हमारे देश में लापरवाही के कारण ट्रेन सड़क दुर्घटना में लाखों लोग मारे जाते हैं। जांच कमेटी और मुआवज़े का एलान सुनकर हम भूल जाते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री रेल मंत्री और मुख्यमंत्री के शोक संदेशों को हमें इंसाफ़ मानने की आदत हो गई है। लेकिन दिल्ली उपहार सिनेमा कांड में मारे गए 59 लोगों के परिवारवालों ने ऐसा नहीं किया। वे आगे आए और 18 सालों तक अंसल बंधुओं की ताकत के आगे लड़ते रहे। 18 साल गुज़रने के कारण ज़रूरी है कि एक बार हम फिर से देखें कि हुआ क्या था। तब जाकर फैसला और इंसाफ़ का मतलब समझ आएगा।
13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा के ग्राउंड फ्लोर पर रखे ट्रांसफार्मर में आग लगती है। आग की चिंगारी ट्रांसफार्मर के सामने पार्क कंटेसा कार को लपेटे में लेती है। उसके बाद पार्किंग में खड़ी 28 कारें भी जलने लगती हैं। नियम के अनुसार ट्रांसफार्मर के पीछे की दीवार छोटी होनी चाहिए थी लेकिन दीवार ऊंची बनाई गई जिससे धुआं सीढ़ियों के सहारे सिनेमा हाल के भीतर भरने लगा।
पहले पहुंचा पहले तल पर जहां 750 लोग बार्डर फिल्म देख रहे थे मगर वहां से सभी सुरक्षित भागने में कामयाब हुआ। उसके बाद धुआं चढ़ने लगा बालकनी की तरफ जहां 302 लोग फिल्म देख रहे थे। बालकनी का बीच का दरवाज़ा भीतर से लॉक था।
नियम के अनुसार लॉक नहीं होना चाहिए था। बायीं तरफ के दरवाज़े से लोग भागने लगे मगर अंधेरा होने के कारण अफरा तफरी मच गई। किसी तरह कुछ लोग बीच के दरवाज़े को तोड़ने में कामयाब तो हुए मगर वहां पहुंच गए जहां चाय नाश्ता बिकता है। सिनेमा की छत पर भाग सकते थे मगर सीढ़ी का दरवाज़ा बंद था क्योंकि अंसल ने ऊपर दफ्तर बना लिया था। इस बीच धुआं काफी भर चुका था।
दायीं तरफ बैठे लोग फंस गए। वे दायीं तरफ से दरवाज़े से निकल सकते थे मगर वहां पर अंसल बंधुओं ने अपने परिवार के लिए आठ सीटों वाला एक फैमिली बाक्स बना दिया था। लोग फंस गए और दम घुटने से मर गए। आग से कोई नहीं मरा। दरवाज़ा न होने, अनाउंसमेंट सिस्टम के न चलने, बाक्स बनाने से लोग मरे। जिस शाम आग लगी उस दिन सवेरे के वक्त भी आग लगी थी। जिसे बिजली विभाग के कर्मचारी ठीक कर गए थे।
ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हर स्तर पर इन अठारह सालों में कहा गया कि अंसल बंधुओं ने हर नियम को तोड़ा है। पैसा कमाने के लालच में लोगों की जान की परवाह नहीं की। इस मामले में सुशील अंसल और गोपाल अंसल के अलावा 14 लोगों को आरोपी बनाया गया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान 6 आरोपियों की मौत हो गई। एक आरोपी को डिमेंशिया होने के कारण छोड़ दिया गया। सीबीआई ने मानवता के आधार पर इसका विरोध नहीं किया।
सिनेमा हाल के गेटकीपर मनमोहन उनियाल को दो साल की कैद सुनाई गई
उनियाल ने दो साल का जेल काटा।
दिल्ली विद्युत बोर्ड के दो इंस्पेक्टरों को भी दो साल की सज़ा हुई। जेल हुई।
ट्रायल कोर्ट ने सुशील अंसल और गोपाल अंसल को दो साल की जेल की सज़ा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने इनकी सज़ा दो से एक साल की कर दी। सुशील अंसल ने लगभग साढ़े पांच महीना और गोपाल अंसल ने लगभग साढ़े चार महीना जेल की सज़ा काटी । 2014 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतिम फैसला सुनाया दोनों जजों ने
हाईकोर्ट की तरह अंसल बंधुओं को उपहार कांड का दोषी माना।
अंतर आ गया सज़ा को लेकर।
एक जज ने अपने फैसले में एक साल की सज़ा बरकरार रखी।
दूसरी जज ने सुशील अंसल की सज़ा घटा दी।
कहा कि सुशील जितनी जेल काट चुके हैं वो पर्याप्त है।
और सुशील अंसल और गोपाल अंसल को 50 50 करोड़ का जुर्माना दें।
गोपाल अंसल की सज़ा एक साल मानी गई।
इस अंतर के कारण यह फैसला पहुंचा तीन जजों की बेंच में।
बुधवार को इसी बेंच ने अपना फैसला सुनाया दोनों भाइयों को तीस तीस करोड़ का जुर्माना देना होगा। अदालत ने इन्हें आपराधिक लापरवाही का दोषी माना लेकिन कहा कि 100 की जगह 60 करोड़ दिल्ली सरकार के पास जमा करायें जाएं जिससे द्वारका में एक ट्रामा सेंटर बनेगा।
इस केस को किसी युद्ध की तरह लड़ती रही नीलम कृष्णमूर्ति की गुज़ारिश यही थी कि हमें मुआवजा या जुर्माना नहीं चाहिए। हमें इंसाफ चाहिए और वो इंसाफ मिलेगा सख्त सज़ा से ताकि पूरे देश में ये संदेश जाए कि सार्वजनिक जगहों पर लोगों की सुरक्षा से खिलवाड़ करना कितना बड़ा अपराध हो सकता है। नीलम कृष्णमूर्ति ने इस केस को लड़ते लड़ते अपना कोराबार छोड़ दिया। उपहार पीड़ितों को जमा किया।
18 साल तक मुकदमा लड़ा इस उम्मीद में कि इंसाफ मिलेगा। चाहे कोई कितना ही ताकतवर क्यों न हो। तभी मैंने कहा कि हर साल भारत भूमि पर हज़ारों लोग किसी की लापरवाही से मर जाते हैं मगर किसी ने नीलम जैसे हौसला दिखाकर रेलवे या सड़क महकमों से लोहा लिया होता तो आज तस्वीर दूसरी होती।
इसके बाद भी इस सवाल का जवाब नीलम जी को नहीं मिला है कि इंसाफ मिला क्या। नीलम की लड़ाई को 59 लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए ज़रूरी मानते हुए उनके वकील के टी एस तुलसी ने 18 सालों में एक पैसा नहीं लिया। सीबीआई की तरफ से लड़ते हुए मशहूर वकील हरीश साल्वे ने भी एक नया पैसा नहीं लिया।
बुधवार की बहस में हरीश साल्वे मौजूद नहीं थे उन्हें लगा कि दो दिन बहस होगी। गुरुवार सुबह उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई कि मुझे सिर्फ 15 मिनट के लिए सुन लिया जाए। अदालत ने कहा कि समीक्षा याचिका दायर कीजिए सुनवाई पूरी हो चुकी है। तीन तीन अदालतों ने अंसल बंधुओं को हर स्तर पर दोषी माना है। आप इस केस के डिटेल को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि सीधे तौर पर सिनेमा मालिक किस तरह की लापरवाही कर रहे थे। 1997 के वक्त भी हमारे कानून में एक एक एक्ट ऐसा था जो साफ बताता है कि लोगों की सुरक्षा के लिए क्या करना था। नहीं किया गया। हर एक्ट के अनुसार लापरवाही हुई।
प्रशासन के स्तर पर कई बार अंसल सिनेमा को चेतावनी दी गई।
बालकनी में 250 सीट की अनुमति थी, लगाई गई 302 सीटें।
सीटें घटाने के लिए बोला गया तो अंसल हाई कोर्ट चले गए।
हाई कोर्ट ने डीसीपी लाइसेंस से कहा कि जांच कीजिए।
डीसीपी ने 6 सीटें कम कर दीं लेकिन 15 सीटें और लगाने की अनुमति दे दी।
डीसीपी लाइसेंस के ख़िलाफ इस वक्त ट्रायल कोर्ट में मामला चल रहा है।
इसी हाल में 1989 में भी रात ग्यारह बजे आग लगी थी लेकिन रात के शो के कारण भीड़ कम थी और किसी की जान नहीं गई। अंसल सिनेमा का लाइसेंस भी सस्पेंड किया गया। 1983 से ये सिनेमा हाल अस्थायी परमीट पर चल रहा था। तो हर स्तर पर असंल बंधुओं को पता था कि ख़तरा कहां हो सकता है। वे लापरवाह रहे। इसीलिए उपहार पीडितों की दलील रही कि सज़ा मिले।
ये जेल जायें ताकि सबको सबक मिले। लेकिन क्या सज़ा मुक्कमल हुई। संसद के सत्र को लेकर चिन्तित रहने वाला हमारे लोकतंत्र का प्रहरी उद्योग जगत भी चुप है। उसे वे 59 लोग दिखाई नहीं दे रहे जो लोकतंत्र के ही हिस्सा थे। प्राइम टाइम में हम बात करेंगे कि उपहार कांड में इंसाफ हुआ या दोषियों को उपहार मिला। अदालतें ही कहती हैं कि इंसाफ़ होना ही नहीं चाहिए, होते हुए भी दिखना चाहिए। क्या आपको दिख रहा है।
This Article is From Aug 20, 2015
दर्द का 'उपहार' : फैसले से मायूस हैं पीड़ित
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 20, 2015 21:39 pm IST
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Published On अगस्त 20, 2015 21:12 pm IST
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Last Updated On अगस्त 20, 2015 21:39 pm IST
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