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This Article is From Nov 10, 2015

सुशील महापात्रा : 'दाल-दादरी' और 'बिहारी बनाम बाहरी' के मुद्दे पर बाहर हुई बीजेपी

written by sushil mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 11, 2015 09:58 am IST
    • Published On नवंबर 10, 2015 16:39 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 11, 2015 09:58 am IST
बिहार का चुनाव इस सदी के सबसे खतरनाक चुनाव था। इन चुनाव को खतरनाक इसीलिए कह रहा हूं क्‍योंकि इससे असली मुद्दे गायब थे। ऐसा लग रहा था कि चुनाव नहीं, बल्कि एनडीए और महागठबंधन के बीच जंग चल रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान चाय से शुरू होने वाली चर्चा इन चुनाव में गाय तक पहुंच गई। विकास और महंगाई जैसे मुद्दे गायब थे। शैतान, नरपिशाच, महापिशाच, ब्रह्म पिशाच जैसे शब्‍दों ने इस चुनाव को घेर रखा था।

शुरुआती दौर में ऐसा लग रहा था कि बिहार बीजेपी का होने वाला है। बीजेपी ने अपनी पूरी फ़ौज इस चुनाव को जीतने में लगा दी थी। बड़े-बड़े होटलों में बीजेपी के केंद्रीय मंत्री और कार्यकर्ता दिखाई दे रहे थे। बिहार के लोकल न्यूज़ पेपर में बीजेपी को हीरो की तरह पेश किया गया था और ऐसा लग रहा था कि इसका असर वोटरों पर हो रहा है।

प्रधानमंत्री की एक लाख 65 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा बिहार की जनता के बीच एक लहर जरूर लाई थी, लेकिन इस लहर को बीजेपी सही दिशा में ले जाने में कामयाब नहीं हो पाई। बिहार का 'बादशाह' बनने केलिए बीजेपी ने कोशिश जरूर की थी, लेकिन इस कोशिश में कई खामियां थीं जिसके कारण पार्टी  मंझधार में छूट गई।   

बीजेपी ने जोश में होश खोया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बड़ी रैलियां कीं। इससे पहले शायद ही किसी पीएम ने किसी राज्य के चुनाव के दौरान इतनी रैलियां की हों। मोदी बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, उनके जरिये प्रचार करना और चुनाव जीतना कोई गलत बात नहीं। वैसे भी मोदी के बिना बिहार चुनाव जीतना बीजेपी केलिए मुश्किल था, लेकिन बीजेपी नेता जोश में कई अनाप-शनाप बयान दे बैठे जो पार्टी के लिए घातक साबित हुए।

पाक को एजेंडे के रूप में इस्‍तेमाल करना खिलाफ में गया
बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने पाकिस्तान को बिहार चुनाव में एजेंडे के रूप में इस्‍तेमाल किया जो उनके खिलाफ गया। जहां बीजेपी के नेता जोश दिखाते हुए नीतीश पर हमला कर रहे थे, वहीं नीतीश संयम बरतते हुए जबाब दे रहे थे। डीएनए वाले मुद्दे पर भी बीजेपी बैकफुट में नजर आई। ऐसा लग रहा था कि नीतीश बीजेपी के हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार बैठे थे। जब-जब बीजेपी के बड़े नेता नीतीश पर हमला  कर रहे थे, उसके तुरंत बाद नीतीश प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसका जवाब दे रहे थे। इसके लिए बिहार के सीएम को कई बार अपने कार्यक्रम में भी बदलाव करना पड़ा।

'बिहारी बनाम बाहरी' मुद्दे से महागठबंधन को फायदा
दूसरे  चरण की वोटिंग तक पटना में बीजेपी के हर पोस्टर पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तस्‍वीर दिख रही थी। राज्य के किसी भी बड़े नेता की तस्‍वीर इन दोनों के साथ नहीं थी। एनडीए के बड़े नेता जैसे राम विलास पासवान, जीतन राम मांझी इस पोस्टर से गायब थे। जब बीजेपी 'सबका साथ, सबका विकास' की बात कर रही थी तब बीजेपी के खुद के पोस्टर में सब अलग-अलग दिख रहे थे। इसका फायदा महागठबंधन ने उठाया। नीतीश ने 'बिहारी और बाहरी' का मुद्दा उठाकर इसका फायदा लिया। दो चरणों के मतदान के बाद जब बीजेपी को यह अहसास हुआ, तब तक देर हो चुकी थी।

दादरी और दाल जैसे मुद्दे भारी पड़े
उत्तर प्रदेश के दादरी में हुई घटना एनडीए पर भारी पड़ी। जहां मोदी इस मुद्दे पर चुप्‍पी साधे हुए थे, वहीं बीजेपी के कुछ नेता इस मुद्दे पर बेवजह बयान दे रहे थे। इसका फायदा महागठबंधन को हुआ। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाब बीजेपी ने महंगाई, कुप्रशासन और  भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा था और पार्टी को शानदार जीत भी मिली थी। लोगों की उम्मीद थी कि बीजेपी महंगाई काबू करने में कामयाब होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दाल की कीमतों में बढ़ोत्‍तरी ने बीजेपी को चुनाव में आगे बढ़ने से रोक दिया। राहुल  गांधी ने भी नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, 'दाल-रोटी मत खाओ,  लेकिन मोदी की गुण गाओ।'  

असली मुद्दे से भटकेंगे तो बाहर हो जाएंगे
बहरहाल, चुनाव हारना और जीतना लोकतंत्र का हिस्सा है। कोई हारेगा तो कोई जीतेगा। अगर हर बार कोई जीतेगा तो फिर चुनाव ही क्यों ?  लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नहीं हारी होती तो आज देश में बीजेपी की सरकार नहीं होती, लेकिन किस मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है, यह अहम बात है। अगर हम असली मुद्दे से भटकेंगे तो सिर्फ बिहार क्‍यों, कहीं से भी बाहर हो जाएंगे।

उम्‍मीद है बीजेपी अपनी गलतियां सुधारेगी
लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी के लोकप्रियता को सभी ने देखा है। इस लोकप्रियता के पीछे कई उम्मीदें छुपी हैं। महंगाई पर अंकुश लगाने का उम्मीद , भ्रष्‍टाचार को खत्म करने का उम्मीद , सबका साथ सबका विकास की उम्मीद,  लेकिन लोगों की उम्मीदें अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। हर हार के बाद पार्टियों को सबक मिलता है, बीजेपी को भी मिला है। उम्‍मीद है कि बीजेपी अपनी गलतियों को सुधारते हुए अब लोगों की उम्मीद को आगे ले जाने में कोशिश करेगी।

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