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This Article is From Oct 06, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : शिक्षकों की कमी से जूझ रहा पटना विश्‍वविद्यालय

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 06, 2017 21:53 pm IST
    • Published On अक्टूबर 06, 2017 21:20 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 06, 2017 21:53 pm IST
जीएसटी पर बड़े फैसले हुए हैं. सरकार ने समस्याओं को संज्ञान लेते हुए कई कदम उठाए हैं. मगर हम पहले अपनी सीरीज़ के बारे में बात करेंगे जो पिछले तीन दिनों से विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के ख़ाली पद को लेकर चला रहे हैं. आखिर हमारे विश्वविद्यालय चल कैसे रहे हैं, जब वहां प्रोफेसर लेक्चरर नहीं हैं तो छात्रों ने पढ़ा क्या. छात्रों और शिक्षकों का समूह भी लाखों का है, फिर भी इस समूह ने पर्याप्त दबाव क्यों नहीं बनाया कि क्लास में टीचर नहीं हैं. अगर बनाया तो सरकार ने क्यों नहीं सुना. आपकी आंखों के सामने उच्च शिक्षा ख़त्म होती रही, आपने बर्दाश्त कैसे किया. क्या हम बिल्कुल नहीं चाहते कि हमारे आस पास ही कॉलेज अच्छे हों, शिक्षा सस्ती हो और अच्छी हो ताकि लड़के लड़कियों को बाहर पढ़ने के लिए भेजना न पड़े और परिवार पर ख़र्चे का बोझ न बढ़े. हम पटना विश्वविद्यालय की बात करेंगे.

1 अक्टूबर 1917 को यह विश्वविद्यालय कायम हुआ था. इस साल और इस महीने सौ साल का हो गया. 14 अक्टूबर को प्रधानमंत्री पटना जा रहे हैं. हमारा सवाल सिम्पल है. क्या प्रधानमंत्री को बताया गया है कि इतिहास के अलावा पटना यूनिवर्सिटी का वर्तमान कैसा है. क्या उन्हें मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया है कि वहां कई कॉलेजों के डिपार्टमेंट में एक ही प्रोफेसर है और किसी किसी में एक भी नहीं है. अगर प्रकाश जावड़ेकर व्यस्त हैं तो क्या इसी विश्वविद्लाय के छात्र रहे मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने प्रधानमंत्री ने जानकारी दी है? क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री को जानकारी दी है कि वहां शिक्षक तो नहीं हैं, इमारत है जो सौ साल की हो गई है, हम उसी का जश्न मना रहे हैं?

प्रधानमंत्री आ रहे हैं इसलिए पटना यूनिवर्सिटी को झाड़ झंखाड़ को उखाड़ कर दीवारों को रंगा जा रहा है. वैसे यहां जहां साफ किया जा रहा है शायद ही प्रधानमंत्री को झांक कर देखने का मौका मिले लेकिन आंखों में धूल झोंकने का सरकारी तरीका न तो जनता को छोड़ता है न ही अपने प्रधान को बख्शता है. उनके आगमन के बाद कुछ दिनों तक नागरिकों को भी याद रहेगा कि वाह क्या कार्यक्रम हुआ, आने पर यूनिवर्सिटी को चमका दिया गया. प्रधानमंत्री जी, यह सब आपके सम्मान में नहीं, आपको असलीयत न पता चले, इसलिए किया जा रहा है. सौ साल का इतिहास नया पैंट शर्ट पहनकर 14 अक्टूबर को तैयार तो मिलेगा लेकिन आप वहां जाकर पटना यूनिवर्सिटी के वर्तमान के बारे में पूछियेगा.

1917 आधुनिक भारत और आधुनिक बिहार का इतिहास का महत्वपूर्ण साल था, जब यहां चंपारण सत्याग्रह हुआ और उसके कुछ महीने बाद पटना यूनिवर्सिटी की नींव पड़ी. नौ सौ साल से अधिक समय हो गए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के, आज तक कायम है और छात्र वहां जाने का सपना आज भी देखते हैं. मगर बिहार का यह ऑक्सफोर्ड दम तोड़ गया. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भी खुद को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहती थी, उसकी हालत पुरानी गाइड बुक की तरह हो गई है. उसकी भी हालत पटना यूनिवर्सिटी की तरह है. पटना विश्वविद्लाय गंगा के किनारे बनाया गया है. दुनिया में बहुत कम यूनिवर्सिटी होगी जो नदी के किनारे बनी होगी, जिसकी क्लास से गंगा बहती दिखती थी. बीएन कॉलेज के कमरों का नाम रीवर व्यू रूम हुआ करता था, साइंस कॉलेज के कुछ लेक्चर थियेटर के मुकाबले आज भी किसी यूनिवर्सिटी के पास नहीं होगा. हम सब साइंस कॉलेज देखने जाते थे कि फिजिक्स के महान प्रोफेसर एच सी वर्मा कैसे क्लास लेते हैं. उनके क्लास का जादू होता है. धीरे-धीरे पटना यूनिवर्सिटी खंडहर में बदलता गया, और किसी ने नई ईंट जोड़ने की कोशिश नहीं की. केमिस्ट्री और मैथ्स के प्रोफेसर पूरे शहर और राज्य में हीरो की तरह पूजे जाते थे. बिहार का सपना था पटना यूनिवर्सिटी जिस सपने को सबने मिलकर मार दिया.

ऑक्सफोर्ड कहलाने का मन तो भारत की कई यूनिवर्सिटी को था, मगर कोई उसके मेयार को छू न सकी. हमारी यूनिवर्सिटी देखने में ही ख़ूबसूरत रह गई हैं. पटना यूनिवर्सिटी वाकई खूबसूरत है. मगर आज इसकी भूमिका क्या है, क्या इसलिए इसका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है ताकि प्रधानमंत्री को बुलाना है? हम नहीं जानते हैं कि पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर कैसे हैं, उन्होंने इस यूनिवर्सिटी के लिए क्या किया है, मगर जो रिकॉर्ड दिख रहा है उससे यही लगता है कि इसकी हालत बहुत बुरी है. इस यूनिवर्सिटी से पास किए लोग आज दुनिया भर में छाए हुए हैं. भारत सरकार के गृह सचिव राजीव गौवा भी पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. इनकी तो धूम हुआ करती थी पढ़ाई के मामले में. गुजरात के मुख्य सचिव डॉ. जे एन सिंह भी पटना यूनिवर्सि‍टी के छात्र रहे हैं. महीना भर पहले रिटायर हुए भारी उद्योग के सचिव गिरिश शंकर भी यहीं के छात्र रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी यहां के छात्र रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी भी पटना यूनिवर्सिटी के छात्र हैं. रामविलास पासवान भी पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. पूर्व रेल मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव भी यहीं के छात्र रहे हैं.

आईएएस, आईपीएस, मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक जितना मन उतना गिन लीजिए, पटना यूनिवर्सिटी ने बहुत कुछ दिया है. मगर इन सबसे ज़्यादा पटना यूनिवर्सिटी अपने शिक्षकों के कारण यादगार रहा है. यहां के इतिहासकारों ने इतिहास लेखन और पढ़ाने की दिशा बदल दी. गणित के मास्टरों में प्रोफेसर लालजी प्रसाद की किताबों की कितनी धूम हुआ करती थी.

जिस यूनिवर्सिटी में कई क्लास में पढ़ाने के लिए शिक्षक न हो, शिक्षकों की कमी के कारण कुछ कोर्स बंद कर दिए गए हों, क्या उस विश्वविद्लाय को भारत जैसे गरीब देश और बिहार जैसे गरीब राज्य को शताब्दी वर्ष मनाने के नाम पर एक रुपया भी खर्च करना चाहिए? उनके स्वागत पर पचास लाख-करोड़ रुपया तो ख़र्च होगा ही, यही नहीं देश के प्रधानमंत्री का एक एक सेकेंड कीमती होता है, आखिर पटना यूनिवर्सिटी उनके सामने अपनी क्या रिपोर्ट पेश करेगी. हम क्यों पटना यूनिवर्सिटी का शताब्दी वर्ष मना रहे हैं?

पटना यूनिवर्सिटी के जुओलजी डिपार्टमेंट के विभाग अध्‍यक्ष बी के मिश्रा हैं. कभी यहां 24 से 26 प्रोफेसर हुआ करते थे मगर अब यह सिर्फ 4 शिक्षकों के दम पर चल रहा है. कभी पटना यूनिवर्सिटी जूओलजी विभाग की भारत और दुनिया में धूम हुआ करती थी. जीओ केमिस्ट्री का विभाग तो काफी फेमस था मगर अब इस विषय को पढ़ाने वाला कोई प्रोफेसर ही नहीं लिहाज़ा बंद कर दिया गया है. एक प्रोफेसर को कई कई पेपर पढ़ाने पड़ते हैं. प्रोफेसर न होने के कारण रिसर्च का काम ठप्प हो गया है. 2003 के बाद बहाली नहीं हुई थी, कुछ पदों का विज्ञापन तो निकला है मगर बहुत कम और वो भी बहाली की रफ्तार काफी धीमी है. नीली कमीज़ में पी के सिन्हा जीयोलॉलिकल सर्वे ऑफ इंडिया से रिटायर हुए हैं, जो अपने खर्चे पर आकर पढ़ा जाते हैं. ऐसे शिक्षकों को ही शताब्दी वर्ष के लिए आ रहे प्रधानमंत्री से मिलाना चाहिए. जो यूनिवर्सि‍टी खंडहर हो चुकी है, उसके भीतर ये शिक्षक आत्मा की तरह अभी भी बचे हुए हैं.

प्रो बी के मिश्रा ने अंदाज़ से बताया कि साठ के दशक में कभी पटना यूनिवर्सिटी में जब दस हज़ार छात्र नहीं हुआ करते थे तब यहां शिक्षकों के लिए हजार से अधिक पद मंज़ूर थे. आज जब यहां के छात्रों की संख्या बीस हज़ार के करीब पहुंच गई है तो शिक्षकों की मंज़ूर पदों की संख्या भी कम कर दी गई है और उसमें से भी आधे से ज़्यादा ख़ाली हैं. प्रो मिश्रा जैसे शिक्षक किसी तरह क्लास ले लेते हैं. पढ़ा ही देते हैं. कुछ शिक्षकों का कहना है कि पटना यूनिवर्सिटी में छात्रों की संख्या को देखते हुए 2000 शिक्षक होने चाहिए, मगर
420 पोस्ट खाली हैं, 320 प्रोफेसरों के दम पर यूनिवर्सिटी चल रही है. जितने पढ़ा रहे हैं उससे तो ज़्यादा पोस्ट ख़ाली हैं. इस बार 150 पदों का ही विज्ञापन निकला है, जो काफी नहीं. 150 की बहाली के बाद भी 170 पद ख़ाली ही रहेंगे.

पटना यूनिवर्सिटी के कई कॉलेज में कई विभाग ऐसे हैं जो एक एक प्रोफसरों के भरोसे चल रहे हैं. 1980 के दशक से ही पटना यूनिवर्सिटी की हालत ख़राब होने लगी. जातिवाद और गुंडागर्दी ने इसे बर्बाद किया और फिर यह यूनिवर्सिटी कभी संभल नहीं सकी. पिछले पंद्रह साल में भी इसका उद्धार नहीं हुआ. इस दौरान बिहार से लाखों की संख्या में छात्र दिल्ली आकर पढ़ने के लिए मजबूर हुए. उनके मां बाप ने ज़मीन बेचकर और मेहनत की पूंजी लगाकर उन्हें पढ़ाया. भावनात्मक और आर्थिक नुकसान हुआ. यहां के पटना साइंस कॉलेज में पढ़ना सबका सपना होता था, बिहार के टॉप छात्र पढ़ते थे, अब जो टॉप करता है वो साइंस कॉलेज नहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी आता है. साइंस कॉलेज के बारे में हमने जो जानकारी जुटाई है, आप भी पढ़ि‍ए. अगर बिहार पटना साइंस कॉलेज नहीं बचा सका, तो उसके पास बचा ही क्या है. पटना साइंस कॉलेज में 112 पद मंज़ूर हैं. मगर यह कॉलेज मात्र 28 प्रोफसरों के भरोसे चल रहा है. जीव विज्ञान 2, गणित में 3 और बनस्पति विज्ञान में 6 ही शिक्षक हैं. अंग्रेज़ी में 1 और हिन्दी में दो ही शिक्षक हैं.

आखिर हम एक राज्य में कम से कम दो ही यूनिवर्सि‍टी ढंग से क्यों नहीं चला पाते हैं. किसी भी राज्य का हाल देखिए, बताने लायक नहीं है. क्या पदों को इसलिए खाली रखा गया ताकि पीएचडी करने के बाद भी किसी को नौकरी न मिले. इन ख़ाली पदों की संख्या देखकर लगता है कि न जाने कितने नौजवानों के शिक्षक बनने के सपने को कुचला गया है. दस दस साल शिक्षकों ने एडहाक पढ़ाकर अपनी जिंदगी तबाह कर डाली मगर पोस्ट होते हुए भी नहीं भरे गए. अगर भरना नहीं है तो फिर पीएचडी क्यों हो रही है, यूजीसी नेट का इम्तहान किसके लिए लेता है.

पटना लॉ कॉलेज में 14 टीचर के पद हैं मगर 9 पद ख़ाली हैं. पटना लॉ कालेज सिर्फ 5 प्रोफेसरों के दम पर चल रहा है. हिन्दी विभाग में 34 पद हैं लेकिन 11 प्रोफेसर ही पढ़ा रहे हैं. पटना कॉलेज में ढाई हज़ार छात्र हैं और पढ़ाने के लिए मात्र 30 शिक्षक हैं. पटना कॉलेज के हिन्दी विभाग में 6 की जगह 2 ही पढ़ा रहे हैं. यहां के इतिहास विभाग में 6 की जगह एक ही प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं.

पटना यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग का तो हाल और भी बुरा है. दस साल पहले यहां 25 प्रोफेसर हुआ करते थे, अब सिर्फ 6 हैं. इतिहास का बेड़ा गर्क इसीलिए हो रहा है. लोग क्लासरूम की जगह व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में इतिहास की पढ़ाई पढ़ रहे हैं.

मगध महिला कॉलेज में कभी 100 प्रोफेसर थे, आज 32 प्रोफेसर हैं. मगध महिला कॉलेज में पांच हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं. क्या 32 प्रोफेसर पांच हज़ार छात्राओं को पढ़ा सकते हैं? हिन्दी, इतिहास और जीव विज्ञान में पढ़ाने के लिए एक एक प्रोफेसर हैं. इन तीनों विभाग में कम से कम पांच पांच प्रोफेसर होने चाहिए थे.

आप सोच रहे होंगे कि मैं कोरा आंकड़ा पढ़ रहा हूं जिसका क्या मतलब है. हमने भी कभी नहीं सोचा था कि पटना यूनिवर्सिटी की ये हालत होगी. एक समय ऐसा भी था कि यहां के छात्र तीन साल का बीए छह साल में करते थे, रेलगाड़ी लेट होती थी, मगर यहां तो सेशन ही लेट हो जाता था. गनीमत है कि सेशल लेट नहीं है.

प्रधानमंत्री का दौरा होने वाला है इसलिए हमने जिनसे भी बात की, किसी कार्रवाई की आशंका में कोई कैमरे पर नहीं आया. बिहार के छात्रों को पता है, किसी तरह मैट्रिक तक यहां काटो फिर दिल्ली चलो. आप याद कीजिए, पिछले दस साल से बिहार में पढ़ाई की कामयाबी के किस्से कोचिंग संस्थानों से निकलते हैं, यूनिवर्सिटी से नहीं. अगर बिहार के पास एक यूनिवर्सिटी नहीं है, दुनिया को दिखाने और छात्रों के पलायन को रोकने के लिए तो फिर क्या है. बहुत सी सरकारें रहीं मगर कोई एक यूनिवर्सिटी न खड़ा कर सकी. 14 अक्टूबर को पटना यूनिवर्सिटी आखिर भारत के प्रधानमंत्री का सामना कैसे करेगा या प्रधानमंत्री किस तरह से उसका सामना करेंगे? हमने देश के कई विश्वविद्लायों का हाल जाना है. यही समझ आया कि पैसे वालों ने अपने बच्चों को पढ़ाने का कहीं और इंतज़ाम कर लिया है. जो गरीब और साधारण लोग हैं उनके बच्चे न पढ़ पाएं इसका इंतज़ाम कर दिया गया है ताकि वे पीढ़ियों तक वहीं रहें जहां उनके पुरखे थे. बड़े लोगों को फर्क नहीं पड़ा कि पटना यूनिवर्सिटी की हालत खराब है क्योंकि उनके बच्चों ने पैसे से दूसरी यूनिवर्सिटी चुन ली, रह गए आम लोग तो उन्हें ख़ाली क्लास रूप में सपना देखने के लिए बिठा दिया गया. एक सवाल आपसे है कि क्या आप यह देख पा रहे हैं कि आपके बच्चों का भविष्य जहां बनना है, वहां की हालत क्या है. एक छोटा सा सवाल है, आप ये सब देख कैसे पा रहे हैं.

एक छोटी सी जानकारी और. सीतामढ़ी का एक कॉलेज है एस एल के कॉलेज. पांच हज़ार छात्र पढ़ते हैं, टीचर मात्र 5 हैं. एक टीचर हज़ार छात्र को पढ़ा रहा होगा वहां.

अगर आप बिहार के हैं तो दिल पर हाथ रखकर कहिए कि क्या आप दिल्ली यूनिवर्सिटी छोड़ कर अपने बच्चे का एडमिशन पटना यूनिवर्सिटी में कराना चाहेंगे, यह जानते हुए कि वहां टीचर नहीं हैं. कई बार तो लगता है कि प्रधानमंत्री को शताब्दी वर्ष में जाने का अपना इरादा ही बदल देना चाहिए. हमारी कोशिश यही थी कि प्रधानमंत्री तक यह जानकारी पहुंचे वरना उनके भाषण में केवल गौरवगान ही होगा, वर्तमान नहीं होगा. वे ग़लत जानकारी के शिकार हो जाएंगे. उन्हें अपने भाषण में खाली क्लास रूम, खाली शिक्षकों की बात करनी चाहिए. मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री से पूछना चाहिए कि पटना यूनिवर्सिटी की ऐसी हालत क्यों है वो भी तब जब दोनों वहीं के छात्र हैं, और उनके कार्यालय से एक घंटे की दूरी पर है. वैसे प्रधानमंत्री को एक चक्कर पटना का भी लगा लेना चाहिए, उन्हें पता चलेगा कि शहर में स्वच्छता की हालत कितनी खराब है. वे किसी गुप्त कार में बैठकर किसी भी गली में चले जाएं, गंदगी मिलेगी.

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