विज्ञापन
This Article is From Mar 14, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : आरक्षण पर बार-बार सवाल क्यों उठ रहा है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 14, 2016 21:20 pm IST
    • Published On मार्च 14, 2016 21:11 pm IST
    • Last Updated On मार्च 14, 2016 21:20 pm IST
अन्ना आंदोलन का साल था। देखते-देखते अन्ना और अन्ना समर्थक गांधी टोपी में आ गए। गांधी टोपी को 'अन्ना टोपी' कहा जाने लगा। जब अन्ना समर्थकों में फूट पड़ी तो टोपी का भी बंटवारा हो गया। अचानक राजनीति में तरह तरह के नारों से लिखीं टोपियां नज़र आने लगीं।

गांधी की सादी टोपी बिलबोर्ड बन गई यानी वो विचारधारा से ज्यादा अपनी पार्टी और अपने नारे का प्रतीक बन गई। गांधी की टोपी ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ प्रतिरोध का प्रतीक थी। नेहरू गांधी टोपी में नज़र आए, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेसी नेताओं के सर से गांधी टोपी ग़ायब होती चली गई। बची रह गई तो सेवा दल के कार्यकर्ताओं के सर पर। 2011 में जब अन्ना हज़ारे सीन में आए तो उनकी टोपी थी तो गांधी वाली लेकिन कहलाने लगी अन्ना टोपी क्योंकि उस पर लिखा होता था 'मैं हूं अन्ना हज़ारे, मुझे चाहिए लोकपाल'। 2012 में अन्ना से अरविंद केजरीवाल अलग हुए तो टोपी भी साथ-साथ निकली मगर अब उस टोपी पर लिखा होता था 'मुझे चाहिए स्वराज' और 'मैं हूं आम आदमी'। बाद में टोपी पर 'पांच साल केजरीवाल' का नारा भी लिख दिया गया। बाकी दलों ने भी अपने दल के रंग की टोपी पहन ली। भाजपा समर्थकों ने अपनी टोपी पर 'मोदी फॉर पीएम' लिख दिया। टोपी को लेकर ऐसी होड़ भारतीय राजनीति में कभी नहीं देखी गई। कांग्रेसी नेता जब तक अपनी टोपी खोज कर निकालते, गांधी टोपी के ब्रांड की फ्रैचाइज़ी सभी दलों में बंट गई ।

जिस वक्त सफेद टोपी थी उसी दौर में आरएसएस ने अपनी टोपी के लिए पहले खाकी फिर काला रंग चुना। इस बीच संघ के कपड़ों में कई बार बदलाव भी हुए, लेकिन नागौर में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ ने तय किया कि अब से हाफ पैंट नहीं पहना जाएगा। मौसम के हिसाब तो ये फैसला सर्दी में होना चाहिए था, मगर गर्मी में भी लोग फुल पैंट तो पहनते ही हैं। अब स्वयंसेवक खाकी की जगह भूरे रंग की पतलून पहना करेंगे।

राजस्थान के नगौर में संघ के जनरल सेक्रेट्री भैय्या जोशी ने कहा कि सामान्य जीवन में फुलपैंट चलती है। हमने उसे स्वीकार किया है इसके विशेष कारण कुछ भी नहीं है। भैय्याजी बदलाव के कारणों के बारे में विस्तार से बताते तो ठीक से चर्चा होती। आम तौर पर संघ के स्वयंसेवक धोती कुर्ता, कुर्ता पाजामा और पैंट शर्ट भी पहनते हैं लेकिन शाखा में अब फुल पैंट में नज़र आएंगे। पता चलता कि बेढंग और बेडौल फिटिंग के कारण हाफ पैंट की विदाई हुई या वाकई हाफ पैंट सिलने वाला कोई अच्छा टेलर नहीं मिला। अगर आप पहनावों की दुनिया की खबर रखते हैं तो हाफ पैंट भी कम लोकप्रिय नहीं है। बड़े-बड़े ब्रांड तरह तरह की फिटिंग वाले हाफ पैंट बेचते हैं। क्या हाफ पैंट की वजह से संघ की शाखाओं का विस्तार नहीं हो रहा था। मीडिया में पिछले दो साल से तो यही छप रहा है कि शाखाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।

इसी नगौर में हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ के ज्वाइंट जनरल सेक्रेट्री कृष्णगोपाल ने रिपोर्ट पेश की है कि पिछले एक साल में रोज़ाना लगने वाली शाखाओं में 5524 शाखाएं जुड़ी हैं। यानी सुबह की शाखाओं की संख्या 51,335 से बढ़कर 56,859 हो गई है। 'हिन्दू' अखबार ने अपनी रिपोर्ट में ये छापा है। पीटीआई ने पिछले साल नवंबर में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार दस साल में 10,000 शाखाएं बढ़ी हैं। पीटीआई ने विदर्भ के ज्वाइंट सेक्रेट्री दीपक तमशेट्टीवर के हवाले से लिखा है कि नवंबर, 2014 से नवंबर, 2015 के बीच 6684 शाखाएं बढ़ी हैं।

संघ को भी एक ऐप बना कर सारी शाखाओं का ब्यौरा उपलब्ध करा देना चाहिए ताकि स्वंयसेवक एक-दूसरे की शाखाओं से जुड़ सकें। सोचिये भाजपा सरकार बात-बात में ऐप बनवा देती है लेकिन संघ क्यों ऐप नहीं बनवाता। अगर ऐसा कोई ऐप बन जाए तो हमें हर बात के लिए राकेश सिन्हा पर निर्भर नहीं रहना होगा। हमारी जनता को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या पहनता है। बस दाम का पता नहीं चलना चाहिए। घड़ी, सूट और शॉल की कीमत का पता लगते ही राजनीति होने लगती है। अब आते हैं सोच पर। कभी समीक्षा तो कभी क्रीमी लेयर के नाम पर संघ हवा का रुख भांप रहा है या आने वाले समय की तैयारी कर रहा है। रविवार को भैय्याजी जोशी से पूछा गया कि जाट और पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बारे में क्या राय है तो उनका जवाब था कि यह चिन्ता की बात है।

जब डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर ने आरक्षण का प्रस्ताव किया था, तब उन्होंने सामाजिक स्थिति और सामाजिक न्याय के संदर्भ में कहा था। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग बहुत से कारणों की वजह से पिछड़ गए थे इसलिए उनके लिए आरक्षण को हम सही मानते हैं। आरक्षण की वजह से एक बड़े वर्ग को फायदा ही हुआ है। इसी भावना के संदर्भ में आरक्षण की मांग होनी चाहिए। जब संपन्न लोग आरक्षण की मांग करते हैं तो यह सही सोच नहीं है। जो संपन्न हैं उन्हें अपने कुछ अधिकार छोड़ देने चाहिए।

क्या संपन्न से उनका सिर्फ मतलब जाट और पाटीदार आंदोलन है या वो संपन्न के बहाने आरक्षण के दायरे में आने वाली जातियों के संपन्न तबके की ओर भी इशारा कर रहे हैं। संघ के बयानों में निरंतरता भी है और एक किस्म की अस्थिरता भी। भैय्या जी जोशी से जब क्रीमी लेयर के बारे में पूछा गया तो जवाब दिया, हमें यह सोचना होगा कि क्या आरक्षण का फायदा उन लोगों तक पहुंच रहा है जिन्हें इसकी ज़रूरत है। क्रीमी लेयर के मुद्दे को पढ़ने और चर्चा करने की ज़रूरत है। अभी कमेंट करना सही नहीं होगा।

ज़रूरतमंद को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है से क्या मतलब है। क्या सीटें खाली रह जा रही हैं तो भैय्या जी जोशी जल्दी भरने की बात कर रहे हैं। क्रीमी लेयर सिर्फ ओबीसी के लिए है। छह लाख से ज्यादा कमाने वाले क्रीमी लेयर माने जाते हैं और उन्हें आरक्षण नहीं मिलता है। जब आरक्षण संपन्न को नहीं मिल रहा है तो संपन्न से भैय्याजी जोशी का क्या मतलब है। क्या संघ यह मानता है कि जाट और पाटीदार संपन्न हैं और आरक्षण के हकदार नहीं है। तो प्रचारक रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री ने साफ-साफ मना क्यों नहीं किया। उनकी सरकार तो जाट आरक्षण पर विचार करने का वादा कर चुकी है। जबकि गुजरात में बीजेपी सरकार पाटीदार आरक्षण से इंकार कर चुकी है।

3 नवंबर, 2015 को रांची में भैय्या जी जोशी ने ही कहा था कि आरक्षण तब तक रहना चाहिए जब तक समाज को इसकी ज़रूरत है। यही हमारा स्टैंड है। जो भागवत जी ने कहा वो सही शब्दों में नहीं रखा गया। कहीं पर नहीं कहा गया कि आरक्षण नीति की समीक्षा की ज़रूरत है। जिस बयान का खंडन कर रहे थे वो सितंबर, 2015 के पांचजन्य में छपा था जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था, जैसे अपने संविधान में सामाजिक पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति की बात है तो उसकी राजनीति के बजाय जैसा संविधानकारों के मन में था, वैसा उसको चलाते तो आज ये सारे प्रश्न खड़े नहीं होते। संविधान में जब से यह प्रावधान आ गया तब से उसका राजनीति के रुप में उपयोग किया गया है। हमारा कहना है कि एक समिति बना दो। जो राजनीति के प्रतिनिधियों को भी साथ ले लेकिन चले उन लोगों की जो सेवाभावी हो तथा जिनके मन में सारे देश के हित में विचार हो। उनको तय करने दे कि कितने लोगों के लिए आरक्षण आवश्यक है। कितने दिन तक उसकी आवश्यकता पड़ेगी। इन सब बातों को लागू करने का पूरा अधिकार उस समीति के हाथ में हो। ध्यान में रखना होगा कि ये सारी बातें प्रमाणिकता से लागू हो।

मुझे जानकारी नहीं है कि पांचजन्य के अगले अंक में इसका खंडन छपा था या नहीं। 25 अक्टूबर, 2015 के 'दैनिक भास्कर' में छपा है कि मोहन भागवत ने कहा कि आरक्षण संघ का विषय नहीं है। आरक्षण के मामले में हमारा अध्ययन नहीं है। फिर भैय्या जी जोशी को क्यों कहना पड़ा कि क्या आरक्षण का फायदा ज़रूरतमंद तक पहुंचा, क्रीमी लेयर पर चर्चा करने की ज़रूरत है। संपन्न लोग से क्या मतलब है। प्रोफेसर सुखदेव थोराट और नितिन तगाडे ने इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में छपे लेख में पेश किया है। 2012 के नेशनल सैंपल सर्वे के रोज़गार के आंकड़ों के आधार पर बताया है कि 2012 में ग़ैर कृषि सेक्टर में नियमित रूप से सैलरी की नौकरी करने वालों की संख्या 8.56 करोड़ थी। इनमें से 6 करोड़ नौकरियां प्राइवेट सेक्टर की हैं जो आरक्षण के दायरे से बाहर हैं। अब बच गईं 2.56 करोड़ नौकरियां, जिनमें से 40 फीसदी अस्थायी नौकरियां भी हैं। अस्थायी नौकरियों में आरक्षण लागू नहीं होता है। इस हिसाब से गैर कृषि सेक्टर में स्थायी नौकरियों की संख्या हो जाती है 1.54 करोड़। यानी 8.56 करोड़ स्थायी नौकरियों के मात्र 18 फीसदी में ही आरक्षण लागू हुआ। इनमें अनुसूचित जाति के स्थायी कर्मचारियों का हिस्सा 18.5 प्रतिशत ही था।

भैय्या जी जोशी के बयान पर तुरंत अरुण जेटली ने सरकार की राय साफ कर दी। आरक्षण की जो व्यवस्था चल रही है उसमें कोई बदलाव नहीं होने वाला है। बीजेपी ने बिना देरी ये सफाई दे दी है। बीजेपी क्या यही बात जाट समुदाय से भी कह रही है। उसने आर्थिक आधार पर कमज़ोर तबकों को भी आरक्षण देने का वादा किया था। क्या उस पर भी पार्टी की राय बदल गई है। आर्थिक आधार पर गरीब तबकों के आरक्षण की बात तो बीएसपी से लेकर कांग्रेस भी करती है। क्या हुआ।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
आरक्षण, आरएसएस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भैयाजी जोशी, मोहन भागवत, जाट आंदोलन, पाटीदार आंदोलन, Quota, Reservation, RSS, Bhaiyaji Joshi, Mohan Bhagwat, Jat Reservation, Patel Quota Agitation
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com