिलने का समय मांगा है, जो दो दिन की यात्रा पर लखनऊ आ रहे हैं। मौर्य के झटके के बाद बहुजन समाज पार्टी में मायावती ने तुरंत नुकसान समेटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। न केवल अपने विधायकों को लखनऊ बुलाकर उनके साथ आपात मीटिंग की गयी, बल्कि पार्टी-विरोधी गतिविधियों के निलंबित किये एक विधायक को पार्टी में वापस भी ले लिया गया। यही नहीं, मायावती ने लखनऊ में मीडिया से कहा कि मौर्य के चले जाने से पार्टी में इस वर्ग का महत्व कम नहीं होगा और भविष्य में मौर्य के लिए बसपा में कोई जगह नहीं है। उन्होंने बांदा के विधायक गया चरण दिनकर को बसपा विधान मंडल दल का नेता बनाया है।

शनिवार 25 जून तक मौर्य ने अपने पत्ते नहीं खोले थे और उनके बयानों से अभी भी स्पष्ट नहीं है कि उनके पीछे कितने लोग हैं और वह अब कहां जायेंगे। राजनीति के क्रूर माहौल में किसी को तब तक ही पूछा जाता है, जब तक उसके मजबूत होने का एहसास हो। सपा में शामिल होने की सम्भावना पर विराम लगने के बाद तीन दिन तक मौर्य अपने तथाकथित समर्थकों को कोई स्पष्ट संकेत नहीं दे पाए हैं। उनकी उम्मीद अब भाजपा से जुड़ी है। वह अभी भी अपने पीछे बसपा के कई विधायकों का साथ होने की बात कहते हैं और संकेत दिए हैं कि वे बसपा के बागियों और अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ मिलकर कोई नया फ्रंट बना सकते हैं। लेकिन प्रदेश में इस तरह के कई फ्रंट बने और विलीन हो चुके हैं। पिछले कई सालों में जिन लोगों ने बसपा छोड़ी है उनका राजनीतिक भविष्य फिर चमक नहीं पाया, जिनमे आर.के. चौधरी, राज बहादुर, जंग बहादुर पटेल, भगवत पाल, अखिलेश दास जैसे नेता शामिल हैं। क्या मौर्या भी इन्हीं की जमात में शामिल होंगे?

(रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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