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This Article is From Mar 15, 2019

क्‍या हम चीन की ओर से आंख मूंद रहे हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 15, 2019 00:03 am IST
    • Published On मार्च 15, 2019 00:03 am IST
    • Last Updated On मार्च 15, 2019 00:03 am IST

चीन के कारण आतंकी संगठन जैश के मुखिया मसूद अज़हर फिर से ग्लोबल आतंकी घोषण नहीं हो सका. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति की 1267 प्रतिबंध कमेटी की सुनवाई में चीन ने चौथी बार तकनीकि कारणों के आधार पर मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी नहीं होने दिया. भारत ने चार बार प्रयास किया मगर चारों बार चीन ने रास्ता रोक दिया. इस बार भारत के साथ 13 मुल्क साथ आए थे, सुषमा स्वराज बीजिंग भी गईं, मगर चीन आतंक के खिलाफ बने जनमत के दबाव में नहीं आया और चौथी बार मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी नहीं होने दिया.

तकनीकि कारणों से रोक लगा देने के कारण अब अगले छह महीने तक इस मामले में कुछ नहीं हो सकेगा. उसके बाद तीन महीने के लिए और रोक लग सकती है. यानी अगले 9 महीने में सदस्य देशों को नई जानकारियां देनी होगी ताकि तकनीकि रोक हटाई जा सके और अज़हर को फिर से ग्लोबल आतंकी की सूची में डाला जा सके.

भारत के प्रस्ताव के साथ 13 देश आए. सुरक्षा परिषद के सदस्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के अलावा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश पोलैंड, बेल्जियम, इटली, बांग्लादेश, मालदीव, भूटान, गुयाना, जापान और आस्ट्रेलिया ने साथ दिया. चीन ने कहा कि उसे ठीक से विचार करने के लिए और समय की ज़रूरत है. भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में निराशा ज़ाहिर की मगर चीन का नाम नहीं लिया. जैश ए मोहम्मद ने तो 14 फरवरी के पुलवामा हमले की ज़िम्मेदारी भी ली थी. भारत ने कहा है कि वह आगे भी अपने प्रयास जारी रखेगा.

अमरीका ने कहा है कि यह नाकामी है और इसका असर क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ेगा. 10 साल से चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. 2009 से वह इस मामले में पाकिस्तान के साथ क्यों खड़ा है, समझना चाहिए. सबसे पहले मुंबई हमले के बाद भारत सरकार ने 2009 में जैश के मुखिया को ग्लोबल आतंकी की सूची में डलवाने की मुहीम शुरू की, उसके बाद 2016, 2017 और अब 2019 में हुए प्रयास के एक ही नतीजे रहे. अमरीका तक ने कहा कि मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने में जो नाकामी रही है वो अमरीका और चीन दोनों के लक्ष्य के खिलाफ है. मगर चीन पर कोई असर नहीं पड़ा. भारत ने प्रयास किया, उसे सफलता नहीं मिली. मगर पुलवामा के बाद की राजनीति ने इसे रंग दे दिया है. आतंकी मसूद अज़हर का संरक्षक पाकिस्तान है, चीन पाकिस्तान और मसूद अज़हर का समर्थन किया है. तो क्या भारत चीन से इस आधार में अपने संबंधों को परिभाषित करेगा. इस बात से अपने संबंधों को देखेगा. राहुल गांधी ने इस पर एक ट्वीट किया और बीजेपी ने प्रतिक्रिया दी.

कमज़ोर मोदी शी से डर गए हैं. चीन ने भारत के खिलाफ काम किया मगर उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला. यह उनकी चीन के साथ कूटनीति है. गुजरात में शी के साथ झूलना, दिल्ली में शी को गले लगाना, चीन में शी के सामने सर झुकाना.

संदर्भ यह है कि जिस तरह प्रधानमंत्री ने रैलियों में कहा कि घर में घुस कर मारेंगे और सातवें पाताल से निकाल लाएंगे. अगर यह गुस्सा और नीति आतंक के खिलाफ है तो यह पाकिस्तान के खिलाफ ही क्यों है, उसका समर्थन करने वाले चीन के साथ क्यों नहीं है. चीन ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती नहीं दिखाई बल्कि मसूद अज़हर को सपोर्ट किया है. राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने जवाब दिया.

इस बयान में राहुल की आलोचना तो की मगर आपने सुना होगा कि रविशंकर प्रसाद ने चीन के बारे में किसी कठोर शब्द का इस्तमाल नहीं किया. यही कहा कि चीन ने पुरानी नीति दोहराई है. अपनी सरकार के प्रयासों की असफलता भी नहीं कहा. अगर सूची में मसूद अज़हर का नाम शामिल हो जाता तब रविशंकर प्रसाद के क्या तर्क होते. तब अपनी चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण कैसा होता. भारत का दावा है कि आतंक के सवाल पर सारी दुनिया उसके साथ है, मगर क्या उसे यह नहीं बताना चाहिए था कि वह चीन के इस कदम को कैसे देखता है. क्या भारत मानता है कि चीन आतंक के सवाल पर भारत के साथ नहीं है. कम से कम इस तरह के बयान की उम्मीद की जा सकती. अगर आज सूची में मसूद अज़हर का नाम होता तो टीवी स्टुडियो के डिबेट हफ्तों के लिए सज गए होते. तो अब इन सवालों पर चर्चा क्यों गुम हो गई. पाकिस्तान की तरह चीन को क्यों नहीं ललकारा जा रहा है. अब सारी चर्चाएं वैसी क्यों हो गई हैं जैसी विदेश नीति से जुड़े मसलों पर होनी चाहिए. पाकिस्तान का नाम आया तो ललकार, पाकिस्तान का साथ दिया चीन तो चुप्पी. सरकार को छोड़िए, मीडिया क्यों सरकार की तरह कूटनीतिक हो गया है. यही फर्क समझना है. क्या न्यूज़ चैनलो को चीन से ..... लगता है, क्या न्यूज़ चैनलों को ..... ने चुप रहने के लिए कहा है. रिक्त स्थानों की पूर्ति आप स्वयं करें. हमारे सहयोगी सुशील महापात्रा ने प्रवीण साहनी से बात की. उन्होंने ग़ज़ाला वहाब के साथ चीन पर एक किताब भी लिखी है. Dragon on our doorstep, managing china through military power

मुंबई हमले के बाद से भारत मसूद अज़हर को ग्लोबल टेररिस्ट की सूची में डलवाने का प्रयास कर रहा है. 2009 में भी जब यूपीए सरकार ने सारी जानकारी दी थी तब भी चीन ने तकनीकि आधार पर रोक दिया. उसके बाद मोदी सरकार के समय 3 बार प्रयास किया, चीन ने रोक दिया. संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में पाकिस्तान के 139 आतंकी समूह हैं. अगर मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में डाला जाता तो क्या फर्क पड़ जाता. इंडियन एक्सप्रेस में निरुपमा सुब्रमण्यम ने इस सवाल के जवाब में लंबा लेख लिखा है.

उनका कहना है कि सूची में आ जाता या नहीं आया तो दोनों ही स्थिति में भारत को खास फर्क नहीं पड़ता. भारत ने कुछ ज्यादा ही इस मामले को तूल दे दिया है. ज़रूर इसे कूटनीति कामयाबी के रूप में माना जाता क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी इसे चुनावों में भुनाते. 1998 से 1267 प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था. उसके बाद कई दर्जन प्रस्ताव पास हुए हैं. ताकि आतंकी संगठनों को समर्थन न मिल सके. हर साल इस सूची में नए नाम जुड़ते हैं. फरवरी 2019 में 262 आतंकी हैं. 82 आतंकी समूह हैं. 100 से अधिक पाकिस्तान के हैं. इस सूची में दाऊद इब्राहीम भी है. हाफिज़ सईद भी है जिसे मुंबई हमले के बाद इस सूची में शामिल किया गया था. जिसे लश्करे तोयबा के मुखिया का बताया गया है. जैश और लश्कर 20 साल से इस सूची में हैं. 2008 से जमात उद दावा भी है. इससे पाकिस्तान में इन संगठनों की गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ा है. उनके पास हर तरह के संसाधन हैं जो नहीं होने चाहिए थे. हथियार से लेकर सब है. सूची में नाम आते ही हाफिज़ सईद अगले दिन नज़रबंद हो गया. कई महीनों के बाद जब लाहौर हाई कोर्ट में हाफिज़ सईद ने चुनौती दी तब कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र मुस्लिम देशों के खिलाफ पूर्वाग्रह रखता है. भारत और अमरीका ने साज़िश की है. संयुक्त राष्ट्र की सूची का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए. इस आधार पर लाहौर होई कोर्ट में चुनौती दी. लाहौर हाई कोर्ट ने हाफिज़ सईद को रिहा कर दिया. सईद की राजनीतिक पार्टी है जिसने 2018 में चुनाव भी लड़ा था. इस आधार पर निरुपमा अपने लेख में कहती हैं कि मसूद अज़हर का नाम सूची में आ भी जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता. बेहतर है भारत अपनी सीमाओं को मज़बूत करे ताकि ऐसे तत्व प्रवेश न पा सकें.

यह सही है कि लिस्ट में नाम आता तो आज सरकार और बीजेपी विजय यात्रा निकाल रही होती और दीपोत्सव मना रही होती मगर अब जब नाम नहीं आया है जो आ भी जाता तो भी कुछ खास हासिल नहीं होता, उसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के महत्व पर सवाल उठाए जा रहे है. क्या पहले सवाल नहीं उठाए जा रहे थे. क्या वाकई दुनिया की राजनीति संयुक्त राष्ट्र से ही तय होती है. विदेश नीति और संयुक्त राष्ट्र परिषद को लेकर राजनीतिक इस्तमाल करने की मंशा के ऐसे ही नतीजे होते हैं. कभी आपके पक्ष में चीज़ें लगेंगे मगर कभी कभी ऐसा हो जाएगा कि समझ नहीं आएगा कि अब क्या करें. अब ट्वीटर पर कई लोग चीनी सामान का बहिष्कार करने लगे. शुक्र है इन लोगों ने सरकार के उस हिस्से का बहिष्कार नहीं किया है जो चीन पर चुप हैं. चीन को ललकार नहीं रहे हैं. उनका बहिष्कार न करके फुलझड़ी और पिचकारी के बहिष्कार की मूर्खता शुरू हो गई है.

ट्वि‍टर पर हैश टैग चल गया. #BoycottChineseProducts, तीन घंटे तक यह नंबर दो पर ट्रेंड कर रहा था. मुझे तो लगा कि आज गोदाम के गोदाम चीनी सामान बीजिंग के लिए लौट जाएंगे. ऐसा कुछ नहीं हुआ. शाम 6 बजे तक यह ट्रेंड 4 थे नंबर पर आ गया. कांग्रेस से बीजेपी आए टॉम वडक्कम पहले नंबर पर ट्रेंड करने लगे.

कांग्रेस से नेता आएंगे तो यही होगा. चीनी सामान के बहिष्कार जैसी राष्ट्रवादी अपील पीछे चली गई. इस अपमान का किसी से बदला नहीं लिया गया. रामदेव ने भी जोश में आकर बहिष्कार कर दिया. उन्होंने लिखा कि हमें चीन का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए. चीन सिर्फ व्यापार की भाषा समझता है. युद्ध से कहीं ज्यादा मज़बूत होता है वित्तीय बहिष्कार. यह बहुत बड़ा एलान था. अगर रामदेव इससे ज्यादा सीरियस हो गए होते तो चुनाव छोड़कर हम चीन के बहिष्कार में लग जाते.

अब कई लोगों को लगा कि फोटो खिंचाने का मौका है. वे भी ट्वीट करने लगे कि भारत का नागरिक होने के नाते चीन का कोई उत्पाद नही खरींदूंगा. कमाल आर खान ने ट्वीट कर दिया कि यह भी चीन के मोबाइल फोन से ट्वीट किया जा रहा है. एक ने तो जोश में आकर कह दिया कि प्रधानमंत्री आपको चीन को सबक सीखाना चाहिए. कोई रघुवीर सिंह मैदान में आ गए और कहा कि मैंने अपने फोन से चीनी एप डिलिट कर दिया है. कोई टिकटॉक एप डिलिट कर दिया. राष्ट्रवाद का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है. सीमा पर जवान गोली खा रहा है और एक जवान ये है जो मोबाइल से ऐप डिलिट कर रहा है. एक जनाब कूद पड़े कि हमें सिर्फ सामान का बहिष्कार करना है. ये लोगों का मुद्दा है. अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण सरकार स्टैंड नहीं ले सकती. लगता है कि ये संधियां पाकिस्तान के साथ नहीं होंगी. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से विदेश नीति में एक्सपर्ट की डिग्री लेकर आए इन लोगों से आप सावधान रहें. ये एंटायर डिप्लोमेटिक साइंस में डिग्री लेकर ट्वीट कर रहे थे. हमने आपको एंटायर पोलिटिकल साइंस की थ्योरी समझा दी.

चीन ने मसूद अज़हर को 2016 और 2017 में भी ग्लोबल आतंकी की सूची में जाने से रोक दिया था. अगर उसी समय ट्वीटर के ये खलिहर राष्ट्रवादी लोग सक्रिय रहते तो आज मेक इन इंडिया सफल हो गया होता. चीन भारत से माफी मांग रहा होता. आज तो हद तब हो गई जब इस खबर के आने के कई घंटे बाद व्हाट्सएप पर चीन की पिचकारी के बहिष्कार वाला मेसेज नहीं आया. मतलब आज तो मैं व्हाट्स एप डिलिट ही करने वाला था. फुलझुड़ी और पिचकारी न खरीद कर चीन को तो हम सबक सीखा ही सकते थे.

अभी तक किसी भी शहर से खबर नहीं आई है कि किसी खलिहर राष्ट्रवादी ने चीन में बने आई फोन टेन को बालकनी से बाहर फेंक दिया है. लोग सड़कों पर अपनी कारें छोड़ गए हैं क्योंकि उनमें चीन से आयातित पार्ट्स लगे थे. एंकर लोग भी आहत हो गए. चीनी सामान के बहिष्कार का हैशटैग लिखने लगे. उन्हें कम से कम अपने स्टूडियो में चीनी सामान चेक कर लेना चाहिए था. आज इन सबको दो काम करना था. पहला कि ओएलएक्स पर घर के सारे चीनी सामान को नीलाम कर देना चाहिए था. ताकि हम कह सकें कि हमने चीन को सस्ते में और वो भी सरेआम नीलाम कर दिया. दूसरा काम सरकार को करना था. इन लोगों को चीनी पिचकारी देकर, एक बाल्टी रंग देकर डोकलाम भेज देना था. वहां जाकर ये लोग लांग रेंज वाली पिचकारी से चीनी गोला बारूद को रंगों से गीला कर देते. चीनी गोला बारूद मेहरा जाता. मतलब उसमें नमी आ जाती. मिसाइल उड़ने से पहले ही मुरझा जाती. दो तीन हफ्तों के भीतर ही चैनलों के स्टुडियो में गढ़ा गया उन्माद लतीफा में बदल चुका है. ट्वि‍टर के किसी भी खलिहर राष्ट्रवादी ने चीनी सामान के बहिष्कार का ट्रेंड पिट जाने पर नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं ली है. किसी ने नहीं कहा कि चीनी सामान के बहिष्कार की अपील पिट जाने से सेना के मनोबल पर असर पड़ा है. ऐसे खलिहर राष्ट्रवादियों से सावधान रहिए.

आपको याद होगा पाकिस्तान के साथ तनाव के वक्त मैंने सावधान किया था कि आप अपने देशप्रेम पर भरोसा करें. चैनलों का कोई भरोसा नहीं. अब बताइये वे चीन को सबक सिखाने के लिए किसी को ललकार नहीं रहे हैं. आपसे कह रहे हैं कि आप अपना सामान फेंक दें. कम से कम अपना ही सामान आपको दे देते. पुलवामा के बाद माहौल बनाने के लिए कई चैनलों पर कवि बुलाए गए. वे पाकिस्तान के खिलाफ वीर रस वाली कविता कहने लगे. वे सब अपना अपना पेमेंट लेकर जा चुके हैं. मेरी उन कवियों से अपील है. वे वीर रस वाली कविता चीन को लेकर भी लिखें. चैनल वाले भी चीन को लेकर कवि सम्मेलन कराएं. कम से कम हम कविता में तो चीन को ललकारें. वैसे भी उसे हिन्दी कहां समझ आएगी. बेशक ये कवि चाहें तो चीन के साथ साथ अर्बन नक्सल तक को ललकारें. अर्बन नक्सल भी अपनी इस नई ज़िम्मेदारी के कारण अर्बन और नक्सलिज़्म दोनों छोड़ भाग जाएंगे. तेंदुलकर से कहें कि टीम इंडिया चीनी फोन की जरसी फेंक दे. उन्हें अपने चैनल की जरसी दे दें. राष्ट्रवाद अगर कहीं है तो चैनलों में है. टीम इंडिया को सेना की टोपी नहीं, चैनलों की जरसी पहनकर खेलना चाहिए. एक भी मैच नहीं हारेगी. जो बिगड़ गया है वो अब कभी नहीं सुधरेगा.

उधर इसी बीच भारत-पाकिस्तान के बीच ये भारी तनाव करतारपुर कॉरिडोर के मुद्दे पर कुछ घुलता दिखा जब गुरुवार को दोनों देशों के अधिकारी इस सिलसिले अमृतसर के अटारी में मिले. ये कोरिडोर पाकिस्तान के करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर ज़िले के डेरा बाबा नानक से जोड़ेगा. कहते हैं कि गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम 18 साल दरबार साहिब में ही बिताए थे और इसीलिए ये सिखों के सबसे पवित्र गुरुद्वारों में से एक माना जाता है. इस कोरिडोर के बन जाने से भारत से सिख अनुयायी बिना वीज़ा के दरबार साहिब के दर्शनों के लिए जा सकेंगे. भारत ने प्रोजेक्ट के पहले चरण में हर रोज़ पांच हज़ार तीर्थ यात्रियों के आने-जाने का इंतज़ाम पूरा करने पर ज़ोर दिया. सीमा के दोनों ओर इस कोरिडोर का पहले ही शिलान्यास हो चुका है. आगे के निर्माण और तकनीकी पहलुओं पर विचार के लिए दोनों देशों के अधिकारियों की पहली बैठक बड़े ही सकारात्मक माहौल में पूरी हुई. अगली बैठक अब 2 अप्रैल को होगी. इस बीच विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव दीपक मित्तल ने ये साफ़ किया कि करतारपुर कोरिडोर को दोनों देशों के बीच वार्ता की बहाली न माना जाए.

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