ओरल सेक्स क्या होता है : मैं कांप गई, जब मेरे 12-वर्षीय बेटे ने किया यह सवाल

ओरल सेक्स क्या होता है : मैं कांप गई, जब मेरे 12-वर्षीय बेटे ने किया यह सवाल

"मां, ओरल सेक्स क्या होता है...?"

सोचिए, सर्दियों की शाम हो, और आप भारत और इंग्लैंड के बीच खेला जा रहा रोमांचक वन-डे क्रिकेट मैच देख रहे हों, तभी आपका बेटा, जो बहुत जल्द किशोरावस्था में प्रवेश करने जा रहा है, इस तरह का कोई सवाल पूछ बैठे... उस वक्त जिस कंबल को आपने अब तक ठंड से बचने के लिए ओढ़ा हुआ था, आप उसी कंबल के भीतर इस तरह धंस जाना चाहते हैं, ताकि बाहर न निकलना पड़े, लेकिन आप भी जानते हैं, ऐसा मुमकिन नहीं है... वैसे, मैं खुद को आधुनिक युग की सबसे बढ़िया किस्म की मां मानती हूं, जो बच्चों की मां कम, दोस्त ज़्यादा है, 'कूल' है, और आसानी से विचलित नहीं होती...

खैर, मेरे मुंह से अभी ढंग से बोल भी नहीं फूटा था कि मेरे बड़े बेटे ने दखल दिया, "उफ... मां तो ऐसे बता रही हैं, जैसे यह बायोलॉजी का कोई लेसन हो... मैं तुम्हें बाद में ढंग से समझा दूंगा..."

"नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगे, और 'ढंग से समझा दूंगा' का क्या मतलब होता है...?" मैंने सोचा, लेकिन ज़ोर-ज़ोर से धड़कते मेरे दिल का एक कोना यह भी कह रहा था, यह बच निकलने का बिल्कुल सटीक मौका है, दोनों भाई आपस में समझ लेंगे, सो, मैं बच निकल सकती हूं, लेकिन फिर हिम्मत जुटाकर मैंने खुद जवाब देने का फैसला किया, और फिर एक के बाद एक कई सवालों और उनके जवाबों के बाद दिल की धड़कन सामान्य हो पाई... यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि इस सारे किस्से के दौरान पतिदेव ने चुप्पी साधे रहने का फैसला किया था, और उनके गले से निकलतीं कुछ अजीब आवाज़ों के अतिरिक्त उनकी ओर से कुछ भी सुनाई नहीं दिया...

12 साल के हो चुके बेटे की सवालिया आंखें मेरी ओर ताक रही थीं, और मैंने कहा कि यह ऐसा कुछ होता है, जो एक-दूसरे से प्यार करने वाले दो लोग किया करते हैं... वे दोनों अपनी इच्छा से यह करते हैं, दोनों ही वयस्क हो चुके होते हैं, यानी दोनों 18 साल की उम्र पार कर चुके होते हैं, और दोनों ही यह करना चाहते हैं... और ऐसा करने से बच्चे पैदा नहीं होते...

फिर एक और सवाल : लेकिन यह सामान्य सेक्स से किस तरह अलग है...?

मैंने दिया जवाब : इसका तरीका अलग होता है, और जब तुम सही उम्र में आ जाओगे, तुम भी वह तरीका जान जाओगे... सुपरहीरो की सुपरपॉवर की तरह इसके बारे में भी समझाना या बताना मुश्किल होता है, लेकिन वक्त और उम्र के साथ सब पता चल जाता है...

वह लगभग संतुष्ट हो चुका था, और लगभग उसी वक्त रविचंद्रन अश्विन की फेंकी एक शानदार गेंद ने भी उसका ध्यान बंटा दिया, और मैं बच गई...

जब दोनों बच्चे सोने के लिए जा रहे थे, मैंने खुद से पूछा - क्या हम उन्हें कुछ ज़्यादा ही सवाल पूछने की इजाज़त दे रहे हैं... क्या अभी इस तरह की चर्चा के लिए उनकी उम्र कुछ कम नहीं है... वे ये सब सवाल ढूंढकर कहां से लाते हैं...?

मैं इस तरह का कोई सवाल अपने माता-पिता से कर पाने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी... मैं परमात्मा का शुक्रिया अदा करती हूं कि मेरी मां ने मुझे मासिक धर्म के बारे में बताया था, लेकिन बस... सिर्फ उतना ही... जब हम बड़े हो रहे थे, किसी भी मुश्किल सवाल के जवाब तय थे - "अभी ये सब जानने की तुम्हारी उम्र नहीं हुई...", "यह कुछ भी नहीं होता...", "मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा / बताऊंगी..." या "बस, इतना ही काफी है..." और हां, हमें इस जवाब के बाद दोबारा उसी मुद्दे पर बात करने की इजाज़त भी नही होती थी...

शायद यही वजह है कि मैंने अपने बच्चों को हमेशा मुझसे सवाल करने के लिए प्रोत्साहित किया, कुछ भी, सब कुछ... लेकिन क्या हमारे माता-पिता ज़्यादा चतुर थे...? खासतौर से हदों को साफ-साफ तय करने के मामले में... शायद... लेकिन आज के 'हर जानकारी हाथ में' वाले युग में, कोई अभिभावक जानकारी को बच्चों तक पहुंचने से रोककर रख सकता है...? क्या मुझे ऐसा करना चाहिए...?

हमने अपने बड़े बेटे को मोबाइल फोन तब दिया था, जब वह 13 साल का हो गया था, और हमें बताया गया कि हमने ऐसा सबसे बाद में किया है... बेटे द्वारा दिए गए 'सभी दोस्तों के पास सेलफोन है' वाले तानों-उलाहनों के अलावा बहुत-सी मांओं ने भी मुझसे कहा था, "उसके पास फोन नहीं होना बहुत नुकसानदायक हो सकता है..." खैर, अब हमारे बीच इस मुद्दे पर लगातार बहस होती रहती है कि वह कितना वक्त अपने फोन के साथ बिताएगा... स्नैपचैट, व्हॉट्सऐप, यूट्यूब और उसके फोन में मौजूद 208 अन्य ऐप एक ऐसी दुनिया बना दे रहे हैं, जिनसे मुझे दिक्कत है, लेकिन अगर आप अपने बच्चे की ज़िन्दगी में अपना दखल बरकरार रखना चाहते हैं, तो आपको उस तकनीक की खासियतें और खामियां मालूम होनी ही चाहिए, जो आपका बच्चा इस्तेमाल कर रहा है...

कभी-कभी बच्चों से 'यूं ही' बातचीत करने और वे अपने मोबाइल फोन से क्या-क्या सीख रहे हैं, यह जानने के बीच संतुलन बनाए रखना ही शायद उनकी ज़िन्दगी में झांकने का एकमात्र रास्ता है, और यह सुनिश्चित करने का भी कि वे सही रास्ते पर जा रहे हैं या नहीं... कभी-कभी अचानक शुरू की गई बातचीत में भी तरह-तरह के सवाल सामने आ सकते हैं...

मसलन...

नाश्ते की मेज़ पर...

12-वर्षीय पुत्र ने पूछा, "मां, 'परपलेक्सिंग' (perplexing) का क्या अर्थ होता है...?"

मैंने कहा, "'वेरी पज़लिंग'... (Very puzzling)"

मैं फिर बोलती हूं, "वैसे, तुम्हें मालूम है न, कि किन्डल में इनबिल्ट डिक्शनरी होती है, और तुम वहां किसी भी शब्द का अर्थ देख सकते हो...?"

12-वर्षीय पुत्र का जवाब आता है, "हां, मैं जानता हूं... मैंने कल ही 'होर' (Whore) का अर्थ देखा था..."

मैं इस 'झटके' से तुरंत ही उबर आई, और मेज़ पर हो रहे वार्तालाप को महिलाओं को हमेशा सम्मान दिए जाने की तरफ घुमा दिया, और उन्हें बताया कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए, जिनसे उनका असम्मान होता हो, भले ही हमें वे शब्द कितने भी मज़ाकिया या 'कूल' क्यों न लगें...

यूं तो यह जानना ही मुमकिन नहीं होता कि वे कुछ सुन भी रहे हैं या नहीं, सो, यह जानना तो कतई नामुमकिन है कि उन्होंने आपकी कही बातों में से कितना याद रखा और कितना नहीं... किशोरावस्था वह उम्र होती है, जिसमें असमंजस, गुस्सा, प्यार, उम्मीदें, सपने और शरीर में 'उछलकूद मचाते' हारमोन आपकी सोच तय करते हैं, और कोई भी यह नहीं जान सकता कि दरअसल उनके मन में चल क्या रहा है... आमतौर पर न तो बच्चा यह जान पाता है, और अभिभावक तो कतई नहीं जान पाते...

सो, ऐसे में बेहद अहम होता है कि माता-पिता किसी भी मुद्दे से बचने की कोशिश न करें, भले ही उस मुद्दे पर चर्चा करना कितना भी मुश्किल या शर्मिन्दगी का एहसास देने वाला हो... उन्हें कभी भी रूखे या टालने वाले वे जवाब न दें, जो 'बड़े' अब तक देते रहे हैं... उन्हें सच बताएं, सच्चाई बताएं, और उन्हें यह भी बताएं कि आप किसी भी विषय को लेकर बातचीत करने पर उनके बारे में कोई राय कायम नहीं करेंगे, भले ही बातचीत का मुद्दा आपके हिसाब से सही न हो, या आप उससे सहमत न हों...

हां, इसके बाद खुद के मन में शक पैदा होते ही हैं - क्या मैंने उन्हें ज़रूरत से ज़्यादा बता दिया है... क्या उनकी उम्र यह सब जानने के लिए अभी छोटी थी... क्या होगा, अगर वे अपने दोस्तों को इस बारे में जानकारी देंगे, और वे जाकर अपने-अपने माता-पिता को यह सब बताएंगे, तो क्या मेरे लिए दिक्कत पैदा होगी...?

लेकिन अंत में, आप भी यही सोचकर खुद को तसल्ली दे पाएंगे... कम से कम उनके पास सही जानकारी तो है... वे जानते हैं कि उनके माता-पिता को उनसे क्या उम्मीदें हैं... कम से कम बारिश होने की सूरत में - जो कभी न कभी ज़रूर होगी - उन्हें मालूम होगा कि उनके पास सिर छिपाने के लिए एक छाता मौजूद है...

मनिका रायकवार अहीरवाल NDTV की मैनेजिंग एडिटर तथा एडिटर (इन्टीग्रेशन) हैं...

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