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This Article is From Jan 23, 2018

पद्मावत - करणी सेना बैन हो या हिंसाग्रस्त राज्यों में लगे राष्ट्रपति शासन

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 23, 2018 15:56 pm IST
    • Published On जनवरी 23, 2018 15:16 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 23, 2018 15:56 pm IST
पद्मावत फिल्म की रिलीज़ के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करने के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों को सख्त फटकार लगाते हुए कहा है कि हिंसक तत्वों को बढ़ावा देने की बजाय सरकारों को कानून व्यवस्था संभालना चाहिए. 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेताओं के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं की गई -  
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद करणी सेना के हिंसक विरोध की आग से गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और अन्य इलाके झुलसने लगे हैं. राजस्थान में फिल्म डिस्ट्रीब्यूटरों के सामूहिक बहिष्कार के बाद पद्मावत शायद ही रिलीज हो पाए और अहमदाबाद में फिल्म रिलीज़ के लिए सिनेमा मालिकों ने भारी पुलिस सुरक्षा मांगी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों को मौखिक फटकार की बजाय बयानबाज नेताओं के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई यदि की जाती तो फिल्म की रिलीज़ में शायद ही कोई दिक्कत होती. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यदि पद्मावत पूरे देश में 25 जनवरी को रिलीज नहीं हो पाए, तो क्या कानूनी स्थिति बन सकती है?  

हिंसा रोकने में विफल होने पर राज्यों में लगे राष्ट्रपति शासन- 
संविधान के अनुच्छेद 141 तहत सुप्रीम कोर्ट का आदेश देश का क़ानून है, जिसे मानने के लिए राज्य सरकार बाध्य हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते पारित आदेश में हिंसक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश देते हुए फिल्म की सुरक्षित रिलीज़ कराने के लिए राज्यों को आदेश दिया था. मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावों की वजह से राज्य सरकारें प्रायोजित हिंसा को रोकने की बजाय फिल्म की रिलीज़ पर तमाम अड़ंगे लगा रही हैं. राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख हलफनामे में कहा है कि फिल्म रिलीज़ होने पर बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है. विफलता की इस स्वीकरोक्ति के बाद राज्यों में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की कारवाई क्यों नहीं होनी चाहिए?

सेंसर बोर्ड भंग हो और प्रसून जोशी इस्तीफ़ा दें- 
पद्मावती को पिछले साल 2017 में रिलीज़ होना था, परन्तु व्यापक विरोध के बाद सेंसर बोर्ड ने कथित तौर पर 300 कट लगाने के साथ फिल्म का नाम बदलकर पद्मावत करने पर जोर दिया जिससे फिल्म की रिलीज़ में विलंब हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम इतिहासकार नहीं हैं और सेंसर बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट के बाद फिल्म की रिलीज़ पर राज्यों द्वारा कैसे आपत्ति की जा सकती है? भाजपा शासित राज्यों द्वारा पद्मावत पर आपत्ति को, क्या केन्द्रीय सेंसर बोर्ड के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं माना जाना चाहिए? अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक प्रसून जोशी को फिल्मों में डर्टी पॉलिटिक्स के खिलाफ, त्यागपत्र देकर एक नयी मिसाल क्यों नहीं पेश करना चाहिए? 

करणी सेना पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगता- 
शुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए पद्मावत का विरोध कर रही करणी सेना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिंसा पर उतारू दिख रही है. फिल्म को देखे बगैर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप कितना सही है और इससे जनता के किस वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंच रही है, यह साफ़ नहीं है? जिन वरिष्ठ पत्रकारों ने फिल्म देखा है, वे भी असमंजस में है कि आखिर फिल्म की किस बात का विरोध हो रहा है? हिंसा को रोकने और सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान से बचाने के लिए करणी सेना जैसे हिंसक संगठनों पर राज्यों द्वारा प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया जाता? भीडतंत्र में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सामने सरकारों के झुकने से यदि ‘क़ानून का जौहर’ हुआ तो यह लोकतंत्र के इतिहास में दुखद अध्याय होगा.

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