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This Article is From Feb 11, 2015

राजीव रंजन की कलम से : कांग्रेस को अपनी हार का अफसोस कम, बीजेपी की हार की खुशी ज्यादा

Rajeev Ranjan, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    फ़रवरी 11, 2015 19:59 pm IST
    • Published On फ़रवरी 11, 2015 19:49 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 11, 2015 19:59 pm IST

दिल्ली के चुनावी नतीजे आते ही एक कांग्रेसी समर्थक दोस्त सबको लड्डू खिला रहा था। मुझे भी खिलाया, पूछने पर उसने बताया कि बीजेपी से बस तीन सीट पीछे रह गई है कांग्रेस। इसी वजह से वो बहुत खुश है। यही हाल ज्यादातर कांग्रेसियों का है जो इस बात को लेकर ज्यादा खुश हैं कि चुनाव में बीजेपी हार गई। उन्हें शायद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है चुनावों में उनका सूपड़ा साफ हो गया है।

हालत यह है कि टीवी से लेकर अखबार तक में इसकी कोई खास चर्चा नहीं हो रही है। ऐसा भी शायद पहली बार हुआ है कि कांग्रेस ने सारी सीटों पर चुनाव लड़ा हो और सारी सीटें हार गई। वो भी तब जब एक साल पहले तक यहां कांग्रेस का राज था वो भी लगातार 15 सालों से। हार भी मामूली नहीं। 70 विधानसभा सीटों में 62 में कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। सिर्फ चार सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार अजय माकन को सदर बाजार सीट पर महज 16,331 वोट ही मिले जबकि विजेता आप के प्रत्याशी सोम दत्त को 67,507 वोट मिले।

बीजेपी को भले ही इस बार महज तीन सीटें मिली हों, पर उसे वोट 32.2 फीसदी मिले हैं। वहीं आम आदमी पार्टी को 54.3 फीसदी और कांग्रेस को 9.7 फीसदी ही वोट मिले हैं। पिछले बार हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 33.3 फीसदी, आप को 29.7 फीसदी और कांग्रेस को 24.7 फीसदी वोट मिले थे। इन आंकड़ों से एक चीज तो बिल्कुल जाहिर है कि कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक पूरी तरह से आप के पाले में चला गया है। केवल कांग्रेस ही नहीं बीएसपी को भी इस बार दिल्ली में 1.3 फीसदी वोट मिले हैं, वहीं पिछले दफा इसे 5.35 फीसदी वोट मिले थे।

कांग्रेस की हार में बड़ी भूमिका चुनावी सर्वे ने भी निभाई। अलग अलग सर्वे में कांग्रेस को महज एक से तीन सीट मिलती दिखाई गई थी। वोटरों के बीच ऐसा संदेश गया कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को वोट देना अपने वोट को बरबाद करना है। लिहाजा ऐसे वोटरों ने आप का दामन थामन लिया। साफ है कि खतरे की ये घंटी बीजेपी के बजाय दूसरी पार्टियों के लिए कहीं ज्यादा है।  

बीजेपी के नेता नरेन्द्र मोदी और आप नेता अरविंद केजरीवाल दोनों कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं। अपने आपको सेक्युलर होने के नाम पर कांग्रेस सारे विपक्ष को एकजुट करती रही है। अगर वही विपक्ष अब केजरीवाल के पीछे आ जाए तो फिर कांग्रेस कहां जाएगी। इसलिए संकट कांग्रेस के लिए कहीं ज्यादा है। देर अब भी नहीं हुई है। अगर कांग्रेस वाकई में मर्ज का इलाज करना चाहती है तो मौकों की कमी नहीं है क्योंकि केन्द्र मे मोदी और दिल्ली में अब केजरीवाल। इसलिए उसके पास सजग विपक्ष की भूमिका निभाने का मैदान पूरी तरह से खाली पड़ा है। तो फिर से जगह बन ही जाएगी।

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