प्राइम टाइम इंट्रो : सवाल कश्‍मीरी पंडितों की वापसी का

नई दिल्‍ली:

समस्या की भावुकता इतनी संभावनाएं पैदा कर देती है कि हर पक्ष आराम से अपनी अपनी रोटियां सेंक लेता है। कश्मीरी पंडितों की वापसी का मसला ऐसा ही है।

जिनके बीच बातचीत से इस मसले का हल होना है उनके बीच सीधे या ईमानदारी से बात होती नहीं है लेकिन जिनका सीधा संबंध इस मसले से नहीं है उनकी राय भी इतनी सख्त है कि आप वहां सुलझा लेंगे तो यहां उलझ जाएगा। है ही ये मामला इतना जटिल क्योंकि सबको इसकी जटिलता की आड़ में कुछ न करने के साथ-साथ राजनीति करने का भरपूर मौका मिल जाता है।

हमारे सहयोगी ज़फ़र इक़बाल ने जम्मू में रहने वाली 23 साल की रोमी कौल से बात की। रोमी इस दुनिया में आईं भी नहीं थी कि उनके मां-बाप को 90 के दशक में घाटी में अपने घर को छोड़ जम्मू के इस एक कमरे में आकर पनाह लेनी पड़ी थी। एक कमरे में दस लोग रहते हैं। वापसी का रोमांच असुरक्षा के ख़्याल से फीका पड़ जाता है। तब भी सब लौटना चाहते हैं।

2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने वापसी के लिए प्लान बनाया कि राज्य और केंद्र की सरकारें नौजवान कश्मीरी पंडितों को 6000 नौकरियां देंगी। पहले चरण में जब 3000 नौकरियों का विज्ञापन निकला तो 15000 आवेदन आ गए। अपनी रिपोर्ट में ज़फ़र इक़बाल कहते हैं कि पांच साल पहले 1200 लोग बहाल तो हुए मगर उन्हें प्रवासी शिविरों में रहना पड़ रहा है। उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है। राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र तक नहीं बने हैं।

बीजेपी और पीडीपी सरकार ने आते ही 3000 नौकरियों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यानी वापसी के लिए आवेदन हो रहे हैं। किसी भी जगह या ज़मीन से उजड़ने या बिछड़ने का तजुर्बा है तो आप दर्शक भी चाहेंगे कि एक दिन वापसी हो। ऐसे ही किन्हीं संदीप भट्ट से जब ज़फ़र इक़बाल ने बात की तो उन्होंने कहा कि हम बाज़ार या अन्य जगहों पर जाते हैं तो किससे मिलते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे लिए ऐसी कॉलोनी बने जिसमें न सिर्फ पंडित रहें बल्कि दूसरे मज़हबों के लोग भी रहें।

हुआ ये है कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद से कहा है कि राज्य सरकार ज़मीन उपलब्ध कराकर दे जहां कंपोज़िट टाउनशिप बसाया जा सके। सवाल पूछा जाने लगा कि यह टाउनशिप कैसा होगा। क्या यहां सिर्फ कश्मीरी पंडित रहेंगे या अन्य लोग भी रहेंगे। इस बहस में फिर से सारे तत्व कूद पड़े।

मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बुधवार को विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार घाटी में कंपोजिट टाउनशिप बसाने के लिए जल्द से जल्द ज़मीन का अधिग्रहण करेगी। विपक्ष ने जब विरोध किया तो अगले दिन पलट गए। मुख्यमंत्री ने सदन से कहा कि अलग टाउनशिप तो हो ही नहीं सकती है। उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से साफ साफ कह दिया है। संभव होगा तो सभी एक साथ रहेंगे। वे प्रयास करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा कश्मीरी पंडित वापसी करें और माहौल भी अनुकूल रहे। जिन्होंने घर नहीं बेचा है उनके घर मिल जाएं। लेकिन ऐसे ही एक कश्मीरी पंडित ने बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के कई साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन उनके मकान के कब्ज़े को हटा नहीं पा रहा है। पुराना घर कितनों के पास बचा है।

मुफ्ती मोहम्मद सईद से उलट गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि केंद्र सरकार ने जो फैसला किया है वो नहीं बदलेगा। बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कहा है कि धीरज रखना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों ने कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से टाउनशिप का सुझाव दिया था, अब ये कंपोज़िट होगा या इसमें एक टाउनशिप में एक ही तरह के समुदाय रहेंगे ये मसला है। साझा कार्यक्रम के तहत समुदाय यानी कश्मीरी पंडितों से मशवरा किया जाएगा।

जनवरी 2014 में दिल्ली में कश्मीरी पंडितों के संगठन ने नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर शुभकामनाएं दी थीं और कश्मीरी फिरन पहनाया था। इन संगठनों ने कहा था कि जीतने के बाद वे मिलकर अपनी समस्या और सुझाव बताना चाहेंगे। पनुन कश्मीर, जम्मू कश्मीर विचार मंच, ऑल इंडिया कश्मीरी समाज, कश्मीरी समिति। इनमें से एक संगठन के एक सदस्य से बात की तो पता चला कि केंद्र सरकार ने इनसे बात नहीं की है। बाकी संगठनों की तरफ से मैं दावा तो नहीं कर सकता न पुष्टि कर सकता हूं कि केंद्र सरकार से इनकी बातचीत हुई है या नहीं लेकिन यह पता चला कि वापसी के तरीके को लेकर इनकी राय अलग अलग है। बिना इन संगठनों को विश्वास में लिए उनके भविष्य के बारे में कैसे निर्णय लिया जा रहा है।

किसी का कहना है कि अलग इलाका दे दीजिए और उसे केंद्र शासित जैसे अधिकार दे दिये जाएं। कुछ का कहना है कि घाटी से लेकर ज़िले तक में क्‍लस्टर यानी मकानों का समूह बनाया जाए। जहां कम से कम तीस पैंतीस हज़ार पंडित रहें ताकि असुरक्षा की भावना कम से कम हो। सुरक्षा का मतलब सेना या पुलिस ही नहीं है, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक आज़ादी भी है।

बिना राजनीतिक आवाज़ के सुरक्षा मुकम्मल हो ही नहीं सकती। एक मिसाल बडगाम के शेखपुरा में बने 200 फ्लैट की दी जा रही है जहां 30 से अधिक फ्लैट में मुस्लिम भी रहते हैं। सिद्धार्थ वरदराजन ने लिखा है कि इसका सामाजिक अध्ययन करना चाहिए। क्लस्टर की योजना तो पिछली नेशनल कांफ्रेस सरकार की भी थी लेकिन अब वो इसके खिलाफ हैं। अनुपम खेर तो कहते हैं कि पहला स्मार्ट सिटी श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के लिए बनना चाहिए।

गृहमंत्री कह रहे हैं कि प्लान नहीं बदला है, मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि प्लान है ही नहीं। नौकरियों के कारण वापसी हुई नहीं, क्या बस्तियां बसाकर हो जाएंगी? इसके अलावा जिस माहौल और विश्वास की ज़रूरत है क्या उसे बनाया जा रहा है? पॉलिटिक्स हो रही है या वाकई हम ऐसी किसी योजना के करीब है जिससे वापसी संभव है?


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