महाराष्ट्र के कई ज़िलों में पानी नहीं है। जहां थोड़ा बहुत पानी है वहां पुलिस का पहरा है कि कहीं पानी को लेकर कानून व्यवस्था न बिगड़ जाए। लातूर ज़िले में दो महीने के लिए धारा 144 लगा दी गई है। परभनी में एक महीने के लिए धारा 144 लगा दी गई है। कई जगहों पर पानी के घड़ों की कतार एक किलोमीटर से भी लंबी हो गई है। लोग छह से दस घंटे तक कतार में खड़े हैं। लोग का मतलब महिलाएं। पुरुष भी इस संकट का शिकार हैं लेकिन ज्यादातर तस्वीरों में आप महिलाओं और बच्चों को इससे जूझते दिखेंगे।
औरंगाबाद के पिंपरी में घंटों से कतार में इंतज़ार कर रही महिलाओं का सब्र टूट गया। सबके हाथ टैंकर के पाइप पर हैं। एक ड्रम भरता नहीं है कि भरने से पहले पाइप को लेकर खींचातानी हो जा रही है। पानी को लेकर ऐसी तस्वीरें आपको दिल्ली या अन्य शहरों के ग़रीब इलाकों में मिल जाएंगी लेकिन मराठवाड़ा का यह संकट बता रहा है कि इस संकट ने उनकी ज़िंदगी तबाह कर दी है। लातूर में तो पानी के टैंकरों पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया है। लातूर नगरपालिका ने पानी के सभी 6 टंकियों पर होम गार्ड तैनात कर दिये हैं। एक पानी टंकी के पास पुलिस चौकी ही बना दी गई है। पानी को लेकर झगड़ा न हो जाए, पुलिस की टीम लगातार गश्त पर बताई जा रही है। कलक्टर को आदेश देना पड़ा है कि कुओं और पानी भरने के स्थान पर पांच से ज्यादा लोग मौजूद नहीं हो सकते हैं। मराठवाड़ा के सभी जलाशयों का पानी लगातार कम होता जा रहा है। कइयों में तो पानी है ही नहीं।
मुंबई से लातूर 483 किमी है और पहुंचने में 9 घंटे लग जाते हैं लेकिन ठाणे तो मुंबई से मात्र 27 किमी दूर है। ठाणे और आस पास के इलाके में मार्च के महीने से ही पानी की कटौती शुरू हो गई थी। प्रशासन का मानना है कि बारिश नहीं हुई है। जो बचा हुआ पानी है उसी से काम चलाना है। ठाणे, मुम्ब्रा, कलवा, दीवा और नवी मुंबई में तो पिछले एक महीने से 40 फीसदी पानी नहीं आ रहा है। ठाणे में अगले साठ घंटे तक पानी ही नहीं आएगा यानी ढाई दिन से ज्यादा समय बिना पानी के गुज़ारना होगा। ये उस इलाके का हाल है जिसे झीलों का शहर कहा जाता है। यहां 30 झीलें हैं। पिछले चार दशकों में ठाणे को सबसे खराब सूखे का सामना करना पड़ा।
हमारी सहयोगी सांतिया ने जाकर देखा कि वहां कई महिलाएं बर्तन और घड़े लेकर पानी की तलाश में लोकल ट्रेन से जा रही हैं। कहीं मंदिर में तो कहीं सूखने से बच गए तालाबों से पानी मिलने की उम्मीद में। प्रभा पाटिल अपने घर से 15 मिनट की दूरी तय कर दिवा स्टेशन आती हैं। यहां से फिर कलवा, मुंब्रा, या फिर जहां पानी मिल जाए चली जाती हैं। 20 लीटर पानी ही उठा सकती है लेकिन इसके लिए उन्हें रोज़ दस किमी की दूरी तय करनी होती है। पानी भरने के अलावा वो बच्चों को स्कूल छोड़ती है, स्कूल से घर लाती है और घर का सारा काम भी करती है। मैं इन्हें भारत माता कहकर भारत माता की बेतुकी राजनीति के दायरे में नहीं लाना चाहता लेकिन ये तो कोई भी समझ सकता है कि पानी का संकट मतलब औरतों पर संकट होता है। अब ये औरतों को नेताओं से पूछना है कि उनकी तकलीफ का समाधान क्या है। इस बीच टैंकर माफियाओं की चांदी हो गई है, अजीब हाल है इस संकट में लगता है माफिया जी आसमान से ही टैंकर में पानी डाउनलोड कर लेते हैं और बेचने चले आते हैं। अमीर मोहल्लों की तो समझ आती है लेकिन गरीब इलाकों में टैंकर माफिया पानी बेच कैसे लेते हैं। क्या हम बुनियादी सवाल करना भी भूल गए हैं कि पानी उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है। किसकी इजाज़त से गांवों और गरीबों की बस्ती में पानी बिक रहा है।
प्रकृति की वजह से यहां का संकट है, प्रशासन की वजह से संकट गहराया है या इस संकट को हम सबने मिलकर बड़ा किया है। सूखा जब भी आता है अपने लक्षणों को बताता आता है। लातूर के अतुल देओलगांवकर ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में 9 साल से सूखा है, वहां तो टैंकरों का माफिया नेटवर्क नहीं है। चार साल से सूखे से जूझ रहा कैलिफोर्निया भी ऑस्ट्रेलिया से उपाय पूछ रहा है। अतुल ने एक और सवाल किया है कि संकट इतना गहरा है कि लोग देख भी नहीं रहे हैं कि पानी की क्वालिटी कैसी है। कैसा भी पानी हो लोग टूट पड़ रहे हैं।
लातूर ज़िले की आबादी है 11 लाख और शहर की आबादी है 5 लाख और यहां मकानों की संख्या है 50,000। शहर में फरवरी के बाद से नलों में पानी नहीं आया है। पहले भी महीने में एक दिन आता था और अब वो भी बंद है। सोचिये महीने में एक दिन पानी आए तो आप आईपीएल का मैच देखेंगे या पानी के लिए लाइन में लगेंगे। लातूर को कवर कर रहे पत्रकारों से बात कर पता चला कि पानी भरने के इंतज़ार और लाने के झगड़े और तनाव के कारण मराठवाड़ा में 35 लोगों की मौत हुई है। टैंकर के नीचे लोग आ गए हैं तो बच्चे कुएं में गिर गए है। हमने लातूर के एक निजी अस्तपाल के डॉक्टर से बात की। उन्होंने कहा कि अस्पतालों के ओपीडी में चालीस से पचास फीसदी मरीज़ों की संख्या कम हो गई है। उनके पास पैसे नहीं है और दूसरा वे पानी की कतार में लगे हैं। इमरजेंसी की हालत में ही अस्पताल आ रहे हैं। यही नहीं पानी के सकंट के कारण कुछ अस्पतालों में पिछले दिनों ऑपरेशन भी बंद करना पड़ा था। लातूर में निगम और स्वयंसेवी संगठनों के करीब डेढ़ सौ टैंकर हैं जिनसे मुफ्त में पानी दिया जा रहा है। लेकिन यहां हज़ार या पंद्रह सौ टैंकर पानी बेच भी रहे हैं। 500 रुपये में जो टैंकर 6000 लीटर पानी देता था वो अब 1000 या 1200 रुपये में दे रहा है। जो नहीं ले सकते उन्हें टेंपो में 500 से 200 लीटर पानी बेचा जा रहा है। पांच से सात लीटर का घड़ा दो से तीन रुपये में बिक रही है।
लातूर में हर दिन पचास लाख रुपये का पानी बेचा जाता है। सितंबर में ही जब बारिश कम हुई थी तभी अंदाज़ा हो गया था कि सूखा आने वाला है। प्रेस की खबरों के मुताबिक सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों ने इलाके का दौरा तो करना शुरू कर दिया था तो फिर दिक्कत कहां हो रही है। क्या हमारे पास इस सकंट से सामना करने के लिए समझबूझ नहीं है या हम जो कर रहे हैं वो स्थायी समाधान नहीं है। खेती पर आए इस ज़बरदस्त संकट के कारण मराठवाड़ा के किसानों की स्थिति और भी खराब होती जा रही है। इंडिया स्पेंड नाम की वेबसाइट ने बताया है कि 2015 में महाराष्ट्र में 3,228 किसानों ने आत्महत्या की है। राज्यसभा में पेश तथ्यों के अनुसार हर दिन यहां 9 किसान खुदकुशी के लिए मजबूर हो रहे हैं। मराठवाड़ा में जनवरी में 89 और फरवरी में 50 किसानों ने आत्महत्या की है।
महाराष्ट्र में सूखा गर्मी बढ़ने से नहीं आया है बल्कि जनवरी फरवरी से ही इसका असर दिखने लगा था। केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती ने भी कहा था कि वक्त आ गया है कि हम सब अब साफ किये हुए पानी का इस्तेमाल करें। प्राकृतिक जल का इस्तेमाल सिर्फ सीमित कामों के लिए हो। उमा भारती पानी के इस्तेमाल के लिए कानून बनाने की बात कर रही हैं। लेकिन पानी के प्रबंधन को लेकर भी कठोर कदम उठाने की ज़रूरत है। आज ही बंबई हाई कोर्ट में बुधवार को लोकसत्ता आंदोलन की याचिका पर सुनवाई हो रही थी कि कई इलाकों में पानी नहीं है। सरकारी अस्पतालों को बंद किया जा रहा है। इसलिए पानी का इस्तेमाल सबसे पहले पीने के लिए होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आईपीएल के लिए पिच के रखरखाव में जो पानी लगता है, इस वक्त की आपराधिक बर्बादी से कम नहीं है। अदालत ने कहा कि लोग महत्वपूर्ण हैं या क्रिकेट मैच। कोर्ट ने सुझाव दिया कि महाराष्ट्र में होने वाले आईपीएल के 20 मैचों को दूसरे राज्य में ले जाया जाए जहां सूखा नहीं है। मुंबई क्रिकेट संघ का कहना था कि वे पीने का पानी इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसके लिए टैंकर से पानी मंगाया जाता है।
उसी टैंकर के पानी के इंतज़ार में महाराष्ट्र के गांव गांव में लोग घंटों इंतज़ार करते हैं। टैंकर का पानी भी पीने का नहीं होता लेकिन लोग पीने के लिए मजबूर हैं। आखिर पिच के रखरखाव में कितना पानी लगता होगा। हमारे सहयोगी विमल मोहन ने दिल्ली के कोटला मैदान से पता कर बताया कि मैदान में घास को बनाए रखने के लिए 30 से 40 हज़ार लीटर पानी की ज़रूरत होती है। ये पानी एक दिन छोड़कर दिया जाता है। मैच के तीन दिन पहले पिच पर 100 से 200 लीटर पानी देना पड़ता है। स्वराज अभियान की याचिका पर कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। स्वराज अभियान सर्दी के दिनों से हंगामा कर रहा है देश के कई राज्यों में सूखे के हालात हैं मगर जागने के लिए हमने गर्मी का इंतज़ार किया। मीडिया ने फरवरी मार्च के महीने में बुंदेलखंड के सूखे की खबरों को उठाया भी लेकिन हम सभी नेता से लेकर मीडिया तक सूखे को लेकर सामान्य होते चले जा रहे हैं। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र इस मामले को विपरीत तरीके से ना ले क्योंकि प्रशांत भूषण सरकारी कामकाज पर सवाल उठाते हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल कहने से कुछ नहीं होता कि इतने हज़ार करोड़ रुपये योजना के लिए आवंटित किए हैं। जो कह रहे हैं उसका आधार भी होना चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि मनरेगा के तहत काम करने वाले लोगों का पैसा बकाया क्यों है। सरकार ये कहना चाहती है कि पिछले साल जिस मज़दूर ने काम किया, उसे पैसा इस साल मिलेगा।
मराठवाड़ा से लेकर 9 राज्यों तक में जो सूखा है वो ऊपर से आया है या उसकी तैयारी हमने नीचे से की है। सुधार के नाम पर जो हम कर रहे हैं वो मुआवज़ों और ट्रेन से पानी सप्लाई करने से आगे क्या हो रहा है क्या जो हो रहा है वह सही रास्ता है।
This Article is From Apr 06, 2016
सूखा ऊपर से आया है या उसकी तैयारी हमने नीचे से की है?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 06, 2016 21:24 pm IST
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Published On अप्रैल 06, 2016 21:19 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 06, 2016 21:24 pm IST
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