काला धन सुनते ही उत्साहित हो जाने वालों के लिए खुशख़बरी है, जो लोग आने की प्रतीक्षा में हैं, वह अपना वाला काला धन देकर सरकार का सहयोग कर सकते हैं। 1 जून से 30 सितंबर के बीच अपना वाला काला धन सरकार को बता दीजिए, उस पर 45 प्रतिशत का टैक्स दीजिए, कोई सज़ा नहीं कोई सवाल नहीं, और अपना काला धन सफेद धन के रूप में वापस ले जाइए। आ गया काला धन।
ये योजना भारत के भीतर काला धन पता लगाने की है। भारत के बाहर काला धन पता लगाने की योजना बहुत पहले समाप्त हो चुकी है। इस योजना के तहत एनआरआई और भारतीय दोनों ही अपने काले धन के 45 प्रतिशत हिस्से को लौटा सकते हैं। तो अपने खाते में पंद्रह लाख देखने से पहले अपने दस्तावेज़ों को ठीक से देख लीजिए, जिनके यहां बोरे में है या तोशक के बीच में हैं वो लोग भी एक बार ठीक से सोच लें। जिनके पास मकान दुकान के रूप में काला धन है, उनके लिए भी योजना है थोड़ा इंतज़ार कीजिए बताता हूं।
आयकर विभाग के अधिकारी कर्मचारी भी समझाने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं। किस तरह से घोषणा की जा सकती है, कितने टैक्स देने होंगे, पैन नंबर देना अनिवार्य है। जिन लोगों ने कभी आयकर नहीं भरे हैं, उनके लिए भी इस स्कीम में संभावना है मगर कुछ शर्तों के साथ।
सीबीडीटी ने भी बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्नों के जवाब अपनी वेबसाइट पर दिए हैं। बस जिन लोगों के खिलाफ आयकर विभाग ने नोटिस जारी किया है, उनके लिए इस योजना में कोई लाभ नहीं है। व्यक्ति से लेकर कंपनी तक को काला धन का 45 प्रतिशत देने की योजना में शामिल किया गया है। सभी को अपनी संपत्ति की बाज़ार मूल्य की रिपोर्ट सौंपनी होगी।
1 जून 2016 के दिन जो भाव होगा उसी के हिसाब से गुप्त मकान या प्लाट की कीमत लगाई जाएगी और उसका 45 फीसदी टैक्स देना होगा। अगर आपके पास 45 फीसदी देने की क्षमता नहीं है, तो आप उस गुप्त मकान या प्लाट को बेचकर टैक्स दे सकते हैं। 30 नवंबर 2016 तक टैक्स, जुर्माना और सरचार्ज वगैरह चुका देना होगा, तभी आय घोषित मानी जाएगी।
प्रधानमंत्री ने भी मन की बात में कहा है कि सरकार लोगों को एक मौका दे रही है, ताकि वे पाक साफ हो सकें। इस बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसकी घोषणा कर दी थी ताकि काला धन रखने वालों को मानसिक तैयारी का मौका मिल सके। अगर आप चेहरा नहीं दिखाना चाहते हैं तो ऑन लाइन भी भर सकते हैं, बस पैन नंबर देते ही आयकर अधिकारी आपका चेहरा देख लेगा। इससे पहले भारत सरकार ने विदेशी बैंकों में काला धन रखने वालों के लिए एक सख़्त कानून भी बनाया, सज़ा देने से पहले सरकार ने लोगों को एक मौका भी दिया और सरकार के खजाने में 4, 147 करोड़ रुपये आ गए।
हमारी सहयोगी तनिमा विश्वास ने अलग अलग सूत्रों से पता लगाया कि 1 जून से 28 जून तक बहुत कम लोगों ने इस योजना के तहत काला धन की घोषणा की है। आम तौर पर कहा जाता है कि आखिरी दिनों में काफी भीड़ होती है। तो जुलाई, अगस्त और सितंबर तीन महीने हैं आप लोगों के पास। तनिमा में कुछ बिजनेस प्रतिनिधियों से बात की। उनका कहना है कि 45 प्रतिशत टैक्स बहुत ज़्यादा है।
वित्त मंत्रालय ने इस फैसले से प्रभावित या आशंकित तमाम समुदायों के प्रतिनिधियों को बुलाकर उनकी बात सुनी। इस बैठक में आए पेशेवर समुदायों से पता चलता है कि काला धन पैदा होने की संभावना कहां-कहां हो सकती है, वर्ना इसमें कुछ किसान, कुछ मज़दूर और कुछ नौकरीपेशा लोग भी शामिल होते।
बहरहाल इस बैठक में आश्वस्त करने के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली, वाणिज्यमंत्री निर्मला सीतारमण और ऊर्जामंत्री पीयूष गोयल मौजूद थे। बिजनेस संगठनों के प्रतिनिधि के साथ साथ डॉक्टर और चार्टर्ड अकाउंटेंट भी थे। कुछ ने कहा कि 45 प्रतिशत टैक्स बहुत होता है और इतना सारा पैसा एक साथ नहीं दे सकते, इसलिए सरकार किश्तों में अदा करने की रियायत दे। कुछ ने कहा कि 30 सितंबर की डेडलाइन बढ़ा दी जाए। किसी ने कहा कि अघोषित आय बताने के बाद दूसरी जांच एजेंसियां तो पीछे नहीं पड़ जाएंगी। सरकार ने कहा है कि 45 प्रतिशत टैक्स तो रहेगा, लेकिन दूसरी जांच एजेंसियों के साथ ये जानकारी साझा नहीं की जाएगी। किसी से नहीं पूछा जाएगा कि पैसा कहां से आया। सरकार अब इसे अभियान का रूप देना चाहती है।
कितनी अजीब बात है। हमारी पूरी राजनीति काला धन पर चलती है। कुछ राजनेताओं को भी इस बैठक में जाना चाहिए था कि सब घोषित कर देंगे तो चुनावों में 20-20 हेलिकॉप्टर कहां से उड़ेंगे। चुनाव आयोग नाका लगाकर हर चुनाव में कितने करोड़ पकड़ लेता है। 1997 में भी ऐसी एक योजना आई थी। तब चार लाख से अधिक लोगों ने अपनी 30,000 करोड़ की अघोषित आय घोषित कर दी थी और सरकार को टैक्स के तौर पर 10,000 करोड़ मिले थे। 2016 में यह संख्या काफी होनी चाहिए, क्योंकि यह कहा जाता रहा है कि 70 फीसदी काला धन तो भारत में ही है।
वित्तमंत्री बार बार कह रहे हैं कि ये इम्युनिटी स्कीम नहीं है, क्योंकि जब 1997 में स्वैच्छिक आय घोषणा की गई थी, उसमें सबके लिए 30 प्रतिशत टैक्स देने का प्रावधान था। इस साल के बजट में इसकी घोषणा करने के बाद वित्तमंत्री ने कहा था कि पुरानी स्कीम में जो ईमानदारी से टैक्स दे रहा था वो भी तीस प्रतिशत दे रहा था, और जो काला धन घोषित कर रहा था उसे भी 30 प्रतिशत का टैक्स देना था। मौजूदा सरकार की नीति में काला धन घोषित करने वालों पर 45 प्रतिशत टैक्स लगेगा।
अब इस दलील से क्या कोई योजना एमनेस्टी स्कीम हो जाती है। क्या 30 की जगह 45 फीसदी कर देने से एमनेस्टी स्कीम हो जाती है। सरकार कहती है हो जाती है। सरकार ने कोई लक्ष्य तो नहीं रखा है, मगर 28 दिन हो गए कोई खास बड़ी रकम सामने नहीं आई है। कई बार आखिरी हफ्तों में ज्यादा भीड़ देखी जाती है। अब सवाल है कि ऐसी योजनाओं से वाकई काला धन बाहर आ जाएगा।
पिछले साल जुलाई से सितंबर तक 3 महीने के लिए कंप्लाएंस विंडो खोली गई। उसमें से सिर्फ 4,147 करोड़ मिला और 638 ऑफेंडर्स। इस पर अगर 60 फीसदी टैक्स लगा दें तो सरकार को कर राजस्व के रूप में 2,488 करोड़ रुपये ही मिले। कोई बड़ी रकम तो नहीं है ये। जबकि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि 10 लाख करोड़, जो बाहर के देशों में जमा है। जब विदेशों से नहीं निकला तो लोगों ने कहा कि असली काला धन तो देश में जमा है। कई अखबारों ने लिखा है कि नई योजना से 1000 करोड़ से ज्यादा नहीं मिलने वाले हैं। 1000 करोड़ के लिए इतना अभियान चलेगा तो फायदा क्या।
केंद्र सरकार ने काला धन पकड़ने के कुछ और भी उपाय किए हैं। दो लाख रुपये से ज्यादा की खरीदारी करने पर पैन नंबर देना होता है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पिछले दिनों खबर आई थी कि इस फैसले के कारण 16 हज़ार करोड़ के लग्ज़री मार्केट में बिक्री कम हो गई है। जुलर्स एसोसिएशन ने भी लंबे समय तक सरकार के इस फैसले के खिलाफ अभियान चलाया मगर सरकार टस से मस नहीं हुई।
This Article is From Jun 28, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : काले धन पर सरकार के अल्टीमेटम का कितना लाभ?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 28, 2016 21:35 pm IST
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Published On जून 28, 2016 21:32 pm IST
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Last Updated On जून 28, 2016 21:35 pm IST
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