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This Article is From Jun 30, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : सातवें वेतन आयोग पर नाराज़गी बढ़ी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 30, 2016 21:35 pm IST
    • Published On जून 30, 2016 21:35 pm IST
    • Last Updated On जून 30, 2016 21:35 pm IST
ये बात पूरी तरह से ग़लत है कि प्राइवेट सेक्टर में सभी को अच्छी तनख्वाह मिलती है, मज़दूरी और सैलरी की निगाह से इस सेक्टर को देखेंगे तो तस्वीर भयावह हो जाएगी। अच्छी तस्वीर भी नज़र आएगी जहां बड़ी संख्या में लोग अच्छी सैलरी पर काम भी कर रहे हैं। उनका प्रतिशत भले कम होता है मगर उनकी सैलरी वाकई बहुत होती है। प्राइवेट सेक्टर में जब सैलरी बढ़ती है तो यही कहा जाता है कि आपकी काबिलियत के अनुसार बढ़ोतरी की जा रही है। सरकारी सेक्टर में सैलरी बढ़ती है तो ऐसे बताया जाता है जैसे मुफ्त में बांटी जा रही है। कोई इसे बोनांज़ा लिख रहा है तो कोई तोहफा लिख रहा है तो लॉटरी लिख रहा है। मीडिया की हेडलाइन से लग रहा है कि नकारे लोगों की जमात की सैलरी बढ़ी है। सरकार ने भी कह दिया कि काफी बढ़ोतरी हुई है, विरोध का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि सरकारी लोगों की सैलरी जितनी होने जा रही है उतनी मार्केट में भी लोगों को नहीं मिलती।

आपने सुना ही होगा कि पांच दस हज़ार करोड़ की कंपनी के सीईओ की तनख्वाह कई बार प्रति माह दो से दस करोड़ तक हो जाती है। आप सुनते होंगे कि फलां सीईओ हाफ पैंट में भी दफ्तर जाता है। रात को ईमेल करता है, खूब काम करके आता है। बड़ा कूल है। हम मीडिया वाले भी वाह वाह करते हैं। भारत सरकार ने इस साल फरवरी में योजना और गैर योजना मदों के लिए करीब बीस लाख करोड़ का बजट पेश किया। तब उसके कैबिनेट सचिव का वेतन कुल मिलाकर सवा दो लाख रुपये प्रति माह तक का है। जो सातवें वेतन आयोग के बाद ढाई लाख के आस पास हो जाएगा। कुल 25-30 हज़ार की बढ़ोतरी का कितना जश्न मना सकते हैं। क्या आप दर्शक यह समझते हैं कि भारत सरकार के कैबिनेट सचिव या सचिव कभी दफ्तर टाइम पर नहीं जाते, जब मन करता है तभी जाते हैं, कोई काम नहीं करते। अगर ऐसा है तो सरकार भी काम नहीं करती होगी। मैं जितना जानता हूं सचिव स्तर या ज़िलाधिकारी स्तर के अफसरों के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं होती है। कॉरपोरेट का कूल सीईओ और मालिक कई बार हज़ारों करोड़ की कंपनी डुबो देते हैं। सरकारी बैंक को चूना लगाकर लंदन भाग जाता है। क्या आपने कभी सुना है कि कैबिनेट सचिव ने भारत सरकार ही डुबो दी।

धारणा का इलाज दुनिया के किसी अस्पताल में नहीं है। ज़रूर सरकारी अधिकारियों के पास इतने अधिकार होते हैं कि उसके दम पर वे अवैध रूप से करोड़ों रुपये कमा लेते हैं। मगर रिश्वतखोरों के हिसाब से सैलरी का हिसाब तो नहीं होगा न। अपनी इस छवि के लिए सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। कई कर्माचारियों ने ग़रीब जनता को जिस तरह से परेशान किया है उसके कारण भी जनता उनकी सैलरी वृद्धि को शक की निगाह से देख रही है। उन्हें अपनी छवि सुधारने के लिए काम करना चाहिए और काम के बारे में खुद भी बताना चाहिए। जब हम सरकारी कर्माचारी कहते हैं तो यह समझना चाहिए कि वो कोई एक मूर्ति का नाम नहीं है। कोई पुलिस का जवान है, कोई अर्धसैनिक बल है, कोई सैनिक है। कोई टीचर है, कोई रेल का ड्राईवर है, कोई गटर साफ करने वाला कर्मचारी है तो कोई बिजली के हाईवोल्टेज तार बांधने वाला कर्मचारी है। सरकार की अनगिनत सेवाओं के लिए अलग अलग काम और पद हैं। सरकार के तहत काम करने वाले ज़्यादातर मध्यम से लेकर नीचले स्तर के कर्मचारी हैं। कॉरपोरेट में हर साल सैलरी बढ़ जाती है। सरकार के यहां दस साल बाद बढ़ी है तो उम्मीद कुछ ज़्यादा हो सकती है। इस बार जो बड़े स्तर के अधिकारी हैं उनका वेतन पुराने बेसिक का रेशनलाइज़ेशन इंडेक्स 2.62 से लेकर 2.67 तक रहा। सबसे कम तनख़्वाह वाले कर्मचारियों के लिए रेशनलाइज़ेशन इंडेक्स 2.57 रहा। इसे आप मोटा मोटी ये समझ सकते हैं कि कम वेतन पाने वालों की सैलरी कम बढ़ी और और ज्यादा पाने वालों की ज़्यादा। नीचले स्तर पर देखेंगे तो सैलरी दो से ढाई हज़ार ही बढ़ी है। कर्मचारियों का कहना है कि डीए बढ़ते बढ़ते 125 प्रतिशत हो गया था जिसके कारण हमें उतनी ही सैलरी मिल रही थी जितनी बढ़ी है। हमें कुछ भी फायदा नहीं हुआ।

सरकार के पास संसाधन सीमित होते हैं और सबको खुश नहीं कर सकती है। छठा वेतन आयोग जब लागू हुआ था तो दो साल का एरियर मिला था। सातवें वेतन आयोग में सिर्फ छह महीने का एरियर मिलेगा मगर पैसा इसी साल मिलेगा। सरकार जब इसे ऐतिहासिक बता रही थी उसी समय 33 लाख कर्मचारियों में से 32 लाख कर्मचारियों के संगठन हड़ताल पर जाने का एलान कर रहे थे। इनका कहना है कि सारा लाभ ऊंचे स्तर के अफसरों ने ले लिया। नीचे वाले को कम मिला बल्कि कुछ मिला ही नहीं। हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर मिश्रा ने जो केस स्टडी की हैं।

रमन शर्मा 36 साल से रेलवे में काम करते हुए डेपुटी चीफ पर्सनल आफिसर के पद पर पहुंचे हैं। अभी इन्हें कुल वेतन 91,823 रुपये मिलता था। 36 साल की नौकरी के बाद पहली बार सैलरी एक लाख से ऊपर गई है। क्योंकि सातवें वेतन आयोग के कारण इनका वेतन 1,04,100 रुपये हो गया है। यानी दस साल के बाद कुल वेतन 12,277 रुपये बढ़ गया है। लेकिन नए पीएफ कायदों के बाद इनमें से 4918 रुपये पीएफ में और कटेंगे। टैक्स का अतिरिक्त बोझ 2455 रुपये होगा। टेक होम यानी हाथ में सिर्फ 4904 रुपये ज्यादा आएगा। अमित जैन 29 साल से रेलवे में हैं और अब एग्जिक्यूटिव इंजीनियर हैं। अमित जैन की कुल सैलरी 76700 रुपये से बढ़कर 89540 रुपये हो गई है। सातवें वेतन आयोग से इनकी नई सैलरी अब 89540 रुपये हो गई है। कुल बढोतरी 12,940 रुपये की है। लेकिन नए पीएफ कायदों के बाद इनमें से 4290 रुपये पीएफ में और कटेंगे। टैक्स का अतिरिक्त बोझ 2600 रुपये होगा, यानी टेक होम सिर्फ 6050 रुपये बढ़ा।

अर्ध सैनिक बलों को चंद भत्तों में कुछ राहत मिली है तो वेतन वृद्धि को लेकर वे भी बहुत खुश नहीं हैं। सेना के लोगों की अपनी नाराज़गी है। उनका कहना है कि सेना में 80 फीसदी से अधिक जवान हैं। उनकी सैलरी न्यूनतम 18000 की गई है जो डीए के 125 फीसदी बढ़ने के कारण पहले से ही मिल रही थी। नए वेतन में 2000 के आस पास ही वृद्धि हुई है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर कह चुके थे कि हमने सेना के वेतन के लिए काफी ज़ोर लगाया। कुछ मांगे मानी गईं कुछ नहीं मानी गई। रेलवे के एक कर्मचारी ने फेसबुक पर लिखा है कि उनके विभाग के कुछ ग्रेड में 300 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है। हम इसे सत्यापित नहीं कर सकते लेकिन हम ऐसे कर्मचारी संगठन की तलाश कर रहे हैं जो इस वेतन वृद्धि से खुश हो। अगर कोई बहुत खुश है तो ज़रूर संपर्क करें मैं उसे प्राइम टाइम में मौका दूंगा।

Pew Research Center ने 2014 में एक विश्लेषण पेश किया था जिसके अनुसार 2011 के वेतन के आधार पर दुनिया भर में आबादी का सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा ही मिडिल इनकम में आता है। 56 फीसदी लोग निम्न आय में आते हैं और 15 फीसदी ग़रीब। सिर्फ 7 प्रतिशत उच्चतम आय वाले हैं और 9 फीसदी उच्च मध्यम आय में आते हैं।

सरकार ने ग्रेच्युटी सीमा दस लाख से बढ़ा कर 20 लाख कर दी है। घर बनाने/खरीदने के लिए अब अग्रिम राशि साढ़े सात लाख की जगह 25 लाख तक निकाली जा सकेगी। एक राय यह है कि इसके कारण अर्थव्यवस्था में गति आएगी। अगर आई तो सरकारी कर्मचारियों को अलग से बोनस मिलना चाहिए। दूसरी राय है कि यह अर्थव्यवस्था पर बोझ है। सातवें वेतन आयोग को पढ़ते हुए कुछ धारणायें ध्वस्त होती नज़र आईं। जैसे हम समझते हैं कि केंद्रीय कर्मचारी सरकार पर बोझ हैं। कुछ तथ्य रिपोर्ट से निकाल कर रखता हूं ताकि आईपीएस से लेकर दारोगा की तैयारी में काम आ सके।

- 2010 में जितने पद मंज़ूर किये गए थे उनका 86 प्रतिशत ही भरा गया था।
- 2014 में जितने पद मंज़ूर किये गए थे उनका 82 प्रतिशत ही भरा गया।
- 2014 में 40 लाख 49 हज़ार पद मंज़ूर थे, भर्ती किये गए 33.02 लाख।
- साढ़े सात लाख कर्मचारियों का बोझ मौजूदा कर्मचारियों पर भी पड़ा होगा।


2014 के मंज़ूर पदों की संख्या के हिसाब से केंद्र सरकार 7 लाख लोगों को नौकरी दे सकती है। जबकि केंद्र सरकार साल में एक लाख लोगों को ही रोज़गार देती है। बेरोज़गार अपनी रैलियों में इस आंकड़े का इस्तमाल कर सकते हैं। सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में अमेरिका और भारत के केंद्रीय कर्मचारियों की तुलना की गई है। एक लाख की आबादी पर भारत में केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या 139 है। अमेरिका आबादी में भारत से कम है, वहां एक लाख की आबादी पर केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या 668 है। बताइये जिससे हम सीख कर प्राइवेटाइज़ कर रहे हैं उसके यहां कितने सरकारी कर्मचारी हैं हमारे यहां कितने। यही नहीं रिपोर्ट में लिखा है कि डाक, संचार और रेलवे तो व्यावसायिक गतिविधि हैं। उनके कर्मचारियों की संख्या निकाल दें, इसके साथ गृहमंत्रालय के पुलिस और सैन्य बलों को निकला दें तो केंद्रीय कर्मचारियों की वास्तविक संख्या 4 लाख 18 हज़ार ही है। जो बहुत छोटा है। रिपोर्ट में इन्हें कोर ऑफ गर्वमेंट आफ इंडिया कहा गया है।

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