नमस्कार मैं रवीश कुमार... दिबाकर बनर्जी की एक फिल्म आ रही है 'डिटेक्टिव व्योमकेश बख्शी'। फिल्म का बिल्कुल प्रचार नहीं कर रहा पर संदर्भ कुछ ऐसा ही कि ज़िक्र आ गया। रेडियो पर अचानक सुना कि फलाने नंबर पर मिस्ड कॉल मारो, डिटेक्टिव बनो और रोज़ एक लाख जीतो। यानी मिस्ड कॉल से आप जासूस यानी डिटेक्टिव बन सकते हैं। वैसे आप मिस्ड कॉल से सिर्फ डिटेक्टिव ही नहीं, बल्कि किसी राजनीतिक दल का सदस्य भी बन सकते हैं। आप जानते हैं कि पिछले 1 नंवबर से बीजेपी ने दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए मिस्ड कॉल का एक अभियान चलाया हुआ है।
हालांकि इस अभियान को एक और महीने के लिए बढ़ा दिया गया, मगर मिस्ड कॉल के कारण बीजेपी दावा कर रही है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। आठ करोड़ नब्बे लाख से ज्यादा हो गई है और अब इसे 12 करोड़ तक ले जाना है। 2014 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के सदस्यों की संख्या आठ करोड़ 67 लाख थी। वैसे 2014 में बीजेपी को 17 करोड़ वोट मिले थे और कांग्रेस को 10 करोड़। बीजेपी दावा करती है कि वैज्ञानिक तरीके से मिस्ड कॉल के ज़रिये सदस्य बनाए गए हैं, जिसमें हेराफेरी नहीं हो सकती है।
गांधी के ज़ोर देने पर 1920 में कांग्रेस की सदस्यता के लिए चार आने का प्रावधान जोड़ा जाता है। 1930 के दशक में इसकी सदस्यता चालीस लाख के करीब हो जाती है। उस वक्त तक कांग्रेस भी दुनिया की एक बड़ी पार्टी बन गई थी। वो कांग्रेस तो आज नहीं है, लेकिन जो है उसने भी सदस्यता अभियान के लिए मोबाइल एप्स बनाया है। इसके अलावा वेबसाइट और फेसबुक के ज़रिये भी सदस्य बन सकते हैं। कांग्रेस संख्या की जगह विचारधारा की बात कर रही है। इस वक्त कांग्रेस के कोई तीन करोड़ सत्तर लाख सदस्य बताये जाते हैं।
कभी कांग्रेस ने चार आना सदस्यता की शुरुआत की थी तब चरखा कातना और खादी पहनना भी ज़रूरी था। जिसके जवाब में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग की सदस्यता के लिए दो आना कर दिया था। पार्टियों के मेंबर बनने का अपना एक दिलचस्प इतिहास है। 2006 के टेलिग्राफ अखबार में एक रिपोर्ट मिली है कि यह बात अर्जुन सिंह को मालूम थी कि पहली बार अध्यक्ष बनते वक्त सोनिया गांधी चार आना सदस्य नहीं थीं।
अक्सर हम सदस्यता अभियानों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं पर इस मिस्ड कॉल अभियान का शुक्रिया कि इसी बहाने इस पर बात करने का मौका आया। जो ग़ायब है, वो भी गिना जा रहा है। वैसे मिस्ड कॉल से पहले पर्ची वाले सदस्य भी गायब ही रहते हैं। क्या मिस्ड कॉल मेंबर हमारी राजनीतिक प्रणाली में कोई नई प्रजाति है।
2010 के बुराड़ी सम्मेलन में राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस की सदस्यता के लिए ज़रूरी खादी पहनने की शर्त की जगह हैंडलूम जोड़ देना चाहिए। लेकिन दिसंबर, 2010 के बुराड़ी प्लेनरी सेशन में कुछ संशोधन किए गए थे। वेबसाइट पर मौजूद संविधान के अनुसार आदतन चरखा बुनने आना चाहिए, मगर नियम में यह जोड़ दिया गया कि स्वेदशी चीज़ों का इस्तमाल करने वाला हो, ग्राम उद्योग को बढ़ावा देने वाला हो और सेकुलर हो। यानी एक तरह से चरखा कातने की शर्त को कमज़ोर कर दिया गया। बीजेपी के सदस्यता अभियान में पंचनिष्ठाओं का ज़िक्र है। राष्ट्रीयता, लोकतंत्र, सामाजिक आर्थिक समस्याओं के प्रति गांधीवादी दृष्टिकोण के आधार पर समतायुक्त समाज की स्थापना और सकारात्मक सेकुलरवाद। अब जिन लोगों ने मिस्ड कॉल मेंबरी हासिल की है, उन्हें इनका मतलब या मकसद मालूम है।
मिस्ड कॉल मेंबरी को लेकर फर्ज़ीवाड़े या गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, लेकिन यही एकमात्र पक्ष नहीं है। मिस्ड कॉल मेंबर क्या दलों के लिए ग्राहक के समान हैं, जैसे 'व्योमकेश बख्शी' वाले मिस्ड कॉल से अपनी फिल्म के लिए ग्राहक बना रहे हैं। कभी मिस्ड कॉल के ज़रिये आम आदमी पार्टी ने लोकपाल बनाने का अभियान चलाया था और जब खुद अपनी पार्टी के लोकपाल को हटाने की बारी आई, तो लोकपाल जी को फोन करना तो दूर मिस्ड कॉल भी नहीं दिया।
मिस्ड कॉल मेंबर की प्रतिबद्धता क्या है, पार्टी के आंतरिक मामलों में उसके अधिकार क्या है, यह सब सवाल करेंगे तो आप आम आदमी पार्टी टाइप की अंतहीन बहस शुरू हो जाएगी। जवाब मिलेगा कि कहीं है जो हमारे यहां ढूंढ रहे हैं। सब आंतरिक लोकतंत्र की मात्रा प्रतिशत में ही बताते हैं कि उनसे ज्यादा है। क्या हम सदस्य, कार्यकर्ता, वोलेंटियर में फर्क को समझते हैं या इनमें कोई फर्क है ही नहीं।
अगर परिभाषा में ही दिलचस्पी है, तो 18 फरवरी, 2014 को राज्यसभा से विदा लेते वक्त बीजेपी के सांसद प्रकाश जावड़ेकर की एक बात मुझे अच्छी लगी। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि पार्टी का कार्यकर्ता बने रहना अपनी निष्ठा पर होता है। उसे कोई छिन नहीं सकता। ये परमानेंट पद है। मैं सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को देखता हूं मुझे एक विचार आता है हमेशा। मैं कहता हूं कि क्या फर्क है आम आदमी में और कार्यकर्ता में। फर्क ये है कि कार्यकर्ता के मन में अपना संवेदनशीलता होती है। खुद के पांव में कांटे चुभे तो कोई भी दुखी होगा। लेकिन दूसरे के पांव में कांटा चुभे तब वो जो दुखी होता है, वो कार्यकर्ता होता है। इसलिए जो कार्यकर्तापन है, वो मुझे बेहद महत्वपूर्ण लगता है।
प्रकाश जावड़ेकर के ही शब्दों में क्या मिस्ड कॉल वाले मेंबर में वो कार्यकर्तापन है। क्या वो मेंबरपन है। सवाल है कि जब सदस्य सक्रिय नहीं है, तो उसकी गिनती से हासिल क्या है। इसी बहाने हमने गूगल में कुछ लेखों की छानने की कोशिश की। अक्टूबर, 2010 के दि इकोनोमिस्ट के एक अंक में पार्टियों की सदस्य संख्या पर एक लेख मिला। इस लेख में युनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स के प्रोफेसर पॉल व्हीटले ने 36 देशों की पार्टियों का अध्ययन कर बताया था कि जब राजनीतिक भागीदारी बढ़ती है, तो लोक प्रशासन बेहतर होता है। इस बात को उन्होंने विश्व बैंक के एजेंडे से भी जोड़ते हुए कहा कि पार्टी का आधार मज़बूत होने पर नेता को रिफॉर्म यानी सुधार लागू करने में मदद मिलती है। प्रोफेसर साहब ने कहा कि ब्रिटेन में जब मिलीजुली सरकार बनी तो कंजरवेटिव पार्टी के एक नेता ने इससे उबरने के लिए 10 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य तय किया। वैसे सदस्यों की संख्या दो लाख भी नहीं हुई। क्योंकि इन सदस्यों को कोई अधिकार नहीं दिये गए।
इसी लेख में एक फ्रांसिसी विद्वान ने काडर बेस्ड पार्टी और मास बेस्ड पार्टी में अंतर किया है। काडर बेस्ड पार्टी में चोटी के नेताओं के पास सत्ता होती है, मास बेस्ड पार्टी में जमीनी कार्यकर्ताओं के पास अधिकार होते हैं। जमीनी कार्यकर्ता नेता चुनते हैं। अब कहां ऐसा होता। राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस में ऐसा प्रयोग किया था मगर वो आधा-अधूरा ही रहा।
इस लेख में एक बात दिलचस्प लगी। ज्यादातर पार्टियां उन बाहरी लोगों के प्रभाव को स्वीकार कर लेती हैं, जो चंदा देते हैं, न कि उन कार्यकर्ताओं की बात सुनती हैं, जो अपना वक्त और पसीना बहाते हैं। तो क्या सदस्य संख्या रिफॉर्म की ताकत हासिल करने के लिए है या मिस्ड कॉल मेंबर वाकई मेंबर है, नंबर नहीं है। तो फिर चुनाव के बाद आम कार्यकर्ता रोता क्यों रहता है। प्राइम टाइम में आज इसी पर बात करते हैं।