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This Article is From Oct 27, 2014

दंगा कराते लाउडस्पीकर!

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:42 pm IST
    • Published On अक्टूबर 27, 2014 21:16 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:42 pm IST

नमस्कार, मैं रवीश कुमार। दंगा कौन करता है या कराता है, यह साबित होने में ज़माना गुज़र जाता है, लेकिन दंगा क्यों हुआ इसका जवाब तुरंत मिल जाता है। दोनों पक्षों के बीच अनगिनत अफवाहनुमा किस्सों से गुज़रिये तो पता चलेगा कि कई दंगों की जड़ों में लाउडस्पीकर है। ये आज से नहीं बल्कि आज़ादी से पहले के समय के दंगों में भी कारण था और आज भी बना हुआ है।

अगर हम दंगों को नहीं रोक सकते तो ये फैसला तो कर ही सकते हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल या आयोजन में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं होगा। लेकिन वहां क्या करेंगे जहां प्रबंधन के लिहाज़ से कई बार यह लाउडस्पीकर बहुत ज़रूरी हो जाता है। यह फैसला भी लंबित ही रहेगा, लेकिन लाउडस्पीकर पर हम भजन और अज़ान को लेकर कब झगड़ जाएं पता नहीं।

यह पूर्वी दिल्ली का त्रिलोकपुरी है। मयूर विहार और नोएडा के बीच इस मोहल्ले की त्रासदी यही है कि जब नवंबर 1984 सिख विरोधी दंगे हुए तो यहां रहने वाले सैंकड़ों सिखों को मार दिया गया। वहां रहने वाले सिख परिवारों को इसी दिल्ली में विस्थापित होकर तिलक विहार जाना पड़ा। आप तिलक विहार जाएंगे तो अब भी कई लोगों की जुबान पर त्रिलोकपुरी मायके की याद की तरह मौजूद मिलेगा। 30 साल बाद उसी त्रिलोकपुरी में दिवाली की रात से लेकर रविवार तक हिन्दू मुस्लिम समाज के बीच पत्थरबाज़ी होती रही।

त्रिलोकपुरी में 36 ब्लाक हैं। शुरुआत 20 से हुई। वहां मस्जिद के पास साफ की हुई खाली ज़मीन पर कुछ लोगों ने माता की चौकी लगा दी। लेकिन जब दशहरे के बाद इस चौकी को नहीं उठाया गया और लाउडस्पीकर बजने से मस्जिद आने वाले लोगों को दिक्कतें होने लगीं तो कई तरह की आशंकाएं और कहानियां बनने लगीं।

दिवाली की रात इस लाउडस्पीकर के बजने या न बजने को लेकर तनाव हो गया। अब यह तनाव क्यों हुआ किसने किया, बाद में क्या हुआ इन सब बातों के कई किस्से हैं। हर पक्ष की अपनी असंख्य दलीलें हैं।

गुरुवार रात से लेकर शुक्रवार दोपहर के बीच हालात इतने बिगड़ गए कि दोनों समुदायों के लोगों ने अपना बरसों का हासिल विश्वास छोड़ दिया और व्हाट्स अप के ज़रिये अफवाहें फैलने लगीं।

इसलिए व्हाट्स एप के ज़रिये फैलने वाली ऐसे अफवाहों से सतर्क रहिए। इसे लेकर आपके मुल्क में ऐसे कई मामले हो चुके हैं। कहां से कोई बात चलती है और कहां पहुंचती है किसी को पता नहीं होता। 35 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इनमें कई पुलिसकर्मी भी हैं।

त्रिलोकपुरी में रविवार से शांति तो है मगर इस शांति को कायम करने के लिए सीआरपीएफ, आरएएफ और दिल्ली पुलिस के एक हज़ार से ज्यादा जवाब तैनात हैं। 30 पुलिस वैन इलाके की नाकाबंदी में लगाई गई हैं।

त्रिलोकपुरी में जो हुआ उस पर दिल्ली शहर के कान खड़े हो जाने चाहिए। जिसने 84 के बाद से शांति के साथ रहना सीख लिया था। न सिर्फ हिन्दू या मुसलमानों के बीच बल्कि अलग अलग राज्यों से आए अमीर गरीब भाषाई लोगों के साथ भी।

दिल्ली की मिसाल मुंबई और कोलकाता से भी शानदार है। दंगों का यह पैटर्न होता जा रहा है। इसके कई कारण होते हैं और कोई भी दंगा दो पक्षों की भूमिका के बगैर नहीं होता। मगर इसके होने का मूल कारण यह है कि ऐसे वक्त में हम एक दूसरे के प्रति विश्वास को तुरंत त्याग देते हैं और हर तरह की अफवाह को सही मान लेते हैं।

अलग-अलग अखबारों की रिपोर्ट को पढ़ कर यही लगा कि दोनों समुदाय के लोगों ने जिम्मेदारी दिखाने के बजाय अफवाहों को फैलाने में भूमिका निभाई। व्हाट्स एप से फैलाई गए अफवाहों को कवच बना लिया। पुलिस ने अफवाह फैलाने और झूठी सूचना देने के लिए 12 लोगों को हिरासत में लिया है। मुस्लिम समाज की तरफ से अफवाह फैली कि हिन्दू मारने आ रहे हैं और हिन्दू समाज की तरफ से अफवाह फैली कि मुस्लिम मारने आ रहे हैं।
मेरे लिए तय करना मुश्किल है कि इन बातों पर हंसा जाए या शर्म के मारे सार्वजनिक रूप से सर झुकाकर मार्च किया जाए। किसी मस्जिद या माता की चौकी के पास झगड़ा हो भी जाए और इसके होने के वाजिब कारण भी हों लेकिन बाकी समाज के लोग क्या सोच समझ कर इसमें कूद पड़ते हैं। क्या उन्हें पता नहीं कि दंगे कराए जाते हैं। क्या उन्हें पता नहीं कि इस तरह की साज़िशे बिछा कर दो समुदायों के बीच अविश्वास को बढ़ा दिया जाता है। पर क्या यह दंगा रुक सकता था अगर प्रशासन और पुलिस ने समय पर कार्रवाई की होती।

आप इस बात पर भी बहस कर सकते हैं कि यह दंगा है या सांप्रदायिक हिंसा। मेरठ में लव जिहाद का हश्र आप देख चुके हैं। कैसे इस घटना को लेकर दो समुदायों के बीच अविश्वास फैलाने का खतरनाक खेल खेला गया। बाद में उस खबर ने कितने मोड़ लिए और कितने रूप निकल कर आए उसके। ताज़ा मोड़ पर वह ख़बर फ़र्ज़ी साबित हुई और यह भी बात हो रही है राजनेताओं ने पैसे तक दिए ऐसे आरोप लगाने के लिए।

मैं खुद त्रिलोकपुरी के इलाके से गुज़रता हूं। यूपी से आने वाला नाला है जो यमुना में जाकर गिरता है। त्योहारों के वक्त इसमें साफ पानी छोड़ा जाता है, जहां लोग घाट बनाकर पूजा अर्चना करते हैं।

त्रिलोकपुरी निम्न मध्यमवर्गीय इलाका है। यहां रहने वाले लोग मयूर विहार नोएडा और आस पास के इलाके में काम करते हैं। घरों में भी और दफ्तरों कारखानों में भी। वर्षों से गुज़रा हूं। गनीमत है कि ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इसे आप नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, क्योंकि दिल्ली में सांप्रदायिक तनाव की पृष्ठभूमि बन गई। इसलिए बाकी दिल्ली को भी सतर्क होने की ज़रूरत है।

थोड़ा अफवाहों से बचिये यह सवाल पूछिये कि जिन लोगों ने माता की चौकी लगाई थी वे कहां हैं। कौन हैं। जिन लोगों के बीच झगड़ा हुआ वे कहां हैं। ये सब सवाल हैं। दस लोगों की ठोस गिरफ्तारी के बाद सारे मामले की तह तक पहुंचा जा सकता है लेकिन दिल्ली में तीन दिन लग जाए तनाव रोकने में तो समझिये कि बाकी देश में कितना आसान है सांप्रदायिक हिंसा करना।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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