कोरोना वायरस की दूसरी लहर को बेहद लचर तरीके से संभालने और बेरोजगारी के बड़े संकट के बावजूद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने सत्ता विरोधी लहर को नाकाम करते हुए असाधारण नतीजे दिए हैं. यूपी में यह करीब चार दशकों में पहली बार है, जब कोई निवर्तमान मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार सत्ता में आ रहा है. योगी आदित्यनाथ की उम्र अभी 50 वर्ष भी नहीं है और वो बीजेपी में दूसरे सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरे हैं. इसका श्रेय यूपी और योगी को जाता है, उनकी बड़ी राजनीतिक ताकत राज्य की 80 लोकसभा सीटों से भी आती है, जो यह तय करता है कि कौन देश की बागडोर संभालेगा. योगी आदित्यनाथ पूरे भगवा रंग में रंगे हैं और हिन्दुत्व के नायक की छवि को मजबूत कर रहे हैं और हिन्दू हृदय सम्राट के तौर पर नरेंद्र मोदी के मजबूत उत्तराधिकारी बनकर उभरे हैं. अगर आप यह जानना चाहते हैं कि क्यों बीजेपी लगातार कांग्रेस को उन जगहों पर हरा रही है, जहां उनके बीच सीधा मुकाबला हो. (आज के संदर्भ में उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में), तो इसका श्रेय गांधी परिवार के भाई-बहन को जाता है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव उनकी बहन प्रियंका गांधी ने यह सुनिश्चित किया है कि वो बीजेपी के ड्रीम विपक्षी दल के तौर बने रहें. मोदी को सिर्फ राहुल गांधी पर फोकस करना है और वो आधी जंग जीत जाते हैं. दुर्भाग्य से, यह क्रूर वास्तविकता है कि यह हार एक परिवार पर है, जो लगातार कांग्रेस का नेतृत्व कर रहा है. पार्टी अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर 20 फीसदी वोट शेयर रखती है . यही वजह है कि इनके लगातार हारने से विपक्ष के प्रदर्शन पर बहुत फर्क पड़ता है. राहुल गांधी ने दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व किया और करीब-करीब उन सभी राज्यों में हारे हैं, जहां वो ताकतवर स्थिति में थे. पंजाब खोने के बाद उनके पास राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही बचा है. लेकिन केवल आगे और विफलता की ओर बढ़ रहे हैं. सोनिया गांधी कागजों में पार्टी की अध्यक्ष हैं, लेकिन उन्होंने उन्हें हमलों से बचाने का काम किया है.
राहुल गांधी ने वर्ष 2019 में पार्टी की करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया था, लेकिन उन्होंने नेतृत्व की दावेदारी से हटने से इनकार किया है. मौजूदा समय में वो और उनकी बहन प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ही पार्टी में सभी फैसले लेते हैं और अपनी मां सोनिया गांधी को रबर स्टैंप की तरह इस्तेमाल करते हैं और पार्टी के आंतरिक कोर के उन सहयोगी के आधार पर निर्णय करते हैं, जिन्हें सक्रिय राजनीति का बेहद कम अनुभव है. प्रियंका गांधी, जिन्हें कभी प्रचलित तौर पर ब्रह्मास्त्र कहा जाता था, वो अब नाकाम साबित हुई हैं. वो जबरदस्त राजनेता, जिन पर काफी दारोमदार था ( इसमें मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने और कांग्रेस में यूपी का चेहरा बनना) मगर उन्होंने यूपी चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभालने के लिए लखनऊ शिफ्ट होने से इनकार कर दिया. शायह यह उनकी खुशकिस्मती है कि उन्होंने अपने ही ऐलान को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि अब यूपी में कांग्रेस सिर्फ 2.5 फीसदी वोट शेयर पर सिमट गई, सोचिए अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया गया होता.
भाई-बहन पंजाब में चुनाव के चार महीने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बावजूद अपनी पार्टी को संभालने में तो कामयाब रहे. चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया और पार्टी ने उन्हें गेमचेंजर बनाने के लिए सारे जतन किए. एक दलित नेता को आगे लाकर मुख्यमंत्री बनाने का कदम, जो पंजाब के इतिहास में पहली बार हुआ था. लेकिन बदकिस्मती से, जिस व्यक्ति के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह का बलिदान दिया गया, यानी नवजोत सिंह सिद्धू- उन्होंने लगातार चन्नी सरकार के खिलाफ प्रचार किया. चन्नी और सिद्धू ये भूल गए कि उन्हें चुनाव जीतना है और वो आपस में ही लड़ने में व्यस्त रहे. वो भी पर्दे के पीछे नहीं, बल्कि खुले तौर पर कि कौन अगला मुख्यमंत्री होगा.
लेकिन पंजाब के मतदाताओं ने पूरी तरह अरविंद केजरीवाल को हाथोंहाथ लिया. कांग्रेस से उलट, आम आदमी पार्टी ने इस बार अपनी पुरानी गलतियों से सबक लिया है. उन्होंने पार्टी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर भगवंत मान को पेश किया. राजनीतिक स्टार्टअप के तौर पर 'दिल्ली मॉडल' को पेश किया और ये काम कर गया. अरविंद केजरीवाल अब 2024 के आम चुनाव में बड़े और साहसिक तरीके से रुख करेंगे. आम आदमी पार्टी उन राज्यों में कांग्रेस की जगह ले रही है, जहां द्विपक्षीय मुकाबला रहता है. पार्टी के तौर पर जब कांग्रेस 20 फीसदी वोट के नीचे आती है तो वो सत्ता में नहीं लौट सकती. यहां तक कि उत्तराखंड ने कांग्रेस को नकार दिया और पहली बार है कि सत्तारूढ़ बीजेपी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस लौटी है. मणिपुर और गोवा भी बीजेपी के खाते में गया है. बीजेपी चुनाव दर चुनाव मजबूत होती जा रही है.
हिन्दुत्व साफ तौर पर पिछले आठ सालों से एक प्रभावशाली विचारधारा बनकर उभरी है और राजनीति में इसका असर भी देखने को मिला है. समान नागरिक संहिता को छोड़ दें तो संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी पर दोबारा जोर लगाया जा सकता है. इस जीत से यह सुनिश्चित होगा कि बीजेपी 31 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव में विजयी होकर सामने आएगी. मोदी अब देश के अगले राष्ट्रपति पद के चुनाव में निर्णायक पोजिशन में होंगे.
निश्चित तौर पर यूपी में प्रचंड जीत के साथ बीजेपी ने 2024 में मोदी के आने के सपनों को पंख दिया है. पंजाब ने अभी तक राजनीतिक परिवारों को देखा था, यह राष्ट्रीय मनोवृत्ति को दर्शाता था. कांग्रेस निजी तौर पर गांधी परिवार के संरक्षण का काम करती रही है, लेकिन इसके बावजूद वो आज भी जिम्मेदारी नहीं लेंगे या पार्टी अपनी गलतियों को लेकर कोई निर्णय करे. फिर वही पुराना ढर्रा, वहीं रास्ता जो कांग्रेस को रास आता है.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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