अरुंधति रॉय का नाम सुनते ही व्हाट्स ऐप पर चलने वाली फेक यूनिवर्सिटी के छात्रों के मन में क्रोध के विविध स्वरूप फूट पड़ते हैं. इसे आम बोलचाल में व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी कहते हैं जहां झूठ की पढ़ाई होती है और जहां पढ़ने वाला छात्र कसम खाता है कि झूठ के अलावा कभी किसी को सत्य नहीं समझेगा. झूठ ही सत्य है इसके लिए पॉलिटिकल ट्रेनिंग चलती रहती है. इस यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भीड़ बनाने में राष्ट्रीय भूमिका अदा की है जिसकी सबसे बड़ी कामयाबी है जहां तहां लोगों को घेरकर मार देना. इन दिनों आप झारखंड के मुख्यमंत्री, पुलिस प्रमुख किसी के बयान सुनिए, लगता है कि वे व्हाट्स ऐप की अफवाहों से खासे परेशान हैं.
हुआ यूं कि भाजपा सांसद परेश रावल ने ट्वीट किया कि अरुंधति राय को जीप के आगे बिठाकर पत्थरबाजों के सामने ले जाना चाहिए. ट्वीटर पर बहस शुरू हई और जल्द ही यह बहस टीवी स्टूडियो में पहुंच गई. चंद घंटे में परेश रावल के गुस्से का राष्ट्रीयकरण हो गया. एंकर लोग क्रोधित अंग्रेज़ी में ललकारने लगे. गनीमत है कि आज भारत में ऐसे एंकर हैं जिन्हें देखकर लगता है कि ये एंकर दूसरे विश्व युद्ध के समय क्यों नहीं थे. मुझे तो इन एंकरों में साक्षात राष्ट्र प्रहरी दिखाई देते हैं. हिमालय के दर्शन होते हैं. लगता है कि ये न रहें तो हमारे सनातन मुल्क को जाने कौन उठाकर ले जाए. इसलिए मैं तो इनकी वंदना करने लगा हूं. दूध, घी, चंदन और फूल चढ़ाना बाकी है. आप भी इन एंकरों की नित्य पूजा कीजिए वर्ना आपके घर में मकड़ी रोज़ जाला बनाने लगेगी.
टीवी और ट्वीटर की बहस में सब कुछ ठीक चल रहा था क्योंकि परेश रावल ने भी किसी दि नेशनलिस्ट फेसबुक पेज का लिंक शेयर कर दिया था जिसके मुताबिक अरुंधति रॉय ने कश्मीर दौरे के दौरान ऐसा कोई बयान दिया था कि भारत सात लाख की जगह सत्तर लाख सेना लगा दे, फिर भी कश्मीर को अपना नहीं बना सकेगा. एक दिन तक माहौल गरम रहा मगर दि वायर नाम की वेबसाइट ने सारा खेल बिगाड़ दिया. पता चला कि अरुंधति राय के जिस बयान पर मीडिया कसरत कर रहा था, वो बयान अरुंधति रॉय ने दिया ही नहीं.
दि नेशनलिस्ट पाकिस्तान से चलने वाली एक वेबसाइट है. वायर ने चेक किया कि इस पर जो खबर है वो भारत से चलने वाली वेबसाइट postcard.news से आई है. इस वेबसाइट की चर्चा पहले भी फेक न्यूज़ के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए हो चुकी है. पोस्टकार्ड डॉट न्यूज़ पर लिखा था कि अरुंधति ने भारतीय सेना और कश्मीर वाला बयान हाल ही में पाकिस्तानी अखबार टाइम्स आफ इस्लामाबाद को दिया. वायर को पता चला तो चलता ही गया. satyavijayi.com और theindianvoice.com पर भी छपा है. theresurgentindia.com, revoltpress.com, virathindurashtra.com जैसी वेबसाइट ने भी अरुंधति रॉय के बयान को छापा.
अरुंधति राय ने कहा कि ये सब बकवास है. वे हाल फिलहाल कश्मीर गई ही नहीं हैं. कश्मीर पर साल भर पहले आउटलुक पत्रिका में एक लेख लिखा था. उसके बाद से कोई बयान ही नहीं दिया है. हमने वायर की खोजबीन पर अपनी कोई खोजबीन नहीं की है लेकिन वायर की यह खोज तमाम अखबारों और चैनलों पर नहीं होगी, जहां आपने अरुंधति रॉय के नकली बयान को देखते हुए अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाया होगा. यहां तक कि मीडिया पर निगरानी करने वाली न्यूज़लौंड्री से भी चूक हो गई.
न्यूज़ लौंड्री ने किसी मंयक सिंह की गुस्से वाली प्रतिक्रिया फेयर आब्ज़र्वर नाम की वेबसाइट से उठाकर छाप दी. न्यूज़ लौंड्री और फेयर आब्ज़र्वर ने चीख चीखकर सफाई दी है ताकि उनके पाठकों को पता चल जाए कि गलती हुई है. फर्स्टपोस्ट पर नाज़िम नक़वी ने उसी फेक इंटरव्यू का हवाला देते हुए लिख दिया कि अरुंधति को भी तो ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, जबकि वो बोली ही नहीं थीं.
सोचिए किसी के खिलाफ उकसाना कितना आसान है. पाकिस्तान से चलने वाली वेबसाइट आपका, हमारा नाम लेकर कुछ भी लिख दे और लोग बावले हो जाएं. झारखंड में आप गौतम, गंगेश और गुंजन के पिता से पूछ लीजिए, उनकी आंखों के सामने भीड़ ने पत्थर से मारकर बेटों को खत्म कर दिया. नईम हलीम को भी ऐसे ही मारा. सांसद परेश रावल ने पत्र जारी किया है कि मुझ पर अरुंधति राय के ट्वीट को डिलीट करने का दबाव बनाया गया था वर्ना मेरा ट्वीटर एकाउंट ब्लॉक हो जाता. परेश रावल ने गलत खबर को ट्वीट करने पर अफसोस नहीं जताया है. वैसे भी अब बात मीडिया पर आ गई है कि उसने अरुंधति के बयान की जांच किए बगैर इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया.
अब आते हैं आज के विषय पर. मेजर गोगोई ने ही जीप पर फारूक अहमद डार को बिठा दिया तो बहस हुई कि ऐसा क्यों किया. डार तो पत्थर चलाने वालों में नहीं था बल्कि वो उन सात प्रतिशत लोगों में से था जिन्होंने श्रीनगर उपचुनाव में वोट किया था. जिस व्यक्ति का भारतीय लोकतंत्र में यकीन हो, उसका इस्तेमाल लोकतंत्र का विरोध करने वालों के सामने क्यों हों. सवाल उठे तो मेजर के समर्थन में ज़्यादा ही लोग आए. मेजर के समर्थन में पूरी सरकार खड़ी हो गई, क्या यह काफी नहीं था. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लेख लिखा, सम्मानित करने की मांग की. सेना और सेनाध्यक्ष मेजर के समर्थन में हैं. कश्मीर के हालात सामान्य नहीं हैं. मेजर के फैसले की मुश्किलों को समझा जा सकता है. सेना का अधिकारी मौके पर क्या फैसला लेगा ये तय तो नहीं हो सकता है. फिर भी इन पहलुओं पर बात हो सकती है. आप मेजर को बोलते देखिए कितने शांत तरीके से उन्होंने अपनी बात रखी. वे एंकरों की तरह चीख नहीं रहे. जिन्हें चुनौतियों का सामना करना है वे शांत हैं.
रामचंद्र गुहा ने बुधवार को ट्वीट कर कहा है कि सेना का यह आचरण उचित नहीं है. क्या इन दो-चार लोगों के ट्वीट का इतना असर होता है कि सेना को सफाई देने के लिए अपने सेवारत मेजर को मीडिया के सामने करना पड़ जाए. फिर बीजेपी-पीडीपी सरकार की पुलिस ने मेजर के खिलाफ एफआईआर क्या रामचंद्र गुहा से पूछकर किया था. बाकायदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने फेसबुक पेज पर इस एफआईआर की जानकारी दी थी. मेजर गोगोई ने कहा है कि डार पत्थर चलाने वालों को उकसा रहा था मगर डार के खिलाफ तो एफआईआर नहीं हुई है. क्या इससे सेना के मनोबल पर असर नहीं पड़ा. पूरी दुनिया में सेना को लेकर सवाल होते हैं,सम्मान भी उतना ही होता है. भारत की सरकार सेना का इस्तेमाल नहीं करती है मगर दुनिया भर में चुने हुए नेता सेना का इस्तेमाल करते हैं और झूठ के आधार पर करते हैं.
पिछले साल जुलाई में ब्रिटेन की संसद में सर चिल्काट कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई. इसका काम था यह पता करना कि 2003 के इराक युद्ध में ब्रिटेन के शामिल होने का फैसला क्या सही तथ्यों और सभी विकल्पों के आधार पर लिया गया था. 6000 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया कि ब्रिटेन ने युद्ध में शामिल होने से पहले शांति के विकल्पों का इस्तेमाल नहीं किया. तब ब्रिटेन के इस फैसले के खिलाफ वहां दस लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था. इस रिपोर्ट के बाद इराक युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों के परिवार वालों ने अपने पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को आतंकवादी कहा और सेना प्रमुखों ने ब्लेयर से कहा कि माफी मांगें. मीडिया कैसे रंग बदलता है उसका भी नमूना देखिए. 2003 में वहां के अखबार सन ने कहा था कि वो ब्लेयर का समर्थन करता है लेकिन सर चिल्काट की रिपोर्ट आई तो कवर पर लिखा कि वेपन ऑफ मास डिसेप्शन. मतलब जनता को धोखा देने का हथियार.
बुधवार को खबर आई कि पाकिस्तान वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने सियाचिन ग्लेशियर के पास अपनी सीमा में उड़ानें भरी हैं. भारतीय वायु सेना ने कहा है कि उसकी सीमा का अतिक्रमण नहीं हुआ है. कहीं तनाव के हालात तनाव से ज़्यादा तो नहीं हैं.
This Article is From May 24, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : झूठ पर लाठालाठी, मीडिया का आचरण और सेना का मनोबल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 24, 2017 22:19 pm IST
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Published On मई 24, 2017 22:19 pm IST
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Last Updated On मई 24, 2017 22:19 pm IST
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