परिवार की फूट से टूटी पार्टी!

परिवार की फूट से टूटी पार्टी!

समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और सीएम अखिलेश यादव

युवा सोच और युवा जोश का दावा करते हुए शुरू हुई समाजवादी पार्टी की सरकार की पारी अब विकास और अन्य उपलब्धियों की गलियों से निकल कर बर्खास्तगी, चिट्ठियों, आरोप और काला जादू के वहम तक आ पहुंची है. तीन महीने पहले शुरू हुए अहं और अधिकारों के टकराव की लड़ाई में अब एक ओर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं और उनके सामने हैं उनके पिता और पार्टी के संस्थापक पुरोधा मुलायम सिंह यादव. वे सभी लोग जो समाजवादी पार्टी के एक परिवार के कब्जे में होने की बातें करते थे, वे इस परिवार में परदे के पीछे इतने महीनों से चल रहे घटनाक्रम के उजागर होने से हतप्रभ हैं.
एक ही दिन में सपा सरकार के छह मंत्री बर्खास्त हुए जिनमें अखिलेश के चाचा और सपा के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव शामिल हैं, और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव को पार्टी से निष्कासित किया गया.

इस विस्मयकारी घटनाक्रम के बाद यह विश्वास करना कठिन लगता है कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार ने जिस मजबूती से पार्टी, प्रदेश सरकार और प्रशासन पर पकड़ बने हुई थी, उसके हंसते हुए चेहरों के पीछे षड्यंत्र और न जाने क्या क्या चल रहा था. सफ़ेद कुरते-पायजामे या कुरते-धोती पहने मजबूत दिखने वाले नेता क्या अपनी राजनीतिक शक्तियों के प्रति इतने सशंकित थे कि उन्हें कभी काला जादू जैसी वहमी शक्तियों का सहारा भी लेना पड़ा?

रविवार 23 अक्टूबर का दिन सवेरे छः बजे लिखे गए उस पत्र के साथ शुरू हुआ जिसमें सपा के भूतपूर्व महासचिव राम गोपाल यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को अखिलेश-विरोधी शक्तियों के प्रति आगाह करते हुए कहा कि “हम चाहते हैं कि मा. मुख्यमंत्री अखिलेश के नेतृत्त्व में उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार बने. वे चाहते हैं कि हर हालत में अखिलेश यादव हारें. हमारी सोच पॉजिटिव है उनकी नेगेटिव है. मा. मुख्यमंत्री के साथ वे लोग हैं जिन्होंने पार्टी के लिए खून बहाया, अपमान सहा. उधर वे लोग हैं जिन्होंने हजारों करोड़ रूपया कमाया, व्याभिचार किया और सत्ता का दुरूपयोग किया. जनता को भ्रमित करने के लिए कुछ लोग मध्यस्थता कर रहे हैं, बयानबाजी कर रहे हैं.”

आगे उन्होंने लिखा: “बहकावे में आने की जरूरत नहीं है. रथयात्रा विरोधियों के गले की फांस है. इस फांस को और शार्प करना है. अखिलेश का विरोध करने वाले विधानसभा का मुंह नहीं देख पाएंगे. न डरें, न विचलित हों, जहां अखिलेश वहां विजय.”

और देर रात, पार्टी से निकाले जाने के बाद इन्हीं राम गोपाल यादव ने एक और पत्र लिख कर कहा कि मुलायम “न सिर्फ मेरे बड़े भाई हैं, बल्कि राजनीति में मेरे गुरु भी रहे हैं और रहेंगे. मैं ता उम्र उनका सम्मान करता रहूंगा. इस वक्त वह जरूर कुछ आसुरी शक्तियों से घिरे हुए हैं. जब वह उन ताकतों से मुक्त होंगे तब उन्हें सच्चाई का एहसास होगा. मुझे पार्टी से निकाले जाने का कोई दुःख नहीं है. मेरे ऊपर जो घटिया आरोप लगाये गए हैं उससे मुझे पीड़ा पहुंची है.”  

जिन आरोपों की ओर राम गोपाल ने इशारा किया वे दोपहर में शिवपाल ने, अखिलेश मंत्रिमंडल से अपनी बर्खास्तगी के बाद लगाये थे. उन्होंने कहा कि जो कुछ हुआ है वह एक षड्यंत्र का नतीजा है, और यह षड्यंत्र बहुत दिनों से चल रहा था. “हमारे ही घर के कुछ लोग बीजेपी से तीन बार मिल चुके हैं, वे सीबीआई से बचने के लिए मिले थे, ये कभी भी समाजवादी पार्टी का सम्मान भी नहीं करते थे, ये गिरोह बना कर रहते थे. अब हमें जनता के बीच जाना है, पार्टी को कमजोर नहीं होने देना है.”

रविवार को 200 से अधिक नेताओं के साथ बैठक करते हुए अखिलेश ने सबसे बड़ा निर्णय लेते हुए चाचा शिवपाल यादव के अलावा उनके करीबे समझे जाने वाले मंत्रियों गायत्री प्रजापति, ओम प्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा और मदन चौहान को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया, साथ ही अमर सिंह की करीबी जयाप्रदा को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् की उपाध्यक्ष के पद से भी हटा दिया. उन्होंने जिस तरह से अमर सिंह को निशाना बनाते हुए उन पर परिवार में फूट डालने का आरोप लगाया, उससे अब उनके निशाने पर सीधे सीधे मुलायम सिंह यादव आ गए क्योंकि कुछ सप्ताह पहले ही मुलायम ने अमर सिंह को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया था. अखिलेश ने तो अमर को दलाल बताते हुए यहां तक कह दिया कि अमर सिंह का कोई भी करीबी मंत्रिमंडल में नहीं रहेगा. अखिलेश 3 नवंबर से अपनी विकास योजनाओं को लेकर रथयात्रा निकालेंगे, और यह उनके लिए अपनी ताकत दिखाने का पहला बड़ा मौका माना जा रहा है.

जहां तक काला जादू आदि का सवाल है, दो दिन पहले अखिलेश के समर्थन में लिखी अपनी चिट्ठी में विधान परिषद के सदस्य उदयवीर सिंह ने भी मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना पर षड्यंत्र रचने और अखिलेश के खिलाफ मुलायम पर काला जादू करने का आरोप भी लगाया था. इस चिट्ठी के बाद उदयवीर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.

चूंकि उत्तर प्रदेश में अब विधानसभा चुनाव दूर नहीं हैं, ताजे घटनाक्रम से यह संकेत मिलते हैं कि-

  • अखिलेश और राम गोपाल नई पार्टी बना सकते हैं क्योंकि उनके समर्थकों को समाजवादी पार्टी का टिकट और चुनाव चिह्न मिलने की सम्भावना अब नहीं है.
  • एक बाहरी व्यक्ति (अमर सिंह) को ही सारे फसाद की जड़ बता कर अखिलेश कम से कम अपने और मुलायम के बीच कोई विवाद न होने का संकेत देना चाह रहे हैं.
  • राम गोपाल की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के कुछ लोगों से मुलाकात (जिस पर राम गोपाल ने अपनी दूसरी चिट्ठी में सफाई भी दी है) से यह संकेत दिया जा रहा है कि इस बखेड़े की पीछे भाजपा की भी भूमिका हो सकती है.
  • चुनाव जल्द ही कराये जा सकते हैं. दोनों ही पक्ष चाहेंगे कि उनके प्रति सहानुभूति का लाभ उन्हें ही मिले.
  • अखिलेश यादव के चुनाव होने तक मुख्यमंत्री तो बने ही रहने की सम्भावना तो है ही, इसलिए वे भी चाहेंगे कि कम से कम समय में जितनी घोषणाएं कर सकें और निर्णय लागू करवा सकें उनका भी लाभ लेकर जल्दी से चुनाव का सामना किया जाए.
  • अखिलेश यह सिद्ध करना चाहेंगे कि वे शिवपाल और अमर सिंह के समर्थकों के बिना भी सरकार का कार्यकाल पूरा कर सकते हैं.
  • जिस तरह मुलायम ने शाम को राष्ट्रीय लोक दल के नेता अजित सिंह से बात की, उससे यह भी संभव लगता है कि आने वाले दिनों में अन्य दलों से गठबंधन की कोशिशें भी तेज हो सकती हैं, क्योंकि यह लगता नहीं है कि 2017 में सपा के दो खेमों की ओर से एक जुट होकर चुनाव लड़ा जा पाएगा.

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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