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This Article is From Nov 13, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या हैं पीएम मोदी के दौरे के मायने?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 13, 2015 21:17 pm IST
    • Published On नवंबर 13, 2015 21:13 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 13, 2015 21:17 pm IST
विदेश दौरा अब वैसा नहीं रहा कि प्रस्थान और आगमन की तस्वीरें अगले दिन के अख़बारों में छप गईं। या लौटते वक्त विमान में प्रधानमंत्री का इंटरव्यू हो गया या फिर किसी शिखर सम्मेलन में अनगिनत राष्ट्र ध्वजों के नीचे बहुत सारे नेताओं की न पहचाने जाने वाली तस्वीरें भी छपा करती थीं। याद कीजिए ओबामा का भारत दौरा। दिल्ली आने से पहले मुंबई जाना, कभी ताज देखने जाना तो कभी पत्नी मिशेल के साथ हुमायूं का मकबरा देखने जाना। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैसा ही कुछ कर रहे हैं या बिल्कुल नया कर रहे हैं। औपचारिकताओं से भरी विदेश यात्राओं में क्या वे वाकई कोई बड़ा बदलाव ला रहे हैं।

कहीं वो पहली बार जाते हैं तो कहीं दशकों बाद जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हो जाते हैं। किसी न किसी बहाने पहली बार का ज़िक्र आ ही जाता है। फिजी, भूटान, मंगोलिया, नेपाल, मॉरिशस, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की संसद को संबोधित करना, सलामी से लेकर मुलाकात तक कुछ ऐसा होना जो पहली बार होता है या बहुत दिनों बाद होता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता और आतंकवाद की परिभाषा जैसे मसले स्थायी रूप से होते हैं और हर देश के साथ भारत का संबंध पहले कहीं और प्रगाढ़ होने वाला बताया जाने लगता है। ब्रिटेन को यूरोपीय संबंधों का प्रवेश द्वार बताते हैं तो ऑस्ट्रेलिया में जाकर प्रधानमंत्री कहते हैं कि 28 साल लग गए किसी भारतीय प्रधानमंत्री को ऑस्ट्रेलिया आने में लेकिन अब चीज़ें बदलेंगी और ऑस्ट्रेलिया हमारे विजन के हाशिये पर नहीं बल्कि केंद्र में होगा। बिहार की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री की भाषण शैली की तुलना उनके विदेश दौरों से करें तो बिल्कुल दो अलग-अलग शख्सियत नज़र आती है।

बहुत से लोग मानते हैं कि दुनिया के नक्शे पर भारत को लेकर कुछ नया हो रहा है। प्रधानमंत्री मौदी का दौरा भारत की छवि को बदल रहा है। उनकी यात्रा जब भी आधाकारिक चरण में होती है तमाम न्यूज़ चैनलों पर एक ही तरह के एंगल से शॉट चलने लगते हैं। एक खास किस्म का अनुशासन बन जाता है। एक बने बनाये फ्रेम में प्रधानमंत्री का हर कदम पहले से सोचा समझा लगता है। विदेश नीति के जानकारों को कैमरों की निगाहों को भी कूटनीतिक विश्लेषण में शामिल करना चाहिए।

किस तरह हेलिकॉप्टर से लिया गया ब्रिटिश संसद का शॉट एक अलग किस्से की रचना करता है। टॉप एंगल शॉट से संसद की गहराई नज़र आती है और दूर भारत में बैठे दर्शक के मन में अचानक प्रधानमंत्री की हैसियत कुछ और होने लगती है। ऐसा होता है या नहीं दावे के साथ नहीं कह सकता लेकिन जब कैमरा चैकर्स में प्रधानमंत्री मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरून को देखता है तब दोनों तेज़ हवाओं के खिलाफ बढ़ते चले जा रहे होते हैं। यह तस्वीर खास किस्म की अंतरंगता की रचना करती है जबकि इस बात के बावजूद चैकर्स में पाकिस्तान के राष्ट्रपति से लेकर पिछले महीने चीन के राष्ट्रपति भी जा चुके हैं। मुझे विदेश दौरों का बेहतर ज्ञान नहीं है इसलिए नहीं बता सकता कि चीनी राष्ट्रपति के दौरे को कैमरों ने खास नज़र से कवर किया था या नहीं। जिस तरह से भारत में राष्ट्रपति का निवास शिमला और हैदराबाद में होता है उसी तरह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का ग्रामीण सरकारी निवास है चैकर्स। ये सारे दृश्य आम से आम आदमी को सक्षम करते होंगे कि वो भी विदेश नीति को समझ सकता है। 1985 में अमेरिकी राष्ट्रपति रेगन ने जब राजीव गांधी के लिए छाता पकड़ा था तो भारत में काफी सनसनी फैली थी। प्रधानमंत्री मोदी के साथ ऐसे किस्सों की भरमार है।

याद कीजिए जब ऑडियो कैसेट का ज़माना था तब लंदन के रॉयल अलबर्ट हाल की लाइव रिकॉर्डिंग की कितनी पूछ होती थी। ग़ज़ल और गीत के साथ तालियों की गड़गड़ाहट की ध्वनि अतिरिक्त संगीत की रचना करती थी। जगजीत सिंह, लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन। बाद में बॉलीवुड के स्टार अपनी इवेंट टीम लेकर दुनिया भर में कूच करने लगे। ब्लॉकबस्टर और रॉकस्टार जैसे विशेषण प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरों की शोभा बढ़ाने लगे हैं। लंदन के वेम्बले स्टेडियम में उनके कार्यक्रम के लिए जो पास जारी किये गए हैं उस पर शो लिखा है।

अपने दौरे के स्टेडियम वाले हिस्से में प्रधानमंत्री शो मैन के रूप में रूपांतरित हो जाते हैं। अमेरिका का मेडिसन स्कावयर हो या ऑस्ट्रेलिया का आलफोंस एरिना। लंदन का वेम्बले काफी महंगा स्टेडियम है। इतने महंगे आयोजन के लिए आयोजकों की दाद दी जानी चाहिए। आयोजक का नाम यूरोप इंडिया फोरम है। ukwelcomesmodi.org नाम से एक वेबसाइट है जिससे पता चलता है कि 400 से अधिक वेलकम पार्टनर हैं। कुछ संगठनों के नाम इस प्रकार हैं। गुजरात हिन्दू सोसायटी, गुजरात समाज नॉटिंघम, गुजराती आर्य एसोसिएशन, गुजराती आर्य क्षत्रिय महासभा, गुजराती कल्चरल एसोसिएशन रग्बी, गुजराती कल्चरल सोसायटी, हिन्दू अकादमी, हिन्दू सेंटर, हिन्दू कम्युनिटी, हिन्दू काउसिंल यूके, हिन्दू काउंसिल लंदन, कई शहरों में काम करने वाली हिन्दू कल्चरल सोसायटी। हिन्दू सेविका समिति, हिन्दू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू टेम्पल वेलफेयर एसोसिएशन, आयरलैंड और यूके के ओवरसीज़ फ्रैंड ऑफ बीजेपी, प्रोफेशनल पटेल नेटवर्क, राजपूत समाज। The Federation of Indian Muslim organisations (UK), Muslim Khatri Association, Indian Muslims Association (Leicester), यूरोप इंडिया फोरम ने इन सभी के योगदान को सराहा है। कलाकारों के कई ग्रुप हैं। कुछ कलाकार व्यक्तिगत स्तर पर भी कार्यक्रम पेश कर रहे हैं। साठ हजार लोग प्रधानमंत्री का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन इस दौरे में प्रधानमंत्री को विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।

सितंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय के सामने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का विरोध हुआ था जो लंदन तक आते आते मुखर हो गया है। ब्रिटिश अखबारों में खुलकर गुजरात दंगों और असहिष्णुता के सवालों को उठाया गया है और गार्ड ऑफ ऑनर देने पर सवाल किये गए हैं। हाल के दिनों में न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट में भी प्रधानमंत्री की नीतियों की आलोचना छपी है। ब्रिटिश अखबार द टेलिग्राफ, गार्डियन और टाइम में काफी प्रमुखता से ऐसे लेख छपे हैं जिनमें उनकी सख्त आलोचना की गई है।

15 अरब डॉलर के निवेश समझौतों के अलावा प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन से छात्रों के वीज़ा का मुद्‌दा भी उठाया है, यह भी भरोसा दिया है कि कंपनियों पर रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स नहीं लगेगा। जिस वक्त लंदन में प्रधानमंत्री भारत को बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बता रहे थे भारत में बिजनेस अखबार अपनी पहली खबर यह बना रहे थे कि सितंबर महीने की फैक्ट्री आउटपुट में गिरावट दर्ज हुई है। अगस्त में इस का ग्रोथ रेट पिछले तीन साल में सबके अधिक था 6.3 फीसदी। सितंबर में ग्रोथ रेट 3.6 फीसदी ही रहा। फैक्ट्री आउटपुट के सूचकांक का 75 फीसदी हिस्सा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से आता है जिसमें ग्रोथ रेट 2.6 प्रतिशत ही देखा गया है। कंपनियों की कमाई में भी तेज़ी से कमी आई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी अक्टूबर में 5 फीसदी हो गया है। इकोनॉमिक टाइम्स की पहली खबर यह है कि स्टार्ट अप कंपनियों के लिए निवेश में कमी आने लगी हैं। निवेशक अब अपना हाथ खींचने लगे हैं।

विवेकानंद फाउंडेशन के सुशांत सरीन ने लिखा है कि प्रधानमंत्री के दौरे की ये खासियतें अब पुरानी पड़ने लगी हैं। सुशांत के लेख का सार यह है प्रधानमंत्री के दौरे की गंभीरता वेम्बले जैसे आयोजनों के तमाशे में खो जाती है। विवेकानंद फाउंडेशन के कई लोग सरकार की सोच के करीब माने जाते रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरे पर अब सवालों के बादल मंडराने लगे हैं, मेडिसन से लेकर वेम्बले जैसे आयोजन विदेश नीति को कोई नया आयाम देते हैं या फिर उनकी गंभीरता को कम कर देते हैं।

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