विज्ञापन
This Article is From Mar 17, 2016

प्रियदर्शन की बात पते की : भारत और भारत माता का फ़र्क

Priyadarshan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 17, 2016 15:08 pm IST
    • Published On मार्च 17, 2016 15:03 pm IST
    • Last Updated On मार्च 17, 2016 15:08 pm IST
मंगलवार को टी-20 वर्ल्ड कप में न्यूज़ीलैंड के हाथों भारत की हार हो गई। क्या इसे भारत माता की हार कह सकते हैं? भारत और भारत माता में क्या अंतर है? जो सरकार इस देश पर हुकूमत करती है, वह भारत की सरकार है या भारत माता की? जब हम इस सवाल के भीतर उतरते हैं, तब पाते हैं कि देश को लेकर थोपी हुई एक अवधारणा दरअसल हमें कुछ और बना रही है। हम अपने भारत को ठोस ढंग से समझने की जगह, उसकी समस्याओं और उसके संकटों से जूझने की जगह, भारत माता की एक काल्पनिक मूर्ति बनाकर अपनी विफलताएं छिपाने का काम कर रहे हैं।

बेशक, भारत की हमारी कल्पना में एक भारत माता भी होनी चाहिए। देश सिर्फ़ कागज़ का नक़्शा नहीं होता। उसके साथ हमारा एक भावुक रिश्ता होता है। क्योंकि अगर भारत माता नहीं होगी, तो भारत एक शुष्क भूगोल का नाम होगा, हमारी नसों में बजने वाले संगीत का नहीं, हमारे होंठों पर तिरने वाली कविता का नहीं, हमारी रगों में दौड़ने वाले खून का नहीं।

लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि भारत माता का बार-बार नाम लेकर हम न भारत माता का सम्मान बढ़ाते हैं न भारत की शक्ति। यह ठीक वैसा ही है, जैसे हम वक़्त की पाबंदी या सच्चाई या अहिंसा को लेकर रोज़ महात्मा गांधी के सुझाए रास्ते की अनदेखी करते हैं, और रोज़ उन्हें बापू या राष्ट्रपति बताते हैं। इससे महात्मा गांधी की इज़्ज़त बढ़ती नहीं, कुछ कम ही होती है।

भारत या भारत माता की इज़्ज़त का मामला भी यही है। जब हम एक सहिष्णु लोकतंत्र होते हैं, तो देश बड़ा लगता है। जब हम एक कट्टर समाज दिखते हैं, तो देश छोटा हो जाता है। जब हम दंगों में ख़ून बहाते हैं, तो भारत माता शर्मिंदा होती है, जब हम बाढ़ और सुनामी में लोगों की जान बचाते हैं, तो भारत माता की इज़्ज़त बढ़ती है।
 

लेकिन यह मोटी और आदर्शवादी समझ तो हममें से हर किसी के पास होनी चाहिए। वह होती क्यों नहीं? क्योंकि हम भारत और भारत माता का नाम जितना भी लें, इसे ठीक से समझते नहीं। हम सबके अपने-अपने भारत हैं। बहुत सारे लोगों को मलाल है कि 1947 के विभाजन के बाद भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया गया। उन्हें लगता है कि विभाजन का मकसद दो ऐसे राष्ट्र बनाना था, जिनमें से एक में हिन्दू और दूसरे में मुसलमान रहें, जबकि अपनी सारी विडम्बनाओं और विभाजन की पीड़ा के बीच भारतीय राष्ट्र राज्य की मान्यता थी कि पाकिस्तान भले धर्म के आधार पर अपना राष्ट्र बनाए, लेकिन भारत उन तमाम लोगों का मुल्क बना रहेगा, जो धर्म और जाति के किसी भेदभाव के बिना एक साथ रहने के हामी हैं। यह वह इम्तिहान था, जो विभाजन के बाद के वर्षों में बहुत कड़ा था - क्योंकि सरहद के दोनों तरफ़ ख़ून की नदियां बह रही थीं - लेकिन हिन्दुस्तान यह इम्तिहान जीतकर निकला - उसने अपना बड़प्पन साबित किया।

लेकिन हिन्दुस्तान के, भारत के या भारत माता के बहुत सारे इम्तिहान जैसे अब भी बाकी हैं। संविधान ने सबको राजनीतिक बराबरी दी और सामाजिक बराबरी का सपना दिया, लेकिन यह बराबरी अब तक सपना बनी हुई है। बहुत सारे दूसरे लोगों को मलाल है कि लोकतंत्र की वजह से सबका वोट बराबर हुआ और 'राजा' और 'परजा' एक हो गए। भारतीय राष्ट्र राज्य मूलतः अगड़ों का तंत्र है। सामाजिक जीवन में जाति की पैठ बनी हुई है और शादी-ब्याह अब भी मोटे तौर पर जातिगत दायरे में होते हैं। जो सामाजिक गैरबराबरी है, वह आर्थिक स्तर पर और ज़्यादा अलंघ्य होती गई है। बहुत बड़ा हिन्दुस्तान अपने हुक्मरानों से निराश है। सरकारें बदल रही हैं, लेकिन यह नज़र आता है कि मोदी और मनमोहन में, चिदंबरम और जेटली में अर्थनीति के स्तर पर कोई बुनियादी फ़र्क नहीं है। सामाजिक सोच में जो फर्क है, वह भी बस इतना ही है कि कांग्रेस जिस सांप्रदायिक कार्ड को छिपाकर खेलती रही, उसे बीजेपी खुल्लमखुल्ला खेलती है।

बहरहाल, मूल बिंदु पर लौटें - भारत और भारत माता में क्या अंतर है। भारत का ज़िक्र एक जटिल कैनवास बनाता है, जिसमें इतिहास भी चला आता है, भूगोल भी, लोग भी आ जाते हैं और उनके संकट भी। हम इस भारत में रहते हैं - इस भारत के अच्छे-बुरे सबके ज़िम्मेदार हैं। हम कभी इस भारत की नाक ऊंची करते हैं, कभी इसे अपमानित करते हैं। इस भारत के भीतर क्षेत्रीय झगड़े और असंतोष हैं - कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक ऐसे प्रदेश हैं, जिन्हें इस भारत से बड़ी शिकायत है। इस शिकायत की कुछ जायज़ और कुछ नाजायज़ वजहें भी हो सकती हैं। इस भारत के पास एक विशाल सेना है, एक संप्रभु सरकार है, एक सर्वोच्च संसद है और वे सारी व्यवस्थाएं हैं, जो इसे मज़बूत बनाती हैं। ज़ाहिर है, यह एक पूरा जीता-जागता धड़कता हुआ देश है - अपने संकटों से घिरा, अपनी संभावनाओं से भरा-पूरा।
 

यह भारत एक यथार्थ है - भारत माता एक कल्पना है। मगर यह कैसी कल्पना है? बेहिचक कह सकते हैं कि यह एक आदर्श भारत की कल्पना है - वैसे देश की, जिसमें कोई रोग-शोक, दुख-मातम, झगड़े-विवाद न हों। ऐसी भारत माता के लिए हर किसी के मुंह से जय निकलेगी, किसी से जबरन निकलवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन यह ज़रूरी है कि इस भारत को हम भारत मां के आदर्शों के अनुरूप ढालें। यह तभी संभव होगा, जब हम धार्मिक विद्वेषों से ऊपर उठेंगे, उन असंतोषों को पचाने की कोशिश करेंगे, जो भारत के भीतर पैदा हो रहे हैं। संकट यह है कि भारत माता का नाम लेने वाला एक बहुत बड़ा तबका जैसे हर किसी की परीक्षा लेने पर तुला रहता है। वह भारत माता को एक ऐसे नारे, एक ऐसी छड़ी में बदलता है, जिससे उन लोगों की पिटाई हो सके, जो भारतीय राष्ट्र राज्य के अलग-अलग तत्वों के ख़िलाफ़ असंतोष जताते हैं। दरअसल भारत को भारत माता का स्थानापन्न बनाना बेटा बनकर उस पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश करना है, जिस पर दरअसल बहुत सारे लोगों का हक़ है।

अगर कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि इस भारत माता की आड़ में असली भारत पर कब्ज़ा करने की कोशिश की जा रही है, तो उनको विरोध करने का हक़ है। लेकिन जब किसी चुने हुए जनप्रतिनिधि को एक राज्य की विधानसभा सिर्फ इसलिए निलंबित कर देती है कि वह भारत माता की जय बोलने को तैयार नहीं है और इसकी जगह जय हिन्द बोल रहा है तो समझा जा सकता है कि राष्ट्रवाद का यह भूत कितना बड़ा और ख़तरनाक हो चला है। जब एक नारे को देशप्रेम की इकलौती कसौटी बना दिया जाएगा तो बहुत सारे लोग बड़ी आसानी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र बांटने और हासिल करने लगेंगे। फिर यह देशभक्ति उनके बहुत सारे गुनाहों पर पर्दा डालने का काम करेगी। फिलहाल यही होता लग रहा है। इससे भारत कमज़ोर हो रहा है और भारत माता शर्मसार।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
भारत माता, भारत माता की जय, जय हिन्द, क्या है भारत माता, भारत का इतिहास, Bharat Mata, Bharat Mata Ki Jai, Jai Hind, What Is Bharat Mata, History Of India
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com