प्राइम टाइम इंट्रो : नीतीश का निश्चय या लालू की दावेदारी?

प्राइम टाइम इंट्रो : नीतीश का निश्चय या लालू की दावेदारी?

पांचवीं बार मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेते नीतीश कुमार

नई दिल्‍ली:

नीतीश का निश्चय चलेगा या लालू की दावेदारी। 20 साल बाद नीतीश और लालू राजनीतिक रूप से मिले तो चुनाव में यही मुद्दा बन गया लेकिन जनता ने इन आशंकाओं को खारिज कर दिया। दोनों के गठबंधन को 178 सीटें दे दीं और जंगल राज का भय दिखाने वाली बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी हो गई। मगर शपथ ग्रहण समारोह की तस्वीरों ने फिर से उन सवालों को उठा दिया है कि नीतीश का निश्चय या लालू की दावेदारी। आज सरकार बनी है और जब तक रहेगी जनता हर रोज़ इस सवाल का जवाब खोजेगी।

64 साल के नीतीश कुमार के शपथ लेने के बाद जब उनसे 38 साल छोटे तेजस्वी यादव शपथ लेने आए तो कई लोगों को यह दृश्य खटका। ये और बात है कि छोटे भाई तेजस्वी ने बड़े भाई तेज प्रताप से पहले शपथ ली। अपेक्षा को उपेक्षा पढ़ देने की गलती कर तेजप्रताप ने विरोधियों को मौका दे दिया। उन लोगों की निगाहें सतर्क हो गईं जो देख रहे थे कि वरिष्ठ नेताओं से पहले दोनों भाइयों का शपथ लेना कहीं मज़बूत नीतीश के आंगन में मज़बूत लालू का आगमन तो नहीं। मंत्रिमंडल में राजद और जेडीयू के 12-12 मंत्री हैं। कांग्रेस के चार मंत्री बनाए गए हैं। एक फार्मूला निकला जो सब पर लागू हुआ कि हर पांच विधायक पर एक मंत्री होगा।

चुनाव के समय से ही कयास लग रहे थे कि तेजस्वी उप मुख्यमंत्री होंगे। नीतीश ने न सिर्फ उप मुख्यमंत्री बनाया है बल्कि अपनी राजनीति की धुरी का मंत्रालय भी उन्हें पकड़ा दिया है। तेजस्वी को पिछड़ा और अति पिछड़ा कल्याण मंत्री भी बनाया गया है। इसके अलावा वे पथ एवं भवन निर्माण मंत्रालय भी संभालेंगे। तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य, लघु सिंचाई और पर्यावरण दिया गया है, अब्दुल बारी सिद्दीकी वित्त मंत्री होंगे, आलोक मेहता सहकारिता मंत्री बने हैं, चंद्रिका राय परिवहन मंत्री बनाए गए हैं। मुनेश्वर चौधरी खान व भूतत्व मंत्री हैं, रामविचार राय कृषि मंत्री होंगे, अब्दुल गफूर अल्पसंख्यक कल्याण, चंद्रशेखर आपदा प्रबंधन, अनिता देवी को पर्यटन मंत्री बनाया गया है। विजय प्रकाश श्रम संसाधन मंत्री बने हैं, शिवचंद्र राम को कला संस्कृति मंत्री बनाया गया।

अब्दुल बारी सिद्दीकी 1977 से विधायक हैं। लालू यादव जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब वे मंत्री बने थे। अब्दुल बारी सिद्दीकी उम्र और अनुभव में सीनियर हैं मगर डिग्री के मामले में तेजस्वी से बहुत सीनियर नहीं हैं। तेजस्वी नौवीं पास हैं तो सिद्दीकी साहब बारहवीं लेकिन राजनीति में डिग्री का पैमाना ही अंतिम होता तो मनमोहन सिंह आजीवन प्रधानमंत्री रह जाते। डिग्री का पैमाना नहीं है इसलिए गरीब से गरीब लोगों को सत्ता के शिखर पर पहुंचने का मौका भी मिला है जिससे सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन आए हैं। वैसे हमारी राजनीति में फर्ज़ी डिग्री वाले भी मंत्री बन जाते हैं और ऐसे भी जिनकी डिग्री क्या है और कहां से है इसका पता लगाने के लिए लोगों को कचहरी तक के चक्कर लगाने पड़ जाते हैं। शुक्रवार को दिल्ली की एक अदालत ने चुनाव आयोग और दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिये हैं कि वो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री से संबंधित दस्तावेज़ पेश करें। अगली तारीख 16 मार्च 2016 की है जिसमें ये सारे दस्तावेज़ पेश करने हैं।

परिवारवाद हकीकत है लेकिन इस पर ईमानदारी से बात करने की ज़रूरत है। परिवारवाद एक पार्टी के लिए नई संभावनाओं को जन्म देने का कारण बन जाता है लेकिन राजनीति को यह यथास्थितिवादी बना देता है। नए योग्य लोगों के लिए संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। 38 साल की उम्र में ही अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन गए, पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी विरासत उन्हें सौंप दी। पंजाब में तो पिता पुत्र ही मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री हैं। प्रकाश सिंह बादल को अपने बेटे को सीएम बनाने में कितना टाइम लगेगा।

बीजेपी परिवारवाद के खिलाफ काफी मुखर रहने वाली पार्टी मानी जाती है मगर अपने सहयोगियों शिवसेना, अकाली, पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी के परिवारवाद के कारण फंस जाती है। जब बीजेपी नेता अश्विनी चौबे और सी.पी. ठाकुर के बेटों को टिकट मिल सकता है तो तेजस्वी और तेजप्रताप को क्यों नहीं मिलना चाहिए। यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा तो पहली बार सासंद बनते ही वित्त राज्य मंत्री बन जाते हैं।

2015 के लालू यादव के बेटे बेटियों और दामाद की यह पारिवारिक तस्वीर 90 के दशक के उनके परिवार की तस्वीरों से काफी अलग है। तब हर फ्रेम में साधु और सुभाष यादव दिखा करते थे। बाद में साधु सुभाष कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं के फ्रेम में नज़र आने लगे। इस चुनाव में दोनों नज़र नहीं आए। लालू यादव ने अपने कोटे से मंत्री बनाए गए लोगों में साफ सुथरी छवि वालों को ही चुना है। अगर रिकॉर्ड देखने में हमसे चूक नहीं हुई है तो आरजेडी के मंत्रियों में से सिर्फ एक पर हत्या के प्रयास के आरोप हैं। तेजस्वी और तेजप्रताप दावेदारी करने वाले मंत्री बनते हैं या नीतीश की छत्र छाया में सीखने वाले आज्ञाकारी मंत्री। वक्त बतायेगा कि ये दोनों भाई आशंकाओं को सही साबित करते हैं या गलत।

पहली बार विधायक सांसद बनकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने का उदाहरण तेजस्वी के अलावा भी बहुत है। चुनौती मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी है। इस चुनौती को उन्होंने राजद और कांग्रेस को कई महत्‍वपूर्ण विभागों को देकर साधा है या समझौता किया है, बिहार की जनता रोज़ इसका आकलन करेगी। करना भी चाहिए।

विजेंद्र प्रसाद यादव उर्जा मंत्री बने हैं, ललन सिंह जल संसाधन मंत्री, श्रवण कुमार- ग्रामीण विकास, कपिलदेव कामत- पंचायती राज, मदन सहनी- खाद्य आपूर्ति, शैलेश कुमार- ग्रामीण कार्य अभियंत्रण, मंजू वर्मा- समाज कल्याण, महेश्वरी हजारी- नगर विकास, कृष्णनंदन वर्मा- पीएचईडी व कानून, संतोष निराला - एससी एसटी कल्याण, खुर्शीद उर्फ फिरोज़ अहमद को गन्ना उद्योग और जय कुमार सिंह को इंडस्ट्री व साइंस टेक्नालजी मंत्री बनाया गया है।

राजद के मंत्रियों के पास महत्वपूर्ण विभाग हैं। कहने को तो जेडीयू के पास भी हैं लेकिन लोग सांत्वना पुरस्कार और फर्स्ट प्राइज़ में अंतर कर लेते हैं। नीतीश कुमार ने ग़हमंत्रालय अपने पास रखा है। कांग्रेस कोटे से अशोक चौधरी को शिक्षा व आईटी मंत्रालय दिया है, अब्दुल मस्तान को उत्पाद व निबंधन मंत्री बनाया है, अवधेश कुमार सिंह को पशुपालन और मदन मोहन झा को राजस्व व भूमि सुधार दिया गया है।

कांग्रेस को पशुपालन विभाग दिया गया है। एक खुराफात दिमाग में हो रही है कि पशुपालन विभाग को लेकर नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच क्या बात हुई होगी। बड़ा सवाल है कि नीतीश सरकार में दो ही महिला मंत्री क्यों हैं। नई विधानसभा में कुल 27 महिला विधायक हैं जिनमें से 22 महागठबंधन की हैं। 22 में से सिर्फ 2 महिला मंत्री। महिला विधायकों को एक मोर्चा तो बनाना ही चाहिए। उनको मेरा सपोर्ट।

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चर्चा इस पर भी करेंगे कि क्या ये इंडिया का महागठबंधन है। शपथ ग्रहण समारोह में आए मेहमान शिष्टाचार निभाने गए थे या वाकई किसी नए मोर्चे की तैयारी आपको दिखती है। बिहार में कांग्रेस जूनियर पार्टनर है लेकिन क्या मोदी के विकल्प के तौर पर लालू यादव और नीतीश राहुल गांधी के लिए कोई राष्ट्रीय गठबंधन बनाएंगे। 26 मई 2014 को कहा जा रहा था कि मोदी के सामने 20 साल तक कोई चुनौती नहीं है, 20 नवंबर 2015 को कहीं अतिउत्साह में तो नहीं कहा जा रहा कि इस महागठंबधन का मोदी के पास कोई जवाब नहीं है। 2014 का लोकसभा चुनाव लगता है कि रोज़ हो रहा है। भारतीय राजनीति चैन से बैठने नहीं देगी।