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This Article is From Nov 25, 2015

प्रियदर्शन की 'बात पते की' : आमिर का भारत, आमिर की भारतीयता

Written by Priyadarshan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 14:30 pm IST
    • Published On नवंबर 25, 2015 20:51 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 14:30 pm IST
साठ के दशक में मनोज कुमार भारत कुमार कहलाते थे। 'उपकार' और 'पूरब और पश्चिम' से लेकर 'क्रांति' तक वे देशप्रेम की रोमानी कहानियां कहते रहे जिनमें देश की धरती सोना और हीरे-मोती उगला करती थी।

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में हिंदी सिनेमा में आमिर ख़ान ने इस भारतीयता के कहीं ज़्यादा गंभीर और कलात्मक संस्करण तैयार किए। 'लगान' भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी गई फिल्मों में एक रही जिसमें क्रिकेट के ज़रिए भारत ने इंग्लैंड से लोहा लिया, उसे हराया। आमिर खान की भारतीय क्रिकेट टीम में सिपाही भी थे, साधु भी थे और ऐसे दलित भी, जिन्हें साथ लेने के लिए उन्हें अपनों से संघर्ष करना पड़ा। इस फिल्म में एक गद्दार भी था जिसका बाद में हृदय परिवर्तन होता है। आमिर अपनी कारोबारी देशभक्ति के बीच भी यथार्थ की चाशनी इस तरह मिलाते थे कि एक प्रगतिशील देश का सपना आकार ले।

इस प्रक्रिया को उन्होंने 'रंग दे बसंती' में एक नई रंगत दी। उनकी नायिका आज़ादी की लड़ाई के नायकों पर फिल्म बना रही है और इस दौर के बिगड़े हुए लड़के उन नायकों की मार्फ़त अपने देश को समझ रहे हैं- उसकी बांटने वाली ताकतों को भी, जोड़ने वाली ख़ूबी को भी और सबका इस्तेमाल करने वाली राजनीति को भी। एक ऐतिहासिक प्रक्रिया में अपना यह भारत खोजते-खंगालते उसके पहले ही आमिर भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम तक जा चुके थे और मंगल पांडेय बन कर अंग्रेज़ों से लोहा ले रहे थे।

अपनी बेहद कामयाब फिल्म थ्री इडियट्स में आमिर ने अपनी प्रवृत्ति के हिसाब से ही फिर से जड़ताओं पर चोट की, करिअर पर केंद्रित शिक्षा नीति के घिसेपिटेपन पर चुटकी ली और अंधविश्वासों से भी लोहा लिया। इसके बाद आई पीके तो अंधविश्वासों और धार्मिक जड़ता के ख़िलाफ़ एक चुटीला व्यंग्य साबित हुई। इस फिल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए। इनसे अलग सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रम के ज़रिए आमिर कई सामाजिक समस्याओं पर लगातार काम करते रहे।

रामनाथ गोयनका सम्मान के मौक़े पर आमिर ख़ान का बयान
लेकिन रामनाथ गोयनका सम्मान के मौक़े पर आमिर ख़ान ने बस इतना ही कहा कि देश में डराने वाले हालात बन रहे हैं, उन पर सब टूट पड़े। इसे सीधे-सीधे सरकार पर हमला बताया गया। बीजेपी के बड़े नेताओं ने इसे देश का अपमान मान लिया। सोशल मीडिया पर तो उनके ख़िलाफ़ चुटकुलों और गालियों की भरमार हो गई।

पहले आमिर का बयान देख लेते लोग
फ़राह ख़ान ने ठीक ही कहा कि लोग कुछ कहने से पहले आमिर का बयान देख लेते। अब आमिर खान ने फिर अपने बयान को सही बताया है। हार कर आमिर ख़ान सामने आए। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर को याद किया। कहा कि उन्हें अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए किसी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए। उन्होंने साफ़ किया कि न उनका न उनकी पत्नी का देश छोड़ने का कोई इरादा है। उन्होंने कहा कि भारत मेरा देश है, उनको अपने हिंदुस्तानी होने पर गर्व है और जो लोग उनको भद्दी गालियां दे रहे हैं, वे उनकी ही बात को सही साबित कर रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि इस खूबसूरत और बेमिसाल देश के ख़ूबसूरत चरित्र को बचाए रखना है।

इन सबकी नौबत आई क्यों?
मगर सवाल है, इन सबकी नौबत आई क्यों? आमिर की पूरी बात किसी ने क्यों नहीं सुनी। बीते दो दशकों में आमिर अपनी फिल्मों में जिस भारत और भारतीयता को तलाशते-तराशते रहे, उससे ख़ुद उन्हें क्यों वंचित कर दिया गया? वह भी बस एक तोड़-मरोड़ कर दिए गए बयान की वजह से? क्या इसलिए कि उनकी भारतीयता को हम उनकी मुस्लिम पहचान के बिना देखने को तैयार नहीं हैं?

इस सवाल का जवाब मिल-जुल कर खोजना होगा। और तभी पता चलेगा कि जिस असहनशीलता के बढ़ने का दबाव इस देश में बहुत लोग महसूस कर रहे हैं- उसकी असलियत क्या है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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