देश के सबसे बेहतरीन तकनीकी संस्थानों में से एक आईआईटी कानपुर अपने 22 मेधावी छात्रों को रैगिंग में शामिल होने के आरोप में एक से तीन साल तक के लिए निष्कासित कर देता है. ये वो छात्र हैं, जिनके नंबर 90 फीसदी से लेकर 98 फीसदी तक हैं. आईआईटी में दाखिले के लिए इन्होंने कड़ी मेहनत की, लेकिन एक अनजान शिकायती पत्र ने इनके करियर को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया. हैरानी की बात तो ये है कि इन मेधावी छात्रों पर रैगिंग का आरोप लगाकर इनको सजा सुना दी गई, लेकिन आईआईटी प्रशासन अपने भीतर की लापरवाहियों को नहीं देखना चाहता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर छात्र रैगिंग में शामिल हैं, तो उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए. लेकिन कानपुर सीनेट की बैठक में एक अज्ञात शिकायत पर चर्चा की जाती है. इसमें ये बताया जाता है कि 23 अगस्त, 2017 को आईआईटी के स्टूडेंट अफेयर के डीन पी शुनमुगराज को एक ई-मेल मिलती है कि 14 और 15 अगस्त की रात को आईआईटी कानपुर से स्नातक किए एक छात्र अपने दो-तीन दोस्तों के साथ ट्रेसरर हंट नाम की रैगिंग लेता है. इसमें फ्रेशर्स की शर्ट उतार कर उसके साथ अश्लील हरकत की जाती है. 21 सितंबर को सीनेट की बैठक में पी शुनमुगराज इस बारे में लंबा व्याख्यान देते हैं. इसमें वो ये भी कहते हैं कि नाबालिग बच्चे के साथ रैगिंग के दौरान अश्लील हरकत की जाती है. क्या रैगिंग करने वाले इस पूर्व छात्र के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया गया. मिनट्स से ये भी पता चलता है कि इस अज्ञात शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाए एक दूसरी शिकायत एक छात्र से लिखवाई गई और उसके ऊपर 22 छात्रों को निष्कासित कर दिया गया.
एनडीटीवी इंडिया के पास ऐसे दस्तावेज हैं जिनसे पता चलता है कि आईआईटी कानपुर ने 22 छात्रों को सख्त सजा सुना दी, लेकिन प्रशासनिक कोताहियों की गाज किसी पर नहीं गिरी. सवाल ये उठता है कि आईआईटी आखिर अपनी फैकल्टी को इस मामले पर बचाना क्यों चाहता है. आईआईटी की नाकामी का ठीकरा छात्रों पर क्यों फोड़ा गया. 12 दिसंबर की सीनेट की बैठक में कहा गया कि हॉस्टल नंबर 2 जहां रैगिंग हुई उसके वार्डेन को इस रैगिंग के बारे में पता ही नहीं था. डीन के जरिए उन्हें पता चला कि वार्डेन ने हॉस्टल एक्जीक्यूटिव कमेटी (इस कमेटी में सेकेंड ईयर छात्र होते हैं) के सदस्यों को कहा कि वे डीन से बात करके रैगिंग लेने वाले छात्रों की पहचान करे. बाद में बाकायदा एक स्टूडेंट गाइड को पुलिस में मामला दर्ज कराने की धमकी देकर उससे शिकायत लिखवाई गई. उसी के आधार पर 22 छात्रों को निलंबित कर दिया गया. ये सारी बातें सीनेट की बैठक के मिनट्स में मौजूद है.
रैगिंग पर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन और उसकी कैसे उड़ी धज्जियां
रैगिंग अगर होती है तो उसके जिम्मेदार हॉस्टल वार्डेन, प्रिसिपल या शिक्षक भी होंगे, लेकिन आईआईटी कानपुर ने अब तक अपने किसी शिक्षक को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया. फ्रेशर्स के हॉस्टल की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद रहेगी...सीनियर्स और जूनियर्स का मेलजोल न हो. लेकिन इस मामले में बाहर के पूर्व छात्र ने रैगिंग ली और वार्डेन को भनक तक नहीं लगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि रैगिंग लेने वाले छात्र को अपना पक्ष रखने की इजाजत हो और प्रशासन भी इस मामले में उसे पूरा वक्त दे, लेकिन कानपुर आईआईटी ने 23 सितंबर, 2017 को 22 छात्रों का पक्ष सुने बगैर उन्हें निष्कासित कर दिया. एंटी रैगिंग स्कवाड होना चाहिए, जिसका मुखिया संस्थान के हेड को होना चाहिए, जबकि कानपुर आईआईटी में हॉस्टल नंबर 2 के एंटी रैगिंग स्कवाड में 14 में से 11 मेंबर आईआईटी सेकेंड ईयर के छात्र थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देखा जाता है कि क्लास के बाद रैगिंग होती है ऐसे में संस्थान को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे दिन-रात के समय सुरक्षा और वार्डेन का आना जाना लगा रहे, लेकिन कानपुर आईआईटी के वार्डेन को पता ही नहीं चला कि रैगिंग हो गई.
ये कुछ ऐसे तथ्य है जिनसे पता चलता है कि आईआईटी कानपुर ने 22 छात्रों को सजा तो फटाफट सुना दी, जबकि रैगिंग रोकने की जिम्मेदारी संभालने वालों को बड़ी सफाई से बचा लिया गया.
रवीश रंजन शुक्ला एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं.
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