प्राइम टाइम इंट्रो : 20 फुट से ऊंची नहीं हो सकती दही हांडी

प्राइम टाइम इंट्रो : 20 फुट से ऊंची नहीं हो सकती दही हांडी

महाराष्ट्र के नासिक की मंडियों में प्याज़ की कीमत 5 रुपये क्विंटल तक पहुंच गई है यानी पांच पैसे में एक किलो प्याज़. ये गड़बड़ी अधिक उत्पादन की है, वितरण व्यवस्था की है, बिचौलियों की हेराफेरी है, क्या है इस पर समय समय पर मीडिया से लेकर जानकार तक बहस कर चुके हैं. मूल बात यह है कि किसानों ने तय किया है कि प्याज़ को खेतों में फेंक देंगे ताकि सड़कर खाद बन जाए. जो किसान एक क्विंटल प्याज़ उगाने में 650-700 रुपये लगा दे और उसे दाम मिले पांच पैसे एक किलो के तो उसके दिल पर क्या गुज़रेगी. आढ़ती भी आगे 4 रुपये प्रति किलो प्याज़ बेच रहे हैं. पांच पैसे भाव से किसानों को मिल रहा है और 4 रुपये के भाव से थोक व्यापारियों को मिल रहा है जो अलग अलग मंडियों में पहुंचते पहुंचते पंद्रह से बीस रुपये किलो हो जाता है. पांच पैसे किलो प्याज़ यहां से 1278 किमी दूर नाशिक की लासलगांव मंडी में मिल रहा है. जहां से मैं ये ख़बर पढ़ रहा हूं वहां से 21 किमी दूर गाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में लगने वाले मंगल बाज़ार में बीस रुपये किलो प्याज़ मिल रहा था. इस समस्या का समाधान किसी एप से हो सकेगा या होगा ही नहीं इस सवाल को छोड़ते हुए हम आगे बढ़ जाते हैं.

भारत की कुछ समस्याएं सनातन हो चुकी हैं. समय कोई सा भी हो, समस्याएं वहीं की वहीं रहती हैं. हम प्याज़ को छोड़ दही हांडी का लोड उठाते हैं और इसकी फिक्र में अपनी एक शाम समर्पित कर देते हैं कि मुंबई और महाराष्ट्र में दही हांडी का जो जलवा था वो अब वैसा नहीं रहेगा तो फिर क्या होगा. क्या वो जलवा हमेशा से वैसा ही था जो अब कहा जा रहा है कि वैसा नहीं हुआ तो मज़ा नहीं आएगा.

मसलन आदमी के कंधे पर आदमी, उसके कंधे पर फिर आदमी करते करते गोविंदाओं की नौ नौ मंज़िल इमारत खड़ी हो जाती है. आप पिरामिड भी कह सकते हैं. जो सबसे ऊपर होता है वो ऊपर बंधी मटकी तोड़ता है लेकिन जबसे इनाम की राशि बढ़ती गई और नेताओं की दिलचस्पी बढ़ने लगी, दही हांडी की ऊंचाई ऊपर होती गई. इसके नतीजे में यह हुआ कि गोविंदा गिरने लगे. उन्हें चोट आने लगी, मौत होने लगी और शारीरिक नुकसान भी होने लगा. सबसे ऊपर बच्चे होते थे तो उनकी जान जोखिम में पड़ने लगी. लिहाज़ा स्वाति सायाजी पाटिल ने बांबे हाईकोर्ट में अपील कर दी. 2014 में मुंबई हाईकोर्ट ने कहा कि दही हांडी की ऊंचाई 20 फुट से ज़्यादा नहीं होगी. 18 साल से कम उम्र के किशोर इसमें हिस्सा नहीं लेंगे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई मगर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज नहीं किया.

इस कारण मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में इस बात को लेकर उत्सुकता है कि जन्माष्टमी के दिन गोविंदा क्या करेंगे. लेकिन पहले सोचा कि पता करते हैं कि दही हांडी की टीम कैसे बनती है, इसमें कितने लोग होते हैं, कौन इन्हें प्रशिक्षित करता है यह सब जानने के लिए हमने बालगोपाल मित्र मंडल के कोच निखिल कदम से बात की. निखिल कदम ने बताया कि हर मंडल में एक या दो कोच होते ही हैं जो सबको ट्रेनिंग देते हैं कि कैसे चढ़ना है.

निखिल कदम ने बताया है कि एक महीना पहले से अभ्यास शुरू हो जाता है. मंडल के गोविंदा रात को नौ बजे के बाद जमा होते हैं और डेढ़ दो घंटे का अभ्यास करते हैं. ये जो पिरामिड आप देख रहे हैं इन्हें स्थानीय ज़ुबान में पांच तल, छह तल, सात तल, आठ तल या नौ तल कहा जाता है. तल मतलब ऊंचाई. जैसे आप इक तल्ला मकान बोलते हैं, दुतल्ला मकान बोलते हैं. छह तल दही हांडी लगाने के लिए सौ से डेढ़ सौ लोगों की ज़रूरत होती है. सबसे पहले नीचे आठ लोग होते हैं. उसके ऊपर पांच लोग होते हैं. फिर तीन लोग होते हैं. तीन के ऊपर एक एक कर तीन होता है. सबको एक दूसरे पर चढ़ाने के लिए बगल में सीढ़ी होती है. ये सीढ़ी भी गोविंदा ही बनते हैं. ये घेरा बनाते हैं और इनके कंधे पर चढ़ते हुए गोविंदा पिरामिड के ऊपर चढ़ते जाते हैं.  आस पास के मोहल्ले से गोविंदा जमा होते हैं और अभ्यास चालू कर देते हैं. फिर दही हांडी से एक दो दिन पहले अपना रूट तय करते हैं कि किस रूट से जाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा दही हांडी कवर कर सकें. इसके लिए ट्रक या बस किराये पर लेते हैं. गोविंदा के लिए टी शर्ट बनता है. कुल मिलाकर एक लाख रुपये तक का खर्चा आ जाता है. फिर दो लोग आगे निकलते हैं कि कहां कहां दही हांडी हो रही है. उनकी सूचना पर इनकी टीम पहुंचती है और सलामी देती है. सलामी का मतलब ये हुआ कि अगर टीम ने सफलता पूर्वक सात तल या छल तल बना लिया तो आयोजक इनाम में पांच सौ से दो हज़ार रुपये देता है. कहीं कहीं ज्यादा भी होता है. ज़रूरी नहीं कि हर टीम हांडी तोड़े ही. हांडी तोड़ने के लिए नौ तल बनाने होते हैं. सभी दही हांडी वाले नौ तल के खेल में शामिल नहीं होते हैं. निखिल कदम ने बताया कि पूरा दिन कवर करने के बाद भी हमें तीस से चालीस हज़ार ही इनाम में मिल पाता है. जो हम लगाते हैं उससे कम ही पाते हैं. बस जुनून के लिए करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दही हांडी वाले बीस फुट से ऊंचा नहीं जा सकते हैं. अब इसे लेकर राजनीतिक विवाद हो रहा है. शिवसेना, मनसे और बीजेपी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को स्थानीय परंपरा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. यह सरकार का काम है. महाराष्ट्र सरकार ने भी कहा है कि निर्देशों का पालन होगा. हांडी मंडलों का कहना है कि अगर हांडी ऊपर नहीं लटकी तो रोमांच ही चला जाएगा लेकिन क्या आयोजक कानून तोड़ने का जोखिम उठाएंगे या फिर पुलिस कार्रवाई करेगी. महाराष्ट्र सरकार के खेल विभाग ने दही हांडी को एडवेंचर स्पोर्ट्स का दर्जा दिया हुआ है. जो घायल हुए हैं उनका क्या कहना है.

हमने भिवंडी के एक गोविंदा नागेश भोइर से बात की. नागेश बचपन से ही हांडी फोड़ते आ रहे थे लेकिन 2009 में छह तल से गिर गए. नागेश की गर्दन के नीचे का पूरा हिस्सा पैरालाइज्ड हो गया. वे 2009 से ही बिस्तर पर पड़े हुए हैं. नागेश का अभी तक आठ ऑपरेशन हो चुका है और तीन और ऑपरेशन होना है. अभी तक 35 लाख रुपये लग गए हैं और आगे के ऑपरेशन का खर्चा दस लाख तक आ सकता है. नागेश का कहना है कि हांडी फूटने के बाद सब गणपति में मशगूल हो जाते हैं. कोई देखने नहीं आता कि जो गोविंदा गिरे हैं उनकी क्या स्थिति है. 2009 से पहले मैं बैंक में जाब करता था लेकिन अब बेरोज़गार हूं और बिस्तर पर पड़ा रहता हूं. यार दोस्तों ने मदद कर दी वर्ना कोई भी आयोजक मंडल आगे नहीं आया. सब इनाम में दस साल बीस लाख का एलान करते रहते हैं, गोविंदा की किसी को फिक्र नहीं होती. नागेश का कहना है कि बीस फीट चार तल के बराबर होता है. यह काफी है और इसमें भी काफी रोमांच आ सकता है. इससे ज्यादा नहीं होना चाहिए. कोर्ट का आदेश ठीक है.

2013 में 641 गोविंदा घायल हुए, 2014 में 290 गोविंदा घायल हुए, 2015 में 130 गोविंदा घायल हुए. नागेश की इस बात में दम है कि जोखिम लेकर गोविंदा चंद मिनटों के लिए हीरो बनते हैं मगर गिरते ही वे परिवार पर हमेशा के लिए बोझ बन जाते हैं. अगर इसे आस्था के नाम पर बनाए रखना है तो आयोजकों को उनकी सुरक्षा की भी गारंटी देनी होगी.


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