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This Article is From Dec 23, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : कीर्ति आजाद को भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने की सजा?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 26, 2015 22:01 pm IST
    • Published On दिसंबर 23, 2015 21:22 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 26, 2015 22:01 pm IST
कीर्ति आज़ाद को सस्पेंड कर दिया गया है। इस पर आने से पहले हम आपको शत्रुघ्न सिन्हा के साथ लॉन्ग ड्राईव पर ले चलते हैं। बागी और विरोधी किस पार्टी में नहीं होते, लेकिन ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो विरोधी तो होते हैं, मगर लगते आलोचक जैसे हैं या कह सकते हैं कि आलोचक होते हैं मगर लगते विरोधी जैसे हैं। विरोध करते-करते बग़ावत कर जाना, बग़ावत करते करते व्यक्तिगत नहीं हो जाना, इन बारीक अंतरों को कोई शत्रुघ्न सिन्हा से सीखे। राजनीति में बहुत कम अनुशासित विरोधी होते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा मौजूदा राजनीति के अकेले अनुशासित विरोधी हैं।

उनके अभिनय में अभिनय से ज़्यादा ठसक का बारीक अंदाज़ अतिरिक्त रूप से पसंद आता है। स्वाभाविक रूप से ऊंची मगर कई बार टेढ़ी सी लगने वाली गर्दन बताती है कि ये शख्स पर्दे पर सिर्फ अभिनय के लिए नहीं आया है। बहुत कम अभिनेता हुए हैं जो पर्दे पर अपनी पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। अमिताभ भले इलाहाबाद के हैं लेकिन पर्दे पर वे इलाहाबादी या बनारसी नहीं हैं। शत्रुघ्न सिन्हा को यू हीं नहीं बिहारी बाबू कहा गया होगा। उनकी किताब आने वाली है जिसका नाम है ख़ामोश। इतने संक्षिप्त संवाद से शायद ही कोई इतना लोकप्रिय हुआ हो। एक ईंच कपड़े से सिन्हा साहब ने धोती ही बना ली।

शत्रु खामोश करा रहे हैं या किसी की खामोशी तोड़ना चाहते हैं। उनके हाल के बयानों और ट्वीट की तरफ लौटा यह समझने के लिए कि यह शख्स आखिर क्या बला है। मेरी उनसे कभी मुलाकात नहीं है लेकिन वे बीजेपी में रहते हुए आराम से अरविंद केजरीवाल से मिल आते हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल आते हैं। बिना व्यक्तिगत हुए व्यक्ति का नाम ले लेते हैं।

दिल्ली चुनावों के दौरान किरण बेदी की तारीफ करते हैं तो केजरीवाल को भी बेहतर बता देते हैं। हमारा विरोधी हमारा राजनीतिक दुश्मन नहीं है, ऐसा कहकर वे अपने साथियों को कंफ्यूज़ कर देते हैं और विरोधी का हौसला बढ़ा देते हैं। दिल्ली चुनाव के वक्त कहते हैं कि किसी पत्रकार बंधु ने पूछा था कि क्या केजरीवाल ने अपनी ताकत का अहसास करवा दिया है तो मैं कहूंगा कि यकीनन ताकत का अहसास करवाया है। अगर नहीं करवाया होता तो आप मुझसे ये सवाल नहीं कर रहे होते। इन जवाबों से बीजेपी को गुदगुदी हुई या खुजली पता नहीं। सोशल मीडिया पर हमला होता है तो अपने समर्थकों के लिए बयान देते हैं कि परवाह मत कीजिए। मैं मज़बूती से बीजेपी में हूं। तब ज्वाइन किया था जब पार्टी के पास बहुत कम सांसद थे। मैं बिना डिमांड, कमांड, कंपलेन और एक्सपेक्टेशन के पार्टी में बना हुआ हूं लेकिन अपने स्वाभिमान से समझौता कर नहीं।

एक ऐसे समय में जब सारे नेता पार्टी लाइन बोल रहे हों, शत्रुघ्न सिन्हा अपनी लाइन चलाते नज़र आए। 25 अगस्त को जब खबर चली कि बीजेपी सिन्हा के ख़िलाफ कार्रवाई कर सकती है तो उनका बयान आता है कि मैं ग़ैर अधिकारिक रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करूंगा। फिर भी किसी को न्यूटन के तीसरे नियम को नहीं भूलना चाहिए। हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।

पोलिटिक्स में फिजिक्स की गुंज़ाइश खोज रहे हैं या चेतावनी दे रहे हैं। वे अपने बयानों से खुद को पार्टी के लिए असहनीय नहीं बनाते, उल्टा पार्टी को इस बात का अभ्यास कराते रहते हैं कि उन्हें लेकर वो कहां तक सहनशील हो सकती है। अब बीजेपी की सहनशीलता देखिये। बिहार चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम डालती है, लेकिन पहले से ही स्टार रहे इस प्रचारक को प्रचार का काम नहीं देती।

नीतीश जब बिहारी बनाम बाहरी का नारा देते हैं तो शत्रुघ्न सिन्हा ट्वीट करते हैं कि बिहारी बनाम बाहरी का सवाल नहीं है। लेकिन आपके अपने बिहारी के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है। कैलाश विजयवर्गीय जब उन्हें अपशब्द कहते हैं तो वे हाथी चले बाजार डैश डैश भौंके हज़ार ट्वीट कर देते हैं।

पता नहीं चलता कि शत्रु भैया हल्की चिकोटी काटते हैं या बकोट लेते हैं। नोच लेते हैं। वे दूसरे बाग़ियों का भी ख़्याल रखते हैं। जैसे ही खबर आई कि सांसद राजकुमार सिंह को पार्टी नेतृत्व से फटकार मिली है तो तब सिन्हा का बयान आता है कि आर के सिंह, पूर्व गृह सचिव, बिहारी शेर बिल्कुल सही हैं। किसी में हमें फटकारने की हिम्मत नहीं है।
इसी बयान में हल्के से डीएनए घुसा देते हैं कि किसके डीएनए में हिम्मत है कि कार्रवाई करे। बिहार चुनाव के संदर्भ में आप डीएनए के महत्व को जानते ही होंगे। प्रधानमंत्री को कई बार Dashing, Dynamic, Hero कहते हैं। समझना मुश्किल है कि तारीफ करते हैं या तंज कसते हैं। जब अरविंद केजरीवाल ने आपत्तिजनक शब्दों का इस्तमाल किया तो झट से अंग्रेज़ी में ट्वीट कर देते हैं कि हमारे डैशिंग, डायनेमिक, एक्शन हीरो पीएम के बारे में दिल्ली सीएम की टाली जा सकने वाली भाषा को मंज़ूर नहीं करता। लेकिन खुद के भीतर झांकने की ज़रूरत है। कैसे, क्यों और किसने शुरू किया। बुधवार यानी 23 दिसंबर को भी जब यह खबरें उड़ीं कि कीर्ति आज़ाद के ख़िलाफ पार्टी कार्रवाई कर सकती है तो शत्रुघ्न सिन्हा चुप नहीं रहे। उनका बयान आया कि कीर्ति आज़ाद आज के हीरो हैं। दोस्तों से विनम्र अपील है। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ लड़ने वाले मित्र के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई न करें। कई बार न्यूटन के तीसरे नियम को कोट किया है। लगता है कि असमय कार्रवाई उल्टा पड़ जाएगी। दुख होता है कि \\\ Party with a Difference, Party with Differences हो गई है।

बीजेपी ने अपने 'आज़ाद शत्रु' को सस्पेंड कर दिया, अब देखना है कि पार्टी में शत्रु कब तक अजातशत्रु रह पाते हैं। बुधवार को उन्होंने वित्त मंत्री की उस ईमानदारी को चुनौती दे दी, जिसकी ओट में बीजेपी नेता जेटली का बचाव कर रहे थे। मैं आपको शत्रुघ्न सिन्हा के बयान का वो हिस्सा दिखाना चाहता हूं, जिसमें उनके स्वर संतुलित हैं और भाव बिल्कुल आक्रामक नहीं।

शत्रुघ्न सिन्हा पर इतना लंबा इसलिए बोला कि मुझे वे विरोध स्कूल के माहिर मास्टर लगते हैं। हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा कहते हैं कि पार्टी सिन्हा के बयानों को गंभीरता से नहीं लेती। क्या संतुलित होकर बोलना राजनीति में ख़ुद को निरर्थक कर लेना है। तो क्या भावी विरोधियों को कीर्ति की तरह जोखिम उठाते हुए सस्पेंड हो जाना चाहिए। क्या बीजेपी ने सस्पेंड कर कीर्ति आज़ाद को हीरो बना दिया।

आठ नौ साल से कीर्ति आज़ाद डीडीसीए में भ्रष्टाचार को लेकर लड़ते बोलते रहे हैं। अरुण जेटली का नाम लेते रहे हैं। तब तो सस्पेंड नहीं हुए। बीजेपी ने आरोप लगाया कि वे इस मामले को लेकर यूपीए काल में सोनिया गांधी से भी मिले। कीर्ति ने कहा कि शिष्टाचार मुलाकातें हुईं लेकिन जांच को लेकर सोनिया गांधी से नहीं मिला। पटियाला कोर्ट में जब जेटली दल-बल के साथ मानहानि का मुकदमा करने पहुंचे तब भी सवाल उठा कि कीर्ति क्यों नहीं हैं इसमें। मंत्रियों ने कहा कि उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया है।

जेटली का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री जैन हवाला कांड में आडवाणी के बेदाग निकलने से तुलना कर गए। इस बयान से आडवाणी जी के इस्तीफे की तरह जेटली के इस्तीफे की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। उधर आम आदमी पार्टी ने भी बुधवार को जेटली के इस्तीफे की मांग को लेकर घेराव किया और पुलिसिया जलबौछारों का सामना किया। अंतर्राष्ट्रीय हाकी संघ के पूर्व अध्यक्ष के पी एस गिल भी इस विवाद में कूद गए हैं। गिल ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को पत्र लिखकर हाकी इंडिया पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। हाकी इंडिया के संदर्भ में जेटली पर आरोप लगाए गए हैं। क्या इस विवाद में अब जेटली व्यक्तिगत होने लगे हैं। कीर्ति को निकाल कर बीजेपी ने किरकिरी कराई है या अपनी अपकीर्ति बढ़ाई है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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